| Final Order / Judgement | (मौखिक) राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ अपील संख्या-69/2015 चोलामण्डलम एम0एस0 जनरल इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड बनाम शेर खान समक्ष:- 1. माननीय श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य। 2. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य। अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री तरूण कुमार मिश्रा विद्धान अधिवक्ता प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित: श्री आलोक सिन्हा, विद्धान अधिवक्ता दिनांक : 01.08.2023 माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित निर्णय - परिवाद संख्या-41/2010, शेर खां बनाम चोलामण्डलम जर्नल इंश्योरेंस कं0लि0 में विद्वान जिला आयोग, झांसी द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 10.11.2014 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गयी है। जिला उपभोक्ता मंच ने परिवाद स्वीकार करते हुए विपक्षीगण को निर्देशित किया है कि बीमा क्लेम की अवशेष राशि अंकन 1,45,000/-रूपये 12 प्रतिशत ब्याज के साथ परिवादी को अदा किया जाये।
- परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा वाहन सं0 यू0पी0 93 डब्लू 5704 का बीमा 5,75,000/-रूपये के लिए कराया था। बीमित अवधि के दौरान दुर्घटनाग्रस्त होने पर वाहन क्षतिग्रस्त हो गया। बीमा कम्पनी के समक्ष क्लेम प्रस्तुत किया गया। क्लेम 4,32,000/- निर्धारित किया गया। परिवादी का सहमति पत्र बनाया गया। पंजीकरण न होने के आधार पर 1,70,000/- रूपये की राशि की कटौती कर दी गयी और केवल 2,62,000/-रूपये दिये गये। अंकन 1,45,000/- रूपये की कटौती किया जाना अनुचित है। परिवादी पर दबाव डालकर सहमति पत्र पर हस्ताक्षर दोहराये गये है।
- बीमा कम्पनी का कथन है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने स्वयं की सहमति के आधार पर क्लेम का निस्तारण कराया है सॉल्वेज के मद में 1,70,000/-रू0 सुनिश्चित किये गये हैं तथा 2,62,000/-रू0 प्रत्यर्थी/परिवादी को उपलब्ध करा दिया गये हैं। उसके द्वारा बीमा नहीं कराया गया था, इसलिए अंकन 1,45,000/- रूपये की राशि का भुगतान नहीं किया गया है, चूंकि सहमति के आधार पर बीमा क्लेम का निस्तारण हुआ है, इसलिए उपभोक्ता परिवाद संधारणीय नहीं है।
- दोनों पक्षकारों की सहमति के पश्चात जिला उपभोक्ता मंच द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया है कि परिवादी की स्वीकृति के बावजूद बीमा क्लेम की राशि में कटौती नहीं की जा सकती, इसलिए अंकन 1,45,000/-रू0 अदा करने का आदेश दिया गया है।
- इस निर्णय एवं आदेश के विरूद्ध अपील इन आधारों पर प्रस्तुत की गयी है कि जिला उपभोक्ता मंच द्वारा विधि विरूद्ध निर्णय पारित किया गया है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने सम्पूर्ण संतुष्टि में 1,70,000/-रूपये सॉल्वेज की कीमत तथा 2,62,000/-रूपये नकद प्राप्त कर लिया है और क्लेम को डिस्चार्ज कर दिया गया है, इसलिए उपभोक्ता परिवाद संधारणीय नहीं है।
- दोनों पक्षकारों के विद्धान अधिवक्ताओं को सुना। प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया।
- अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का यह तर्क है कि पूर्ण संतुष्टि में बीमा क्लेम स्वीकार किया गया है, इसलिए अन्य किसी राशि के भुगतान का आदेश नहीं दिया जा सकता। परिवादी के विद्धान अधिवक्ता का यह तर्क है कि बीमा क्लेम स्वीकार करने के बावजूद भी अवशेष राशि के लिए उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत करने का अधिकार प्राप्त है।
- अपीलार्थी की ओर से नजीर यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड बनाम बनाम सुशील कुमार गोधरा www.livelaw.in प्रस्तुत की गयी है, जिसमें व्यवस्था दी गयी है कि जब वाहन का पंजीकरण नहीं हुआ है तब बीमा कम्पनी बीमा क्लेम नकारने के लिए अधिकृत है।
- प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से नजीर दि ओरियण्टल इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड बनाम डिसीटेक्स फर्निसिंग लिमिटेड प्रस्तुत की गयी है। इस केस में क्लेम प्रस्तुत करने के पश्चात भी क्लेम सुनिश्चित नहीं किया गया था तब प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा अनेक पत्र बीमा कम्पनी को लिखे गये। इस केस में मध्यस्थ के लिए प्रस्तुत किया गया आवेदन स्वीकार किया गया था। अत: इन दोनों नजीरों में जो तथ्य हैं वह प्रस्तुत केस के लिए किसी भी दृष्टि से सुसंगत नहीं है। अत: इन दोनों नजीरों में प्रतिपादित विधिक सिद्धांत के अतिरिक्त उल्लेख की आवश्यकता नहीं है। प्रस्तुत केस में विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा स्वैच्छा से बीमा क्लेम की राशि प्राप्त की गयी है। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रदत्त सहमति पत्र पत्रावली पर दस्तावेज सं0 28 के रूप में मौजूद है। परिवादी द्वारा 4,32,000/- रूपये अंतिम एवं पूर्ण रूप से स्वीकार किये गये हैं, जिसमें इस सहमति पत्र पर कोई आपत्ति तत्समय दर्ज नहीं करायी गयी। दस्तावेज सं0 29 के अवलोकन से जाहिर होता है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा सहमति पत्र स्वयं लिखकर प्रेषित किया गया है। भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 63 के अनुसार जब कोई व्यक्ति क्लेम की जा रही राशि से कम राशि स्वीकार करता है तब संविदा के तहत धन अदा करने वाला व्यक्ति संविदा की आपूर्ति करते हुए संविदा की बाध्यता से उन्मोचित हो जाता है। प्रस्तुत केस में यही स्थिति मौजूद है। बीमा कम्पनी अपने दायित्व से उन्मोचित हो चुकी है, इसलिए उपभोक्ता परिवाद संधारणीय नहीं था। जिला उपभोक्ता मंच द्वारा अवैध निर्णय पारित किया गया है, जो अपास्त होने योग्य है।
आदेश अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता मंच द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्त किया जाता है। परिवाद खारिज किया जाता है। उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वंय वहन करेंगे। प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए। आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे। (सुशील कुमार)(राजेन्द्र सिंह) सदस्य सदस्य 01.08.2023 संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट 2 | |