Uttar Pradesh

StateCommission

A/204/2016

Bank Of Baroda - Complainant(s)

Versus

Ramsagar Yadav - Opp.Party(s)

Lalji Gupta & Rajeev Singh

23 Dec 2020

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/204/2016
( Date of Filing : 02 Feb 2016 )
(Arisen out of Order Dated 18/11/2015 in Case No. C/13/2015 of District Allahabad)
 
1. Bank Of Baroda
Allahabad
...........Appellant(s)
Versus
1. Ramsagar Yadav
Allahabad
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN PRESIDENT
 
PRESENT:
 
Dated : 23 Dec 2020
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

(मौखिक)                                                                                  

अपील संख्‍या:-204/2016

(जिला आयोग, इलाहाबाद द्धारा परिवाद सं0-13/2015 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 18.11.2015 के विरूद्ध)

1- Branch Manager, Bank of Baroda Branch Barot, Post Barot, District- Allahabad.

2- Regional Manager, Bank of Baroda, 19A 2nd Floor Dwarika Bhawan, Tagore Town, Allahabad.

                                              ........... Appellants/ Opp. Parties

Versus    

1- Mr. Ramsagar Yadav.

2- Smt. Sona Devi.

       All R/o Villager-Virapur Kasaudhan, Post-Barot, District- Allahabad.

       …….. Respondents/ Complainants

समक्ष :-

मा0 न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष

                                     

अपीलार्थीगण के अधिवक्‍ता         :- श्री नीरज पालीवाल

प्रत्‍यर्थी के अधिवक्‍ता          :- श्री अरूण सक्‍सेना

दिनांक :-.23.12.2020

मा0 न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष द्वारा उदघोषित

निर्णय   

परिवाद संख्‍या-13/2015 श्री रामसागर यादव व एक अन्‍य बनाम ब्रांच मैनेजर, बैंक ऑफ बड़ौदा व एक अन्‍य में जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, इलाहाबाद द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 18.11.2015 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्‍तर्गत राज्‍य आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गई है।

-2-

आक्षेपित निर्णय के द्वारा जिला आयोग ने परिवाद अंशत: स्‍वीकार करते हुए निम्‍न आदेश पारित किया है:-

“परिवादीगण द्वारा प्रस्‍तुत यह परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध संयुक्‍त एवं पृथक रूपेण अंशत: आज्ञप्‍त किया जाता है। विपक्षीगण को यह निर्देश दिया जाता है कि वे इस आदेश के 2 माह के अन्‍तर्गत परिवादीगण को डेविट किया हुआ 6,000.00 रू0 मय 08 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्‍याज डेविट की तिथि से भुगतान की तिथि तक का अदा करें। परिवादीगण विपक्षीगण से 1,000.00 रू0 क्षतिपूर्ति तथा 1,000.00 रू0 वाद व्‍यय भी प्राप्‍त करने के अधिकारी है।”

जिला आयोग के निर्णय और आदेश से क्षुब्‍ध होकर परिवाद के विपक्षीगण ने यह अपील प्रस्‍तुत की है।

अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्‍ता श्री लालजी गुप्‍ता और उनके सहयोगी श्री राजीव सिंह उपस्थित आये हैं। प्रत्‍यर्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री सुशील कुमार मिश्रा उपस्थित आये है।

मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्‍तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।

अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्‍त सुसंगत तथ्‍य इस प्रकार है कि प्रत्‍यर्थीगण ने परिवाद अपीलार्थीगण के विरूद्ध जिला अयोग के समक्ष

 

-3-

इस कथन के साथ प्रस्‍तुत किया है कि उनका बचत खाता अपीलार्थी सं0-1 के बैंक में है, जिसका खाता सं0-13070100001977 है।

परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण का कथन है कि उन्‍होंने अपीलार्थी सं0-1 से ऋण लिया था, जिसका खाता संख्‍या-बी.के.सी.सी.-05/33 एवं सी/सी 05/455 था जिसका पूरा भुगतान प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण द्वारा कर दिया गया था और अपीलार्थी विपक्षी सं0-1 ने उन्‍हे नो डयूज सर्टीफिकेट दिनांक 06.4.2010 को जारी कर  दिया था, उसके बाद अपीलार्थी विपक्षी ने प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण के उपरोक्‍त बचत खाते से 6,000.00 रू0 प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण के उपरोक्‍त ऋण खाते का बकाया बताते हुए बिना उनकी स‍हमति के ऋण खाते में डेबिट कर दिया। यह जानकारी होने पर प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण कई बार अपीलार्थी सं0-1 से मिले, परन्‍तु न तो उन्‍होंने हिसाब बताया और न ही काटा गया पैसा वापस किया। तब प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण ने दिनांक 02.11.2012 को एक पत्र अपीलार्थी विपक्षी सं0-2 को लिखा और उसके बाद अपीलार्थी सं0-2 ने एक पत्र उन्‍हें भेजा, जिसमें मूल नो डयूज सर्टिफिकेट लेकर उन्‍हें बुलाया गया। तब प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण ने अपीलार्थी सं0-1 को नो डयूज सर्टिफिकेट दिखाया और कार्यवाही करने हेतु कहा परन्‍तु कोई कार्यवाही नहीं की गई। अत: क्षुब्‍ध होकर प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण ने परिवाद जिला आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत किया है।

