सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या- 2896/2016
(जिला उपभोक्ता फोरम, आजमगढ़ द्वारा परिवाद संख्या-192/2009 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 28-10-2016 के विरूद्ध)
1- सहारा इण्डिया लाइफ इंश्योरेंश कम्पनी लि0, सहारा इण्डिया सेन्टर,2 कपूरथला काम्पलेक्स, अलीगंज लखनऊ 226024
2- मैनेजर, सहारा इण्डिया लाइफ इंश्योरेंश कम्पनी लि0, सोनापुर, वाराणसी, द्वारा अर्थराइज्ड सिग्नेचरी
अपीलार्थी/विपक्षीगण
बनाम
श्री राम प्यारे वर्मा, पुत्र श्री रामचरित्र वर्मा, निवासी एकडंगी, पो0 कोयलसा, परगना कौडि़या, तहसील बूढ़नपुर, जिला आजमगढ़।
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता, श्री अभिनवमणि
त्रिपाठी
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता, श्री रमाकान्त शुक्ला
दिनांक: 15-05-2018
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद 192 सन् 2009 राम प्यारे वर्मा बनाम मैनेजर, सहारा इण्डिया लाइफ इश्योरेंश कम्पनी लि0 कम्पनी लि0 व एक अन्य में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, आजमगढ़ द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 28-10-2016 के विरूद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
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आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुये निम्न आदेश पारित किया है:-
" परिवाद बीमा कम्पनी (विपक्षी) के विरूद्ध आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है तथा बीमा कम्पनी को आदेशित किया जाता है कि वह निर्णय के दो माह के अन्दर परिवादी को निम्न अदायगी करें।
(1) बीमा कम्पनी बीमा से संबंधित सभी देय धनराशि मय ब्याज 09 प्रतिशत पर दावा दाखिल की तिथि 23-10-2009 से अंतिम भुगतान तक जोड़कर परिवादी को करें।
(2) मानसिक क्षति के लिए मु0 5000/- तथा वाद व्यय के मद में मु0 3000/- रू० भी परिवादी को अदा करें।
(3) समय सीमा तक भुगतान न होने, सम्पूर्ण देय धनराशि पर समय सीमा के बाद से 09 प्रतिशत ब्याज भी देय होगा।
जिला फोरम के आक्षेपित निर्णय और आदेश से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षीगण सहारा इण्डिया लाइफ इंश्योरेंश कम्पनी लि0 व मैनेजर, सहारा इण्डिया लाइफ इंश्योरेंश कम्पनी लि0 ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री अभिनवमणि त्रिपाठी और प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री रामकान्त शुक्ला उपस्थित आए हैं।
मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत
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किया है कि उसकी पत्नी श्रीमती प्रभावती देवी ने विपक्षीगण से कन्ज्यूमर आई०डी० नं. 503226942 अप्लीकेशन नं. 35200059535 पर बीमा पालिसी प्राप्त की। बीमा पालिसी प्राप्त करते समय श्रीमती प्रभावती देवी स्वस्थ थीं और उसे कोई बीमारी नहीं थी। बीमा पालिसी प्राप्त करने के बाद प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी श्रीमती प्रभावती देवी की मृत्यु बी.एच.यू. अस्पताल में हो गयी। अत: उसकी मृत्यु के बाद प्रत्यर्थी/परिवादी ने विपक्षीगण के समक्ष अपना दावा प्रस्तुत किया जिसे विपक्षीगण ने गलत ढंग से इस आधार पर निरस्त कर दिया कि प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी बीमा पालिसी प्राप्त करते समय हाई ब्लड प्रेशर एवं डायबटीज की बीमारी से ग्रस्त थी और इस तथ्य को छिपाकर बीमा पालिसी प्राप्त किया है।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि विपक्षीगण द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा अस्वीकार करने का बताया गया कारण गलत है। अत: विवश होकर उसने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है।
विपक्षीगण की ओर से जिला फोरम के समक्ष लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है जिसमें प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी श्रीमती प्रभावती देवी का बीमा होना स्वीकार किया गया है परन्तु कहा गया है कि बीमा प्रस्ताव फार्म भरते समय प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी ने अपनी बीमारी से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य छिपाया है, जबकि वह बीमा प्रस्ताव के समय डायबटिक थी। अत: अपीलार्थी/विपक्षीगण ने उसका दावा उचित आधार पर रेप्यूडिएट किया है। लिखित कथन में विपक्षीगण ने यह भी कहा है कि प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से
