राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उत्तर प्रदेश, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-975/2017
(जिला उपभोक्ता आयोग, शामली द्वारा परिवाद सं0-07/2014 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 21-04-2017 के विरूद्ध)
दी टाटा एआईजी जनरल इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड, ए-501, पंचम तल, बिल्डिंग नं0-4, इन्फिनिटी पार्क, जनरल ए0के0 वैद्य मार्ग, दिनदोसी, मलाड ईस्ट, मुम्बई द्वारा प्रबन्धक।
........... अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1.
बनाम
1. श्रीमती गीता देवी पत्नी श्री राम निवास, निवासी 352, बधैव कन्नू खेड़ा, थाना आदर्श मण्डी, तहसील व जिला शामली। .......प्रत्यर्थी/परिवादिनी।
2. एक्सिस बैंक लि0 द्वारा एक्जक्यूटिव डायरेक्टर, रिटेल बैंकिंग, एक्सिस बैंक लि0, मुम्बई। .......प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-2.
समक्ष:-
1. मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
2. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित: श्री टी0जे0एस0 मक्कड़ विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0-1 की ओर से उपस्थित : श्री सुशील कुमार शर्मा विद्वान
अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0-2 की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक :- 13-02-2023.
मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ के अन्तर्गत जिला उपभोक्ता आयोग, शामली द्वारा परिवाद सं0-07/2014 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 21-04-2017 के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में अपीलार्थी का कथन है कि परिवादिनी ने एक परिवाद इस आशय का प्रस्तुत किया कि उसका दावा अवैध रूप से बीमा कम्पनी द्वारा
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निरस्त किया गया। अपीलार्थी ने अपना प्रतिवाद पत्र विस्तृत तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया। मृतक बीमित व्यक्ति ने अपनी आय 15,000/- रू0 मासिक गलत दर्शायी जबकि उसकी वार्षिक आय मात्र 55,000/- रू0 थी। इस मामले में एफ0आई0आर0 पंजीकृत हुई और हत्या के मामले में आरोप पत्र भी न्यायालय में प्रस्तुत हुआ। विद्वान जिला फोरम ने इन तथ्यों की अनदेखी की और परिवाद स्वीकार किया। परिवादिनी स्वच्छ हाथों से न्यायालय के समक्ष नहीं आयी। परिवादिनी इस मामले में उपभोक्ता नहीं थी और बीमित व्यक्ति ने अपनी आय का गलत विवरण प्रस्तुत किया। उसने अपनी मासिक आय गलत दिखाई। वास्तविक तथ्यों को न्यायालय के सामने रखा गया किन्तु न्यायालय ने इस पर ध्यान नहीं दिया। इस मामले में हत्या का आरोप पत्र प्रेषित किया गया। सेवा में कोई कमी नहीं की गई। इन सब के होते हुए भी परिवाद पत्र स्वीकार किया गया। अत: प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश विधि विरूद्ध और तथ्यों से परे है। ऐसी स्थिति में विद्वान जिला आयोग का प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश अपास्त होने एवं अपील स्वीकार होने योग्य है।
हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री टी0जे0एस0 मक्कड़ एवं प्रत्यर्थी सं0-1 के विद्वान अधिवक्ता श्री सुशील कुमार शर्मा को सुना एवं पत्रावली का सम्यक रूप से परिशीलन किया। प्रत्यर्थी सं0-2 की ओर से भी कोई उपस्थित नहीं है।
हमने विद्वान जिला आयोग के प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश का अवलोकन किया। विद्वान जिला आयोग ने अपने निर्णय में लिखा है कि दु्र्घटना को पालिसी बन्ध पत्र के निबन्धनों तथा शर्तों में परिभाषित नहीं किया गया है। विद्वान जिला आयोग ने माना कि सेवा में कमी है और विद्वान जिला आयोग द्वारा निम्नलिखित आदेश पारित किया गया :-