-4-

जिला आयोग के निर्णय से स्‍पष्‍ट है कि अपीलार्थीगण जो परिवाद में विपक्षीगण है, नोटिस तामीला के बाद भी उपस्थित नहीं हुए है। अत: जिला आयोग ने उनके विरूद्ध परिवाद की कार्यवाही एक पक्षीय रूप से करते हुए आदेश पारित किया है, जो ऊपर अंकित है।

अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला आयोग ने आक्षेपित आदेश उनके विरूद्ध एक पक्षीय रूप से पारित किया है, जो तथ्‍य और विधि के विरूद्ध है।

अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्‍ता का यह भी तर्क है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण के ऋण खाते में 6,000.00 रू0 की धनराशि अवशेष थी, जिसके भुगतान हेतु अपीलार्थीगण के बैंक ने प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण के बचत खाता में उसके ऋण खाते में यह धनराशि डेबिट की है। ऐसा करने को बैंक को विधिक अधिकार प्राप्‍त है। बैंक की सेवा में कोई कमी नहीं है।

प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण ने अपने ऋण खाते की सम्‍पूर्ण धनराशि का भुगतान कर दिया है और बैंक ने उन्‍हें नो डयूट सर्टिफिकेट भी जारी कर दिया है। अपीलार्थीगण के बैंक ने प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण के बचत खाते से प्रश्‍नगत धनराशि 6,000.00 रू0 प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण को सूचित किये बिना या उन्‍हें कोई नोटिस दिये बिना अवैधानिक ढंग से

 

-5-

प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण के ऋण खाते में डेबिट किया है, जो बैंक की सेवा में कमी है।

प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि नोटिस तामीला के बाद भी अपीलार्थीगण जिला आयोग के समक्ष उपस्थित नहीं हुए हैं। अत: जिला आयोग ने एक पक्षीय रूप से से आदेश पारित कर कोई गलती नहीं की है।

मैंने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।

यह तथ्‍य निर्विवाद है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण के बचत खाते से 6,000.00 रू0 की विवादित धनराशि अपीलार्थीगण के बैंक ने प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण के ऋण खाते में प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण को नोटिस दिये बिना उनकी सहमति के बिना डेबिट किया है। प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण का कथन है कि उन्‍होंने ऋण धनराशि पूरी अदा कर दी है और बैंक ने उन्‍हें नो डयूज सर्टिफिकेट जारी किया है। प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण के बचत खाते से ऋण धनराशि बैंक द्वारा प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण को नोटिस दिये बिना या उनकी सहमति प्राप्‍त किये बिना निकाला जाना निश्चित रूप से बैंक की सेवा में कमी है। यदि बैंक द्वारा प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण को नोटिस गयी होती तो वे नो डयूज प्रमाण पत्र दिखाकर ऋण धनराशि के भुगतान के सम्‍बन्‍ध में अपना प्रमाण प्रस्‍तुत कर सकते थे। सम्‍पूर्ण विवेचना एवं सम्‍पूर्ण तथ्‍यों व परिस्थितियों पर विचार करते हुए मैं इस मत का हॅू कि जिला अयोग ने जो अपीलार्थीगण की सेवा में कमी

-6-

माना है वह उचित है और उसमें किसी हस्‍तक्षेप की आवश्‍यकता नहीं है।

उपरोक्‍त निष्‍कर्ष के आधार पर अपील अस्‍वीकार की जाती है। 

अपील में उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्‍यय स्‍वयं बहन करेंगे।

धारा-15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनिमय, 1986 के अन्‍तर्गत अपील में जमा धनराशि अर्जित ब्‍याज सहित निस्‍तारण हेतु जिला आयोग को प्रेषित की जायेगी।

 

                      (न्‍यायमूर्ति अख्‍तर हुसैन खान)                     

                          अध्‍यक्ष                       

हरीश आशु.,

कोर्ट सं0-1

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN]
PRESIDENT
 

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