राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(मौखिक)
अपील संख्या:-2762/2018
(जिला उपभोक्ता आयोग, प्रथम लखनऊ द्धारा परिवाद सं0-861/2013 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 04.6.2018 के विरूद्ध)
Tata Motors Finance Limited, I-Think Techno Campus Building A, IInd Floor, Off Pokhran Road-2, Thane West-400 601, Maharashtra; & Having its State Office at; 504, ABC, 5th Floor, Ratan Square, 20-A, Vidhan Sabha Marg, Lucknow.
........... Appllant/Opp. Party
Versus
Sirajuddin S/o Sh. Mumtazuddin, R/o176/293 Old Haider Ganj, Near Charminari Masjid, Lucknow.
…….. Respondent/Complainant
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य
अपीलार्थी के अधिवक्ता :- श्री राजेश चडढा
प्रत्यर्थी के अधिवक्ता :- श्री अनिल कुमार मिश्रा
दिनांक :-04.10.2021
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील इस न्यायालय के सम्मुख अपीलार्थी सर्व श्री टाटा मोटर्स फाइनेंस लिमिटेड द्वारा धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत प्रस्तुत की है।
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने दौरान नीलामी एक मोटर वाहन VISTA AURA Quadra वर्ष-2012 में क्रय किया, जिसके मूल्य का भुगतान प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा समयावधि में किया गया। उपरोक्त मोटर वाहन का रजिस्ट्रेशन नं0-यू0पी0 64 एल 3100 है। उक्त मोटर के अलावा प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा एक अन्य मोटर वाहन Indica Dle, जिसका रजिस्ट्रेशन सं0-यू0पी0 32 CZ 3235 है, दिनांक 30.10.2012 को नीलामी के माध्यम से खरीदा। उपरोक्त दोनों वाहनों का
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स्थानांतरण कराने के लिए प्रत्यर्थी/परिवादी को अपीलार्थी/विपक्षी फाइनेंस कम्पनी द्वारा निबन्धन/रजिस्ट्रेशन से सम्बन्धित प्रपत्र उपलब्ध नहीं कराये गये, अत्एव प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा उपरोक्त वाहनों को एक गैराज में खड़ा किया गया, जिसका पार्किंग चार्ज उसके द्वारा रू0 60.00 प्रतिदिन के हिसाब से गैराज मालिक को दिया गया। उपरोक्त दोनों वाहनों में से एक वाहन संख्या-यू0पी0 32 CZ 3225 व्यावसायिक वाहन है तथा उपरोक्त वाहन के कागजात प्रत्यर्थी/परिवादी को अपीलार्थी/फाइनेंस कम्पनी द्वारा न दिये जाने के कारणवश उक्त वाहन का मालिकाना हक उसे प्राप्त नहीं हो सका, जिस हेतु प्रत्यर्थी/परिवादी को प्रतिदिन का नुकसान चुकाना पडा।
प्रत्यर्थी/परिवादी ने विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख परिवाद प्रस्तुत करते हुए निम्न अनुतोष प्रदान करने की प्रार्थना की:-
A- That an order to pay the damages of Rs 1116000 ( Rs Eleven Lacs Sixteen Thousands) damages as per loss sustained due to illegal and willful retaintion of the Paper of the vehicle @ Rs 2000/ Perday for the loss of non using the vehicle and Degradation of the one year in the model has sustained and it loss the amount Rs 20,000 Each on two vehicle as such the Financial Loss the Rs 1076000 and Rs 40000 (Damages since 20.3.2013 to the 23.8.2013 about 1 year 5 month and 3 days time @ the damages caused Rs 2000 perday) and as such total damages caused Rs 1076000 and Rs 40000=11,16,000(Rs eleven Lacs and sixteen thousand) as the financial loss has been caused due to the Opposite parties action.
B- That the Loss of Rs 50,000 as the damages for mental igony and Torture caused by the opposite parties.
C- To award the cast of the Complaint of the Rs. 5,000/ as the loss substained in filing the Complaint.
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D- Any other relief which this court may deem fit and proper in the ends of justice may also be awarded.
