(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
विविध वाद संख्या-65/2021
गोबिन्द सुगर मिल्स लिमिटेड, ऐरा, जिला लखीमपुर खीरी, द्वारा एग्जीक्यूटिव वाइस प्रेसिडेन्ट, श्री डी.के. शर्मा।
आवेदक/अपीलार्थी
बनाम
1. साकेत कुमार श्रीवास्तव पुत्र स्व0 श्री कृष्ण, निवासी ग्राम बड़ा गांव, बहेरा, परगना श्री नगर तहसील व जिला लखीमपुर खीरी।
2. ब्रांच मैनजर, ओरियण्टल इन्श्योरेन्स कंपनी लिमिटेड, सीतापुर।
3. सेक्रेटरी, कृषक सहकारी गन्ना समिति लिमिटेड, लखीमपुर खीरी (निकट कृष्णा सिनेमा), परगना व जिला लखीमपुर खीरी।
विपक्षीगण/प्रत्यर्थीगण
समक्ष:-
1. माननीय श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
2. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
आवेदक की ओर से उपस्थित : श्री सुदीप कुमार, विद्वान
अधिवक्ता।
विपक्षीगण की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 27.10.2021
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. अपील संख्या-1695/2005, गोबिन्द सुगर मिल्स लिमिटेड बनाम साकेत कुमार श्रीवास्तव तथा अन्य को दिनांक 16.07.2021 को अदम पैरवी में खारिज करने के आदेश के पुनर्विलोकन का आवेदन इस आधार पर प्रस्तुत किया गया है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत निर्णय/आदेश के पुनर्विलोकन की स्पष्ट व्यवस्था न होने के बावजूद प्रक्रियात्मक पुनर्विलोकन राज्य आयोग द्वारा किया जा सकता है। आवेदन पर केवल आवेदक के विद्वान अधिवक्ता श्री सुदीप कुमार को सुना गया तथा इस बिन्दु पर विधिक व्यवस्था को विचार में लिया गया।
2. यह सही है कि अदम पैरवी में खारिज की गई अपील गुणदोष पर पारित निर्णय/आदेश के पुनर्विलोकन की यथार्थ में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत कोई व्यवस्था नहीं है, परन्तु अदम पैरवी में खारिज परिवाद या अपील एक प्रक्रियात्मक आदेश है। अत: आवेदक के विद्वान अधिवक्ता द्वारा अत्यधिक महत्वपूर्ण बिन्दु उठाया गया है कि प्रक्रियात्मक आदेश को न्यायहित में पुनर्विलोकित करते हुए अदम पैरवी में खारिज किए गए परिवाद या अपील को पुनर्स्थापित किया जा सकता है। नजीर कपड़ा मजजूर एकता यूनियन बनाम बिरला कॉटन एसपीजी एवं वीविंग मिल्स लि0 (2005) 13 सुप्रीम कोर्ट केसेज 777 में गुणदोष पर पारित निर्णय/आदेश का पुनर्विलोकन केवल तब किया जा सकता है जब कानून के अन्तर्गत इसकी व्यवस्था हो और अगर कानून में व्यवस्था नहीं है तब किसी न्यायालय/ट्रिब्यूनल को अन्तर निहित शक्ति पुनर्विलोकन करने के लिए प्राप्त नहीं हैं, लेकिन प्रक्रियात्मक पुनर्विलोकन के आवेदन में कोई पक्षकार पुनर्विलोकन के लिए आवश्यक किसी शर्त के बिन्दु को नहीं उठाता है। इस्डस्ट्रियल डिस्प्यूट्स एक्ट 1947 में गुणदोष पर पारित निर्णय/आदेश के पुनर्विलोकन की व्यवस्था नहीं है, परन्तु प्रक्रियात्मक पुनर्विलोकन को निषेधित नहीं माना गया। तार्किकता के आधार पर इस नजीर में दी गई व्यवस्था उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के संबंध में भी लागू की जा सकती है। एक अन्य महत्वपूर्ण नजीर रबिन्दर सिंह बनाम फाइनेन्स कमिश्नर कारपोरेशन पंजाब तथा अन्य (2008) 7 सुप्रीम कोर्ट केसेज 663 में व्यवस्था दी गई है कि यद्यपि राजस्व न्यायालय को सीपीसी के आदेश के 9 नियम 13 के एकतरफा निर्णय को अपास्त करने की शक्ति प्राप्त नहीं है, परन्तु पुनर्विलोकन व्यवस्था के तहत एकतरफा निर्णय को अपास्त करने का आदेश पारित किया जा सकता है। अत: इस नजीर में दी गई व्यवस्था तार्किकता के आधार पर प्रस्तुत केस के लिए भी सुसंगत है।
3. किसी भी विधिक प्रावधानों का उद्देश्य वादकारी को सर्वोत्तम हित लाभ प्रदान करना है। जिला उपभोक्ता आयोग या राज्य उपभोक्ता आयोग के द्वारा यदि अदम पैरवी में कोई परिवाद या अपील खारिज की जाती है तब इस आदेश को अपास्त कराने के लिए कोई व्यक्ति जनपद से राज्य उपभोक्ता आयोग में तथा राज्य उपभोक्ता आयोग से राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के समक्ष याचना करने के लिए उपस्थित हो निश्चित रूप से विधि की यह मंशा नहीं हो सकती। चूंकि अदम पैरवी में किसी परिवाद या अपील को खारिज करने के आदेश में किसी प्रकार का गुणदोष का आदेश समाहित नहीं है, इसलिए प्रक्रियात्मक पुनर्विलोकन की व्यवस्था का प्रयोग करते हुए यह तार्किक एवं विधिसम्मत प्रतीत होता है। अदम पैरवी में खारिज किए गए परिवाद या अपील को जिला उपभोक्ता आयोग या राज्य उपभोक्ता आयोग द्वारा ही पर्याप्त कारण दर्शित करने पर पुनर्स्थापित किया जा सके।
4. आवेदक द्वारा अपने आवेदन के साथ संलग्न शपथपत्र में यह उल्लेख किया गया है कि नियत तिथि दिनांक 16.07.2021 को अधिवक्ता की बीमारी के कारण क्लर्क को कहा गया था कि स्थगन आवेदन/स्लिप प्रस्तुत करते हुए अग्रिम तिथि प्राप्त कर ली जाए, परन्तु कोविड 19 की बीमारी व्यापक स्तर पर फैलने के कारण त्रुटिवश यह समझ लिया गया कि अपील में स्वमेव अग्रिम तिथि सुनिश्चित कर दी जाएगी, इसलिए शपथकर्ता क्लर्क उपस्थित नहीं हो सके। उपरोक्त वर्णित आधार स्वंय में पर्याप्त आधार हैं। अत: विविध वाद स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
5. प्रस्तुत विविध वाद स्वीकार किया जाता है। इस आयोग द्वारा अपील संख्या-1695/2005 को अदम पैरवी में खारिज करने का आदेश दिनांक 16.07.2021 वापस लिया जाता है। उपरोक्त अपील अपने मूल नम्बर पर पुन: स्थापित करते हुए दिनांक 22.11.2021 को पेश हो। कार्यालय द्वारा विपक्षीगण को अग्रिम तिथि की सूचना दी जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
निर्णय/आदेश आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2