न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, चन्दौली।
परिवाद संख्या 40 सन् 2013ई0
1-सवरू यादव पुत्र स्व0 टीमल यादव निवासी बगही कुम्भापुर जिला चन्दौली।
2-सुमेर यादव पुत्र टीमल (मृतक)
2/1विजयी यादव 2/2 रामलखन यादव 2/3 हरिशंकर यादव पुत्रगण स्व0 सुमेर यादव
3-रामवृक्ष पुत्र दुक्खी ग्राम गोर्पइ परासी परगना मझवार जिला चन्दौली।
...........परिवादीगण बनाम
शाखा प्रबन्धक, भारतीय स्टेट बैंक शाखा चकिया कृ0वि0शाखा
.............................विपक्षी
उपस्थितिः-
श्री रामजीत सिंह यादव, अध्यक्ष
श्री लक्ष्मण स्वरूप,सदस्य
निर्णय
द्वारा श्री रामजीत सिंह यादव,अध्यक्ष
1- परिवादीगण ने यह परिवाद विपक्षी बैंक द्वारा परिवादीगण को गलत रूप से जारी किये गये रू048494/-के वसूली प्रमाण को निरस्त करने एवं परिवादीगण को हुए शारीरिक,मानसिक क्षति एवं वाद व्यय के रूप में रू045000/- दिलाये जाने हेतु प्रस्तुत किया है।
2- परिवादीगण की ओर से परिवाद प्रस्तुत करके संक्षेप में कथन किया गया है कि परिवादीगण ने विपक्षी बैंक से कृषि कार्य हेतु सारी कार्यवाही पूर्ण करके ट्रैक्टर क्रय करने के लिए रू0 1,88000/- ऋण लिया। उक्त ऋण लेने के बाद शर्तो के मुताबिक परिवादीगण समय से ऋण की अदायगी करते रहे, किन्तु प्राकृतिक आपदा व अन्य व्यवधानों के कारण फसल सही न होने के कारण परिवादीगण ऋण की कई किश्ते जमा नहीं कर सके। इस बीच भारत सरकार द्वारा वर्ष 2008 में घोषणा की गयी कि कृषि ऋण राहत योजना लागू किया गया है जिसमे परिवादीगण का ऋण उस सीमा में आया जो माफ हो जायेगा और विपक्षी द्वारा भी परिवादीगण को बताया गया कि ऋण की शेष धनराशि माफ कर दी गयी है। काफी दिनों बाद विपक्षी बैंक द्वारा परिवादीगण को रू0 48494/- की वसूली हेतु नोटिस जारी किया गया। जिसकी जानकारी होते ही परिवादीगण ने दिनांक 3-5-2013 को कानूनी नोटिस भेजा, जिसके जबाब में बैंक द्वारा दिनांक 30-5-2013 को तथ्यों के विपरीत जबाब दिया गया। भारत सरकार द्वारा जो कृषि ऋण राहत योजना लागू की गयी थी उसमे स्पष्ट प्रावधान है कि यदि कुछ व्यक्तियों का समूह मिलकर कृषि ऋण लेता है तो उस गु्रप का जो सबसे बडा काश्तकार रहेगा उसी के अनुसार अन्य काश्तकारों की हैसियत का अंकन किया जायेगा। परिवादी रामवृक्ष 2 एकड के काश्तकार है जो ग्रुप में सबसे बडे काश्तकार है और शेष परिवादीगण 2 एकड से कम के काश्तकार है। भारत सरकार की उक्त ऋण राहत योजना में अधिकतम 5 एकड तक के किसान पूर्ण रूप से लाभान्वित होगे। इसके बावजूद विपक्षी बैंक द्वारा परिवादीगण के विरूद्ध वसूली नोटिस भेजा गया। इस आधार पर परिवादीगण ने यह परिवाद प्रस्तुत किया है।
