जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद ।
उपस्थित - (1) श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
(2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
(3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य
परिवाद सं0-132/2009
राम आसरे उम्र लगभग 70 साल पुत्र श्री सत्यनरायन निवासी ग्राम भरहूखाता पो0 चैरे बाजार परगना-पष्चिम राठ, तहसील बीकापुर जिला फैजाबाद। .............. परिवादी
बनाम
1. षाखा प्रबन्धक सहकारी ग्राम विकास बैंक षाखा बीकापुर जिला फैजाबाद।
2. महा प्रबन्धक उत्तर प्रदेष सहकारी ग्राम विकास बैंक लिमिटेड, प्रधान कार्यालय लखनऊ माल रेबन्यू रोड लखनऊ। .......... विपक्षीगण
निर्णय दिनाॅंक 11.08.2015
उद्घोषित द्वारा: श्रीमती माया देवी षाक्य, सदस्या।
निर्णय
परिवादी के परिवाद का संक्षेप इस प्रकार है कि परिवादी ने विपक्षी संख्या 1 के यहाँ से डेयरी पालन हेतु दिनंाक 04-03-2004 व 16-03-2014 को कुल मुबलिग 38000/- रूपया का ऋण लिया था। भारत सरकार के कृशि ऋण राहत योजना वर्श 2008 ऋण काफी किसानों के लिये राहत प्रमाण पत्र बेैंक द्वारा दिये जा रहे थे और परिवादी विपक्षी संख्या 1 के यहाँ गये अैार निवेदन किया कि ऋण माफ कर दिया जावे। विपक्षी नं01 ने परिवादी के ऋण खाता संख्या 4/83 संयुक्त भूमि की खाता संख्या 0578 की मूल धनराषि 38000/- दिनंाक 30.06.2007 ई0 को ऋण माफी का प्रमाण पत्र जारी कर दिया। विपक्षी संख्या 01 ने दिनंाक 04.02.2009 ई0 को मुबलिग 4000/- की धनराषि दिनंाक 12.02.2009 ई0 तक जमा करने की द्वितीय नोटिस जारी कर दिया। परिवादी विपक्षी संख्या 01 के पास गया, विपक्षी संख्या01 ने बताया कि परिवादी का ऋण माफ कर दिया गया है। परिवादी ने विपक्षी संख्या 1 से नो-डयूज प्रमाण पत्र मांगा लेकिन विपक्षी संख्या 1 ने नो-डयूज प्रमाण पत्र नहीं दिया। नो-डयूज प्रमाण पत्र न देने पर परिवादी ने अपने अधिवक्ता से नोटिस दिनांक 30-12-2008 विपक्षीगण को दिया, जिसके जवाब में विपक्षीगण संख्या 1 ने पत्रांक संख्या-758, षिकायत ऋण माफी वर्श 2008-2009 दिनंाक 06.01.2009 ई0 को पंजीकृत डाक द्वारा यह लिखकर जवाब दिया कि पिछला बकाया ऋण माफ है। अवषेश आने वाली अग्रिम किष्त की धनराषि की वसूली हेेेेतु नोटिस षाखा द्वारा प्रेशित की गयी है। विपक्षीगण ने परिवादी की सेवा में कमी की है। परिवादी को विपक्षीगण से षारिरिक, मानसिक व आर्थिक क्षतिपूर्ति मुबलिग 1,00,000/- रूपया दिलाया जाय, तथा खाता संख्या 4/83 का ऋण माफ कर देवें और खर्चा मुकदमा परिवादी को दिलाया जाय।
विपक्षीगण ने अपना लिखित कथन दाखिल किय है तथा कहा है कि परिवादी द्वारा विपक्षी को गलत नाम से पक्षकार बनाकर परिवाद प्रस्तुत किया गया है। विपक्षी बैंक उ0प्र0 सहकारी ग्राम विकास बैंक लि0 षाखा बीकापुर के नाम से जाना जाता है। परिवादी द्वारा अपना परिवाद गलत तथ्यों के आधार पर प्रस्तुत किया गया है। जब कोई कृशक ऋण प्राप्त करने हेेतु प्रार्थना पत्र देता है तो बैंक की प्रबन्ध समिति प्रस्ताव पारित करके उसको बैंक का सदस्य बनाती है। बगैर सदस्य बने बैंक किसी को भी ऋण प्रदान नहीं करता है। सदस्य बननेे के पष्चात सदस्य को अपनी भूमि बैंक के पक्ष में बंधक रखने के उपरान्त स्वीकृत धनराषि की मार्जिन मनी अपने खातों में जमा करनी पड़ती है। तत्पचात बैंक अपने उक्त सदस्य को ऋण प्रदान करता है। सदस्य बनने के उपरान्त परिवादी ने डेयरी योजना के अन्र्तगत दिनंाक 04-03-2004 को रूपये 38,000/- का ऋण उत्तरदाता बैंक से