Uttar Pradesh

StateCommission

A/2002/845

Mathura Vrindavan Development Authority - Complainant(s)

Versus

Rajendra Prasad Sharma - Opp.Party(s)

N. C. Upadhyay

27 Jul 2021

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2002/845
( Date of Filing : 12 Apr 2002 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Mathura Vrindavan Development Authority
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Rajendra Prasad Sharma
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Rajendra Singh PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 27 Jul 2021
Final Order / Judgement

                                                           (सुरक्षित)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

अपील संख्‍या-845/2002

(जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, मथुरा द्वारा परिवाद संख्‍या-160/1992 में पारित निणय/आदेश दिनांक 30.09.2000 के विरूद्ध)

                                    

मथुरा वृन्‍दावन डेवलपमेंट अथारिटी, द्वारा सेक्रेटरी, 32, सिविल लाइन्‍स, मथुरा।

अपीलार्थी/विपक्षी

बनाम

राजेन्‍द्र प्रसाद शर्मा पुत्र श्री लक्ष्‍मी नारायण शर्मा, ग्राम नगलता महस, पत्रालय बढ़ौर, जिला मथुरा।

                                     प्रत्‍यर्थी/परिवादी

समक्ष:-                           

1. माननीय श्री राजेन्‍द्र सिंह, सदस्‍य।

2. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री एन0सी0 उपाध्‍याय, विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित  :  कोई नहीं।

दिनांक:  19.08.2021  

माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य  द्वारा उद्घोषित                                                 

निर्णय

1.         परिवाद संख्‍या-160/1992, राजेन्‍द्र प्रसाद शर्मा बनाम सचिव, मथुरा वृन्‍दावन विकास प्राधिकरण में विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग, मथुरा द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश दिनांक 30.09.2000 के विरूद्ध यह अपील योजित की गई है। इस निर्णय/आदेश द्वारा विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग ने परिवाद स्‍वीकार करते हुए विपक्षी को आदेशित किया है कि परिवादी के भवन के मूल्‍य पर वर्ष 1988 से ब्‍याज लगाना अनुचित है। ब्‍याज दिनांक 04.01.1992 से लगाए जाने का आदेश दिया गया है तथा अंकन 300/- रूपये वाद व्‍यय अदा करने का भी आदेश दिया गया है।

2.         परिवाद के तथ्‍य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादी ने दिनांक 21.12.1983 को अंकन 5,000/- रूपये जमा करके एक एमआईजी भवन हेतु पंजीकरण कराया था। भवन की कीमत अंकन 70,000/- से 80,000/- रूपये बताई गई थी। इस भवन का मूल्‍य दिनांक 11.07.1987 को अंकन 1,10,000/- रूपये कर दिया गया तथा पुन: दिनांक 25.05.1988 को अंकन 1,20,000/- रूपये कर दिया गया। परिवादी ने दिनांक 07.07.1988 को अंकन 25,000/- रूपये जमा किए और विपक्षी से कब्‍जा देने हेतु पत्र लिखे, परन्‍तु उसे कोई कब्‍जा नहीं दिया गया। इस भवन का कब्‍जा उसे दिनांक 04.01.1992 को दिया गया और उसके साथ उसे अंकन 2,697/- रूपये लीजरेंट के तथा मासिक किस्‍त अंकन 1,940/- रूपये एवं अतिरिक्‍त भूमि का मूल्‍य अंकन 3,297.50 पैसे मांगे गए। परिवादी ने केवल अंकन 7,935.50 पैसे दिनांक 13.12.1992 को जमा कर दिए, जब कब्‍जा दिया गया तो उक्‍त भवन सही हाल में नहीं था, जिसकी शिकायत विपक्षी से की गई, किंतु उसकी शिकायत पर कोई ध्‍यान नहीं दिया गया।

3.         विपक्षी का कथन है कि भवन के मूल्‍य निर्धारित करने के प्रश्‍न को विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग द्वारा विचार में नहीं लिया जा सकता है।

