राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-2136/2015
(मौखिक)
(जिला उपभोक्ता फोरम, मेरठ द्वारा इजरा वाद संख्या 62/2011 में पारित आदेश दिनांक 11.09.2015 के विरूद्ध)
Executive Engineer EDD I Pachimanchal Vidyut Vitran Nigam Ltd Victoria Park, Meerut.
...................अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
Ram Niwas Sharma, Advocate S/O Sri Kanhaiyya Lal R/O Village : Sisauli, Garh Road, Meerut.
................प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
2. माननीय श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री इसार हुसैन,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री आर0डी0 क्रान्ति,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 17-11-2016
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
इजरा वाद संख्या-62/2011 राम निवास शर्मा बनाम विद्युत विभाग में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, मेरठ द्वारा पारित आदेश दिनांक 11.09.2015 के विरूद्ध यह अपील उपरोक्त इजरा वाद के निर्णीत ऋणी एक्जीक्यूटिव इंजीनियर की ओर से धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत इस आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
अपीलार्थी की ओर से उनके विद्वान अधिवक्ता श्री इसार हुसैन और प्रत्यर्थी की ओर से उनके विद्वान अधिवक्ता श्री आर0डी0 क्रान्ति उपस्थित आए।
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हमने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
आक्षेपित आदेश दिनांक 11.09.2015 के अवलोकन से स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से प्रस्तुत इजरा प्रार्थना पत्र को पहले जिला फोरम ने दिनांक 11.09.2015 को पारित प्रथम आदेश के द्वारा इस आधार पर निरस्त कर दिया कि आयोग द्वारा अपील संख्या-536/2013 में पारित निर्णय और आदेश दिनांक 27.02.2013 के द्वारा जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश निरस्त कर दिया गया है और वाद पुन: सुनवाई हेतु प्रत्यावर्तित किया गया है, परन्तु उसी समय दिनांक 11.09.2015 को जिला फोरम ने परिवादी/डिक्रीदार के विद्वान अधिवक्ता को सुनकर दूसरा आदेश पारित किया है, जिसमें उल्लेख है कि राज्य आयोग द्वारा अपील में पारित आदेश के द्वारा जिला फोरम का आदेश अपास्त नहीं किया गया है। अत: इजरा वाद ग्राह्य है। अत: जिला फोरम ने दिनांक 11.09.2015 को पारित दूसरे आदेश के द्वारा अपना पूर्व पारित आदेश रिकाल करते हुए इजरा वाद में सुनवाई हेतु दिनांक 06.11.2015 तिथि निश्चित की है।
अपीलार्थी/निर्णीत ऋणी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम को पूर्व पारित आदेश को रिकाल अथवा रिव्यू करने का अधिकार नहीं है। जैसा कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राजीव हितेन्द्र पाठक व अन्य बनाम अच्युत कशीनाथ कारेकर व अन्य IV (2011) सी0पी0जे0 35 (एस0सी0) के वाद में निर्णीत किया गया
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है। अत: जिला फोरम द्वारा दिनांक 11.09.2015 को पारित द्वितीय आदेश अवैधानिक और अधिकार रहित है।
प्रत्यर्थी/डिक्रीदार के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश अपील संख्या-536/2013 में आयोग द्वारा पारित निर्णय और आदेश के द्वारा अपास्त नहीं किया गया है। अत: जिला फोरम ने दिनांक 11.09.2015 का प्रथम आदेश गलत तथ्यों के आधार पर पारित किया है। तदोपरान्त सही तथ्य जिला फोरम के संज्ञान में लाए जाने पर जिला फोरम ने पूर्व पारित आदेश को रिकाल कर इजरा प्रार्थना पत्र पर सुनवाई हेतु तिथि निश्चित की है। जिला फोरम द्वारा पारित यह आदेश कदापि अधिकार रहित और अवैधानिक नहीं कहा जा सकता है।
हमने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क पर विचार किया है।
यह स्वीकृत तथ्य है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश को अपील संख्या-536/2013 में आयोग द्वारा पारित निर्णय और आदेश के द्वारा अपास्त न कर संशोधित किया गया है और यह आदेशित किया गया है कि अपीलार्थी/विपक्षी विद्युत परिषद परिवादी के विद्युत कनेक्शन को नियमानुसार 45 दिन के अन्दर संयोजित कर विद्युत की आपूर्ति करे। इसके साथ ही आयोग ने इस आदेश के द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी को भेजे गए बिल को भी निरस्त किया है। अत: जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश में आयोग द्वारा संशोधन किए जाने पर आयोग द्वारा संशोधित
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आदेश का निष्पादन विधि के अनुसार कराने का प्रत्यर्थी/परिवादी को अधिकार है।
जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित आदेश दिनांक 11.09.2015 के प्रथम अंश से यह स्पष्ट है कि जिला फोरम ने प्रत्यर्थी/परिवादी का इजरा प्रार्थना पत्र इस भ्रम में निरस्त किया था कि आयोग द्वारा जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश को निरस्त किया जा चुका है। अत: जिला फोरम ने इजरा प्रार्थना पत्र निरस्त कर परिवाद की सुनवाई हेतु तिथि निश्चित किया। इस प्रकार यह आदेश अन्तिम नहीं है। अत: जिला फोरम ने सही तथ्य संज्ञान में आने पर आदेश दिनांक 11.09.2015 का द्वितीय अंश पारित किया है और इजरा प्रार्थना पत्र पर सुनवाई हेतु तिथि निश्चित की है।
उल्लेखनीय है कि इजरा वाद में प्रांग न्याय का सिद्धान्त तब तक लागू नहीं किया जा सकता है जब तक कि इजरा वाद पूर्ण सन्तुष्टि में निस्तारित न हो चुका हो। अत: परिवादी/डिक्रीदार को पुन: इजरा प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करने का अधिकार है। जिला फोरम द्वारा सुनवाई हेतु निश्चित तिथि पर वह दूसरा इजरा प्रार्थना पत्र भी प्रस्तुत कर सकता है।
अत: उपरोक्त विवेचना के आधार पर हम इस मत के हैं कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित आदेश में किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है और अपील निरस्त किए जाने योग्य है।
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आदेश
वर्तमान अपील निरस्त की जाती है।
उभय पक्ष अपील में अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान) (बाल कुमारी)
अध्यक्ष सदस्य
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1