राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1146/2017
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता फोरम-द्वितीय, बरेली द्वारा परिवाद संख्या 23/2014 में पारित आदेश दिनांक 31.03.2017 के विरूद्ध)
1. राजश्री इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एण्ड टैक्नोलॉजी निकट कस्बा रिठौरा, तहसील नवाबगंज, जिला बरेली द्वारा राजेन्द्र कुमार अग्रवाल चेयरमैन।
2. राजश्री इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एण्ड टैक्नोलॉजी निकट कस्बा रिठौरा, तहसील नवाबगंज, जिला बरेली द्वारा राकेश कुमार अग्रवाल प्रेसीडेन्ट।
...................अपीलार्थीगण/विपक्षीगण सं01 व 2
बनाम
1. संजीव कुमार पुत्र श्री धूम बहादुर निवासी पटेल विहार कालोनी, बदायूँ रोड, सुभाष नगर, तहसील सदर जिला बरेली।
2. पंजाब नेशनल बैंक, शाखा-नवाबगंज, जनपद बरेली द्वारा शाखा प्रबन्धक।
................प्रत्यर्थीगण/परिवादी व विपक्षी सं03
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री ओ0पी0 दुवेल,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं01 की ओर से उपस्थित : श्री आर0डी0 क्रान्ति,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं02 की ओर से उपस्थित : श्री शरद तिवारी,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 13.03.2019
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-23/2014 संजीव कुमार बनाम राजश्री इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड टैक्नोलॉजी व दो अन्य में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम-द्वितीय, बरेली द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 31.03.2017 के विरूद्ध यह
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अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
जिला फोरम ने आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा उपरोक्त परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
''परिवाद इस प्रकार आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। परिवादी प्रतिपक्षीगण 1,व 2 से रुपये 28,000/- वापस प्राप्त करने का अधिकारी है इसके अतिरिक्त वह प्रतिपक्षीगण 1व 2 से शारीरिक व मानसिक कष्ट हेतु रू0 5,000/- क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकारी है। उक्त धनराशियो का भुगतान एक माह के अंतर्गत न होने पर परिवादी उक्त धनराशियो पर परिवाद संस्थित किये जाने की तिथि से उक्त धनराशि का भुगतान होने तक 07 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज भी प्राप्त करने की अधिकारी होगा। परिवादी प्रतिपक्षीगण 1 व 2 से वाद व्यय के रूप में रू0 3000/- प्राप्त करने का अधिकारी है।''
जिला फोरम के निर्णय से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षीगण संख्या-1 व 2 राजश्री इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एण्ड टैक्नोलॉजी द्वारा राजेन्द्र कुमार अग्रवाल चेयरमैन एवं राजश्री इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एण्ड टैक्नोलॉजी द्वारा राकेश कुमार अग्रवाल प्रेसीडेन्ट ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री ओ0पी0 दुवेल, प्रत्यर्थी संख्या-1 की ओर से
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विद्वान अधिवक्ता श्री आर0डी0 क्रान्ति और प्रत्यर्थी संख्या-2 की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री शरद तिवारी उपस्थित आये हैं।
मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने उपरोक्त परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि उसने वर्ष 2010 में यू0पी0 बोर्ड इलाहाबाद से हाईस्कूल की परीक्षा 47.83 प्रतिशत प्राप्तांक प्राप्त कर उत्तीर्ण की और इण्टरमीडिएट परीक्षा वर्ष 2012 में उत्तीर्ण की। तदोपरान्त दिनांक 01.07.2012 को प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी/विपक्षीगण के शिक्षण संस्थान में वर्ष 2012-2013 के सत्र में पॉलीटेक्निक प्रथम वर्ष में प्रवेश हेतु गया और जानकारी की तो उसे बताया गया कि प्रथम वर्ष की कुल फीस 28,000/-रू0 है। प्रवेश फार्म 700/-रू0 का अलग से लेना होगा तथा अलग से कालेज में 2500/-रू0 जमा कर कालेज की तरफ से बैंक खाता खुलवाया जायेगा और जो भी शासन की तरफ से छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति की रकम आयेगी वह सीधे उक्त खाते में जायेगी। अपीलार्थी/विपक्षीगण ने प्रत्यर्थी/परिवादी को यह भी बताया कि दिनांक 03.07.2012 तक प्रवेश ले लें सीटें भरी जा चुकी हैं। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी ने 700/-रू0 नकद का भुगतान कर प्रवेश फार्म क्रय किया और दिनांक 03.07.2012 को अपने पिता व मामा के
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साथ प्रवेश हेतु कालेज गया और अपीलार्थी/विपक्षीगण व उनके कर्मचारीगण से प्रवेश के सम्बन्ध में विस्तार से जानकारी ली तो उन्होंने बताया कि कुल फीस 28,000/-रू0 है और छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति की रकम 28,000/-रू0 खाते में जाना है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि खाते की रकम प्रत्यर्थी/परिवादी की होगी। तब प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी/विपक्षीगण व उनके कर्मचारियों की बातों पर विश्वास कर वर्ष 2012-2013 में प्रवेश लिया, परन्तु प्रवेश फार्म भरवाते समय संस्थान के रजिस्ट्रार दुष्यन्त माहेश्वरी ने बैंक के सादा कागजों पर अनुचित ढंग से उसका हस्ताक्षर करवा लिया।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि दिनांक 03.07.2012 को प्रत्यर्थी/परिवादी ने 2500/-रू0 नकद बैंक खाता खुलवाने के लिए और 8500/-रू0 नकद कालेज की फीस जमा की तथा बाकी फीस सुविधानुसार किस्त में देना तय हुआ। इस प्रकार उसे पॉलीटेक्निक प्रथम वर्ष के मैकेनिकल ब्रांच में प्रवेश दिया गया।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि उसने तयशुदा कुल फीस 28,000/-रू0 में से 24,000/-रू0 कालेज में किस्तों में जमा की थी और आर्थिक तंगी के कारण 4000/-रू0 जमा नहीं कर सका तो अपीलार्थी/विपक्षीगण ने नोड्यूज प्रमाण पत्र व प्रवेश पत्र देने से मना कर दिया। परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि उसने आनन-फानन में 4000/-रू0
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10 प्रतिशत ब्याज पर उधार लेकर दिनांक 09.04.2013 को अपीलार्थी/विपक्षीगण के अधीनस्थ कर्मचारी/रजिस्ट्रार को दिया तो उन्होंने कैशियर मोहित बाबू को उसे दिया तब प्रत्यर्थी/परिवादी को नोड्यूज प्रमाण पत्र दिया गया, परन्तु जब प्रत्यर्थी/परिवादी ने 4000/-रू0 की रसीद मांगी तो उन्होंने कहा कि नेट की कनेक्टीविटी न होने के कारण रसीद सम्भव नहीं है। इस पर प्रत्यर्थी/परिवादी ने हस्तलिखित रसीद मांगी तो अपीलार्थी/विपक्षीगण के कर्मचारियों ने कहा कि क्या उन पर विश्वास नहीं है और यह कहते हुए वह भड़क गये तथा प्रत्यर्थी/परिवादी से अभद्र व्यवहार करते हुए दिनांक 10.04.2013 से आरम्भ होने वाली वार्षिक परीक्षा में उसे सम्मिलित न कराने की धमकी दिया।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी व उसके पिता के द्वारा अपीलार्थी/विपक्षीगण से काफी अनुरोध करने के बाद भी उसे प्रवेश पत्र नहीं दिया गया, जिससे दिनांक 10.04.2013 को आरम्भ होने वाली परीक्षा में प्रत्यर्थी/परिवादी शामिल नहीं हो सका। अत: विवश होकर प्रत्यर्थी/परिवादी ने दिनांक 10.05.2013 को अपीलार्थी/विपक्षीगण को विधिक नोटिस भेजा तब दिनांक 10.07.2013 को परीक्षा का प्रवेश पत्र उसे दिया गया और दिनांक 10.07.2013 को ही स्पेशल परीक्षा होनी थी। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी आनन-फानन में परीक्षा में बिना तैयारी के बैठा इस कारण वह परीक्षा उत्तीर्ण नहीं कर पाया।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि
