न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, चन्दौली।
परिवाद संख्या 57 सन् 2012ई0
अनीत कुमार यादव पुत्र स्व0 हवलदार ग्राम गौसपुर पो0 कादिराबाद जिला चन्दौली।
...........परिवादी बनाम
1-टाटा मोटर्स फाइनेंस लि0डी0जी0पी0 हाउस चतुर्थ तल पुराना प्रभा देवी मार्ग, मुम्बई400025 महाराष्ट्र।
2-पुनीत आटो मोबाइल्स विके्रता टाटा मैजिक मोटर वाहन पडाव जिला चन्दौली।
.............................विपक्षीगण
उपस्थितिः-
रामजीत सिंह यादव, अध्यक्ष
शशी यादव, सदस्या
निर्णय
द्वारा श्री रामजीत सिंह यादव,अध्यक्ष
1- परिवादी ने यह परिवाद विपक्षी से उसका वाहन जिस दशा में लिया गया है उसी दशा में वापस दिलाये जाने तथा समस्त शेष किस्त बिना व्याज के नियमानुसार लिये जाने एवं परिवादी को पहुंची मानसिक,शारीरिक आर्थिक क्षति हेतु रू0 50000/- दिलाये जाने हेतु प्रस्तुत किया है।
2- परिवादी ने संक्षेप में कथन किया है कि परिवादी ने अपने जीविकोपार्जन हेतु विपक्षी संख्या 2 से मिलकर एक वाहन फाइनेंस करने के लिए निवेदन किया। परिवादी के जरूरत को देखते हुए विपक्षी संख्या 2 ने उसे टाटा मैजिक सवारी गाडी फाइनेंस करने को राजी हो गया। परिवादी को विपक्षी ने बताया कि उक्त गाडी रू0 338428/- में मिलेगी जिसमे से रू0 235000/-फाइनेंस किया जायेगा और यह धनराशि रू0 9600/- की 34 मासिक किस्तों में अदा करना होगा।किन्तु प्रथम किस्त रू0 12028/- की होगी और रू0 103428/- डाउन पेमेन्ट होगी। परिवादी ने उपरोक्त डाउन पेमेन्ट विपक्षी के यहाॅं जमा करके टाटा मैजिक वाहन विपक्षी संख्या 1 से फाइनेंस कराया। परिवादी को विपक्षी ने यह भी आश्वासन दिया था कि उसके वाहन के रजिस्ट्रेशन एवं बीमा का कार्य भी कराया जाता है जिसके लिए अलग से निर्धारित शुल्क देना होगा। विपक्षी संख्या 2 के आश्वासन पर परिवादी ने उपरोक्त वाहन का पंजीयन एवं बीमा विपक्षी संख्या 2 से कराया। उक्त वाहन का नम्बर यू0पी0 67ए.टी.5521 है। परिवादी वाहन को चलाने लगा और नियमित किस्त अदा करने लगा। 20 मई 2011 को परिवादी का वाहन सकलडीहा से चन्दौली जा रहा था तो एक मोटर साइकिल सवार को बचाने के चक्कर में क्षतिग्रस्त हो गया जिसको बनवाने में परिवादी का काफी पैसा खर्च हो गया इस कारण से परिवादी अपने वाहन का 2 किस्त समय से जमा नहीं कर पाया। परिवादी वाहन क्षतिग्रस्त होने की सूचना विपक्षीगण को दे चुका था। दिनांक 4 जून 2011 को परिवादी सकलडीहा से रिजर्व भाडा लेकर सैयदराजा जा रहा था तो दिन में करीब 1.30 बजे विपक्षीगण के मसलमैन परिवादी के वाहन को रोकवाकर सभी सवारियों को उतार कर ड्राइवर से गाडी लेकर अपने एजेन्सी पर ले गये और परिवादी को मोबाइल पर बताया कि एजेन्सी पर आने पर बात होगी। परिवादी शाम