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3- विपक्षी की ओर से जबाबदावा प्रस्तुत करके संक्षेप में कथन किया गया है कि परिवादीगण ने संयुक्त रूप से ट्रैक्टर क्रय करने हेतु बैंक से रू0 188000/- का ऋण लिया था जिसकी अदायगी 18 अर्द्धवार्षिक किश्तों में होनी तय थी। परन्तु परिवादीगण निर्धारित किश्तों का भुगतान नहीं किये और ऋण की किश्तें समय से जमा न करने के कारण 31 दिसम्बर 2007 तक रू0 64368/- अतिदेय हो गया था। भारत सरकार ने वित्तीय वर्ष 2008-09 के बजट में एग्रीकल्चर डेट वेभर एवं डेट रीलीफ स्कीम 2008 बनायी जिसके अनुसार 31 मार्च 2007 तक किसानों द्वारा लिये गये ऋण की राशि जो 31 दिसम्बर 2007 तक अधिदेय हो गयी और 29 फरवरी तक भुगतान नहीं हो पायी थी उनको ऋण राहत स्कीम में लाया गया। स्कीम में निर्धारित तिथि 31दिसम्बर 2007 तक परिवादीगण द्वारा ली गयी ऋण राशि की रकम रू0 64368 अतिदेय थी जिसको उक्त स्कीम में पूर्ण रूप से समाप्त कर डेट वेभर राहत दे दिया गया। किन्तु 31 दिसम्बर 2007 के बाद परिवादीगण द्वारा लिये गये ऋण की दो किश्ते जो जनवरी 2008 व जुलाई सन् 2008 की थी और जो क्रमशः रू0 9500/-तथा रू0 10500 की थी और जिनका भुगतान परिवादीगण द्वारा नहीं किया गया था, उक्त दोनों किश्तों तथा उस पर लगे व्याज व अन्य व्यय बीमा इन्सपेक्शन आदि का भी भुगतान बैंक के लिखित एवं मौखिक सूचना के बावजूद परिवादीगण नहीं किये जिसकी वसूली हेतु वसूली प्रमाण पत्र परिवादीगण के विरूद्ध जारी किया गया।इस आधार पर परिवादीगण के परिवाद को खारिज किये जाने की प्रार्थना बैंक द्वारा की गयी है।
4- परिवादी की ओर से प्रतिआपत्ति (रिप्लीकेशन) भी दाखिल किया गया है जिसमे मुख्य रूप से यह कहा गया है कि उसने विपक्षी बैंक से ट्रैक्टर क्रय करने हेतु रू0 1,88000/- का ऋण दिनांक 24-3-1999 को लिया था और उसने दिनांक 5-4-1999 को रू0 55,000/-,दिनांक 28-6-1999 को रू0 13,000/- और दिनांक 27-8-1999 को रू0 12,000/- जमा किया। अतः शेष रू0 1,08000/- ही बचा था जिसकी किश्त 15 जनवरी 2000 से शुरू हुई। यदि 18 अर्द्धवार्षिक किश्तों को जैसा कि विपक्षी ने बताया है जोडा जाय तो केवल मूलधन ही रू0 1,71,000/-होता है जबकि बकाया राशि केवल रू0 1,08000/- ही थी जो लगभग 12 किश्तों में ही अदा हो जाती। इस प्रकार विपक्षी ने जानबूझकर परिवादी को धोखे में रखकर नाजायज धन उगाही के लिए शेष धनराशि को 18 किश्तों में विभाजित किया था। परिवादी रू0 1,88000/- के कर्ज के एवज में कुल रू0 1,98,000/- बैंक में जमा कर चुका है विपक्षी बैंक ने मनमाने तौर पर किश्तों का निर्धारण किया है और ऋण तथा अधिक रकम वसूलने के बावजूद भी परिवादी को ऋण माफी योजना का लाभ नहीं दिया है।
5- अपने अभिकथनों के समर्थन में परिवादी पक्ष से परिवादी सवरू यादव का शपथ पत्र दाखिल है इसके अतिरिक्त खतौनी की नकल 2 अदद् दाखिल की गयी है इसके अतिरिक्त परिवादी की ओर से बैंक के पासबुक,बैंक द्वारा दी गयी नोटिस दिनांकित 22-9-2010,लोक अदालत की नोटिस दिनांकित 9-3-2013,बैंक द्वारा