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प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-3 पंजाब नेशनल बैंक शाखा नवाबगंज जिला बरेली में प्रत्यर्थी/परिवादी का जो खाता खुलवाया गया उसका नम्बर 4194001500010555 है। इसमें दिनांक 11.04.2013 को 28,000/-रू0 की शुल्क प्रतिपूर्ति की रकम शासन द्वारा भेजी गयी थी, परन्तु विपक्षीगण ने एक राय होकर सादा बैंक पेपर पर चापलूसी से कराये गये हस्ताक्षर से बैंक मैनेजर से साठगांठ करके यह धनराशि दिनांक 11.04.2013 को ही 13:50 बजे कालेज खाते में स्थानान्तरित करा लिया, जिसकी जानकारी प्रत्यर्थी/परिवादी के मोबाइल मैसेज से हुई। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी ने यह धनराशि 28,000/-रू0 पाने हेतु विपक्षीगण से तकाजा किया, परन्तु वे टालमटोल करते रहे। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी ने दिनांक 28.01.2014 को पुन: विपक्षीगण को नोटिस भेजा, परन्तु उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। अत: विवश होकर प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है और निम्न अनुतोष चाहा है:-
अ- यह कि परिवादी विपक्षीगण द्वारा अवैधानिक रूप से हड़पी गयी 60,200/-रू0 की नकद रकम तथा 4,20,000/-रूपये उसको शारीरिक व मानसिक आर्थिक क्षति रूप से जानबूझ कर शोषण कर परिवादी के जीवन से खिलवाड़ कर जीवन बर्बाद कर छात्र से रोड पर लाकर खड़ा करने क्षतिपूर्ति कुल 4,80,200/-रू0 दिलाये जावे। तथा विपक्षीगण से बैंक पास बुक भी वापस दिलायी जावे।
ब- यह कि वाद व्यय मय अधिवक्ता फीस दिलायी जावे।
स- यह कि अन्य कोई अनुतोष जो मा0 फोरम उचित समझे परिवादी को विपक्षीगण से दिलाया जावे।
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जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षीगण ने लिखित कथन प्रस्तुत किया है और कहा है कि परिवाद गलत कथन के आधार पर प्रस्तुत किया गया है। शिक्षा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की परिधि में नहीं आती है। अत: वर्तमान परिवाद उपभोक्ता फोरम के क्षेत्राधिकार से परे है।
लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने 47.83 प्रतिशत अंकों से हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की, परन्तु शासन ने बाद में इस प्रतिशत को बढ़ा कर 50 प्रतिशत कर दिया, जो एक प्रदेश व्यापी समस्या बन गयी जिसे बाद में माननीय उच्च न्यायालय द्वारा जनहित याचिका सं0 MISE SINGLE No. 2793/2013 में पारित आदेश के अनुपालन में सभी 50 प्रतिशत से कम अंक वाले छात्रों की परीक्षा करायी गयी। लिखित कथन में कहा गया है कि माननीय उच्च न्यायालय द्वारा उपरोक्त जनहित याचिका MISE SINGLE No. 2793/2013 में पारित आदेश के पश्चात् पुन: परीक्षा करायी गयी, जिसमें प्रत्यर्थी/परिवादी सम्मिलित हुआ है।
लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा State of U.P. its Principal Secretary. Technical Education Department, Civil Socretariat Lucknow एवं अन्य 4 व राजश्री इन्स्टीट्यूट के खिलाफ एक जनहित याचिका सं0 4041/2013 दायर की गयी है, जो माननीय उच्च न्यायालय में लम्बित है। ऐसी स्थिति में जिला
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फोरम को परिवाद सुनने का अधिकार नहीं है।
लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी/विपक्षीगण के संस्थान में दिनांक 03.07.2012 को शपथ पत्र प्रस्तुत किया है, जिसमें उसने किसी भी क्लेम को करने से इन्कार किया है और माना है कि कभी फीस की वापसी के लिए प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा कोई क्लेम नहीं किया जायेगा। यदि उसकी उपस्थिति 75 प्रतिशत से कम होगी तो उसे परीक्षा में सम्मिलित नहीं किया जायेगा।
लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से यह भी कहा गया है कि शुल्क प्रतिपूर्ति के सम्बन्ध में जिला पिछड़ा वर्ग कल्याण अधिकारी के पत्रांक 848/पि0व0क0/दशमोत्तर छात्रवृत्ति/शुल्क प्रतिपूर्ति/2012-2013 दिनांक 11.01.13 की नियमावली के अन्तर्गत भी प्रत्यर्थी/परिवादी लाभ पाने की आर्हता नहीं रखता है।
प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-3 की ओर से भी लिखित कथन जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया गया है, जिसमें कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी का बैंक खाता उचित प्रक्रिया अपनाकर खोला गया था और किसी भी व्यक्ति के खाते से धनराशि का आहरण खातेदार या उसके अधिकृत व्यक्ति द्वारा ही किया जा सकता है, किसी अन्य व्यक्ति द्वारा नहीं।
जिला फोरम ने परिवाद के निर्णय हेतु निम्न चार वाद बिन्दु विरचित किये हैं:-
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(1) क्या परिवादी के प्रतिपक्षी सं0 3 पंजाब नेशनल बैंक में संचालित खाता सं0 4194001500010555 से दि0 11.04.2013 को अन्तरित धनराशि रू0 28,000/- को परिवादी प्रतिपक्षीगण 1 व 2 से प्राप्त करने का अधिकारी है?
(2) क्या परिवादी के विशेष परीक्षा दि0 10.07.2013 में अनुत्तीर्ण होने हेतु प्रतिपक्षीगण 1 व 2 उत्तरदायी है यदि हॉं तो प्रभाव?
(3) क्या इस उपभोक्ता फोरम को परिवाद को सुनने का क्षेत्राधिकार है?
(4) क्या परिवादी कोई अनुतोष पाने का अधिकारी है?
जिला फोरम ने अपने निर्णय में उपरोक्त वाद बिन्दु संख्या-1 में यह निष्कर्ष निकाला है कि अपीलार्थी/विपक्षीगण ने प्रत्यर्थी/परिवादी के खाते से 28,000/-रू0 सम्पूर्ण निर्धारित शुल्क प्राप्त करने के बाद प्राप्त किया है। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी, अपीलार्थी/विपक्षीगण से 28,000/-रू0 पाने का अधिकारी है। इसके साथ ही जिला फोरम ने उपरोक्त वाद बिन्दु संख्या-2 के निर्णय में यह निष्कर्ष निकाला है कि प्रत्यर्थी/परिवादी के परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने के लिए अपीलार्थी/विपक्षीगण को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। उपरोक्त वाद बिन्दु संख्या-3 के निर्णय में जिला फोरम ने यह निष्कर्ष निकाला है कि परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत पोषणीय है। अत: जिला फोरम ने वाद बिन्दु संख्या-4 के निर्णय में यह माना है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को अपीलार्थी/विपक्षीगण से 28,000/-रू0 अधिक ली गयी फीस वापस
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दिलाया जाना उचित है। इसके साथ ही जिला फोरम ने शारीरिक और मानसिक कष्ट हेतु 5000/-रू0 क्षतिपूर्ति और वाद व्यय हेतु 3000/-रू0 प्रत्यर्थी/परिवादी को दिलाया जाना उचित माना है और तदनुसार अन्तिम निर्णय और आदेश पारित किया है, जो ऊपर अंकित किया गया है।
अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत ग्राह्य नहीं है। अत: जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश अधिकार रहित और विधि विरूद्ध है।
अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी का यह कथन कि विद्यालय ने उसके बैंक खाते से 28,000/-रू0 निकाले हैं, गलत है। सत्यता यह है कि बैंक से स्वयं प्रत्यर्थी/परिवादी ने ही पैसा निकाला है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश साक्ष्य और विधि के अनुकूल है। अत: अपील निरस्त किये जाने योग्य है।
