Uttar Pradesh

StateCommission

A/2013/595

Hanuman Yadav - Complainant(s)

Versus

Sardar Motors - Opp.Party(s)

B K Upadhayay , Shri. Alok Ranjan

20 Jul 2021

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2013/595
( Date of Filing : 21 Mar 2013 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Hanuman Yadav
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Sardar Motors
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Gobardhan Yadav PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Vikas Saxena JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 20 Jul 2021
Final Order / Judgement

                                               सुरक्षि‍त

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

                                                                                         अपील संख्‍या- 595/2013

(जिला उपभोक्‍ता आयोग, गोरखपुर द्वारा परिवाद संख्‍या- 255/2012 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 18-03-2013 के विरूद्ध)

 

हनुमान यादव उम्र लगभग 48 वर्ष, पुत्र स्‍व० पूजन यादव, निवासी- मढ़ौरा पोस्‍ट-माझा नारायण, तहसील रूद्रपुर, जनपद देवरिया।

                                                                                                                  अपीलार्थी/परिवादी

बनाम

1- सरदार मोटर्स, बी-6 प्‍लास्टिक काम्‍पलेक्‍स, बस्‍ती, जिला बस्‍ती द्वारा प्रोपराइटर।

2- उ०प्र० सहकारी ग्राम विकास बैंक लि0, शाखा रूद्रपुर, जिला देवरिया द्वारा शाखा प्रबन्‍धक।

3- तहसीलदार, तहसील रूद्रपुर द्वारा उपजिलाधिकारी, तहसील रूद्रपुर, जिला देवरिया।

                                                                                                  प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण

समक्ष:-

 माननीय श्री गोवर्धन यादव, सदस्‍य

 माननीय श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य

 

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :  विद्वान अधिवक्‍ता, श्री आलोक रंजन

प्रत्‍यर्थी सं०1 की ओर से उपस्थित: कोई उपस्थित नहीं।

प्रत्‍यर्थी सं०2 की ओर से उपस्थित: विद्वान अधिवक्‍ता श्री हेमराज मिश्रा

 

दिनांक-.24-08-2021

 

माननीय श्री गोवर्धन यादव, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

                                                                                                       निर्णय

    प्रस्‍तुत अपील, परिवाद संख्‍या– 255 सन 2012 हनुमान यादव बनाम सरदार मोटर्स, बस्‍ती जिला बस्‍ती द्वारा प्रोपराइटर व दो अन्‍य में जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, गोरखपुर द्वारा पारित आदेश दिनांक         18-03-2013 के विरूद्ध धारा- 15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अन्‍तर्गत राज्‍य आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गयी है।

2

आक्षे‍पि‍त निर्णय और आदेश के द्वारा जिला आयोग ने परिवादी का परिवाद निरस्‍त कर दिया है जिससे क्षुब्‍ध होकर परिवादी ने यह अपील प्रस्‍तुत की है।

अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी/परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री आलोक रंजन उपस्थित आए हैं। प्रत्‍यर्थी संख्‍या-1 की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। प्रत्‍यर्थी संख्‍या-2 की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री हेमराज मिश्रा उपस्थित हुए हैं।

 हमने उभय-पक्ष के विद्वान अधिवक्‍तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।

     अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्‍त सुसंगत तथ्‍य इस प्रकार हैं कि अपीलार्थी/परिवादी ने परिवाद जिला आयोग के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्‍तुत किया है कि उसके पिता स्‍व0 पूजन ने महिन्‍द्रा जीप लेने के लिए विपक्षी संख्‍या-2 से सम्‍पर्क किया एवं ऋण हेतु आवेदन किया। प्रत्‍यर्थी/विपक्षी संख्‍या-2 उ०प्र० सहकारी ग्राम्‍य विकस बैंक द्वारा 2.50 लाख रूपये का ऋण स्‍वीकृत किया गया। प्रत्‍यर्थी/विपक्षी संख्‍या-2 द्वारा ऋण स्‍वीकृति के बाद विपक्षी संख्‍या-1 को दिनांक 04-12-1999 को पत्र दिया जिसकी प्रतिलि‍पि परिवादी के पिता को भी दी गयी जिसमें अंकित था कि कोटेशन के अनुसार बैंक से 2.50 लाख रूपये का चेक नं०200596 दिनांक 04-12-99 बना दिया गया है जिसको आपके फर्म के नाम से भेजा जा रहा है एवं कोटेशन के अनुसार अवशेष धनराशि कृषक से प्राप्‍त कर वाहन आपूर्ति करें एवं वाहन का बीमा एवं पंजीयन अपने स्‍तर से करें। परिवाद-पत्र के अनुसार उक्‍त पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी के पिता एक अन्‍य व्‍यक्ति प्रेमशंकर शुक्‍ला को लेकर विपक्षी संख्‍या-1 के यहॉं गये एवं अवशेष धनराशि 64,000/-रू० एवं बीमा

