राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-४२८/२०१२
(जिला फोरम, बस्ती द्वारा परिवाद सं0-४०/२००९ में पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक १९-०१-२०१२ के विरूद्ध)
१. पोस्ट आफिस, सुगर फैक्ट्री, बभनान, गोण्डा द्वारा सब पोस्ट मास्टर।
२. सुपरिण्टेण्डेण्ट आफ पोस्ट आफिसेज, गोण्डा डिवीजन, गोण्डा।
३. चीफ पोस्ट मास्टर जनरल, यू.पी. सर्किल, लखनऊ।
४. पोस्ट मास्टर जनपरल, गोरखपुर रीजन, गोरखपुर।
..................... अपीलार्थीगण/विपक्षीगण।
बनाम्
रामानन्द जायसवाल पुत्र स्व0 राम शंकर निवासी ग्राम भटहा जंगल(निकट पेट्रोल पम्प, बभनान), पोस्ट आफिस बभनान, जिला-बस्ती।
...................... प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
१- मा0 आलोक कुमार बोस, पीठासीन सदस्य।
२- मा0 श्री संजय कुमार, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित :- डॉ0 उदयवीर सिंह विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से उपस्थित :- कोई नहीं।
दिनांक : २१-०५-२०१५
मा0 श्री आलोक कुमार बोस, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
अपीलार्थी डाक विभाग की ओर से यह अपील जिला फोरम, बस्ती द्वारा परिवाद सं0-४०/२००९ में पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक १९-०१-२०१२ के विरूद्ध योजित की गयी है। दिनांक १६-०४-२०१५ को अपील सुनवाई हेतु ली गयी। अपीलार्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता डॉ0 उदयवीर सिंह उपस्थित आये थे, परन्तु प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं आया। पत्रावली के परिशीलन से यह तथ्य प्रकाश में आता है कि यह अपील पिछले ०२ वर्ष से निस्तारण हेतु सूचीबद्ध होती चली आ रही है, अत: उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ (अधिनियम ६८) की धारा-३० की उपधारा (२) के अन्तर्गत निर्मित उत्तर प्रदेश उपभोक्ता संरक्षण नियमावली १९८७ के नियम ८ के उप नियम (६)
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में दिये गये प्राविधान को दृष्टिगत रखते हुए पीठ द्वारा यह समीचीन पाया गया कि पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य/अभिलेख के आधार पर इस अपील में न्यायोचित आदेश पारित किया जाय। प्रत्यर्थी/परिवादी को वर्ष २०१२ से एकाधिक नोटिस भेजे गये तथा प्रत्यर्थी को इस आयोग के निबन्धक द्वारा भी पृथक से भी नोटिस भेजी गयी परन्तु फिर भी उसकी ओर से कोई आपत्ति योजित नहीं की गयी। अत: अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को एक पक्षीय रूप से सुना गया एवं पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेख/साक्ष्य का गहनता से परिशीलन किया गया।
संक्षेप में परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी रामानन्द जायसवाल का कहना है कि उसने एक स्पीड पोस्ट रसीद सं0-ई०यू० ७०४०७१३५५१ एन. दिनांक २०-११-२००८ के माध्यम से रसीद सं0-३४८५ मु० २५/- रू० व्यय करके दिनांक २०-११-२००८ को सहायक बोरिंग टेक्नीशियन के पद पर चयन हेतु आवेदन पत्र मु० १००/- रू० के पोस्टल आर्डर के साथ विपक्षी सं0-१ के यहॉं से मुख्य अभियन्ता कैम्प कार्यालय ए २/१२ डी विशाल खण्ड, गोमती नगर लखनऊ के यहॉं भेजा था। उनके यहॉं आवेदन पत्र प्राप्त करने की अन्तिम तिथि २४-११-२००८ थी लेकिन अपीलार्थी डाक विभाग की लापरवाही के कारण उसका आवेदन पत्र समय से उपरोक्त कार्यालय में नहीं पहुँचा। प्रश्नगत डाक दिनांक २५-११-२००८ को सम्बन्धित डाकघर गोमती नगर लखनऊ पहुँची, जिसे सम्बन्धित डाकिया द्वारा रिफ्यूज्ड लिखकर प्रत्यर्थी/परिवादी को वापस कर दिया गया। फलस्वरूप वह चयन प्रक्रिया में सम्मिलित होने से वंचित रह गया। अपीलार्थी डाक विभाग के इसी कृत्य को सेवा में कमी मानते हुए प्रत्यर्थी/परिवादी नन्हे लाल ने परिवाद संख्या २३२/२००७ अधीनस्थ फोरम में योजित किया। उभय पक्ष को सुनने के उपरान्त अधीनस्थ फोरम द्वारा प्रश्नगत परिवाद को आंशिक रूप से स्वीकार किया गया एवं अपीलार्थीगण/विपक्षीगण को आदेशित किया गया कि वे निर्णय की प्रति प्राप्त होने के ६० दिनों के भीतर परिवादी को उसके स्पीड पोस्ट को गन्तव्य पर न पहुँचाने के फलस्वरूप क्षतिपूर्ति स्वरूप १०,०००/- रू० तथा वाद व्यय स्वरूप १,०००/- रू० इस प्रकार कुल ६,०००/- रू० का भुगतान प्रत्यर्थी/परिवादी को किया जाना सुनिश्चित करें। अधीनस्थ फोरम के इसी आदेश से क्षुब्ध होकर अपीलार्थीगण डाक विभाग द्वारा प्रस्तुत अपील
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योजित की गयी है।
पीठ द्वारा अपीलार्थी डाक विभाग विद्वान अधिवक्ता को विस्तारपूर्वक सुना गया एवं उनके तर्कों के परिप्रेक्ष्य में पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेख/साक्ष्यों एवं प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश का गहनता से परिशीलन किया गया। इस प्रकरण में यह तथ्य निर्विवाद है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने दिनांक २०-११-२००८ को प्रश्नगत स्पीड पोस्ट से डाक भेजी थी जो पत्र में दिये गये पते पर समय से नहीं पहुँची। इस प्रकार स्पीड पोस्ट का दिये गये पते पर समय से न पहुँचना निश्चित रूप से सेवा में कमी है। इस सम्बन्ध में इण्डियन पोस्ट आफिस रूल्स १९३३ में संशोधित करते हुए दिनांक ०१-०८-१९८६ को नियम ६६ (बी) को जोड़ा गया। तत्पश्चात् विभाग द्वारा वृत्तांक सं0-एफ.नं० ४३-४/८७-डी/बीडीडी दिनांक २२-०१-१९९९ जारी किया गया जिसके अनुसार स्पीड पोस्ट के दिये गये पते पर न पहुँचने पर लगाये गये टिकट का दोगुना कम्पोजिट फीस के रूप में अथवा १०००/- रू० जो भी कम हो देय होना माना गया है। इस सम्बन्ध में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा स्पीड पोस्ट द्वारा मैनेजर स्पीड पोस्ट आफिस, जीपीओ बिल्डिंग, जयपुर बनाम लक्ष्मण सिंह २०१० एनसीजे ३०९ (एनसी) में स्पष्ट विधिक सिद्धान्त दिया गया है। अधीनस्थ फोरम द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश सीनियर पोस्ट मास्टर, जीपीओ, पुणे बनाम अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत व अन्य, १९८६-९६ कन्जूमर २५५४ तथा पोस्ट मास्टर इम्फाल व अन्य बनाम डॉ0 जामिनी देवी सगोलबन्द २००२ कन्जूमर ६२३० (एनएस) एवं स्टेट आफ हरियाणा बनाम लीला राम IV (2008) CPJ 146 (NC) में दिये गये सिद्धान्तों के विपरीत है। चूँकि इस प्रकरण में प्राप्तकर्ता द्वारा प्रश्नगत स्पीड पोस्ट को प्राप्त करने से इन्कार किया गया, जिस सम्बन्ध में सम्बन्धित डाकिया द्वारा ‘’ रिफ्यूज्ड ’’ की रिपोर्ट लगायी गयी और प्रश्नगत स्पीड पोस्ट प्रत्यर्थी/परिवादी को वापस कर दी गयी है ऐसी स्थिति में अधीनस्थ फोरम द्वारा नियम ६६ (बी) तथा विज्ञप्ति सं0-४३ दिनांक २२-०१-१९९९ पर बिना विचार विमर्श किये ही प्रत्यर्थी/परिवादी के पक्ष में क्षतिपूर्ति अदा करने हेतु आदेश पारित किया गया है जो विधि सम्मत नहीं है। अधीनस्थ फोरम के पास उपरोक्तानुसार आज्ञप्ति पारित करने का कोई विधिक अधिकार नहीं था। अत: अधीनस्थ फोरम का उपरोक्त आदेश विधि व्यवस्थाओं के आलोक में
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अपास्त होने योग्य है।
इसके अतिरिक्त पोस्ट आफिस गाइड के प्रस्तर ८४ में यह प्राविधान दिया गया है कि डाक विभाग को किसी डाक के खो जाने, विलम्ब से पहुँचने एवं क्षतिग्रस्त हो जाने के लिए दोषी नहीं माना जा सकता है। इस प्रकरण में डाक विभाग के किसी अधिकारी/कर्मचारी पर व्यक्तिगत रूप से कोई लांछन नहीं लगाया गया है।
अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का यह भी कहना है कि प्रश्नगत परिवाद भारतीय डाक अधिनियम १८९८ की धारा-६ में दिये गये प्राविधान से बाधित है एवं इस परिवाद की सुनवाई करने का कोई क्षेत्राधिकार अधीनस्थ फोरम के पास नहीं था। फलस्वरूप क्षेत्राधिकार के अभाव में प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश विधि शून्य एवं निष्प्रभावी है। अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता ने अपने कथन के समर्थन में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा यूनियन आफ इण्डिया व अन्य बनाम एम0एल0 बोरा २०११(२) सीपीसी १७९ एवं (२०००) एनसीजे १४२ पोस्ट मास्टर इम्फाल बनाम जामिनी देवी सगोलबन्द में दिये गये विधिक सिद्धान्त की ओर पीठ का ध्यान आकृष्ट कराया जिनमें यह विधि व्यवस्था दी गयी है कि इस प्रकार के परिवाद भारतीय डाक अधिनियम १८९८ की धारा-६ से बाधित हैं। चूँकि प्रस्तुत मामले में प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा डाक विभाग के किसी अधिकारी या कर्मचारी पर कोई व्यक्तिगत द्वेष अथवा भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगया गया है, अत: इस मामले में धारा-६ भारतीय डाक अधिनियम १८९८ में दिये गये प्राविधान लागू होते हैं। उल्लेखनीय है कि भारतीय डाक अधिनियम १८९८ (अधिनियम सं० ६ सन् १८९८) की धारा-६ में निम्नवत् प्राविधान है कि -
Section 6 of the Indian Post Office Act. 1898 reads as under :
“6. Exemption from liability for loss, misdelivery, delay or damage - The Government shall not incur any liability by reason of the loss, misdelivery or delay of, or damage to, any postal article in course of transmission by post, except insofar as such liability may in express terms be undertaken by the Central Government as hereinafter provided and no officer of the Post Office shall incur any liability by reason of any such loss, misdelivery, delay or damage, unless he has caused the same fraudulently or by his willful act or default.”
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उपरोक्त प्राविधान तथा मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा टीकाराम बनाम इण्डियन पोस्टल डिपार्टमेण्ट IV (2007) CPJ 123 (NC) के अतिरिक्त मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा स्पीड पोस्ट द्वारा मैनेजर स्पीड पोस्ट आफिस, जीपीओ बिल्डिंग, जयपुर बनाम लक्ष्मण सिंह २०१० एनसीजे ३०९ (एनसी) तथा सीनियर पोस्ट मास्टर, जीपीओ, पुणे बनाम अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत व अन्य, १९८६-९६ कन्जूमर २५५४ तथा पोस्ट मास्टर इम्फाल व अन्य बनाम डॉ0 जामिनी देवी सगोलबन्द २००२ कन्जूमर ६२३० (एनएस) एवं स्टेट आफ हरियाणा बनाम लीला राम IV (2008) CPJ 146 (NC) में दिये गये विधिक सिद्धान्त को दृष्टिगत रखते हुए हमारे विचार से अधीनस्थ फोरम द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश विधि अनुरूप नहीं है। वर्णित परिस्थिति में अधीनस्थ फोरम द्वारा जारी आज्ञप्ति अपास्त की जाने योग्य है। तद्नुसार प्रस्तुत अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। जिला फोरम, बस्ती द्वारा परिवाद सं0-४०/२००९ में पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक १९-०१-२०१२ अपास्त किया जाता है। पक्षकार अपीलीय व्यय-भार अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे। उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(आलोक कुमार बोस)
पीठासीन सदस्य
(संजय कुमार)
सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-४.