Uttar Pradesh

StateCommission

A/2012/1802

Post Office - Complainant(s)

Versus

Shyam Babu - Opp.Party(s)

Dr U V Singh

08 Oct 2020

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2012/1802
( Date of Filing : 16 Aug 2012 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Post Office
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Shyam Babu
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Vikas Saxena PRESIDING MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 08 Oct 2020
Final Order / Judgement

(मौखिक)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

अपील संख्‍या-1802/2012

(जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, इलाहाबाद द्वारा परिवाद     संख्‍या-399/2009 में पारित निर्णय और आदेश दिनांक 25.04.2012 के विरूद्ध)

 

1. पोस्‍ट आफिस, फाफामऊ द्वारा पोस्‍ट मास्‍टर, फाफामऊ, इलाहाबाद।

2. पोस्‍ट मास्‍टर, पोस्‍ट आफिस, फाफामऊ, इलाहाबाद।

अपीलार्थीगण/विपक्षीगण

                                               बनाम        

श्री श्‍याम बाबू पुत्र श्री दुर्गा प्रसाद, निवासी-पुराना फाफामऊ (निकट बसना नाला), तहसील-सोरांव, जिला इलाहाबाद।

                                                                     प्रत्‍यर्थी/परिवादी

समक्ष:-                           

1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य।

2. माननीय श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य।

अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित           : डा0 उदय वीर सिंह के सहयोगी

  अधिवक्‍ता श्री कृष्‍ण पाठक।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित      : श्री सत्‍य प्रकाश पाण्‍डेय, विद्वान

   अधिवक्‍ता।                       

दिनांक:  08.10.2020  

माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य  द्वारा उद्घोषित                                                 

निर्णय

1.         परिवाद संख्‍या-399/2009, श्री श्‍याम बाबू बनाम पोस्‍ट आफिस फाफामऊ तथा एक अन्‍य में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 25.04.2012 के विरूद्ध उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम-1986 की धारा-15 के अन्‍तर्गत यह अपील प्रस्‍तुत की गई है। इस निर्णय एवं आदेश द्वारा विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग ने निम्‍न आदेश पारित किया है :-

      '' परिवादी द्वारा प्रस्‍तुत यह परिवाद अंशत: आज्ञप्‍त किया जाता है। विपक्षीगण को निर्दे‍श दिया जाता है कि आज से 2 माह के अन्‍दर औपचारिकता पूर्ण करने पर परिवादी को उसके द्वारा जमा 22,270/- रू0

-2-

का भुगतान करे। परिवादी विपक्षीगण से 1,000/-रू0 बतौर वाद व्‍यय भी प्राप्‍त करने का अधिकारी है। ''

2.         परिवाद के तथ्‍य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादी ने दिनांक 06.10.2004 को डाक जीवन बीमा पालिसी नं0-46686/2004 क्रय की थी और प्रतिमाह अंकन 585/- रूपये की किस्‍त परिवादी द्वारा दिनांक 24.08.2007 तक जमा की गई। एजेण्‍ट द्वारा बताया गया था कि यदि किसी कारणवश पालिसी बंद हो गई तब जो किस्‍त जमा की गई है, वह धनराशि मिल जाएगी। परिवादी ने पालिसी निरस्‍त हो जाने के कारण फाफामऊ पोस्‍ट आफिस में पैसा प्राप्‍त करने के लिए सम्‍पर्क किया। दिनांक 28.07.2007 को पोस्‍ट आफिस ने कहा कि पैसा वापस लेने के लिए अलग से कार्यवाई करनी होगी, जिसके कारण परिवादी को मानसिक एवं आर्थिक कष्‍ट हुआ। परिवादी द्वारा जमा किया गया धन वापस न देना सेवा में कमी है, इसलिए विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग के समक्ष जमा धनराशि अंकन 21,685/- रूपये की वापसी मय 18 प्रतिशत ब्‍याज, अंकन 25,000/- रूपये बतौर मानसिक प्रताड़ना एवं अंकन 5,500/- रूपये वाद खर्च की भी मांग की गई।

3.         विपक्षीगण द्वारा परिवाद का यह उत्‍तर दिया गया है कि परिवादी द्वारा अंकन 1 लाख रूपये की पालिसी 14 वर्षों की अवधि के लिए ली गई थी। परिवादी ने नियमित रूप से भुगतान नहीं किया और पालिसी को नियत अवधि से पूर्व सरेण्‍डर करने पर पालिसी धारक को नुकसान उठाना पड़ता है, क्‍योंकि सरेण्‍डर की स्थिति में देय राशि जमा धनराशि से कम होती है। परिवादी द्वारा स्‍वंय वांछित औपचारिकताएं पूरी न करने के कारण भुगतान नहीं किया जा सका, इसलिए परिवाद अनावश्‍यक रूप से प्रस्‍तुत किया गया और तदनुसार परिवाद खारिज करने और विशेष हर्जे की मांग की गई।

-3-

4.         दोनों पक्षकारों ने अपने दावे के समर्थन में शपथपत्र प्रस्‍तुत किए। पक्षकारों द्वारा प्रस्‍तुत किए गए साक्ष्‍य के अनुसार विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग द्वारा यह निष्‍कर्ष दिया गया कि परिवादी बीमा पालिसी के लिए प्रतिमाह किस्‍त के रूप में जमा की गई धनर‍ाशि अंकन 22,270/- रूपये वापस प्राप्‍त करने के लिए अधिकृत है। इस राशि के अलावा अंकन 1,000/- रूपये वाद व्‍यय विपक्षीगण द्वारा अदा करने का आदेश भी पारित किया गया है।

