राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-2467/2013
(जिला उपभोक्ता फोरम, इलाहाबाद द्वारा परिवाद संख्या 140/2008 में पारित निर्णय दिनांक 04.09.2013 के विरूद्ध)
शाहिद सिद्दीकी पुत्र श्री वाहिद अहमद सिद्दीकी निवासी 19ए/1के नया रसूलपुर करामत की चौकी जिला इलाहाबाद। .......अपीलार्थी/परिवादी
बनाम्
1.मै0 कामर्शियल आटो सेल्स लि0, 18, कानपुर रोड इलाहाबाद वर्तमान
पता 8 टी.बी. सपना रोड नियर लोक सेवा आयोग, इलाहाबाद।
2.मै0 टाटा मोटर्स लि0 रजिस्टर्ड आफिस डीजीफ हाउस फोर्थ फ्लोर
ओल्ड प्रभा देवी रोड मुम्बई, एण्ड रीजनल आफिस एट कंचन जंगा बि0।
फोर्थ बारहखंभा रोड न्यू दिल्ली द्वारा आफिस एट 109 एण्ड 110 प्रथम
फ्लोर विनायक काम्पलेक्स एलगिन रोड इलाहाबाद।
3. मैनेजिंग डायरेक्टर, टाटा मोटर्स लि0 बाम्बे हाउस, 24 होमी मोडी
स्ट्रीट फोर्थ, मुम्बई- 400001 ......प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण
अपील संख्या-55/2014
टाटा मोटर्स लि0 रजिस्टर्ड आफिस बाम्बे हाउस, 24 होमी मोडी स्ट्रीट
मुम्बई 400 001 ब्रांच आफिस एट देवा रोड, चिनहट, लखनऊ द्वारा
मैनेजर। ......अपीलार्थी
बनाम
1. शाहिद सिद्दीकी निवासी 19ए/1के नया रसूलपुर करामत की चौकी जिला इलाहाबाद। .......प्रत्यर्थी/परिवादी
2. कामर्शियल आटो सेल्स लि0, 18, कानपुर रोड, इलाहाबाद।
.......... प्रोफार्मा पार्टी
समक्ष:-
1. मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
2. मा0 श्री गोवर्धन यादव, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : मो0 एन.कुरैशी, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0 1 की ओर से उपस्थित : श्री नितिन कुमार मिश्रा, विद्वान
अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0 2 व 3 की ओर से उपस्थित : श्री राजेश चडढा, विद्वान
अधिवक्ता।
दिनांक 26.11.2019
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मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम इलाहाबाद द्वारा परिवाद संख्या 140/2008 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दि. 04.09.2013 के विरूद्ध योजित की गई है। अपील संख्या 2467/13 अपीलकर्ता/परिवादी द्वारा योजित की गई है तथा अपील संख्या 55/14 मूल परिवाद के विपक्षी संख्या 3 निर्माणकर्ता द्वारा योजित की गई है। दोनों अपीलें एक ही निर्णय के विरूद्ध योजित किए जाने के कारण दोनों अपीलों का निस्तारण साथ-साथ किया जा रहा है। अपील संख्या 2467/13 अग्रणी होगी।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार है कि अपीलकर्ता परिवादी के कथनानुसार परिवादी एक बेरोजगार व्यक्ति है। अपने जीवनयापन के लिए परिवादी ने एक ट्रक दि. 17.09.05 को प्रत्यर्थी संख्या 1 कामर्शियल आटो सेल्स लि0 से क्रय किया। क्रय हेतु वित्तीय सहायता प्रत्यर्थी संख्या 2 द्वारा प्राप्त कराई गई। परिवादी ने प्रत्यर्थी संख्या 2 के साथ हायर परचेज अनुबंध निष्पादित किया। प्रश्नगत ट्रक क्रय किए जाने के बाद प्रारंभ से ही खराब होने लगी, जिससे परिवादी को यह पता चला कि प्रत्यर्थी संख्या 1 व 3 ने उसे त्रुटिपूर्ण वाहन विक्रय किया है, जिसमें अनेक गंभीर निर्माण संबंधी त्रुटियां हैं जिसके कारण वाहन का संचालन ठीक से संभव नहीं हुआ। ट्रक खरीदने के बाद परिवादी ने यह पाया कि ट्रक का फ्यूल पम्प त्रुटिपूर्ण है, जिससे वाहन का माइलेज कम आ रहा है और परिवादी को क्षति हो रही है। परिवादी ने इसकी सूचना प्रत्यर्थी संख्या 1 को दी, जिसे ठीक करने का प्रयास वर्कशाप में किया गया, किंतु ठीक नहीं हुआ। परिवादी ने अपने व्यवसाय के सिलसिले में ट्रक बम्बई भेजा, जहां से ट्रक से अधिक धुंआ
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आने लगा तथा ट्रक एयर लेने लगी, जिससे भी ट्रक का माइलेज प्रभावित हुआ और परिवादी को क्षति हुई। प्रत्यर्थी द्वारा दूसरी सर्विस एवं निर्माण संबंधी त्रुटि दि. 16.11.05 एवं 18.11.05 को दूर की गई। त्रुटिपूर्ण वाहन की आपूर्ति किए जाने के बावजूद परिवादी नियमित किश्तों की अदायगी प्रत्यर्थी संख्या 2 को करता रहा। फरवरी 2006 में परिवादी ने यह पाया कि ट्रक का बाडी चैनल जो ट्रक का लोड वहन करता और चेसिस के ऊपर होता है, टूटा हुआ है। इसकी सूचना परिवादी ने प्रत्यर्थी संख्या 1 को दी तथा फोटोग्राफ दाखिल किया। प्रत्यर्थीगण द्वारा यह कहा गया कि बाडी चैनल ओवर लोडिंग के कारण टूटा है, जबकि परिवादी ने कभी ओवर लोड नहीं की। परिवादी ने यह भी कहा कि इस तथ्य को वह चालान प्रस्तुत करके साबित कर सकता है। बाडी चैनल की मरम्मत हेतु रू. 12000/- की मांग की तथा यह कहा गया कि धनराशि बाद में उसके द्वारा ओवर लोड न करने का साक्ष्य चालान प्रस्तुत करने पर वापस कर दी जाएगी। परिवादी ने बाडी चैनल के खराबी के संदर्भ में एक नोटिस दि. 22.02.06 को प्रत्यर्थी को भेजा, जिस पर धनराशि वापस करने का रिमार्क प्रत्यर्थी ने अंकित किया तथा यह लिखा कि चालान प्रस्तुत करने पर एवं ओवर लोड न पाए जाने पर यह धनराशि वापस कर दी जाएगी। कई बार मौखिक शिकायत करने तथा ट्रक की अनेक त्रुटियों को प्रत्यर्थी से बताने के बावजूद भी प्रत्यर्थी ने ठीक करने का प्रयत्न नहीं किया। जून 2006 में जब ट्रक जबलपुर में था तो परिवादी ने यह पाया कि ट्रक का इंजन ठीक से काम नहीं कर रहा है। परिवादी ने अपने खर्चे पर ट्रक का गैसकिट ठीक कराया, जो दि. 04.04.06 एवं 22.04.06 को जल गया। परिवादी ने प्रत्यर्थी संख्या 1 को इंजन के खराबी के विषय में बताया तथा इंजन दि. 01.07.06 को ठीक किया गया।
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दि. 01.07.06 को इंजन ठीक किए जाने के बावजूद भी परिवादी ने यह पाया कि ट्रक ठीक नहीं हुआ, इसलिए परिवादी एक प्राइवेट मिस्त्री के यहां इंजन ले गया जहां पाया कि इंजन के ब्लाक में क्रेक है, जिसकी सूचना परिवादी ने प्रत्यर्थी संख्या 1 व 3 को दी, किंतु प्रत्यर्थीगण द्वारा उसे ठीक नहीं किया गया। इस प्रकार प्रश्नगत ट्रक में निरंतर खराबी आती रही, जो निर्माण संबंधी त्रुटि के कारण है। इसी बीच प्रत्यर्थी संख्या 2 ने प्रत्यर्थी संख्या 1 से साजिश करके परिवादी को परेशान करना प्रारंभ कर दिया और उसे बीमा प्रमाणपत्र प्रदान नहीं किया, जबकि हायर परचेज अनुबंध में यह प्रावधान है कि वर्ष 2005 से प्रत्येक वर्ष 4 साल तक बीमा पालिसी प्रत्यर्थी संख्या 2 परिवादी को उपलब्ध कराएगा। सितम्बर 2007 के बाद प्रत्यर्थी संख्या 2 ने कोई बीमा प्रमाणपत्र परिवादी को नहीं दिया, जबकि जनवरी 2008 तक किश्तों की अदायगी परिवादी ने की। इस तरह प्रत्यर्थीगण के उक्त कृत्य से परिवादी को आर्थिक क्षति हुई तथा मानसिक रूप से वह प्रताडि़त हुआ। अपीलकर्ता परिवादी का यह भी कथन है कि प्रत्यर्थी संख्या 2 ट्रक को अपने कब्जे में लेने का प्रयास कर रहा है, अत: परिवाद जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत किया गया।
प्रत्यर्थी संख्या 1 द्वारा प्रतिवाद पत्र जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत किया गया। प्रत्यर्थी संख्या 1 ने परिवादी को प्रश्नगत ट्रक व्यावसायिक प्रयोजन हेतु क्रय किया जाना एवं तदनुसार प्रत्यर्थी परिवादी को उपभोक्ता न होना अभिकथित किया। प्रत्यर्थी संख्या 1 का यह भी कथन है कि परिवादी ने हायर परचेज अनुबंध के अंतर्गत किश्तों के भुगतान में त्रुटि की, जिसके कारण इंश्योरेंस कराए जाने के बाद भी उसे नहीं दिया गया। प्रत्यर्थी संख्या 1 का यह भी कथन है कि सर्वप्रथम वाहन के संबंध में शिकायत दि.
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15.02.06 को की गई, जबकि वाहन 25665 किलोमीटर चल चुका था। वाहन में खराबी मिलावटी र्इंधन, ओवर लोडिंग तथा गलत तरह से गाड़ी का प्रयोग करने से आई। प्रत्यर्थी द्वारा सेवा में कोई त्रुटि नहीं की गई, वारंटी अवधि के मध्य वाहन बिना किसी शुल्क के ठीक किया गया, इंजन ओवर हाल किया गया। परिवादी ने रू. 59032/- मार्जिनी मनी जमा करके रू. 660000/- का ऋण लिया। 45 किश्तों में रू. 820128/- परिवादी को वापस करना था। समस्त किश्तों का भुगतान दि. 21.06.09 तक किया जाना चाहिए था, किंतु परिवादी द्वारा किश्तों की अदायगी नियमानुसार नहीं की गई। किश्तों की अदायगी न करने के कारण फाइनेन्स कंपनी वाहन को कब्जे में लेने के लिए अधिकृत है। प्रत्यर्थी का यह भी कथन है कि परिवादी प्रश्नगत वाहन का हायरर एवं बेली है, उसें वाहन का स्वामित्व का अधिकार प्राप्त नहीं है।
प्रत्यर्थी संख्या 2 द्वारा भी प्रतिवाद पत्र जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत किया गया। प्रतयर्थी संख्या 2 ने प्रश्नगत वाहन के संदर्भ में वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना स्वीकार किया। प्रत्यर्थी संख्या 2 के कथनानुसार प्रत्यर्थी संख्या 2 वाहन की त्रुटि के लिए उत्तरदायी नहीं है। वाहन का बीमा शर्तों के अनुसार 4 वर्ष तक कराया गया था तथा बीमा प्रमाणपत्र अपीलकर्ता द्वारा दिया गया था।
प्रत्यर्थी संख्या 3 द्वारा कोई प्रतिवाद पत्र जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया।
प्रश्नगत निर्णय में जिला मंच ने पक्षकारों द्वारा प्रस्तुत की गई साक्ष्य के परिशीलन के उपरांत प्रश्नगत वाहन में निर्माण संबंधी कोई दोष
