(निर्णय सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या- 357/2020
(जिला उपभोक्ता आयोग, प्रथम बरेली द्वारा परिवाद संख्या- 131/2016 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 07-01-2020 के विरूद्ध)
बरेली डेवलपमेंट अथारिटी, बरेली, द्वारा वाइस चेयरमैन।
अपीलार्थी
बनाम
रामभुज यादव पुत्र श्री सहदेव यादव, निवासी- 109- साउथ पार्क अपार्टमेंट कलकाजी न्यू दिल्ली-19
प्रत्यर्थी
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री वी०पी० श्रीवास्तव
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री विजय कुमार यादव
दिनांक-15-12-2021
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, परिवाद संख्या- 131 सन् 2016 रामभुज यादव बनाम बरेली डेवलपमेंट अथारिटी, में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम बरेली द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 07-01-2020 के विरूद्ध धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
संक्षेप में अपील के तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी रामभुज यादव ने अपीलार्थी/विपक्षी प्राधिकरण रामनगर गंगा नगर आवासीय योजना में प्लाट पाने हेतु दिनांक 31-08-2010 को आवेदन किया था। दिनांक 26-11-2010 को प्लाट संख्या ए-1-23 सेक्टर-5 प्रत्यर्थी/परिवादी को
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अपीलार्थी/विपक्षी प्राधिकरण द्वारा आवंटित किया गया जिसके परिणामस्वरूप परिवादी से दिनांक 31-08-2010 को 1,82,300/- रजिस्ट्रेशन धनराशि के रूप में एवं दिनांक 29-20-2010 को 2,73,400/-रू० तथा दिनांक 20-12-2010 को 13,30,400/-रू० जमा कराए गये। इस प्रकार परिवादी द्वारा कुल 17,86,100/-रू० जमा किये गये।
जब परिवादी को आवंटित उक्त प्लाट का कब्जा चार वर्ष के इन्तजार करने के बाद भी अपीलार्थी प्राधिकरण द्वारा प्रदान नहीं किया गया तब उसके द्वारा अनेकों बार अपीलार्थी/विपक्षी प्राधिकरण में कब्जा प्रदान करने हेतु सम्पर्क किया गया परन्तु मौखिक रूप से उसे कब्जा प्रदान करने का आश्वासन विपक्षी प्राधिकरण द्वारा दिया जाता रहा। अन्तोगत्वा उसके द्वारा आर०टी०आई० से लिये गये जवाब में भी दिनांक 29-09-2014 द्वारा विपक्षी ने यह स्वीकार किया कि परिवादी को उपरोक्त प्लाट उसे प्राप्त नहीं कराया जा सका है।
इस सम्बन्ध में परिवादी ने दिनांक 12-09-2014 को लिखित रूप से शिकायत अपीलार्थी/विपक्षी प्राधिकरण से किया कि अभी उनके पास कोई जमीन नहीं है, अत: उसकी जमा धनराशि वापस की जाए। जिस पर अपीलार्थी/विपक्षी प्राधिकरण ने 45,575/-रू० काटकर शेष वापस की जिसका परिवादी ने विरोध किया। अन्तोगत्वा अपीलार्थी/विपक्षी प्राधिकरण द्वारा परिवादी की जमा धनराशि 17,86,100/-रू० के विरूद्ध 45,575/-रू० काटकर 17,40,525/-रू० प्राप्त कराए गये जिससे क्षुब्ध होकर परिवादी ने परिवाद संख्या-131/2016 विद्वान जिला आयोग के सम्मुख प्रस्तुत किया है।
विद्वान जिला आयोग द्वारा पक्षकारों को सुनकर तथा साक्ष्य एवं प्रपत्रों का अवलोकन करने के उपरान्त निम्न आदेश पारित किया गया है:-
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" परिवादी का परिवाद विपक्षी के विरूद्ध स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को आदेश दिया जाता है कि परिवादी द्वारा जमा पैसा 09 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज सहित वापस करें। जो पैसा दिया जा चुका है उसको सम्पूर्ण धनराशि में समायोजित किया जाएगा, कोई कटौती नहीं किया जाएगा। ब्याज की गणना पैसा जमा करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक किया जाएगा। परिवादी विपक्षी से 4000/-रू० खर्चा मुकदमा भी प्राप्त करेगा। आदेश का अनुपालन 30 दिन में किया जाएगा। "
उपरोक्त आदेश के विरूद्ध अपील अपीलार्थी प्राधिकरण द्वारा इस न्यायालय के सम्मुख प्रस्तुत की गयी है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री वी०पी० श्रीवास्तव द्वारा कथन किया कि विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश अवैधानिक है, तथा यह कि जो कटौती की गयी है वह उचित है जैसा कि प्राधिकरण द्वारा जारी बाउचर में अंकित की गयी है।
मेरे समक्ष अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह कथन किया गया कि चॅूकि आवंटित प्लाट अविकसित है अतएव प्राधिकरण द्वारा उपरोक्त आवंटन का कब्जा समयावधि में प्रत्यर्थी/परिवादी को प्राप्त नहीं कराया जा सका जिसके लिए अपीलार्थी प्राधिकरण को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। यह कि योजना में वर्णित तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए पंजीकरण धनराशि की 25 प्रतिशत धनराशि काटकर शेष धनराशि का भुगतान प्रत्यर्थी/परिवादी को कर दिया गया था। उपरोक्त के सम्बन्ध में प्राधिकरण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा मेरा ध्यान साक्ष्य प्रपत्रों के साथ संलग्नक-6 की ओर आकृष्ट कराया गया जिसमें प्रस्तर-9 में निम्नवत उल्लेख है:-