5.         इस निर्णय एवं आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश विधि विरूद्ध है। विपक्षीगण/अपीलार्थीगण द्वारा सेवा में कमी नहीं की गई है। स्‍वंय परिवादी/प्रत्‍यर्थी ने पालिसी की शर्तों के विपरीत नियत अवधि से पूर्व पालिसी सरेण्‍डर की है, इसलिए तत्‍समय देय सरेण्‍डर वैल्‍यू ही प्रदान की जा सकती थी।

6.         अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता डा0 उदय वीर सिंह द्वारा अधिकृत अधिवक्‍ता श्री कृष्‍ण पाठक उपस्थित आए हैं। प्रत्‍यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री सत्‍य प्रकाश पाण्‍डेय उपस्थित आए हैं।

7.         आयोग द्वारा उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्‍तागण की मौखिक बहस सुनी गई तथा प्रश्‍नगत निर्णय एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।

8.         अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्‍ता का यह तर्क है कि परिवादी द्वारा नियत अवधि से पूर्व पालिसी सरेण्‍डर की गई है, इसलिए उन्‍हें केवल सरेण्‍डर वैल्‍यू ही प्रदान की जा सकती है न कि जमा की गई सम्‍पूर्ण पालिसी किस्‍त की धनराशि।

 

 

-4-

9.         प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता का यह तर्क है कि तीन वर्ष तक की समयावधि के पश्‍चात् जमा की गई सम्‍पूर्ण राशि वापस की जानी चाहिए। उनके द्वारा तीन वर्ष तक लगातार किस्‍त जमा करने का उल्‍लेख किया गया, परन्‍तु बहस के दौरान यह भी स्‍वीकार किया गया कि दिनांक 06.10.2004 से दिनांक 24.08.2007 तक ही प्रतिमाह किस्‍त जमा की गई है।

10.        पत्रावली के अवलोकन से ज्ञात होता है कि मूल बीमा पालिसी, जो परिवादी के पास सहजता/सुगमता के साथ उपलब्‍ध होनी चाहिए, वह विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग या इस आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत नहीं की गई है, जिसके आधार पर यह सुनिश्‍चित किया जा सकता कि कितनी अवधि की शेष किस्‍त जमा करने के पश्‍चात् जमा की गई सम्‍पूर्ण राशि वापस प्राप्‍त करने के लिए परिवादी अधिकृत हो जाता, परन्‍तु जब अपीलार्थीगण के विद्वान द्वारा यह बहस की गई है कि परिवादी केवल सरेण्‍डर वैल्‍यू ही प्राप्‍त करने के लिए अधिकृत है तब प्रत्‍यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा यह कहा गया कि उनके द्वारा तीन वर्ष की अवधि तक लगातार प्रतिमाह की किस्‍त जमा की गई है, इसलिए वे जमा की गई सम्‍पूर्ण राशि प्राप्‍त करने के लिए अधिकृत हैं। इस तर्क का तात्‍पर्य यह है कि विद्वान अधिवक्‍ता को यह स्थिति स्‍वीकार है कि यदि तीन वर्ष की अवधि तक लगातार प्रतिमाह किस्‍त जमा कराई गई होती तब सम्‍पूर्ण धनराशि वापस हो सकती थी, परन्‍तु स्‍वंय उनके द्वारा जिस अवधि तक प्रतिमाह की किस्‍त जमा कराने का उल्‍लेख किया गया है, वह अवधि तीन वर्ष से कम है, इसलिए स्‍वंय प्रत्‍यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता के तर्कों से यह स्थिति स्‍पष्‍ट हो जाती है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी केवल सरेण्‍डर वैल्‍यू प्राप्‍त करने के लिए अधिकृत       है।  विद्वान  जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग द्वारा इस तथ्‍यात्‍मक/विधिक

-5-

स्थिति के विपरीत जाकर अपना निर्णय एवं आदेश पारित किया गया है, जो संशोधित होने योग्‍य है। अत: अपील तदनुसार अंशत: स्‍वीकार होने योग्‍य है।

आदेश

11.        प्रस्‍तुत अपील अंशत: स्‍वीकार की जाती है। जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 25.04.2012 इस प्रकार संशोधित किया जाता है कि परिवादी/प्रत्‍यर्थी अपने द्वारा ली गई बीमा पालिसी की प्रतिमाह किस्‍त दिनांक 24.08.2007 तक जमा करने वाली राशि पर केवल सरेण्‍डर वैल्‍यू प्राप्‍त करने के लिए अधिकृत है। अत: विपक्षीगण/अपीलार्थीगण को निर्देशित किया जाता है कि वह आज से एक माह के अन्‍दर परिवादी/प्रत्‍यर्थी को पालिसी संख्‍या-46686/2004 की सरेण्‍डर वैल्‍यू प्राप्‍त कराया जाना सुनिश्‍चित करे। परिवादी/प्रत्‍यर्थी को यह आदेशित किया जाता है कि वह एक सप्‍ताह के अन्‍दर आवश्‍यक औपचारिकताएं पूर्ण करते हुए अपीलार्थीगण/विपक्षीगण के कार्यालय में आवेदन प्रस्‍तुत करे।

12.        अपील में उभय पक्ष अपना-अपना व्‍यय स्‍वंय वहन करेंगे।

13.        उभय पक्ष को इस निर्णय एवं आदेश की सत्‍यप्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्‍ध करा दी जाये।

 

                     

    (सुशील कुमार)                           (विकास सक्‍सेना)

           सदस्‍य                                   सदस्‍य

 

 

 

 लक्ष्‍मन, आशु0,

    कोर्ट-2  

 
 
[HON'BLE MR. Vikas Saxena]
PRESIDING MEMBER
 

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