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परिवादी की नोटिस के दिये गये जबाब की छायाप्रति,परिवादी द्वारा दी गयी कानूनी नोटिस टाइपशुदा मय रसीद,परिवादी के ट्रैक्टर के आर0सी0 की छायाप्रति, किसानों के कर्ज माफी योजना वर्ष 2008 की छायाप्रति एवं खतौनी की नकलें दाखिल की गयी है।
इसी प्रकार विपक्षीगण की ओर से शाखा प्रबन्धक अजय कुमार का शपथ पत्र,शाखा प्रबन्धक निर्भय नारायण यादव का शपथ पत्र, परिवादी के स्टेटमेन्ट आफ एकाउण्ट की नकल, कृर्षि ऋण माफी योजना 2008 से सम्बन्धित सर्कुलर की प्रमाणित छायाप्रति, उत्तर प्रदेश कृषि उधार अधिनियम 1973 की धारा 6(।) के अधीन घोषणा प्रपत्र की छायाप्रति तथा परिवादी के एकाउण्ट से सम्बन्धित स्टेटमेन्ट की प्रमाणित प्रति दाखिल की गयी है।
6- पक्षकारों की ओर से लिखित बहस दाखिल है उनके अधिवक्तागण की मौखिक बहस भी सुनी गयी। पत्रावली का पूर्ण रूपेण परिशीलन किया गया है।
7- परिवादी पक्ष से मुख्य रूप से यह तर्क दिया गया है कि परिवादी ने रू0 1,88,000/- का ऋण विपक्षी बैंक से ट्रैक्टर क्रय करने हेतु लिया था जिसके एवज में वह रू0 1,98,000/- जमा कर चुका है जिस पर कुल व्याज रू0 69347/- होता है इस प्रकार दिनांक 5-4-2004 को परिवादी के ऊपर कुल रू0 49456.61 पैसा ही बकाया रह जाता है अतः यही इलिजिबल एमाउण्ट माना जायेगा। परिवादी ने विपक्षी बैंक से यह निवेदन किया था कि उसने किश्त शुरू होते ही रू0 80000/- जमा कर दिया है अतः उसके किश्तों को घटा दिया जाय। इस पर विपक्षी द्वारा एक सादे कागज पर परिवादी से हस्ताक्षर करा लिया गया और यह कहा गया कि अब किश्ते कम कर दी जायेगी लेकिन किश्ते कम नहीं की गयी अतः विपक्षी की ओरसे सेवा में कमी मानी जायेगी। इस सम्बन्ध में परिवादी ने अपने लिखित तर्क में चिन्मय वारीक ।।।(2006)सी.पी.जे.,29(एन.सी.) का हवाला दिया है किन्तु न्यायालय के समक्ष परिवादी की ओर से उक्त विधि व्यवस्था मूल रूप से दाखिल नहीं की गयी है केवल छपते-छपते शीर्षक का एक पन्ना दाखिल किया गया है। फोरम की राय में इसे विधि व्यवस्था नहीं माना जा सकता है क्योंकि इसमें न तो मुकदमें के पूर्ण तथ्य है और न ही न्यायालय का नाम है और न ही निर्णय की तिथि है और न ही निर्णय देने वाले माननीय न्यायमूर्ति का कोई नाम है। अतः फोरम की राय में इसका कोई लाभ परिवादी पक्ष को प्राप्त नहीं हो सकता है इसके अतिरिक्त यहाॅं यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि परिवादी के लिखित तर्क में जो उपरोक्त बाते कही गयी है उनका कोई उल्लेख उसके परिवाद पत्र में नहीं है।यहाॅं तक कि परिवादी ने जो रिप्लीकेशन दाखिल किया है उसमे भी इस तथ्य का उल्लेख नहीं है कि दिनांक 5-4-2004 तक बकाया धनराशि कुल रू0 49856/-थी। प्रस्तुत मामले में परिवादी के परिवाद में पक्षकारों के बीच हिसाब-किताब की गडबडी का उल्लेख नहीं है।
