Uttar Pradesh

StateCommission

A/210/2017

Smt. Geeta Mishra - Complainant(s)

Versus

Secratry Allahabad Development Authority - Opp.Party(s)

Anil Kumar Mishra

12 Sep 2019

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/210/2017
( Date of Filing : 31 Jan 2017 )
(Arisen out of Order Dated 30/11/2016 in Case No. C/310/2015 of District Allahabad)
 
1. Smt. Geeta Mishra
Allahabad
...........Appellant(s)
Versus
1. Secratry Allahabad Development Authority
Allahabad
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN PRESIDENT
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 12 Sep 2019
Final Order / Judgement

                                                                                                        

                                                                                                                                               (सुरक्षित)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

 

अपील सं0- 210/2017

(जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, इलाहाबाद द्वारा परिवाद सं0- 310/2015 में पारित निर्णय व आदेश दि0 30.11.2016 के विरूद्ध)

Smt. Geeta mishra W/o Sri Mukteswar mishra R/o H. No. EA-1/304, A D A Colony Naini District – Allahabad.

                                  ……..Appellant

 

Versus

Secretary Allahabad Development authority, 8th Floor, Indira bhawan Civil lines District- Allahabad.  

                                 ………Respondent 

 

समक्ष:-                       

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष   

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित      : श्री अनिल कुमार मिश्रा,

                               विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित       : श्री अखण्‍ड प्रताप सिंह,              

                               विद्वान अधिवक्‍ता।

 

दिनांक:- 03.10.2019

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष  द्वारा उद्घोषित

                                                 

निर्णय

          परिवाद सं0- 310/2015 श्रीमती गीता मिश्रा बनाम सचिव इलाहाबाद विकास प्राधिकरण में जिला फोरम, इलाहाबाद द्वारा पारित निर्णय व आदेश दि0 30.11.2016 के विरूद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत राज्‍य आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गई है।

          आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद अंशत: स्‍वीकार करते हुए निम्‍न आदेश पारित किया है।

          ‘’परिवादिनी द्वारा प्रस्‍तुत यह परिवाद विपक्षी के विरुद्ध अंशत: आज्ञप्‍त किया जाता है। विपक्षी को यह निर्देश दिया जाता है कि वह इस आदेश के एक माह के अंतर्गत परिवादिनी द्वारा समय से पूर्व किस्‍तें जमा करने के कारण उस पर देय से अधिक भुगतान ब्‍याज के जमा तथा अधिक जमा परिवर्तन शुल्‍क की धनराशि की सही आगणन करेगा। अतिरक्‍त भूमि के बावत मूल्‍य की अदायगी किये जाने पर विपक्षी द्वारा नियमानुसार कार्यवाही सुनिश्चित की जायेगी। जहां तक क्षति-पूर्ति का ताल्‍लुक है, उपरोक्‍त परिस्थितियों में कोई क्षति-पूर्ति परिवादिनी पाने की अधिकारिणी नहीं है परन्‍तु वाद व्‍यय के रूप में परिवादिनी 2,000/-रू0 पाने की अधिकारिणी होगी।‘’          

          जिला फोरम के निर्णय और आदेश से क्षुब्‍ध होकर परिवाद की परिवादिनी संतुष्‍ट नहीं है। अत: परिवाद की परिवादिनी ने यह अपील प्रस्‍तुत की है। 

          अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री अनिल कुमार मिश्रा और प्रत्‍यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री अखण्‍ड प्रताप सिंह उपस्थित आये हैं।     

          मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्‍तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय व आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।

          मैंने उभय पक्ष की ओर से प्रस्‍तुत लिखित तर्क का भी अवलोकन किया है।   

          अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्‍त सुसंगत तथ्‍य इस प्रकार हैं कि अपीलार्थी/परिवादिनी ने उपरोक्‍त परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रत्‍यर्थी/विपक्षी के विरुद्ध इस कथन के साथ प्रस्‍तुत किया है कि उसने नैनी आवास योजना में निर्मित कमजोर वर्ग के भवन के आवंटन के लिए आवेदन पत्र दि0 24.07.1990 को प्रत्‍यर्थी/विपक्षी के कार्यालय में दिया और 500/-रु0 पंजीकरण शुल्‍क जमा किया। सारी औपचारिकतायें पूर्ण करने के उपरांत प्रत्‍यर्थी/विपक्षी के कार्यालय के पत्र सं0- 296/नैनी/ई0डब्‍लू0एस0/ए0डी0ए0:90-91 दि0 5.2.1991 के द्वारा नैनी आवास योजना के अंतर्गत भवन सं0- ई0ए0-1/142 अपीलार्थी/परिवादिनी को आवंटित किया गया जिसका मूल्‍य 35,100/-रु0 था। इसके 1/4 भाग यानी 8,775/-रु0 से 500/-रु0 रजिस्‍ट्रेशन शुल्‍क घटाकर शेष धनराशि 8,775/-रु0 जमा कर अवशेष 3/4 धनराशि 26,325/-रु0 का 12 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज सहित 290/-रु0 की 240 किश्‍तों में जमा करना था।

          परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादिनी का कथन है कि उसने उपरोक्‍त भवन के स्‍थान पर नैनी आवास योजना नैनी में ही उसी ब्‍लाक में उसी वर्ग का भवन सं0- ई0ए0-1/304 को आवंटित करने का प्रार्थना पत्र विपक्षी के यहां दिया, जिस पर प्रत्‍यर्थी/विपक्षी के कार्यालय के पत्र सं0- 2849/ई0डब्‍लू0एस0/ए0डी0ए0/91-92 दि0 10 दिसम्‍बर 1991 द्वारा उसके पूर्व आवंटन को संशोधित करते हुए उसके स्‍थान पर उसको उपरोक्‍त भवन सं0- ई0ए01/304 नैनी आवास योजना में 391/-रु0 परिवर्तन शुल्‍क लेकर आवंटित किया गया। शेष नियम और शर्तें यथावत रहीं।

          परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादिनी का कथन है कि परिवर्तन पत्र जारी होने के पूर्व ही वह 8,275/-रु0 के स्‍थान पर 15,770/-रु0 अग्रिम तथा 500/-रु0 पंजीकरण शुल्‍क कुल 16,270/-रु0 जमा कर चुकी थी। अत: अवशेष धनराशि 18,830/-रु0 ब्‍याज सहित 207/-रु0 मासिक 240 किश्‍तों में जमा करना था, किन्‍तु परिवर्तन विषयक पत्र में इसका ध्‍यान नहीं रखा गया। अत: अपीलार्थी/परिवादिनी ने पत्र दि0 24.12.1991 के द्वारा आपत्ति प्रत्‍यर्थी/विपक्षी के कार्यालय में की। तब प्रत्‍यर्थी/विपक्षी के कार्यालय ने पत्र दि0 14.10.1992 द्वारा उपरोक्‍त वर्णित परिस्थितियों में किश्‍त की धनराशि 207.35/-रु0 कर दिया, किन्‍तु परिवर्तन शुल्‍क को परिवर्तित नहीं किया और अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा 391/-रु0 परिवर्तन शुल्‍क जमा करने और सारी औपचारिकतायें पूरी करने के बाद दि0 15.01.1993 को अपीलार्थी/परिवादिनी को भवन सं0- ई0ए0-1/304 का कब्‍जा दिया गया। उसके बाद अपीलार्थी/परिवादिनी ने प्रत्‍यर्थी/विपक्षी द्वारा संशोधित किश्‍तों की सम्‍पूर्ण 240 किश्‍तों को समय से या समय से पूर्व जमा करते हुए निर्धारित तिथि दि0 31.12.2012 से पूर्व ही जून 2011 तक जमा कर दिया और विवरण अपने पत्र दि0 22.08.2011 के साथ सचिव इलाहाबाद विकास प्राधिकरण, इला‍हाबाद के कार्यालय में लिपिक श्री नागेन्‍द्र सिंह को प्राप्‍त करा दिया जिसमें जमा की सूचना देते हुए रजिस्‍ट्री कराने का अनुरोध किया, परन्‍तु सूचना देने के बाद तीन वर्ष तक आवंटित भवन का अन्तिम आगणन प्रत्‍यर्थी/विपक्षी द्वारा नहीं कराया गया और न रजिस्‍ट्री की गई तब अपीलार्थी/परिवादिनी ने दि0 21.08.2014 को उपाध्‍यक्ष इलाहाबाद विकास प्राधिकरण को सम्‍पूर्ण स्थिति से अवगत कराते हुए पत्र प्राप्‍त कराया, जिस पर पंजीयन क्रमांक 21014082014 पर शिकायत पंजिका में पंजीकृत की गई, परन्‍तु शिकायत से नाराज होकर सम्‍बन्धित अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने पूर्व आग्रहवश अन्तिम आगणन प्रत्‍यर्थी/विपक्षी के कार्यालय पत्र सं0- ई0ए01/304/जो0आ0राजस्‍व/वि0प्रा0/2014 दि0 20.9.2014 के द्वारा दि0 22.9.2014 को अपीलार्थी/परिवादिनी को दिया जिसके क्रमांक 1 पर अन्‍तर धनराशि का अंशदान 366/-रु0, क्रमांक 2 पर स्‍टैण्‍डर्ड भूमि का फ्री होल्‍ड चार्ज 1032/-रु0, क्रमांक 3 पर अतिरिक्‍त भूमि 16.15 वर्गमीटर का मूल्‍य 1,61,500/-रु0, क्रमांक 4 पर अतिरिक्‍त भूमि का फ्री होल्‍ड चार्ज 19,380/-रु0 एवं क्रमांक 5 पर गणना सेनेट्री व अन्‍य शुल्‍क 825/-रु0 कुल 1,83,103/-रु0 दि0 31.1.2014 तक प्राधिकरण कोष में जमा करके भवन की रजिस्‍ट्री कराने का निर्देश दिया गया।

          परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्‍यर्थी/विपक्षी द्वारा मांगी गई धनराशि पूर्णत: अनियमित और आवंटन के विरुद्ध है। अत: अपीलार्थी/परिवादिनी ने आपत्ति करते हुए पत्र दि0 24.09.2014 द्वारा वित्‍त नियंत्रक इलाहाबाद विकास प्राधिकरण से कास्टिंग का विवरण उपलब्‍ध कराने तथा वर्णित स्थिति में मांगों को संशोधित करने का अनुरोध किया, परन्‍तु प्रत्‍यर्थी/विपक्षी द्वारा कोई स्थिति स्‍पष्‍ट नहीं की गई और पत्र दि0 16.12.2014 द्वारा पुन: 1,83,103/-रु0 दि0 31.10.2014 तक जमा करने का उल्‍लेख करते हुए 15 प्रतिशत ब्‍याज सहित एक सप्‍ताह के अन्‍दर विकास प्राधिकरण कोष में जमा करने को कहा गया तथा जमा न करने पर आवंटन निरस्‍त करने की धमकी दी गई तब अपीलार्थी/परिवादिनी ने पुन: पत्र ‍दि0 26.12.2014 जोनल अधिकारी को प्रेषित किया। उसके बाद पुन: अपीलार्थी/परिवादिनी ने पत्र दि0 28.01.2015 प्रेषित‍ किया। तदोपरांत प्रत्‍यर्थी/विपक्षी के जोनल अधिकारी ने पत्र दि0 20.02.2015 द्वारा गणना की सही सूचना देते हुए मांगी गई धनराशि जमा करने का आदेश दिया। उसके बाद अपीलार्थी/परिवादिनी ने पत्र दि0 2.3.2015 के द्वारा प्रत्‍यर्थी/विपक्षी के कार्यालय से जनसूचना अधिकार अधिनियम के अंतर्गत सूचना मांगी, परन्‍तु कोई सूचना उपलब्‍ध नहीं करायी गई। तब विवश होकर उसने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्‍तुत किया है।

          जिला फोरम के समक्ष प्रत्‍यर्थी/विपक्षी की ओर से लिखित कथन प्रस्‍तुत किया गया है और कहा गया है कि अपीलार्थी/परिवादिनी को किश्‍तों की सूचना नियमानुसार संशोधित करते हुए दी गई है और अपीलार्थी/परिवादिनी के प्रार्थना पत्र दि0 21.8.2014 के क्रम में अन्तिम गणना कराते हुए 1,83,103/-रु0 जमा करने हेतु पत्र दि0 16.12.2014 द्वारा अपीलार्थी/परिवादिनी को सूचित किया जा चुका है, परन्‍तु अपीलार्थी/परिवादिनी ने उक्‍त धनराशि जमा न कर गलत कथन के आधार पर परिवाद प्रस्‍तुत कर दिया है। लिखित कथन में प्रत्‍यर्थी/विपक्षी की ओर से कहा गया है कि अपीलार्थी/परिवादिनी के भवन के बगल में 16.15 वर्गमीटर अतिरिक्‍त भूमि है। अतिरिक्‍त भूमि की भी धनराशि डिमाण्‍ड नोटिस में सम्मिलित करते हुए अपीलार्थी/परिवादिनी को नोटिस भेजी गई है, जिसे अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा जमा नहीं किया गया है। लिखित कथन में प्रत्‍यर्थी/विपक्षी की ओर से कहा गया है कि अपीलार्थी/परिवादिनी ने अनैतिक लाभ प्राप्‍त करने के उद्देश्‍य से परिवाद गलत कथन के आधार पर प्रस्‍तुत किया है। परिवाद निरस्‍त किये जाने योग्‍य है।

          जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्‍ध साक्ष्‍यों पर विचार करने के उपरांत यह माना है कि अपीलार्थी/परिवादिनी से अतिरिक्‍त भूमि 16.15 वर्गमीटर प्रचलित दर के हिसाब से जो धनराशि मांगी गई है वह विधि विरुद्ध नहीं है। इसके साथ ही जिला फोरम ने यह माना है कि अपीलार्थी/परिवादिनी प्रत्‍यर्थी/विपक्षी से प्रश्‍नगत भवन के मूल्‍य के सम्‍बन्‍ध में सही गणना पाने की अधिकारी है। अत: जिला फोरम ने परिवाद अंशत: स्‍वीकार करते हुए आक्षेपित आदेश पारित किया है जो ऊपर अंकित है।

          अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि प्रत्‍यर्थी/विपक्षी ने अपीलार्थी/परिवादिनी से जो 16.15 वर्गमीटर के अतिरिक्‍त क्षेत्र हेतु मूल्‍य वर्तमान प्रचलित दर से 1,61,506/-रु0 मांगा है वह उचित नहीं है। प्रत्‍यर्थी/विपक्षी, अपीलार्थी/परिवादिनी से इस भूमि का मूल्‍य अपीलार्थी/परिवादिनी को आवंटित भवन के मूल्‍य की दर से ही पाने का अधिकारी है। अत: जिला फोरम ने जो इस अतिरिक्‍त भूमि 16.15 वर्गमीटर पर जो वर्तमान प्रचलित दर से मांगा जाना उचित माना है वह विधि विरुद्ध है। अत: जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय इस बिन्‍दु पर संशोधित किये जाने योग्‍य है।

          प्रत्‍यर्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला फोरम का निर्णय व आदेश उचित है। प्रत्‍यर्थी/विपक्षी 16.15 वर्गमीटर के बढ़े भूखण्‍ड हेतु वर्तमान में प्रचलित दर से मूल्‍य प्राप्‍त करने का अधिकारी है।

          मैंने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।

          अपीलार्थी/परिवादिनी को भवन EA-1/304 प्रश्‍नगत योजना में वर्ष 1991 में आवंटित किया जाना अविवादित है। परिवादिनी ने भुगतान निश्चित तिथि दि0 31.12.2012 के पूर्व ही आवंटन पत्र के अनुसार किया है। प्रत्‍यर्थी/विपक्षी के कार्यालय ने अन्तिम आगणन दि0 20.09.2014 को जारी किया है जिसमें परिवादिनी के प्रश्‍नगत भवन में तय क्षेत्रफल से 16.15 वर्गमीटर भूमि अधिक अतिरिक्‍त भूमि बताया है। प्रत्‍यर्थी/विपक्षी इस अतिरिक्‍त भूमि के मूल्‍य की मांग परिवादिनी से अन्तिम आगणन में कर सकता है, परन्‍तु इस अतिरिक्‍त भूमि का मूल्‍य दि0 31.12.2012 जो अन्तिम किस्‍त के भुगतान की तिथि थी को प्रचलित दर से किया जाना चाहिए था। अन्तिम आगणन देने में विलम्‍ब प्रत्‍यर्थी/विपक्षी ने किया है। अत: विलम्‍ब का लाभ प्रत्‍यर्थी/विपक्षी नहीं ले सकता है। अत: जिला फोरम का निर्णय तदनुसार संशोधित किये जाने योग्‍य है।

          अतिरिक्‍त भूमि के मूल्‍य का सही आगणन नहीं किया गया है। इस कारण इसके मूल्‍य पर अपीलार्थी/परिवादिनी से कोई ब्‍याज की मांग किया जाना उचित नहीं है।

          उपरोक्‍त निष्‍कर्ष के आधार पर अपील आंशिक रूप से स्‍वीकार की जाती है और जिला फोरम का आदेश संशोधित करते हुए आदेशित किया जाता है कि प्रत्‍यर्थी/विपक्षी अपीलार्थी/परिवादिनी से अतिरिक्‍त भूमि 16.15 वर्गमीटर का मूल्‍य दि0 31.12.2012 को प्रचलित दर से पाने का अधिकारी है और संशोधित मांगपत्र जारी करने की तिथि तक इस धनराशि पर अपीलार्थी/परिवादिनी कोई ब्‍याज देने हेतु उत्‍तरदायी नहीं है।

          जिला फोरम के निर्णय का शेष अंश यथावत रहेगा।

          उभय पक्ष अपना-अपना व्‍यय अपील में स्‍वयं वहन करेंगे।

                       

(न्‍यायमूर्ति अख्‍तर हुसैन खान)                                              

                                                                                अध्‍यक्ष                            

शेर सिंह आशु0,

कोर्ट नं0-1

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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[HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN]
PRESIDENT
 

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