प्राप्त किया ऋण माफी / राहत योेजना के अन्र्तगत परिवादी का रुपये 13,821/- का ऋण माफ हुआ। दिनंाक 31-03-2007 के बाद से बकाया किष्त परिवादी को देना है। परिवादी ने ऋण लेने के पष्चात अपने खाते में एक रूपया भी जमा नहीं किया है, जिस कारण उसके विरूद्व वसूली की कार्यवाही की जा रही है। परिवादी ने परिवाद प्रस्तुत करने से पूर्व कोई नोटिस धारा 117 सहकारी उ0प्र0 अधिनियम के अन्र्तगत नहीं दिया है। जब कोई विवाद बैंक व उसके सदस्य के मध्य उत्पन्न होता है तो उसका निस्तारण अन्र्तगत धारा 70 सहकारी समितियाँ उ0प्र0 अधिनियम के अन्र्तगत ही किया जा सकता है। परिवादी का परिवाद धारा 70, 71, व 111 सहकारी समितियाँ उ0प्र0 अधिनियम से बधित है। वसूली की कार्यवाही से बचने के लिए परिवादी ने यह परिवाद प्रस्तुत किया है। परिवादी का परिवाद निरस्त होने योग्य है और विपक्षी बैंक विषेश तावान सहित अपना समस्त ऋण मय ब्याज व हर्जा खर्चा पाने का अधिकारी है।
पत्रावली का भली भंाति परिषीलन किया। परिवादी ने अपने पक्ष के समर्थन में अपना षपथ पत्र, विपक्षी बैंक द्वारा जारी तृतीय नोटिस दिनांक 29.01.2008 की छाया प्रति, परिवादी को सदस्य बनाये जाने की रसीद दिनांक 01.03.2004 की छाया प्रति, बकाया नोटिस दिनांक 19.11.2008 की छाया प्रति, ऋण माफी प्रमाण पत्र की छाया प्रति, विपक्षी बैंक के पत्र दिनांक 06.01.2009 की छाया प्रति, बकाया नोटिस दिनांक 04-02-2009 की छाया प्रति तथा परिवादी द्वारा विपक्षीगण को दी गयी नोटिस दिनांक 30-12-2008 की कार्बन प्रति दाखिल की है, जो षामिल पत्रावली है। विपक्षीगण ने अपने पक्ष के समर्थन में अपना लिखित कथन तथा विजय पाल षाखा प्रबन्धक का षपथ पत्र दाखिल किया है, जो षामिल पत्रावली है। परिवादी ने जो ऋण माफी प्रमाण पत्र दाखिल किया है, उसमें परिवादी के ऊपर दिनांक 31.03.2007 के पूर्व जो बकाया था, वह रुपये 13,821/- ब्याज सहित विपक्षीगणों ने परिवादी का माफ कर दिया है। लेकिन दिनांक 31.03.2007 के बाद की जो किष्तें परिवादी द्वारा भुगतान की जानी थीं उस ऋण को सरकार ने माफ नहीं किया है। इसलिये परिवादी को दिनांक 31.03.2007 के बाद के बकाये का भुगतान करना होगा। परिवादी के ऋण माफी प्रमाण पत्र में मूल धनराषि जो माफ की गयी है वह रुपये 8,487/- दिखाई गयी है। ऋण राहत योजना एक निर्धारित अवधि के लिये होती है और उसी अवधि का ऋण माफ होता है जो अवधि योजना में सरकार देती है। निर्धारित अवधि के बाद यदि कोई धनराषि बकाया रह जाती है तो उसका भुगतान ऋणी को करना होता है। इसी आधार पर परिवादी से विपक्षी बैंक ने आगे आने वाली किष्तों के बकाये का नोटिस वसूल करने के लिये जारी किया है। जिसको वसूल करने का अधिकार विपक्षी बैंक को है। परिवादी ने दिनांक 04.03.2004 को रुपये 38,000/- का ऋण डेयरी उद्योग के लिये लिया था और उक्त दिनांक के बाद से परिवादी ने विपक्षी बैंक में कोई धनराषि जमा नहीं की है और धनराषि जमा करने का कोई ऐसा प्रमाण दाखिल नहीं किया है जिससे यह प्रमाणित होता हो कि परिवादी ने बैंक को कुछ भुगतान किया था। विपक्षी बैंक ने ऋण राहत योजना का लाभ परिवादी को दिया है। परिवादी का कहना गलत है कि विपक्षी ने परिवादी का ऋण माफ नहीं किया है। परिवादी अपना परिवाद प्रमाणित करने में असफल रहा है। परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी का परिवाद खारिज किया जाता है।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 11.08.2015 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष