राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-263/2015
(मौखिक)
(जिला उपभोक्ता फोरम, बस्ती द्वारा परिवाद संख्या 48/2004 में पारित आदेश दिनांक 20.12.2014 के विरूद्ध)
1. U.P. Avas Evam Vikas Parishad
through Housing Commissioner,
104, Mahatma Gandhi Marg,
Lucknow.
2. Estate Management Officer,
U.P. Avas Evam Vikas Parishad,
Satyawanpuri, Katra Yojna,
Basti. ...................अपीलार्थीगण/विपक्षीगण
बनाम
Sri Ram Achal Sharma
S/o Sri Ram Subhag Sharma,
Resident of Village-Parasi Manwaria,
Post-Khatiyaon, District-Basti,
Presently residing at House No.-476,
E.W.S. House, Avas Vikas Colony,
Katra, Basti. ................प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
2. माननीय श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री एन0एन0 पाण्डेय,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री उमेश कुमार शर्मा,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 07-03-2017
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-48/2004 राम अचल शर्मा बनाम उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद व एक अन्य में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, बस्ती द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 20.12.2014
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के विरूद्ध यह अपील उपरोक्त परिवाद के विपक्षीगण उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद व एक अन्य की ओर से धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत इस आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने उपरोक्त परिवाद स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
'' परिवादी का यह परिवाद स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को निर्देश दिया जाता है कि प्रपत्र संख्या 41 के अनुसार मकान आवंटन के संबंध में निश्चित की गयी ब्याज को जोड़ कर एक मुश्त समाधान योजना के अन्तर्गत परिवादी के द्वारा जमा की गयी धनराशि को घटा कर जो धनराशि निकलती है उसे परिवादी से वसूल करे। साथ ही साथ परिवादी को निर्देश दिया जाता है कि विपक्षी के द्वारा उपरोक्त के आलोक में तैयार किये गये प्रपत्र के आलोक में जो धनराशि निकलती है उसे विपक्षी के कार्यालय में एक मुश्त जमा करे क्योंकि परिवादी ने किश्तों को समयानुसार जमा नहीं किया है। परिवादी एवं विपक्षी के द्वारा इस आदेश का अनुपालन आदेश की तिथि से साठ दिन के अन्दर किया जाये। साथ ही साथ विपक्षीगण को निर्देश दिया जाता है कि परिवादी के द्वारा जो समस्त धनराशि अब तक या वर्ष 2002 तक जमा की जा चुकी है पुन: चार्ट प्रपत्र संख्या 41 के आलोक में तैयार करने की कार्यवाही सुनिश्चित करे। जहां तक परिवादी को हुये मानसिक एवं शारीरिक कष्ट का प्रश्न है उसके प्रति विपक्षीगण परिवादी को 5000/- (पांच हजार) रूपये एवं परिवाद व्यय के रूप में 3000/-(तीन हजार) रूपये का भुगतान
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उपरोक्त निर्धारित अवधि में करे। क्योंकि परिवादी के द्वारा वर्ष 2002 से ही ओ0टी0एस0 के अन्तर्गत नये चार्ट की मांग की गयी उसे विपक्षी ने मुहैया नहीं कराया बल्कि उसे इस वाद के दौरान वर्ष 2014 में मुहैया कराया गया जो कि विपक्षीगण द्वारा सेवा में की गयी कमी है। उपरोक्त धनराशि का भुगतान समय सीमा के अन्दर न किये जाने पर उस पर 9 (नौ) प्रतिशत की दर से ब्याज परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक देय होगा। साथ ही साथ विपक्षीगण को अधिकृत किया जाता है कि यदि वह चाहे तो उपरोक्त धनराशि पांच हजार और तीन हजार रूपये को परिवादी के ऊपर निकली हुयी धनराशि में समायोजित कर सकते हैं।
अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से उनके विद्वान अधिवक्ता श्री एन0एन0 पाण्डेय और प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से उनके विद्वान अधिवक्ता श्री उमेश कुमार शर्मा उपस्थित आए।
हमने उभय पक्ष के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपीलार्थी/विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि अवशेष धनराशि पर अपीलार्थी/विपक्षीगण 18 प्रतिशत की दर से प्रत्यर्थी/परिवादी से ब्याज पाने के अधिकारी हैं, परन्तु जिला फोरम ने अवशेष धनराशि पर अपीलार्थी/विपक्षीगण को कोई ब्याज नहीं दिया है, जो अनुचित और विधि विरूद्ध है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश का समर्थन करते हुए तर्क किया कि इसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
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हमने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।
उभय पक्ष के अभिकथन के आधार पर यह स्वीकृत तथ्य है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी/विपक्षीगण की सत्यवानपुरी कटरा बस्ती आवास योजना के दुर्बल आय वर्ग के भवन आवंटन हेतु आवेदन पत्र प्रस्तुत किया, तब उसे भवन संख्या-476 आवंटित किया गया और प्रदेशन पत्र दिनांकित 12.02.1988 जारी किया गया और प्रदेशन पत्र के अनुसार धनराशि भुगतान न करने पर नोटिस जारी की गयी, परन्तु दिनांक 31.01.1992 तक उसने अवशेष किश्तों के मद में कोई धनराशि जमा नहीं की। अन्त में दिनांक 31.01.2001 तक अवशेष किश्तों के मद में देय धनराशि 26,594.50/-रू0 तथा दण्ड ब्याज के मद में देय धनराशि 18,276/-रू0 कुल 44,870.40/-रू0 जमा करने हेतु उसे नोटिस दिनांक 16.02.2001 को अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा जारी किया गया। फिर भी उसने अवशेष धनराशि जमा नहीं की। तब उसका आवंटन आदेश दिनांक 29.05.2002 के द्वारा निरस्त कर दिया गया। तदोपरान्त एकमुश्त समाधान योजना के लाभ हेतु प्रत्यर्थी/परिवादी ने आवेदन दिया तो उसे एकमुश्त समाधान योजना का लाभ प्रदान किया गया और एकमुश्त समाधान योजना के अन्तर्गत देय अवशेष धनराशि का गणना चार्ट तैयार किया गया। एकमुश्त समाधान योजना के अन्तर्गत देय धनराशि 45,421.36/-रू0 से प्रत्यर्थी/परिवादी को अवगत कराया गया और यह धनराशि जो किश्तों में जमा करने को कहा गया, जिसमें से एक किश्त दिनांक 08.11.2002 तक 22,710.68/-रू0 और दूसरी किश्त दिनांक 23.11.2002 तक 22,710.68/-रू0 का भुगतान करना था,
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परन्तु प्रत्यर्थी/परिवादी ने दिनांक 08.11.2002 तक देय प्रथम किश्त का भुगतान दिनांक 19.11.2002 को किया और अवशेष धनराशि 22,710.68/-रू0 की दूसरी किश्त का उसने भुगतान नहीं किया। प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से भुगतान न करने का कारण यह बताया गया कि उसके द्वारा पूर्व में जमा की गयी धनराशि की गणना एकमुश्त समाधान योजना में नहीं की गयी है और इस सन्दर्भ में उसके द्वारा किए गए प्रतिवेदन का निस्तारण नहीं किया गया। अत: उसने वर्तमान परिवाद संख्या-48/2004 जिला फोरम के समक्ष अपनी पीड़ा के निवारण हेतु प्रस्तुत किया।
उभय पक्ष को यह स्वीकार है कि एकमुश्त समाधान योजना की द्वितीय किश्त 22,710.68/-रू0 का भुगतान प्रत्यर्थी/परिवादी ने नहीं किया है। अपीलार्थी/विपक्षीगण के अनुसार इस धनराशि पर 18 प्रतिशत की दर से पैनल ब्याज देय है, परन्तु उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने पूर्व जमा धनराशि के समायोजन के सम्बन्ध में अपना प्रतिवेदन अपीलार्थी/विपक्षीगण के समक्ष प्रस्तुत किया और उनके द्वारा सुनवाई न करने पर परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है, परन्तु परिवाद में कथित रूप से पूर्व में की गयी अतिरिक्त धनराशि का भुगतान साबित नहीं कर सका है। ऐसी स्थिति में हम इस मत के हैं कि एकमुश्त समाधान योजना की द्वितीय किश्त की अवशेष धनराशि 22,710.68/-रू0 पर प्रत्यर्थी/परिवादी से आवंटन की शर्त के अनुसार 12.5 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज चार्ज किया जाना विधिसम्मत होगा। अत: हम
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इस मत के हैं कि जिला फोरम ने इस धनराशि पर जो अपीलार्थी/विपक्षीगण को ब्याज नहीं दिया है, वह उचित नहीं है।
अत: अपील आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश को इस प्रकार संशोधित किया जाता है कि अपीलार्थी/विपक्षीगण, प्रत्यर्थी/परिवादी से प्रपत्र संख्या 41 के अनुसार मकान आवंटन के सम्बन्ध में निश्चित की गयी एकमुश्त समाधान योजना के अन्तर्गत देय अवशेष धनराशि पर 12.5 प्रतिशत वार्षिक की दर से अदायगी की तिथि तक ब्याज पाने के अधिकारी होंगे। जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश का शेष अंश यथावत् कायम रहेगा।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान) (बाल कुमारी)
अध्यक्ष सदस्य
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1