4.         दोनों पक्षकारों की साक्ष्‍य पर विचार करने के पश्‍चात विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग द्वारा यह निष्‍कर्ष दिया गया कि भूखण्‍ड में निर्माण की अवधि तीन वर्ष तय की गई थी और विपक्षी द्वारा भवन का निर्माण विलम्‍ब से किया गया, इसलिए कब्‍जा देने की तिथि से ही भवन के मूल्‍य पर किस्‍तों पर ब्‍याज लगाया जाना चाहिए। तदनुसार उपरोक्‍त वर्णित निर्णय/आदेश पारित किया गया।

5.         इस निर्णय/आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि परिवादी द्वारा अत्‍यंत देरी से यानि 10 वर्ष पश्‍चात परिवाद प्रस्‍तुत किया गया है। घटिया सामग्री प्रयोग करने का कोई सबूत पत्रावली पर उपलब्‍ध नहीं है। विपक्षी की ओर से किसी भी प्रकार की सेवा में कमी नहीं की गई है। मूल्‍य से संबंधित विवाद उपभोक्‍ता मंच के क्षेत्राधिकार में नहीं आतें हैं।

6.         अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री एन0सी0 उपाध्‍याय उपस्थित आए। प्रत्‍यर्थी की ओर से पर्याप्‍त तामीला के बावजूद भी कोई उपस्थित नहीं हुआ। अत: केवल अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता की बहस सुनी गई तथा प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।

7.         अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि परिवादी को आवंटित भवन के मूल्‍यांकन के संबंध में विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग को विचार करने का अधिकार प्राप्‍त नहीं है।

8.         परिवाद में उल्‍लेख है कि प्राधिकरण ने दिनांक 11.07.1985 में भवन का अनुमानित मूल्‍य पंजीकरण पुस्तिका में दर्शाए गए मूल्‍य से 30,000/- रूपये अधिक बताया है। वर्ष 1991 तक भी कब्‍जा नहीं दिया गया। दिनांक 13.12.1992 को भवन का कब्‍जा दिया गया। अत: स्‍पष्‍ट है कि प्राधिकरण द्वारा आवंटी को समयावधि के पश्‍चात कब्‍जा दिया गया है, इसलिए विद्वान जिला उपभोक्‍ता ने समयावधि के पश्‍चात् कब्‍जा देने के कारण कब्‍जा देने की ति‍थि से ब्‍याज लगाए जाने का आदेश दिया है। यह किसी भी दृष्टि से त्रुटिपूर्ण नहीं है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता की ओर से जिन नजीरों का उल्‍लेख लिखित बहस में किया गया है, वे समस्‍त नजीरें भवन/भूखण्‍ड का मूल्‍यांकन निर्धारित करने के संबंध में हैं। यह सही है कि किसी भवन/भूखण्‍ड का मूल्‍यांकन केवल प्राधिकरण द्वारा सुनिश्चित किया जा सकता है और किसी उपभोक्‍ता मंच/आयोग द्वारा इस संबंध में कोई हस्‍तक्षेप नहीं किया जा सकता, परन्‍तु यदि नियत अवधि के पश्‍चात कब्‍जा प्रदान किया जाता है तब इस स्थिति के लिए स्‍वंय विकास प्राधिकरण उत्‍तरदायी है और तदनुसार कब्‍जा देने की तिथि से ही शेष किस्‍तों पर ब्‍याज प्राप्‍त करने के लिए अधिकृत है न कि आवंटन की ति‍थि से, इसलिए विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग के निर्णय में कोई अवैधानिकता नहीं है। अपील तदनुसार निरस्‍त होने योग्‍य है।

आदेश

 

9.         प्रस्‍तुत अपील निरस्‍त की जाती है।

           पक्षकार अपना-अपना अपीलीय व्‍यय स्‍वंय वहन करेंगे।

           आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।

 

                     

  (राजेन्‍द्र सिंह)                           (सुशील कुमार)

             सदस्‍य                                   सदस्‍य

 

 

 

लक्ष्‍मन, आशु0,

    कोर्ट-3

 
 
[HON'BLE MR. Rajendra Singh]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
JUDICIAL MEMBER
 

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