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कम्प्लेन्ट रिब्यू कमेटी के समक्ष भी प्रस्तुत की गयी है और रिब्यू कमेटी ने भी रेप्यूडिएशन की पुष्टि की है। अत: परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।
लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी की मृत्यु बी.एच.यू. सर सुन्दरलाल हास्पिटल में हुयी है और वहॉ पर उसकी बीमारी के डायग्नोसिस में पाया गया कि वह डायबटिक थी, जिसकी जानकारी उसे थी। लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि बी.एच.यू. के पर्चे पर "नोन डायबटिक" अंकित है। लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से यह भी कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद खारिज होने योग्य है।
जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त यह निष्कर्ष अंकित किया है कि अपीलार्थी/विपक्षीगण ने प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा बिना किसी समुचित आधार के रेप्यूडिएट किया है। अत: जिला फोरम ने प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए उपरोक्त प्रकार से आदेश पारित किया है।
अपीलार्थी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश साक्ष्य और विधि के विरूद्ध है। अपीलार्थी/विपक्षीगण ने प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा उचित आधार रेप्युडिएट किया है क्योंकि उसकी पत्नी ने बीमा पालिसी प्राप्त करते समय बीमा प्रस्ताव में अपनी बीमारी से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाया है और गलत तथ्य प्रस्तुत कर बीमा पालिसी प्राप्त की है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने अपने तर्क के समर्थन में माननीय सर्वोच्च न्यायाल द्वारा सिविल अपील नं. 4186-87 of 1988 लाइफ इंश्योरेंश कारपोरेशन आफ इण्डिया बनाम श्रीमती
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आशा गोयल व एक अन्य में पारित निर्णय सन्दर्भित किया है जिसमें माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने यह माना है कि महत्वपूर्ण तथ्य छिपाकर या उसके सम्बन्ध में गलत विवरण देकर बीमा पालिसी प्राप्त किये जाने पर बीमा दावा रेप्युडिएट किया जाना उचित है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश साक्ष्य और विधि के अनुकूल है। अपीलार्थी/विपक्षीगण यह साबित करने में पूर्णतया असफल रहे हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी बीमा पालिसी प्राप्त करने के पहले से अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा कथित बीमारी से ग्रस्त थी और जानते हुए उसने इसे छिपाकर तथा गलत सूचना देकर बीमा पालिसी प्राप्त किया है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने अपने तर्क के समर्थन में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित निम्न निर्णयों को सन्दर्भित किया है:-
(1) अपील संख्या 1847, 1812/2004 एल०आई०सी० आफ इण्डिया व एक अन्य बनाम श्रीमती चावली देवी में पारित निर्णय दिनांक 03 दिसम्बर 2015
(2) अपील संख्या 774/2006 लाइफ इंश्योरेंश कारपोरेशन आफ इण्डिया बनाम श्रीमती सुदेश में पारित निर्णय दिनांक 27 फरवरी, 2012
(3) सुरेन्द्र कौर व एक अन्य बनाम एल.आई.सी. आफ इण्डिया ।।(2005) सी.पी.जे. 32 एन.सी. में पारित निर्णय दिनांक 14 फरवरी 2005
प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से माननीय सर्वोच्च् न्यायाल द्वारा डी. श्रीनिवास बनाम एस.बी.आई. लाइफ इंश्योरेंश कम्पनी लि0 आदि के वाद में पारित निर्णय दिनांक 16-02-2018 जो ।(2018) सी.पी.जे. (एस.सी.) में प्रकाशित है, भी सन्दर्भित किया गया है।
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मैंने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है और उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण द्वारा सन्दर्भित न्याय निर्णयों का आदरपूर्वक अवलोकन किया है।
प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी श्रीमती प्रभावती देवी ने बीमा पालिसी हेतु दिनांक 19-02-2008 को बीमा प्रस्ताव फार्म भरा है और उसे प्रश्नगत पासिली दिनांक 22-02-2008 को विपक्षीगण द्वारा प्रदान की गयी। उसके बाद प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी की मृत्यु दिनांक 27-06-2008 को बी.एच.यू. के सर सुन्दरलाल अस्पताल में हुयी है। प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी दावा की जांच के दौरान अपीलार्थी/विपक्षीगण की बीमा कम्पनी के संज्ञान में यह तथ्य आया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी की मृत्यु दिनांक 27-06-2008 को बी.एच.