3

 

व पंजीयन की धनराशि 10,000/-रू० विपक्षी संख्‍या-1 के यहॉं जमा करा दिया एवं वाहन प्रदान किये जाने का अनुरोध किया। परन्‍तु विपक्षी संख्‍या-1 द्वारा महिन्‍द्रा जीप  वाहन अपीलार्थी/परिवादी को नहीं दिया गया और कहा गया कि समस्‍त कागजात एवं वाहन की चाभी बैंक के समक्ष प्रस्‍तुत करना है। कई बार अनुरोध करने पर भी विपक्षी संख्‍या-1 द्वारा वाहन नहीं दिया गया जिसके कारण अपीलार्थी/परिवादी को मानसिक आघात पहॅुंचा है। इसके उपरान्‍त अपीलार्थी/परिवादी ने विपक्षी संख्‍या-2 से सम्‍पर्क किया तो उन्‍होंने कहा कि आपने  वाहन ले लिया है। परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी का कथन है कि पैसा प्राप्‍त करने के बाद भी प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण द्वारा अपीलार्थी/परिवादी को वाहन की आपूर्ति नहीं करायी गयी जिसके कारण उसके पिता की मृत्‍यु हार्ट अटैक से हो गयी।

        परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी का कथन है कि प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण ने अपनी सेवा में कमी एवं घोर लापरवाही की है। विपक्षीगण की मिली भगत से अपीलार्थी/परिवादी को स्‍वीकृत वाहन की आपूर्ति नहीं की गयी और बावजूद इसके ऋण की वसूली भी उससे की जा रही है। अत: विवश होकर अपीलार्थी/परिवादी ने परिवाद जिला आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत किया है।

         जिला आयोग के समक्ष प्रत्‍यर्थी/विपक्षी संख्‍या-1 की ओर से अपनी आपत्ति लिखित कथन के रूप में प्रस्‍तुत की गयी है जिसमें कहा गया है कि वाहन दिनांक 10-12-99 को क्रय किया गया था एवं वाद दिनांक 30-09-03 को दाखिल किया गया है इसलिए परिवाद कालबाधित है एवं वाहन को व्‍यवसायिक प्रयोग में लिये जाने के कारण जिला आयोग के क्षेत्राधिकार से बाहर है। 

4

       जिला आयोग के समक्ष प्रत्‍यर्थी/विपक्षी संख्‍या-2 की ओर से भी अपनी आपत्ति प्रस्‍तुत की गयी है जिसमें कहा गया है कि परिवाद गलत कथनों के आधार पर प्रस्‍तुत किया गया है। परिवादी ने वसूली की कार्यवाही से बचने के लिए यह परिवाद प्रस्‍तुत किया है। बैंक द्वारा परिवादी को ऋण प्रदान किया गया है। अत: बैंक को अपनी ऋण की वसूली का पूरा अधिकार है। विपक्षी संख्‍या-2 बैंक को वाहन के सम्‍बन्‍ध में कोई सूचना नहीं दी गयी है। अत: परिवाद खारिज किये जाने योग्‍य है।

         जिला आयोग ने उभय-पक्ष के अभिकथनों को सुनने के उपरान्‍त अपने निर्णय के द्वारा परिवाद को निरस्‍त कर दिया है। अत: अपीलार्थी/परिवादी ने यह अपील प्रस्‍तुत की है।