प्रत्यर्थी संख्या-2 के विद्वान अधिवक्ता का भी तर्क है कि जिला फोरम का निर्णय उचित है।
मैंने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।
जिला फोरम ने आक्षेपित निर्णय में वाद बिन्दु संख्या-1 के निस्तारण में साक्ष्यों की विस्तृत विवेचना के पश्चात् यह निष्कर्ष निकाला है कि प्रत्यर्थी/परिवादी के खाते में जमा 28,000/-रू0 अपीलार्थी/विपक्षीगण के खाता संख्या-3647002100024762 में
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अन्तरित किया गया है। अत: जिला फोरम ने यह माना है कि यह धनराशि अपीलार्थी/विपक्षीगण की संस्था ने प्रत्यर्थी/परिवादी के खाते से निकाला है, जबकि प्रत्यर्थी/परिवादी, अपीलार्थी/विपक्षीगण का निर्धारित शुल्क 28,000/-रू0 पहले ही विद्यालय में जमा कर चुका है। ऐसी स्थिति में जिला फोरम ने यह माना है कि अपीलार्थी/विपक्षीगण ने निर्धारित शुल्क से 28,000/-रू0 अधिक धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादी से प्राप्त की है। जिला फोरम ने माना है कि जब प्रत्यर्थी/परिवादी ने निर्धारित शुल्क 28,000/-रू0 जमा किया है तो समाज कल्याण विभाग से अपने खाते में प्राप्त प्रतिपूर्ति की धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादी पाने का अधिकारी है। इस प्रकार जिला फोरम ने जो यह निष्कर्ष निकाला है कि अपीलार्थी/विपक्षीगण ने निर्धारित शुल्क से 28,000/-रू0 अधिक धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादी से प्राप्त किया है वह साक्ष्य और विधि के अनुकूल है। अपीलार्थी/विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता का यह कथन मानने हेतु उचित आधार नहीं है कि यह धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादी ने स्वयं निकाली है।
अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से यह नहीं कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा देय शुल्क की धनराशि 28,000/-रू0 नहीं वरन् 56,000/-रू0 थी। अत: निर्धारित शुल्क से अधिक शुल्क प्राप्त किया जाना और शासन से प्राप्त प्रतिपूर्ति की धनराशि को प्रत्यर्थी/परिवादी को न देकर विद्यालय द्वारा लिया जाना निश्चित रूप से अपीलार्थी/विपक्षीगण की सेवा में कमी है। अत:
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माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बुद्धिस्ट मिशन डेंटल कालेज एंड हॉस्पीटल बनाम भूपेश खुराना व अन्य I (2009) सी0पी0जे0-25 (एससी) एवं माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा धीरेन्द्र कुमार (मृतक) व अन्य बनाम एम0आर0 सारंगपानी व अन्य I (2015) सी0पी0जे0-550 (एनसी) में दिये गये निर्णयों में प्रतिपादित सिद्धान्त के आधार पर जिला फोरम ने जो परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत ग्राह्य माना है, वह उचित और विधिसम्मत है। अत: जिला फोरम ने प्रत्यर्थी/परिवादी का परिवाद स्वीकार कर उसे उपरोक्त अंकित आदेश के अनुसार जो अनुतोष प्रदान किया है वह उचित और युक्तिसंगत है। उसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील बल रहित है। अत: अपील सव्यय निरस्त की जाती है। अपीलार्थी/विपक्षीगण, प्रत्यर्थी/परिवादी को 5000/-रू0 अपील का व्यय अदा करेंगे।
अपीलार्थीगण की ओर से धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत अपील में जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित जिला फोरम को निस्तारण हेतु प्रेषित की जाये। इस धनराशि से अपील के व्यय 5000/-रू0 का भुगतान भी जिला फोरम द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी को किया जायेगा।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1