(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-2160/2002
Dr. Smt. Brij Tiwari C/O Prashant Nursing Home & others
Versus
Smt. Mithlesh Agnihotri adult Daughter of Late Sheo Narain Shukla
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
उपस्थिति:-
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित: श्री कृष्ण गोपाल, विद्धान अधिवक्ता
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित: कोई नहीं
दिनांक :17.12.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. जिला उपभोक्ता आयोग, कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0-787/1996 श्रीमती मिथलेश अग्निहोत्री बनाम प्रशांत नर्सिंग होम व अन्य में पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक 01.08.2002 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी अपील पर दोनों पक्षकारों के विद्धान अधिवक्तागण के तर्क को सुना गया। प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
2. जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए विपक्षी सं0 2 द्वारा ब्रिज तिवारी को निर्देशित किया है कि वह परिवादिनी को एक माह के अंदर 1,00,000/-रू0 का प्रतिकर अदा करे।
3. परिवाद के तथ्यो के अनुसार परिवादिनी की माता स्वर्गीय राजेश्वरी देवी दिनांक 07.10.1995 को फिसलने के कारण पेट, सर तथा गुप्तांग में चोट लग गयी, जिसे प्रशांत नर्सिंग होम ले जाया गया। विपक्षीगण डॉ0 डी0के0 तिवारी एवं डॉ0 ब्रिज तिवारी द्वारा चिकित्सा प्रारंभ की गयी और कुछ दवाइयां लिखी गयीं, परंतु कोई जांच नहीं की गयी और गुप्तांग की चोट पर टांके लगा दिये गये हैं, इसलिए जांच की आवश्यकता नहीं है, जबकि विपक्षी सं0 3 को स्पष्ट रूप से बताया गया था कि राजेश्वरी अल्सर की मरीज हो चुकी है और अल्सर का इलाज भी कराया गया। विपक्षीगण द्वारा मांगा गया सम्पूर्ण धन जमा कर दिया गया। दिनांक 10.10.1995 को परिवादिनी की माता को खून की उल्टियां होने लगी, जो विपक्षी सं0 3 द्वारा दी गयी गलत दवाइयों का परिणाम है, जहां विपक्षी डॉक्टर ब्रिज तिवारी द्वारा कहा गया कि पूर्व मे जांच की जानी चाहिए थी और यह गलती हो गयी है। इसके बाद पुन: इलाज प्रारंभ किया गया और हालत खराब होने पर लाला लाजपत राय अस्पताल के लिए रेफर कर दिया गया। एम्बुलेंस की व्यवस्था भी नहीं करायी गयी और एक रद्दी टैम्पो के माध्यम से अस्पताल भिजवाया गया, जिसके कारण खून की उल्टियां बढ़ गयी। अत्यधिक खराब हालत में हैलट अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां बताया गया कि इलाज में लापरवाही बरतने के कारण हालत चिंताजनक हो चुकी है, इसके बाद दिनांक 13.10.1995 को परिवादिनी की माता की मृत्यु हो गयी।
4. विपक्षी सं0 3 का कथन है कि उनके द्वारा राजेश्वरी देवी का कोई इलाज नहीं किया गया। केवल ब्लेकमेल करने के उद्देश्य से परिवाद प्रस्तुत किया गया है। विपक्षी सं0 1 एवं 2 का कथन है कि उन्हें यह कभी नहीं बताया गया कि मरीज को अल्सर की बीमारी है। केवल गुप्तांग मे चोट का इलाज किया गया था, जिसकी वजह से खून की उल्टियां असंभव हैं। मरीज की मृत्यु मलेरिया के कारण हुई थी। मलेरिया मे अल्सर से ग्रसित व्यक्ति को खून की उल्टियां होती हैं। परिवादिनी द्वारा दी गयी दवाओं के कारण मृत्यु होने का कोई सबूत नहीं है।
5. पक्षकारों के साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात जिला उपभोक्ता आयोग ने यह निष्कर्ष दिया है कि लाला लाजपत राय अस्पताल के बेडहेड टिकट के अवलोकन से जाहिर होता है कि वादिनी की माता मलेरिया की मरीज थी तथा मलेरिया के कीटाणु भी मौजूद थे और विपक्षी डॉक्टर ने इलाज प्रारंभ करने से पूर्व जांच नहीं करायी, इसलिए वह लापरवाही के लिए उत्तरदायी है।
6. इस निर्णय एवं आदेश के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी अपील के ज्ञापन में वर्णित आधारों तथा मौखिक बहस का सार यह है कि अपीलार्थी द्वारा मरीज के गुप्तांग में आयी चोटों का इलाज किया गया है। इस इलाज को प्रारंभ करने से पूर्व किसी प्रकार की परीक्षण की आवश्कता नहीं थी। उस चोट के लिए जिस इलाज की आवश्यकता थी, वह इलाज प्रदान किया गया और कभी भी यह नहीं बताया गया कि मरीज अल्सर नामक बीमारी से ग्रसित है।
7. सम्पूर्ण पत्रावली के अवलोकन से ज्ञात होता है कि जिस समय अपीलार्थी डॉक्टर द्वारा इलाज प्रारंभ किया गया, उस समय अल्सर के मरीज होने या मलेरिया के मरीज होने का कोई सबूत संबंधित डॉक्टर के पास नहीं था। प्रत्यर्थी द्वारा अल्सर के इलाज होने का कोई कागज अपीलार्थी डॉक्टर को नहीं दिखाया गया था और न ही मलेरिया के इलाज का कोई पर्चा अपीलार्थी डॉक्टर को दिखाया गया। अपीलार्थी डॉक्टर ने जिस समय मरीज का इलाज किया, उस समय गुप्तांग पर चोट पायी गयी, जिसमें टांके लगाये गये तथा दर्द निवारक एवं घाव भरने वाली दवाइयां प्रदान की गयी थी। इन दवाओं के प्रयोग से मृत्यु होने का कोई कारण नहीं है। जिला उपभोक्ता आयोग का यह निष्कर्ष विधि-विरूद्ध है कि डॉक्टर द्वारा इलाज प्रारंभ करने से पूर्व शारीरिक परीक्षण नहीं किया गया। शारीरिक परीक्षण करने की आवश्यकता वहीं होती है जहां पर किसी गंभीर बीमारी का इलाज प्रारंभ किया गया हो या ऑपरेशन किया जाना आवश्यक हो। ऑपरेशन करने से पूर्व मरीज की सम्पूर्ण शारीरिक स्थिति का जायजा लिया जाता है, परंतु गुप्तांग में कारित एक सामान्य सी क्षति के लिए शारीरिक परीक्षण कराया जाना न आवश्यक था, न ही गुप्तांग में आयी चोटों का इलाज कराने से पूर्व किसी प्रकार की रिपोर्ट प्राप्त करना आवश्यक एवं अपरिहार्य था। तत्क्रम में मरीज के किसी अन्य बीमारी से ग्रसित होने का कोई कागज अपीलार्थी डॉक्टर को प्रत्यर्थी द्वारा नहीं दिखाया गया, इसलिए प्रकरण में डॉक्टर को उत्तरदायी ठहराना कदाचित विधि-सम्मत नहीं कहा जा सकता। अत: डॉक्टर की लापरवाही के बिन्दु पर जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा दिया गया निष्कर्ष विधि-सम्मत नहीं है। तदनुसार अपील स्वीकार होने योग्य है ।
आदेश
अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता मंच द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्त किया जाता है।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय)(सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट 2