         अपीलार्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला आयोग का निर्णय विधि सम्‍मत नहीं है। जिला आयोग ने गलत आधार पर परिवाद निरस्‍त किया है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि कोई भी विक्रेता प्राप्ति रशीद पर क्रेता के हस्‍ताक्षर या अंगूठा का निशान लगवाए बिना वाहन हस्‍तांतरित नहीं करेगा तथा बिना अथारिटी लेटर के किसी अन्‍य व्‍यक्ति को वाहन नहीं प्राप्‍त कराएगा। इसलिए प्रत्‍यर्थी/विपक्षी संख्‍या-1 का यह कथन बिल्‍कुल गलत है कि परिवादी के हाथ के पंजे में लगी चोट के कारण प्राप्ति रशीद पर उनके अंगूठे का निशान एवं हस्‍ताक्षर नहीं लगवाया गया। केवल मौखिक कहने पर वाहन गवाह राम फकीर को प्राप्‍त करा दिया गया, पूर्णत: अविश्‍वसनीय है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि विपक्षी संख्‍या-2 बैंक के द्वारा बिना वाहन की डुप्‍लीकेट चाभी वाहन पंजीकरण की मूल प्रति, एवं अन्‍य कागजात प्राप्‍त किये बिना वाहन ऋण राशि विपक्षी संख्‍या-1 के पक्ष में अवमुक्‍त करना लापरवाही एवं सेवा में कमी है। अपीलार्थी

5

 

के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि विपक्षीगण की मिली भगत से स्‍वीकृत वाहन ऋण, रजिस्‍ट्रेशन एवं बीमा का पैसा हड़प लिया गया और अपीलार्थी/परिवादी को वाहन की आपूर्ति भी नहीं करायी गयी। जिला आयोग का निर्णय गलत एवं त्रुटिपूर्ण है। अत: अपीलार्थी/परिवादी द्वारा प्रस्‍तुत अपील स्‍वीकार किये जाने योग्‍य है।

      प्रत्‍यर्थी/विपक्षी संख्‍या-2 के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि परिवादी ने वसूली की कार्यवाही से बचने के लिए यह परिवाद प्रस्‍तुत किया है।     विपक्षी संख्‍या-2 की सेवा में कोई कमी नहीं है।

      हमने उभय-पक्ष के विद्वान अधिवक्‍तागण के तर्क एवं पत्रावली पर उपलब्‍ध समस्‍त तथ्‍यों एवं साक्ष्‍यों का सूक्ष्‍मता से परिशीलन किया। 

     पत्रावली के अवलोकन से स्‍पष्‍ट है कि प्रत्‍यर्थी संख्‍या-1 ने अपनी जवाबदेही पैराग्राफ सं० 7 एवं 8 में स्‍पष्‍ट रूप से स्‍वीकार किया है कि अपीलार्थी/परिवादी के पिता ने न तो वाहन प्राप्‍ती रशीद पर अंगूठा लगाया और न ही राम फकीर के पक्ष में कोई अथारिटी लेटर जारी किया। हमारी राय में केवल मौखिक कथन के आधार पर वाहन किसी अन्‍य व्‍यक्ति को प्राप्‍त करा देना वास्‍तविकता से परे है। ऐसा कोई साक्ष्‍य पत्रावली पर मौजूद नहीं है जिससे यह साबित हो सके कि प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण द्वारा वाहन प्राप्‍त कराया गया है। अत: अपीलार्थी/परिवादी का तर्क उचित प्रतीत होता है। तदनुसार अपीलार्थी/परिवादी द्वारा प्रस्‍तुत अपील स्‍वीकार किये जाने योग्‍य है।

                                                                                             आदेश

         प्रस्‍तुत अपील स्‍वीकार की जाती है तथा जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांकित 18-03-2013 अपास्‍त करते हुए प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण

6

 

को आदेशित किया जाता है कि अपीलार्थी/परिवादी द्वारा प्रत्‍यर्थी संख्‍या-1 को प्राप्‍त करायी गयी कुल धनराशि रू० 3,24,000/-रू० मय 09 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्‍याज के साथ दिनांक 10-12-1999 से भौतिक रूप से भुगतान प्राप्‍त करने की तिथि तक परिवादी को भुगतान करें, तथा प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण को यह भी आदेशित किया जाता है कि 50,000/-रू० मानसिक एवं शारीरिक कष्‍ट की क्षतिपूर्ति हेतु भी अपीलार्थी/परिवादी को अदा करें।

      उभय-पक्ष अपना-अपना वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

 आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइड पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

 

(विकास सक्‍सेना)                                         (गोवर्धन यादव)            

      सदस्‍य                                                      सदस्‍य

 

कृष्‍णा- आशु०

कोर्ट नं० 2

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Gobardhan Yadav]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. Vikas Saxena]
JUDICIAL MEMBER
 

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