(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 2484/2013
1. Senior Superintendent of Post Offices, Pratapgarh Division, Pratapgarh.
2. Post Master General, Allahabad Region, Allahabad.
3. Post Master, Patti, Pratapgarh.
………Appellants
Versus
Rukhsana Khatoon D/o Sri Moshim Ali R/o- Village- Gahri Chak, Post Office-Shitalaganj, District-Pratapgarh.
……….Respondent
समक्ष:-
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से : डॉ0 उदयवीर सिंह के सहयोगी
अधिवक्ता श्री कृष्ण पाठक।
प्रत्यर्थी की ओर से : श्री टी0सी0 सेठ,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:- 10.12.2021
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद सं0- 150/2002 रुकसाना बनाम प्रवर अधीक्षक डाकघर व दो अन्य में जिला उपभोक्ता आयोग, प्रतापगढ़ द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दि0 04.10.2013 के विरुद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत राज्य आयोग के समक्ष से प्रस्तुत गई है।
2. विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए अपीलार्थीगण/विपक्षीगण को आदेशित किया है कि क्षतिपूर्ति के रूप में अंकन 1,00,000/-रू0 तथा वाद व्यय के रूप में 5,000/-रू0 30 दिन के अन्दर प्रत्यर्थी/परिवादिनी को अदा करें। इसके पश्चात 09 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज देय होगा।
3. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा उ0प्र0 लोक सेवा आयोग के समक्ष समाज शास्त्र के प्रवक्ता पद हेतु स्पीड पोस्ट सं0- 3197 से दि0 16.02.2009 को अपना आवेदन प्रेषित किया। अन्तिम तिथि दि0 20.09.2009 थी, परन्तु यह आवेदन दि0 17.03.2009 को इस टिप्पणी के साथ प्राप्त हुआ कि आवेदन दि0 26.02.2009 को कालबाधित प्राप्त हुआ है। इस प्रकार अपीलार्थीगण/विपक्षीगण द्वारा सेवा में कमी की गई है जिसके कारण प्रत्यर्थी/परिवादिनी का कैरियर बर्बाद हुआ है।
4. अपीलार्थीगण/विपक्षीगण ने स्पीड पोस्ट से लोक सेवा आयोग के समक्ष डाक भेजे जाने के तथ्य को स्वीकार किया है, परन्तु उल्लेख किया है कि स्पीड पोस्ट सम्बन्धित पते पर भेज दिया गया था। रजिस्टर्ड डाक समय पर वितरित न होने के कारण 03 महीने के अन्दर शिकायत करने पर 580/-रू0 क्षतिपूर्ति का प्राविधान है जिसके लिए परिवाद संधारणीय नहीं है।
5. उभयपक्ष के साक्ष्य पर विचार करने के उपरांत जिला उपभोक्ता आयोग ने अपीलार्थीगण/विपक्षीगण को सेवा में कमी के लिए उत्तरदायी माना और तदनुसार उपरोक्त वर्णित आदेश पारित किया।
6. प्रश्नगत निर्णय व आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय व आदेश विधि सम्मत नहीं है। पोस्ट आफिस विभाग किसी प्रकार की क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी नहीं है।
7. अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता डॉ0 उदयवीर सिंह के सहयोगी अधिवक्ता श्री कृष्ण पाठक तथा प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री टी0सी0 सेठ को सुना गया। प्रश्नगत निर्णय व आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेखों का सम्यक परिशीलन किया गया।
8. उभयपक्ष को यह तथ्य स्वीकार है कि स्पीड पोस्ट से लोक सेवा आयोग के लिए डाक प्रेषित की गई जो समय पर प्राप्त नहीं हुई। अत: प्रश्न उठता है कि स्पीड पोस्ट से प्रेषित डाक समय पर प्राप्त न होने पर डाक विभाग किस सीमा तक क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी है। इस बिन्दु पर मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा प्रदत्त विधि व्यवस्था चीफ पोस्ट मास्टर जनरल तथा अन्य बनाम बाबू लाल सैनी 2018 CJ (N.C.D.R.C.) 229 पर उपलब्ध है। इस केस में दि0 03.11.2010 को स्पीड पोस्ट से कांस्टेबल भर्ती के लिए आवेदन प्रेषित किया गया था जो जिला पुलिस अधीक्षक, जैसलमेर के कार्यालय में दि0 15.11.2010 को प्राप्त हुआ जब कि अन्तिम तिथि दि0 12.11.2010 थी, इसलिए आवेदक का आवेदन विचार में नहीं लिया गया और आवेदक का कैरियर प्रभावित हुआ तब विभिन्न नियमों का अवलोकन करने के पश्चात मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह व्यवस्था दी गई कि स्पीड पोस्ट से डाक प्रेषित करने पर देरी के कारण विभाग द्वारा स्पीड पोस्ट के जो चार्ज लिए गए हैं वे वापस दिए जायें। इसलिए यदि विभाग द्वारा नियमों के अनुसार स्पीड पोस्ट का शुल्क वापस लौटा दिया गया है तब सेवा में कमी नहीं कहा जा सकता। प्रस्तुत केस में डाक विभाग द्वारा स्पीड पोस्ट का शुल्क भी वापस नहीं लौटाया गया है। अत: केवल परिवाद इस सीमा तक स्वीकार किया जाना चाहिए था कि स्पीड पोस्ट का शुल्क प्रत्यर्थी/परिवादी को वापस लौटा दिया जाए, परन्तु चूँकि स्पीड पोस्ट शुल्क वापस नहीं लौटाया, इसलिए परिवाद प्रस्तुत करने के लिए बाध्य होना पड़ा। अत: स्पीड पोस्ट शुल्क वापस किया जाए तथा वाद खर्च के रूप में दिया गया आदेश विधि सम्मत है, परन्तु अन्य क्षतिपूर्ति के लिए दिया गया आदेश अपास्त होने योग्य है।
आदेश
9. अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय व आदेश इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि क्षतिपूर्ति के रूप में अपीलार्थीगण/विपक्षीगण द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादिनी को अंकन 1,00,000/-रू0 देय नहीं होगा। अपीलार्थीगण/विपक्षीगण, प्रत्यर्थी/परिवादिनी को स्पीड पोस्ट शुल्क तथा परिवाद व्यय के रूप में अंकन 5,000/-रू0 अदा करें तथा इस राशि पर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से वास्तविक भुगतान की तिथि तक 09 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से साधारण ब्याज भी प्रत्यर्थी/परिवादिनी को अदा करें।
अपील में धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत अपीलार्थीगण द्वारा जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित इस निर्णय व आदेश के अनुसार निस्तारण हेतु जिला उपभोक्ता आयोग को प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
शेर सिंह, आशु0
कोर्ट नं0- 2