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग प्रथम लखनऊ द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद सं0-861/2013 को अपने निर्णय/आदेश दिनांक 04.6.2018 के द्वारा आंशिक रूप से स्वीकार किया गया तथा अपीलार्थी/फाइनेंस कम्पनी को निर्देशित किया गया कि वे प्रत्यर्थी/परिवादी को मु0 5,58,000.00 मय 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से वाद दायर करने की तिथि से 45 दिन की अवधि में अदा करेंगे, साथ ही साथ अपीलार्थी, प्रत्यर्थी/परिवादी को मु0 20,000.00 मानसिक क्षति एवं मु0 5,000.00 रू0 वाद व्यय के रूप में अदा करेंगे। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा यह भी आदेशित किया गया यदि निश्चित अवधि में भुगतान न करने की दशा में उपरोक्त सम्पूर्ण राशि पर अपीलार्थी/फाइनेंस कम्पनी प्रत्यर्थी/परिवादी को 12 प्रतिशत ब्याज भी प्रदान करेगी।
प्रस्तुत अपील जिला उपभोक्ता आयोग, प्रथम लखनऊ द्वारा पारित उपरोक्त निर्ण्ाय/आदेश के विरूद्ध अपीलार्थी/फाइनेंस कम्पनी द्वारा योजित की गई।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता एवं प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता सर्व श्री राजेश चडढा एवं श्री अनिल कुमार मिश्रा को विस्तृत रूप से सुना।
अपीलार्थी/फाइनेंस कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा कथन किया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख बनावटी और झूठा परिवाद दायर किया गया था तथा यह कि अपने परिवाद पत्र में प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा समस्त तथ्यों का उल्लेख नहीं किया तथा उसे परिवाद प्रस्तुत करने का कोई कारण भी नहीं उत्पन्न था तथा यह वह
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अपीलार्थी/फाइनेंस कम्पनी के दबाव में लाने तथा ब्लैकमेल करने के कारणवश दबाव बना रहा था, जिस हेतु परिवाद प्रस्तुत किया गया। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह भी कथन किया गया कि वाहन के नीलामी के उपरांत वाहन क्रेता अर्थात परिवादी अर्थात प्रस्तुत अपील में प्रत्यर्थी को समस्त कागजात प्राप्त करा दिये गये थे। जिसके सम्बन्ध में अपीलार्थी/फाइनेंस कम्पनी द्वारा जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख प्रस्तुत लिखित कथन के साथ संलग्नक-1 के रूप में हस्तलिखित विवरण जिसमें उपरोक्त दो वाहनों का जिक्र भी है तथा प्रत्यर्थी/परिवादी के नाम का जिक्र भी है, का विवरण मात्र उसके चेचिस नम्बर, रजिस्ट्रेशन नम्बर, नीलामी में खरीदने वाले का व्यक्ति नाम व तिथि अंकित है, न कि अन्य कोई विवरण।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह भी कथन किया गया कि अपीलार्थी द्वारा उपरोक्त प्रपत्र ही नीलामी से सम्बन्धित रखे जाते हैं, जो जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख प्रस्तुत किये गये, परन्तु जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा उपरोक्त प्रपत्रों का सम्यक परिशीलन एवं विचारण नहीं किया गया। अत्एव जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्त किये जाने योग्य है।
प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता द्वारा कथन किया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने सम्बन्धित वाहन नीलामी में लेने के बाद जब उसे फाइनेंस कम्पनी उससे सम्बन्धित अन्य कागजात प्राप्त नहीं कराये गये, तब अनेकों बार प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी के कार्यालय में जाता रहा, परन्तु प्रत्यर्थी/परिवादी को अपीलार्थी द्वारा कोई भी प्रपत्र/कागजात प्राप्त नहीं कराये गये। प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का यह भी कथन है कि अपीलार्थी/विपक्षी फाइनेंस कम्पनी द्वारा परिवाद पत्र में जो
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लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है तथा जिस रजिस्टर की फोटोप्रति अपीलार्थी/विपक्षी फाइनेंस कम्पनी द्वारा दाखिल की गई है वह आगन्तुक रजिस्टर है जो भी व्यक्ति जिस वाहन को देखने आता है उस वाहन का नम्बर, जो व्यक्ति गाडी देखने/निरीक्षण करने जाता है उसका नाम और तिथि अंकित की जाती है, जिस पर उस व्यक्ति के/ निरीक्षणकर्ता के हस्ताक्षर भी कराये जाते है, जो कि अपीलार्थी/विपक्षी फाइनेंस कम्पनी द्वारा प्रस्तुत की गई।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह भी कथन किया गया कि उपरोक्त छायाप्रति अर्थात रजिस्टर जिसके दो पृष्ठ उत्तर पत्र के साथ अपीलार्थी द्वारा दाखिल किये गये है, के प्रथम पृष्ठ तथा नम्बर कालम के ऊपर यह अंकित नहीं है कि वह कालम किस हेतु बनाया गया है अर्थात किस लिए है। प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का यह भी कथन किया कि यदि यह हस्ताक्षर वाहन के कागजात को देने के संबंध में लिए गये होते, तब अपीलार्थी/फाइनेंस कम्पनी उपरोक्त दोनों वाहनों के कागजात को प्रत्यर्थी/परिवादी को प्राप्त कराने के सम्बन्ध में उपरोक्त प्रपत्रों में वर्णित करते, परन्तु ऐसा कुछ भी उनके द्वारा नहीं किया गया, न ही उक्त प्रपत्रों को देखने से ऐसा प्रतीत होता है।
हमारे द्वारा उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्ता द्व्य को सुना। प्रस्तुत अपील में वर्णित तथ्यों का अवलोकन किया गया। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा परिवाद पत्र जो कि जिला उपभोक्ता आयोग, प्रथम लखनऊ के सम्मुख प्रस्तुत किया गया है, का परिशीलन किया गया एवं जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा दिये गये निर्णय/आदेश का सम्यक परीक्षण किया गया।
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उपरोक्त परीक्षणोपरांत हम इस मत के हैं कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा जो यह तथ्य अपने निर्णय में इंगित किया गया है कि अपीलार्थी का यह कथन कि एक वाहन हेतु परिवादी ने आगन्तुक रजिस्टर की छायाप्रति दाखिल की है, जिसमें वाहनों के नम्बर अलग-अलग अंकित है, तब प्रश्न यह उठता है कि क्या एक वाहन के प्रपत्र दो बार दिये गये, जो कथन स्वयं में अपीलार्थी के विरूद्ध जाता है। उपरोक्त तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए तथा समस्त तथ्यों पर विचार करने के उपरांत हम यह पाते हैं कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा जो निर्णय/आदेश परिवाद में पारित किया गया है वह पूर्णत: सही है, जिसमें किसी प्रकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है, अत्एव प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है। अपीलार्थी को आदेशित किया जाता है कि वह जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश का अनुपालन 30 दिवस की अवधि में सुनिश्चित करें।
धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनिमय, 1986 के अन्तर्गत अपील में जमा धनराशि 25,000.00 रू0 अर्जित ब्याज सहित सम्बन्धित जिला उपभोक्ता आयोग को निस्तारण हेतु प्रेषित की जाये।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की बेवसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (विकास सक्सेना)
अध्यक्ष सदस्य
हरीश आशु.,
कोर्ट नं0-1