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9.1 यदि कोई पंजीकृत व्यक्ति पंजीकरण धनराशि लाटरी पड़ने से पूर्व वापस लेना चाहता है तो उसको पंजीकरण धनराशि बिना ब्याज के वापस कर दी जाएगी।
9.2 यदि कोई आवेदक लाटरी में आवंटन हो जाने के पश्चात अपने भूखण्ड को निरस्त कराकर धनराशि वापस लेना चाहता है तो पंजीकरण धनराशि की 25 प्रतिशत काटकर शेष धनराशि उसे बिना ब्याज के वापस कर दी जाएगी।
9.3 लाटरी में असफल आवदेकों को पंजीकरण धनराशि बिना ब्याज के उनके पते पर रजिस्टर्ड डाक द्वारा चेक के माध्यम से समय से प्रेषित की जाएगी। आवेदक को पंजीकरण फार्म में अपना बैंक खाता संख्या, बैंक का नाम व शाखा का उल्लेख करना अनिवार्य होगा तथा आवेदन पत्र के साथ एक स्वपता लिखा लिफाफा रू0 30 के डाक टिकट के साथ संलग्न करना होगा।
9.4 एक वर्ष से अधिक समय तक पंजीकरण धनराशि प्राधिकरण में जमा रहने पर तत्समय बैंकों में प्रचलित बचत खाते का साधारण ब्याज की दर से ब्याज देय होगा।
9.5 किसी भी नियम एवं शर्तों के उल्लंघन करने पर आवंटन निरस्त कर दिया जाएगा तथा जमा धनराशि की कटौती आवंटन-पंजीयन नियमावली के अनुसार की जाएगी।
उपरोक्त प्रस्तर 9 के शर्त 9.2 में यह अंकित किया गया है कि यदि यदि कोई आवेदक लाटरी में आवंटन हो जाने के पश्चात अपने भूखण्ड को निरस्त कराकर धनराशि वापस लेना चाहता है तो उस दशा में उसके द्वारा जमा की गयी धनराशि का 25 प्रतिशत काटकर शेष धनराशि आवेदक को बिना ब्याज के वापस कर दी जाएगी।
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अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा मेरा ध्यान पत्रावली पर उपलब्ध प्रपत्र पृष्ठ संख्या 17 संलग्नक-1 जो कि सचिव, जनसूचनाधिकार बरेली विकास प्राधिकरण द्वारा जारी किये गये पंत्राक संख्या 5037 दिनांक 29-09-2014 की ओर आकृष्ट किया गया।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा कथन किया गया कि निर्विवाद रूप से प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा कुल देय धनराशि 17,86,100/-रू० अपीलार्थी प्राधिकरण के सम्मुख वर्ष 2010 में जमा की गयी थी तथा आवंटन पत्र भी जारी किया गया था, फिर भी चार वर्ष तक उसे कब्जा नहीं दिया गया जबकि वह अनेकों बार प्राधिकरण से सम्पर्क करता रहा कि उसे भूखण्ड की यथास्थिति के बारे में अवगत कराया जाए परन्तु अपीलार्थी प्राधिकरण द्वारा न सिर्फ उपेक्षा की गयी वरन उसे भ्रमित भी किया गया। कोई और विकल्प न होने की दशा में उसके द्वारा अपनी जमा धनराशि को वापस करने हेतु प्रार्थना की गयी जो आर०टी०आई० के माध्यम से उसे प्राप्त हो पायी। अत: विद्वान जिला आयोग द्वारा जो निर्णय एवं आदेश पारित किया गया है जिसमें परिवादी द्वारा जमा धनराशि 09 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज के साथ वापस करने हेतु अपीलार्थी प्राधिकरण को आदेशित किया गया है वह पूर्णतया उचित एवं सुसंगत है।
मेरे द्वारा उभय-पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क एवं पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का परिशीलन किया गया। जहॉं तक प्रस्तर-9 के उपनियम 9.2 का प्रश्न है, वह प्रस्तुत वाद में कदापि लागू नहीं होता है क्योंकि परिवादी को अपीलार्थी प्राधिकरण द्वारा न केवल भूखण्ड नियत समयावधि में उपलब्ध कराया गया बल्कि चार वर्ष तक उसके द्वारा जमा भारी धनराशि का प्रयोग करना स्वयं में अवैधानिक कृत्य एवं दूषित मंशा
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प्रकट करता है। जो धनराशि अपीलार्थी प्राधिकरण द्वारा काटी गयी है उस पर 09 प्रतिशत ब्याज जैसा कि विद्वान जिला आयोग द्वारा आदेशित किया गया है, अविलम्ब एक माह की अवधि में अपीलार्थी/विपक्षी प्राधिकरण को वापस करने हेतु आदेशित किया जाता है। साथ ही प्रत्यर्थी/परिवादी को अपीलार्थी/विपक्षी प्राधिकरण से 4000/-रू० खर्चा-मुकदमा भी दिलाया जाए जैसा कि विद्वान जिला आयोग द्वारा आदेशित किया गया है।
10,000/-रू० हर्जाना अपीलार्थी/विपक्षी प्राधिकरण द्वारा अपील योजित करने के कारण प्रत्यर्थी/परिवादी को 30 दिन के अन्दर अदा किया जाएगा।
आदेश
प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश उचित एवं सुसंगत है जिसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। उभय-पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
10,000/-रू० हर्जाना अपीलार्थी/विपक्षी प्राधिकरण द्वारा अपील योजित किये जाने के कारण प्रत्यर्थी/परिवादी को 30 दिन के अन्दर देय होगा।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह आदेश को आयोग की वेबसाइड पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
कृष्णा-आशु० कोर्ट नं०1