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होना प्रमाणित नहीं माना, किंतु जिला मंच द्वारा यह मत व्यक्त किया गया कि बाडी चैनल की मरम्मत में आए खर्च रू. 12000/- के भुगतान हेतु प्रत्यर्थी संख्या 1 व 3 उत्तरदायी है, क्योंकि यह त्रुटि ओवर लोडिंग से आना प्रमाणित नहीं है। तदनुसार प्रत्यर्थी संख्या 1 व 3 को संयुक्त रूप से निर्णय की तिथि से 2 माह के अंदर परिवादी को रू. 12000/- तथा इस धनराशि पर वाद प्रस्तुत करने की तिथि से अंतिम अदायगी की तिथि तक 8 प्रतिशत वार्षिक साधारण दर से ब्याज सहित भुगतान हेतु निर्देशित किया। जिला मंच द्वारा यह मत भी व्यक्त किया गया कि अनुबंध की शर्तों के अंतर्गत प्रत्यर्थी संख्या 2 द्वारा परिवादी को बीमा प्रमाणपत्र प्राप्त न कराकर सेवा में त्रुटि की गई। तदनुसार प्रत्यर्थी संख्या 2 को यह निर्देशित किया गया कि वह आदेश के 2 माह के अंदर परिवादी को बीमा प्रमाणपत्र प्राप्त कराए। जिला मंच द्वारा प्रत्यर्थी संख्या 2 को यह भी निर्देशित किया गया कि प्रत्यर्थी संख्या 2 विधि विहित प्रक्रिया के विपरीत जबरदस्ती व गुन्डों के बल पर प्रश्नगत वाहन को कब्जे में प्राप्त न करे एवं यह स्पष्ट किया गया कि विधि विहित प्रक्रिया के अनुसार ऋण वसूली कार्यवाही करने के लिए प्रत्यर्थी संख्या 2 स्वतंत्र है। प्रत्यर्थी संख्या 1 व 3 को संयुक्त रूप से एवं पृथक-पृथक रू. 10000/- मानसिक संत्रास के लिए क्षतिपूर्ति एवं विपक्षी संख्या 2 भी रू. 10000/- क्षतिपूर्ति के रूप में भुगतान करे। यह भी निर्देशित किया गया कि सभी प्रत्यर्थीगण संयुक्त रूप से रू. 2000/- वाद व्यय के भुगतान हेतु भी उत्तरदायी होंगे। इस निर्णय से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गई है।
अपीलकर्ता की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री मोहम्मद एन0 कुरैशी तथा प्रत्यर्थी संख्या 1 के विद्वान अधिवक्ता श्री नितिन कुमार मिश्रा तथा
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प्रत्यर्थी संख्या 2 व 3 के विद्वान अधिवक्ता श्री राजेश चडढा के तर्क सुने एवं अभिलेखों का अवलोकन किया गया।
अपीलकर्ता की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत वाहन में प्रारंभ से ही निर्माण संबंधी त्रुटि के कारण वाहन संचालन में असवुविधा रही, जिससे अपीलकर्ता द्वारा प्रत्यर्थी संख्या 1 को समय-समय पर अवगत कराया गया, किंतु प्रत्यर्थीगण द्वारा त्रुटि निवारण नहीं किया गया, इसके बावजूद जिला मंच ने प्रश्नगत वाहन बदलकर दूसरा नया वाहन प्रदान करने का अनुतोष प्रदान न करके त्रुटि की है।
उल्लेखनीय है कि प्रत्यर्थी संख्या 1 व 2 द्वारा प्रश्नगत निर्णय के विरूद्ध कोई अपील योजित नहीं की गई, अत: प्रत्यर्थी संख्या 1 व 2 के विरूद्ध प्रश्नगत निर्णय अंतिम हो चुका है। प्रत्यर्थी संख्या 3 द्वारा प्रश्नगत निर्णय के विरूद्ध अपील संख्या 55/14 योजित की गई। प्रत्यर्थी संख्या 3 के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रत्यर्थी संख्या 3 द्वारा वाहन बिक्री हेतु आटो मोबाइल्स रिसर्च एसोसिएशन आफ इंडिया जो भारत सरकार के उद्योग मंत्रलय द्वारा मान्यता प्राप्त एजेन्सी है, से प्रमाणपत्र प्राप्त करके बिक्री हेतु प्रेषित किए जाते हैं। परिवादी को विक्रय किए गए वाहन में कोई निर्माण संबंधी त्रुटि होना प्रमाणित नहीं। उनके द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत वाहन क्रय किए जाने की तिथि से 20 माह के अंदर 90500 किलोमीटर चलाया गया। यह तथ्य स्वयं यह प्रमाणित करता है कि प्रश्नगत वाहन में निर्माण संबंधी कोई त्रुटि नहीं थी। वाहन संचालन के मध्य समय-समय पर कुछ कमियां आने स्वाभाविक हैं। वारंटी अवधि के मध्य यह कमियां दूर की गई। प्रश्नगत वाहन में निर्माण संबंधी त्रुटि सिद्ध करने हेतु प्रत्यर्थी परिवादी द्वारा कोई विशेषज्ञ