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8- प्रस्तुत मामले में परिवादी ने परिवाद में यह अभिकथन किया है कि उसने बैंक से ट्रैक्टर क्रय करने के लिए कर्ज लिया था जिसके एवज में उसने ऋण का भुगतान किया किन्तु प्राकृतिक आपाद एवं अन्य व्यवधानों के कारण ऋण की कई किश्तें जमा नहीं की जा सकी। इसी बीच भारत सरकार की ओर से सन् 2008 में कृषि ऋण राहत योजना लागू की गयी और चूंकि परिवादीगण का ऋण उक्त योजना के अन्र्तगत आता था। अतः विपक्षी बैंक द्वारा परिवादीगण को यह बताया गया कि उनके द्वारा लिये गये ऋण की जो धनराशि अदा नहीं की गयी है। वह माफ कर दी गयी है लेकिन विपक्षी बैंक ने काफी दिनों बाद परिवादीगण को 48 494/- की वसूली की नोटिस भेज दिया तब परिवादीगण ने यह दावा दाखिल किया और यह अनुतोष चाहा कि बैंक द्वारा जारी उपरोक्त वसूली नोटिस को विधि विरूद्ध घोषित करते हुए बैंक को वसूली करने से रोक दिया जाय।
इसके विपरीत विपक्षीगण का अभिकथन एवं तर्क यह है कि भारत सरकार द्वारा जो ऋण माफी योजना सन् 2008 में लागू की गयी थी उसमे यह प्राविधान है कि 31 मार्च सन् 2007 तक किसानों द्वारा लिये गये ऋण की जो राशि दिनांक 31-12-2007 तक अधिदेय (ओवरड्यू) हो गयी थी और जिसका भुगतान दिनांक 29-2-2008 तक नहीं हो पाया था उसी ऋण के सम्बन्ध में इस स्कीम के तहत राहत प्रदान की जायेगी। विपक्षीगण ने अपने जबादावा में स्पष्ट रूप से यह कहा है कि दिनांक 31-12-2007 तक परिवादीगण द्वारा लिये गये ऋण में से रू0 64368/- ओवरडयू हुआ था, अतः उपरोक्त स्कीम के तहत ऋण की उपरोक्त धनराशि अर्थात रू0 64368/- का ऋण माफ कर दिया गया लेकिन परिवादीगण द्वारा लिये गये ऋण की जनवरी 2008 और जुलाई 2008 की 2 किश्तें देय थी जिनका भुगतान परिवादीगण द्वारा नहीं किया गया। अतः उक्त दोनों किश्तों तथा उस पर लगे व्याज व अन्य व्यय तथा बीमा व इन्सपेक्शन आदि की रकम का भुगतान परिवादी द्वारा किया जाना था लेकिन लिखित व मौखिक सूचना के बावजूद जब परिवादीगण ने यह भुगतान नहीं किया तब बैंक द्वारा विधि के अनुसार वसूली की कार्यवाही की गयी और रीकवरी प्रमाण पत्र जिलाधिकारी चन्दौली के यहाॅं भेजा गया।
9- प्रस्तुत मामले में स्वयं परिवादी की ओर से बैंक एकाउण्ट का जो विवरण कागज संख्या 4/2 ता 4/6 के रूप में दाखिल है उसमे कागज संख्या 4/6 के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि परिवादीगण को अपने ऋण की अदायगी 18 किश्तों में करनी थी। प्रथम किश्त से 17 वी किश्त तक रू0 9500/- तथा व्याज अदा करना था एवं 18 वी किश्त के रूप में रू0 10500/- तथा व्याज अदा किया जाना था।
अतः प्रस्तुत मामले में मुख्य विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या कृषि ऋण राहत योजना 2008 के तहत परिवादीगण द्वारा लिया गया सम्पूर्ण ऋण माफ हो जायेगा या फिर जैसा कि विपक्षी बैंक का कथन है कि परिवादी को जनवरी 2008 तथा जुलाई 2008 की किश्ते तथा व्याज एवं अन्य खर्च अदा करना होगा ?