यू. के सर सुन्दरलाल अस्पताल में हुयी है और वहॉं के पर्चे पर प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी को नोन डायबटिक अंकित किया गया है। अपीलार्थी बीमा कम्पनी द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी के ओ०पी०डी० प्रिस्क्रिप्शन 2008 की जो प्रति प्रस्तुत की गयी है उसमें प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी को नोन डायबटिक अंकित किया गया है। इस ओ०पी०डी० प्रिस्क्रिप्शन में यह भी अंकित है कि Case seen by JR medicine Known Diabitic sudden long (अपठनीय) LT Hernipres 1 day परन्तु ओ०पी०डी० के इस प्रिस्क्रिप्शन में यह अंकित नहीं है कि कब से और किस तिथि से प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी नोन डायबडिक हैं। इस ओ०पी०डी० प्रिस्क्रिप्शन के अलावा प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी को डायबटीज के सम्बन्ध में कोई और अभिलेख दिनांक 22-06-2008 के पहले का प्रस्तुत नहीं किया गया है जिससे यह प्रमाणित हो कि प्रश्नगत बीमा पालिसी का प्रस्ताव फार्म भरने की तिथि दिनांक 18-02-2008 को प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी श्रीमती प्रभावती देवी
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डायबटीज के रोग से पीडि़त थी और उसे इस बात की जानकारी थी तथा इस सम्बन्ध में उसने इलाज भी कराया था। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी श्रीमती प्रभावती देवी के इलाज की ओ०पी०डी० स्लिप के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता है कि प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी दिनांक 18-02-2008 को बीमा प्रस्ताव फार्म भरने के समय डायबटीज के रोग से ग्रस्त थी और उसे इस बात की जानकारी थी परन्तु उसने जानबूझकर अपनी बीमारी को छिपाया है तथा गलत सूचना देकर बीमा पालिसी प्राप्त की है। चॅूंकि अपीलार्थी बीमा कम्पनी ने प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी द्वारा अपनी बीमारी बीमा प्रस्ताव में छिपाने का आधार लेकर प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा रेप्युडिएट किया है। अत: ऐसी स्थिति में यह साबित करने का भार अपीलार्थी बीमा कम्पनी पर है कि बीमा प्रस्ताव की तिथि पर प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी डायबटीज के रोग से ग्रस्त थी और उसने जानबूझकर इस रोग को बीमा प्रस्ताव में छिपाया है तथा गलत सूचना देकर बीमा पालिसी प्राप्त की है। परन्तु उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि बीमा कम्पनी यह साबित करने में असफल रही है। अत: अपीलार्थी बीमा कम्पनी ने प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा अस्वीकार करने का जो आधार उल्लिखित किया है वह विधि विरूद्ध है और कानून की दृष्टि से प्रमाणित नहीं है। अत: अपीलार्थी द्वारा कथित आधार पर प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा रेप्युडिएट किया जाना विधि सम्मत नहीं है। अत: अपीलार्थी/विपक्षीगण की बीमा कम्पनी ने प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा अस्वीकार कर सेवा में त्रुटि की है। अत: जिला फोरम ने प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार कर कोई गलती नहीं की है। अत: जिला फोरम ने बीमा पालिसी के अन्तर्गत देय धनराशि जो 09 प्रतिशत वार्षिक की दर से परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से
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अदायगी की तिथि तक ब्याज सहित अदा करने हेतु अपीलार्थी/विपक्षीगण की बीमा कम्पनी को आदेशित किया है वह उचित है। उसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
चूँकि प्रत्यर्थी/परिवादी को बीमित धनराशि पर ब्याज दिया गया है अत: जिला फोरम ने जो 5000/- रू० क्षतिपूर्ति मानसिक कष्ट हेतु प्रत्यर्थी/परिवादी को प्रदान किया है उसे अपास्त किया जाता है। जिला फोरम ने जो 3000/- रू० वाद व्यय प्रत्यर्थी/परिवादी को प्रदान किया है वह उचित है। उसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला फोरम ने जो अपने निर्णय और आदेश में प्रत्यर्थी/परिवादी को जो 5000/- रू० मानसिक कष्ट हेतु क्षतिपूर्ति प्रदान किया है उसे अपास्त किया है। जिला फोरम के निर्णय का शेष अंश यथावत कायम रहेगा।
अपील में उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत अपील में जमा धनराशि 25,000/- रू० अर्जित ब्याज सहित जिला फोरम को इस निर्णय के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाएगी।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
कृष्णा, आशु0
कोर्ट नं01