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‘’ परिवादिनी का परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध एकाकी एवं संयुक्त रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण परिवादिनी को बीमा धनराशि 20,00,000/- रू0 मात्र एवं उस पर 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज, मृतक राज देशवाल की मृत्यु के दिनांक 26.09.2013 से भुगतान के दिनांक तक धनराशि, आज दिनांक से 30 दिन में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, शामली, में जमा करेंगे। बीमा धनराशि के भुगतान की जिम्मेदारी विपक्षी नं0 1 टाटा ए.आई.जी. जनरल इंश्योरेंस कं0लि0 की होगी। परन्तु परिवादिनी को यह अधिकार है कि वह देय धनराशि किसी भी विपक्षी से वसूल कर सकती है। अगर परिवादिनी विपक्षी नं0 2 एक्सिस बैंक लि0 से बीमा धनराशि वसूलती है उस परिस्थिति में विपक्षी नं0 2 एक्सिस बैंक लि0, वह धनराशि भुगतान के बाद, विपक्षी नं0 1 टाटा ए.आई.जी. जनरल इंश्योरेंस कं0लि0 से, वसूलने के लिये स्वतन्त्र है। इस निर्णय का अनुपालन विपक्षीगण द्वारा निर्णय के दिनांक से 30 दिवस में पूर्ण रूप से करना होगा। चूक होने पर देय धनराशि पर दण्डात्मक ब्याज, प्रस्तुत आदेश के दिनांक से समस्त देय धनराशि के भुगतान के दिनांक तक की अवधि में 12 प्रतिशत ब्याज की दर से विपक्षीगण द्वारा अतिरिक्त देय होगा। परिवाद कालावधि के पश्चात दाखिल दफ्तर हो। ‘’
इस मामले में यह कहा गया कि बीमा दुर्घटना के लिए था और हत्या दुर्घटना नहीं है। बीमित व्यक्ति ने अपनी आय को छिपाया। परिवादिनी की ओर से कहा गया कि जहॉं तक आय का सम्ब्न्ध है या बीमा कराने का सम्बन्ध है प्रशनगत बीमा एक्सिस बैंक ने कराया न कि बीमित ने स्वयं कराया।
अपीलार्थी की ओर से इस सम्बन्ध में प्रथ्वीराज भण्डारी बनाम एल0आई0सी0 व अन्य, III (2006) CPJ 213 (NC) का दृष्टान्त प्रस्तुत किया
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गया। इस निर्णय में मा0 राष्ट्रीय आयोग ने मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा श्रीमती रीता देवी बनाम न्यू इण्डिया एश्योरेंस कं0लि0, IV (2000) SLT 179, 2000 (2) T A C 213 (SC) में दिए गए निर्णय का सन्दर्भ लिया है जिसमें मा0 सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि हत्या जो दुर्घटना नहीं है और हत्या जो दुर्घटना है, दोनों ही में आपसी सम्बन्ध निहित है। यदि मुख्य आशय किसी व्यक्ति की हत्या करने का है तब यह दुर्घटना हत्या नहीं हो कर एक साधारण हत्या है। जहॉं तक मूलभूत रूप से हत्या करने का उद्देश्य नहीं रहा है और हत्या किसी कार्य के करने में हो गई हो वहॉं पर इसे दुर्घटना हत्या कहा जाएगा, अत: इसे दुर्घटना फलस्वरूप हत्या माना गया।
श्रीमती रीता देवी का निर्णय दोनों ही पक्षकारों द्वारा प्रस्तुत किया गया।
हमने इस सम्बन्ध में एफ0आई0आर0 का अवलोकन किया। इसके अनुसार घटना वाले दिन शाम को सचिन और पंकज ने राज के साथ झगड़ा किया और राज गाड़ी से उतर कर चल दिया था और उसके पीछे ये लोग भी गाड़ी ले कर चल दिए थे। इसके पश्चात् खेत में एक लाश मिली जिसको पहचाना गया और यह लिखा गया कि इसकी हत्या सचिन उपरोक्त व उसके रिश्तेदार पंकज ने प्रापर्टी की रंजिश को ले कर की है। एफ0आई0आर0 में कोई प्रत्यक्ष साक्षी का नाम अंकित नहीं किया गया है। अपीलार्थी की ओर से आपराधिक मामले के किसी अन्य साक्षी का बयान प्रस्तुत नहीं किया गया है जो यह कहे कि उसके सामने एक पूर्व आशय के अन्तर्गत हत्या कारित की गई हो। यह मात्र सम्भावना व्यक्त की गई है। जब तक अपीलार्थी इसको सिद्ध नहीं करता कि हत्या, हत्या के आशय से की गई तब तक यह नहीं कहा जा सकता कि हत्या, हत्या नहीं है बल्कि इसे दुर्घटना हत्या माना जाएगा।
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विद्वान जिला आयोग ने यह पाया कि नामित व्यक्ति सम्पूर्ण बीमा धनराशि पाने का अधिकारी है जो उचित है और यदि बाद में कोई विधिक वारिस सामने आता है तब वह नामित व्यक्ति के विरूद्ध विधि अनुसार कार्यवाही करने के लिए स्वतन्त्र होगा। अत: हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि विद्वान जिला आयोग द्वारा दिया गया प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश विधि सम्मत है और उसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। तद्नुसार अपील निरस्त होने योग्य है।
आदेश
वर्तमान अपील निरस्त की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग, शामली द्वारा परिवाद सं0-07/2014 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 21-04-2017 की पुष्टि की जाती है।
अपील व्यय उभय पक्ष पर।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
निर्णय आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-1,
कोर्ट नं.-2.