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आख्या प्रस्तुत नहीं की गई। प्रत्यर्थी संख्या 3 की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत निर्णय द्वारा रू. 12000/- के भुगतान के संदर्भ में पारित किया गया आदेश मात्र परिवादी के अभिकथनों पर विश्वास करते हुए पारित किया गया, इस संबंध में कोई साक्ष्य परिवादी द्वारा प्रस्तुत नहीं की गई। प्रत्यर्थी संख्या 3 की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि प्रत्यर्थी संख्या 1 प्रत्यर्थी संख्या 3 का डीलर है। प्रत्यर्थी संख्या 1 और प्रत्यर्थी संख्या 3 के मध्य प्रिन्सपल टू प्रिन्सपल का संबंध है, अत: प्रत्यर्थी संख्या 2 द्वारा स्वतंत्र रूप से किए गए किसी कार्य के लिए प्रत्यर्थी संख्या 3 उत्तरदायी नहीं होगा।
जहां तक प्रश्नगत वाहन में कथित निर्माण संबंधी त्रुटि का प्रश्न है पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य का परिशीलन करने के उपरांत जिला मंच द्वारा यह मत व्यक्त किया गया है कि वास्तव में वाहन में जो भी खराबी समय-समय पर आई वह सामान्य खराबी वाहन चलाने तथा उसके उपयोग के कारण हैं और ऐसी कोई खराबी सर्विस के समय नहीं पाई, जो निर्माण संबंधी त्रुटि की श्रेणी में आती है। यदि इंजन में कोई निर्माण संबंधी त्रुटि होती तो 1000 किलोमीटर वाहन का चलना मुश्किल हो जाता, जबकि दि. 29.05.2007 तक वाहन 90500 किलोमीटर चल चुका था। यह भी उल्लेखनीय है कि प्रश्नगत वाहन में कथित निर्माण संबंधी त्रुटि को प्रमाणित करने हेतु परिवादी द्वारा कोई विशेषज्ञ आख्या किसी सक्षम आटो मोबाइल इंजीनियर की प्रस्तुत नहीं की गई। तदनुसार जिला मंच द्वारा प्रश्नगत वाहन में निर्माण संबंधी त्रुटि होना प्रमाणित नहीं माना। मामले की तथ्यों एवं परिस्थितियों के आलोक में जिला मंय का यह निष्कर्ष हमारे विचार से त्रुटिपूर्ण नहीं है।
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जहां तक रू. 12000/- की अदायगी हेतु प्रत्यर्थी संख्या 1 और प्रत्यर्थी संख्या 3 को दिए गए निर्देश का प्रश्न है परिवादी के कथनानुसार यह भुगतान बाडी चैनल की मरम्मत हेतु प्रत्यर्थी संख्या 1 द्वारा वसूल की गई धनराशि से संबंधित है। परिवादी के कथनानुसार प्रत्यर्थी संख्या 1 ने माना कि यह धनराशि उक्त त्रुटि प्रश्नगत वाहन में ओवर लोडिंग के कारण न आना प्रमाणित होने की स्थिति में ही परिवादी को प्रत्यर्थी संख्या 1 द्वारा देय होगी। जिला मंच के समक्ष प्रत्यर्थी संख्या 1 द्वारा ऐसी कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गई जिससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता कि यह त्रुटि प्रश्नगत वाहन के ओवर लोडिंग के साथ संचालन के कारण आई। अपील संख्या 2467/13 में अपीलकर्ता परिवादी द्वारा पूरक शपथपत्र भी इस आशय का प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत वाहन में क्षमता से अधिक भार कभी नहीं लादा गया तथा क्षमता से अधिक भार लादे जाने के संदर्भ में आर.