(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 606/2000
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग द्वितीय, लखनऊ द्वारा परिवाद सं0- 484/1995 में पारित निर्णय और आदेश दि0 25.08.1999 के विरूद्ध)
1. Ansal Housing & Construction ltd. 15-U.G.F. Indra prakash, Barakhamba road, New Delhi-110001.
2. Sri S.K. Jaggi, Sales officer Ansal Housing & Construction ltd. Khazana complex (Ashiana), Kanpur road, Lucknow.
………Appellant
Versus
Sanjay kumar khanna C-2013, Indira nagar, Lucknow-226 016.
……….Respondent
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्री गोवर्धन यादव, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से : श्री अंकित श्रीवास्तव,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से : कोई नहीं।
दिनांक:- 08.02.2021
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद सं0- 484/1995 संजय कुमार खन्ना बनाम अंसल हाउसिंग एण्ड कंस्ट्रक्शन लि0 व एक अन्य में पारित निर्णय एवं आदेश दि0 25.08.1999 के विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 15 के अंतर्गत यह अपील प्रस्तुत की गई है। प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश द्वारा जिला उपभोक्ता आयोग ने अपीलार्थीगण/विपक्षीगण को निर्देशित किया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा जमा की गई राशि को 20 प्रतिशत की कटौती के पश्चात वापस लौटाया जाए तथा इसी राशि पर दि0 01.06.1994 से 18 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज व 3500/-रू0 अदा किया जाए, अन्यथा इस समस्त धनराशि पर 02 प्रतिशत मासिक ब्याज अदा करने का आदेश दिया गया है।
2. संक्षेप में परिवाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थीगण/विपक्षीगण की योजना के अंतर्गत एक दुकान 125000/-रू0 में लेना तय किया। उसने दि0 30.11.1992 को बुकिंग कराते समय 12500/-रू0 के अतिरिक्त दि0 01.02.1993 को 12,500/-रू0 व दि0 01.05.1993 को 6,250/-रू0 दिया, परन्तु उसके बाद भुगतान यह कहकर बन्द कर दिया कि अपीलार्थीगण/विपक्षीगण निर्माण कार्य दिसम्बर 1994 तक पूरा नहीं कर सकेगा। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा अन्तिम किश्त दि0 01.12.1994 को देना था। उसके पश्चात 05 प्रतिशत धनराशि कब्जा देने के समय देना था। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया है।
3. अपीलार्थीगण/विपक्षीगण की ओर जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है जिसमें कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने शेष धनराशि बार-बार मांगने व नोटिस भेजने पर भी नहीं दिया, इसलिए पत्र दि0 20.05.1994 के द्वारा आवंटन निरस्त कर दिया गया। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी कोई भी अनुतोष पाने का अधिकारी नहीं है।
4. पक्षकारों के साक्ष्य पर विचार करने के उपरांत जिला उपभोक्ता आयोग ने प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश पारित किया है जिसे इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि सम्पूर्ण संव्यवहार व्यापारिक प्रकृति का है, इसलिए प्रत्यर्थी/परिवादी उपभोक्ता नहीं है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने स्वयं नियमित रूप से किश्तों का भुगतान नहीं किया है और प्रत्यर्थी/परिवादी तथा अपीलार्थीगण/विपक्षीगण के मध्य निष्पादित अनुबंध की शर्त सं0- 4 के अनुसार यदि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा समय पर मूल्य का भुगतान नहीं किया जाता तब सम्पत्ति के कुल मूल्य को 20 प्रतिशत कटौती करने के पश्चात शेष राशि वापस लौटायी जा सकती है। जिला उपभोक्ता आयोग ने इन सब स्थितियों पर कोई विचार नहीं किया है।
5. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री अंकित श्रीवास्तव को सुना गया। प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया गया।
6. परिवाद पत्र में स्पष्ट उल्लेख है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को एक दुकान बुक करानी थी का यह तात्पर्य नहीं है कि उसने यह व्यावसायिक उद्देश्य के लिए बुक किया है। व्यापारिक उद्देश्य का तात्पर्य यह होता है कि अनेकों दुकानें बुक करायी जायें और उनका फिर किसी अन्य व्यक्ति से विक्रय किया जाए, इसलिए यह संव्यवहार व्यापारिक प्रकृति का संव्यवहार नहीं है। अत: परिवाद उपभोक्ता की श्रेणी में आता है।
7. अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि अनुबंध सं0- 4 के अनुसार दुकान के कुल मूल्य में 20 प्रतिशत की राशि कटौती करने के पश्चात ही प्रत्यर्थी/परिवादी को शेष राशि वापस किये जाने का आदेश दिया जाना चाहिए। यदि इस प्रकार का अनुबंध जो कि पूर्व से छूटे हुए पार्टस पर मौजूद है अपीलार्थीगण/विपक्षीगण द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी से निष्पादित किया गया है तब यह निश्चित संव्यवहार है। 20 प्रतिशत की राशि जमा की गई है जो विधि सम्मत है, परन्तु सम्पत्ति के कुल मूल्य से 20 प्रतिशत राशि को काटना अवैधानिक संव्यवहार है।
8. अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह बहस की गई है कि प्रत्यर्थी/परिवादी से दि0 01.05.1993 को 6,250/-रू0 जमा कराये हैं, परन्तु जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा अपने निर्णय में 6,500/-रू0 का उल्लेख कर दिया गया है यह सही है कि ऐसा उल्लेख निर्णय में मौजूद है, परन्तु इसका विपरीत प्रभाव इसलिए नहीं है कि आदेश में यह अंकित किया गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा जो राशि जमा की गई है उसमें से 20 प्रतिशत कटौती करने के पश्चात 80 प्रतिशत राशि वापस लौटायी जाए।
9. अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह भी बहस की गई है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को आवंटित दुकान का आवंटन अपीलार्थीगण द्वारा दि0 21.04.1995 को निरस्त किया गया है, जब कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय में उल्लेख किया गया है कि दि0 20.05.1994 को आवंटन निरस्त कर दिया गया है। एनेक्चर सं0- 14 के अवलोकन से ज्ञात है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को आवंटित दुकान का आवंटन दि0 21.04.1995 को निरस्त किया गया है। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी इसी तिथि से उच्च श्रेणी की ब्याज राशि प्राप्त करने के लिए अधिकृत है। तदनुसार अपील आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
10. अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि प्रत्यर्थी/परिवादी, अपीलार्थीगण/विपक्षीगण से देय धनराशि पर दि0 21.04.1995 से ब्याज प्राप्त करेगा न कि दि0 20.05.1994 से। यदि भुगतान दो माह में किया जाता है तो 10 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज देय होगी, अन्यथा 18 प्रतिशत वार्षिक की दर से।
11. अपील में उभयपक्ष अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(गोवर्धन यादव) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0- 2