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प्रस्तुत मामलें में परिवादी की ओर से ’’किसानों के कर्ज काफी योजना 2008’’ की छायाप्रति दाखिल की गयी है जिसमें यह कहा गया है कि ऋण राहत,ऐसे ऋण के सम्बन्ध में दी जायेगी जो दिनांक 31-3-1997 से दिनांक 31-3-2007 तक वितरित किया गया हो और ऐसे ऋण की दिनांक 31-12-2007 तक बकाया किश्तों की धनराशि जिसका दिनांक 28-2-2008 तक भुगतान किया जाना अवशेष हो, के सम्बन्ध में ही राहत प्रदान की जायेगी।इसी प्रकार विपक्षीगण की ओर से भी उपरोक्त ऋण राहत स्कीम की गाइड लाइन कागज संख्या 9/7 ता 9/20 के रूप में दाखिल है और इसमें भी यहीं कहा गया है कि इस योजना के तहत उसी कृषि ऋण के सम्बन्ध में राहत प्रदान की जायेगी जो दिनांक 31-12-2007 तक ओवरड्यू रहा हो और जिसका भुगतान दिनांक 29-2-2008 तक न किया गया हो। इस अभिलेख के पैरा 8-2 में स्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि दिनांक 31-12-2007 के बाद जो किश्त ओवरड्यू होगी उनकी वसूली व्याज सहित की जायेगी। इस प्रकार उपरोक्त प्राविधानों से यह स्पष्ट है कि इस योजना के तहत दिनांक 31-12-2007 तक परिवादी की जो किश्ते ओवरड्यू हुई थी उन्हीं के सम्बन्ध में उसे राहत प्रदान की जायेगी। दिनांक 31-12-2007 के बाद परिवादी के ऋण की जो किश्तें अवशेष रह गयी है उन्हें इस योजना के तहत माफ नहीं किया जा सकता और उन किश्तों का भुगतान परिवादीगण को व्याज सहित करना होगा। विपक्षीगण ने अपने जबाबदावा में स्पष्ट रूप से यह कहा है कि दिनांक 31-12-2007 के बाद परिवादीगण द्वारा लिये गये ऋण का जनवरी 2008 की किश्त रू0 9500/-तथा जुलाई 2008 की किश्त रू0 10500/- देय है जिसका भुगतान परिवादीगण द्वारा नहीं किया गया है। अतः उन दोनों किश्तों तथा उस पर लागू व्याज तथा अन्य व्यय तथा बीमा एवं इन्सपेक्शन आदि की रकम की वसूली हेतु परिवादीगण के विरूद्ध आर0सी0 जारी की गयी है ऋण राहत योजना वर्ष 2008 के प्राविधानों के तहत दिनांक 31-12-2007 के बाद ओवरड्यू हुई किश्तों तथा व्याज आदि के भुगतान का उत्तरदायित्व परिवादीगण का ही है। अतः इस सम्बन्ध में जो आर0सी0 विपक्षी बैंक द्वारा जारी किया गया है उसे अवैधानिक नहीं माना जा सकता है और इस प्रकार फोरम की राय में परिवादीगण कोई अनुतोष पाने के अधिकारी नहीं है और उनका परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादीगण का परिवाद निरस्त किया जाता है। मुकदमें के तथ्यों एवं परिस्थितियों को देखते हुए पक्षकार अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेगें।
(लक्ष्मण स्वरूप) (रामजीत सिंह यादव)
सदस्य अध्यक्ष
दिनांकः29-9-2016