टी.ओ द्वारा प्रश्नगत वाहन का कोई चालान नहीं किया गया। इस संदर्भ में अपीलकर्ता ने दि. 09.01.06 का चार घाट रोड लाइन्स का बिल्टि एवं चालान संख्या 1635 भी दाखिल किया। अपीलकर्ता का यह भी कथन है कि इस बिल्टि चालान से प्रत्यर्थी संतुष्ट हो गया। अपीलकर्ता परिवादी ने अपने इस शपथपत्र में यह भी अभिकथित किया है कि परिवादी द्वारा प्रत्यर्थी संख्या 1 को प्रेषित नोटिस दिनांकित 22.02.2006 में प्रत्यर्थी संख्या 1 द्वारा यह पृष्ठांकित किया गया कि ‘ बाडी चैनल की मरम्मत वारंटी अवधि में उनके द्वारा की गई। परिवादी द्वारा प्रश्नगत ट्रक पर लादे गए सामान के संदर्भ में चालान बिल्टि दाखिल किए जाए जिसके अभाव में वह टीएमएल के समक्ष दावा प्रस्तुत करने में असमर्थ होंगे।‘ इस संदर्भ में शपथपत्र के साथ संलग्नक 6 दाखिल किया गया। परिवादी द्वारा संबंधित
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चालान एवं बिल्टि प्रत्यर्थी संख्या 1 के समक्ष प्रस्तुत किया जाना अभिकथित किया है तथा इस संबंध में साक्ष्य भी जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत की गई है। क्योंकि निर्विवाद रूप से प्रश्नगत वाहन में यह त्रुटि वारंटी अवधि के मध्य उत्पन्न हुई तथा प्रत्यर्थी संख्या 1 द्वारा निर्णय के विरूद्ध कोई अपील भी योजित नहीं की गई है, अत: रू. 12000/- की धनराशि वापसी के संबंध में प्रश्नगत निर्णय द्वारा पारित किया गया आदेश त्रुटिपूर्ण नहीं माना जा सकता।
जहां तक बीमा प्रमाण पत्र के संदर्भ में पारित किए गए आदेश का प्रश्न है यह आदेश प्रत्यर्थी संख्या 2 के विरूद्ध पारित किया गया है। प्रत्यर्थी संख्या 2 द्वारा इस निर्णय के विरूद्ध कोई अपील योजित नहीं की गई है। स्वयं प्रत्यर्थी संख्या 2 द्वारा स्वीकार किया गया है कि परिवादी द्वारा किश्तों का भुगतान समय पर न किए जाने के कारण बीमा प्रमाणपत्र उसे जारी नहीं किया गया।
जहां तक प्रश्नगत वाहन को बदलकर दूसरा नया वाहन न दिए जाने का प्रश्न है, प्रस्तुत प्रकरण में प्रश्नगत वाहन में निर्माण संबंधी कोई त्रुटि होना प्रमाणित नहीं है। मारूति उद्योग लि0 बनाम सुशील कुमार गवगोता एवं अन्य वैल्यूम 2 (2006) सीपीजे पेज 3 सुप्रीम कोर्ट के मामले में मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि वारंटी के अंतर्गत दोषपूर्ण पार्ट का बदला जाना समाहित माना जा सकता है, संपूर्ण वाहन का बदला जाना नहीं।
उपरोक्त तथ्यों के आलोक में हमारे विचार से जिला मंच द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय त्रुटिपूर्ण नहीं है, अपीलों में बल नहीं है, तदनुसार निरस्त किए जाने योग्य है।
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आदेश
प्रस्तुत अपील संख्या 2467/13 एवं अपील संख्या 55/2014 निरस्त की जाती है। जिला मंच द्वारा पारित निर्णय/आदेश दि. 04.09.2013 की पुष्टि की जाती है।
उभय पक्ष अपना-अपना अपीलीय वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
निर्णय की प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार उपलब्ध कराई जाए।
(उदय शंकर अवस्थी) (गोवर्धन यादव) पीठासीन सदस्य सदस्य
राकेश, पी0ए0-2
कोर्ट-2