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को विपक्षी संख्या 2 के यहाॅं गया तो फाइनेंस मैनेजर ने बताया कि एक प्रार्थना पत्र के साथ दूसरे दिन आइये। परिवादी दिनांक 7 जून 2011 को विपक्षी संख्या 2 के फाइनेंस मैनेजर से मिला तो उसने कहा कि उक्त वाहन का समस्त कागजात एवं प्रार्थना पत्र दीजिए। इसे मुम्बई भेजना है वहाॅं से अनुमति मिलने पर आपका वाहन वापस कर दिया जायेगा। परिवादी कई महीने तक विपक्षीगण के एजेसी पर जाता रहा और अपने वाहन को शीघ्रातिशीघ्र देने की मांग करता रहा क्योंकि वाहन का किस्त एवं व्याज बढ रहा है और ज्यादा बिलम्ब होने पर परिवादी को काफी धन अदा करना होगा। किन्तु विपक्षीगण परिवादी को कई महिनों तक अपने एजेंसी पर दौडाते रहे और दिनांक 12-10-2012 को डाटकर भगा दिया और कहा कि तुम्हारे वाहन को बेच दिया है। परिवादी ने विपक्षीगण को रू0 103428/- नकद एवं 97000/- किस्त अर्थात कुल 200428/-अदा कर चुका है। इस आधार पर परिवादी ने अपना वाहन वापस दिलाये जाने तथा वाहन की शेष किश्ते बिना व्याज के लिये जाने एवं शारीरिक एवं मानसिक कष्ट हेतु क्षतिपूर्ति दिलाये जाने हेतु परिवाद दाखिल किया है।
3- विपक्षी संख्या 1 ने जबाबदावा प्रस्तुत किया है जिसमे संक्षेप में यह अभिकथन किया गया है कि परिवादी ने दिनांक 26-2-2010 को प्रश्नगत वाहन के सम्बन्ध में विपक्षी संख्या 1 से वित्तीय सुविधा प्राप्त किया था और परिवादी तथा विपक्षी के मध्य निष्पादित एग्रीमेन्ट उसी दिन निष्पादित हुआ था जिसमे क्लाज 23 में परिवादी तथा विपक्षी कम्पनी के मध्य यह शर्त तय पायी गयी कि यदि परिवादी व विपक्षी के मध्य कोई विवाद उत्पन्न होता है तो उसका निपटारा माध्यस्थम कार्यवाही के द्वारा किया जायेगा। अतः पक्षकारों द्वारा निष्पादित उपरोक्त अनुबंध में मध्यस्थता की शर्त होने के कारण विवाद का निपटारा माध्यस्थम एवं सुलह अधिनियम 1996 के तहत पंच कार्यवाही के द्वारा ही किया जा सकता है और मध्यस्थ का पंचाट पक्षकारों के मध्य अन्तिम एवं बाध्यकारी होगा। यदि पक्षकारों के मध्य आर्बीट्रेशन क्लाज के लागू होने के सम्बन्ध में कोई विवाद हो तो उसका निपटारा भी पंच कार्यवाही से ही किया जायेगा। परिवादी का अभिकथन है कि उपरोक्त अधिनियम की धारा 8 के अन्र्तगत उपभोक्ता फोरम भी न्यायालय की श्रेणी में आता है। विपक्षी का यह भी अभिकथन है कि प्रश्नगत वाहन कामर्शियल वाहन है परिवादी द्वारा उक्त वाहन को स्वयं द्वारा संचालित किया जाता है ऐसा अभिकथन परिवाद में अंकित नहीं है। अतः परिवादी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2(।)(डी) के तहत उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है। अतः उसका परिवाद पोषणीय नहीं है। पक्षकारों के मध्य निष्पादित अनुबंध की शर्तो तथा विधिक व्यवस्थाओं के तहत विपक्षी प्रश्नगत वाहन को विधिक रूप से अपने आधिपत्य में लेकर बकाया राशि की वसूली करने के लिए स्वतंत्र है जो किसी प्रकार से सेवा दोष की परिधि में नहीं आता है। परिवादी ने गलत एवं मनगढंत तथ्यों के आधार पर केवल विपक्षी को हैरान परेशान करने की नियत से यह परिवाद दाखिल किया है जो निरस्त किये जाने योग्य है।
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4- विपक्षी संख्या 2 की ओर से भी जबाबदावा दाखिल किया गया है जिसमे परिवाद के अभिकथनों को अस्वीकार करते हुए मुख्य रूप से यह कहा गया है कि प्रश्नगत वाहन कामर्शिय वाहन है और कान्ट्रैक्ट डिटेल स्टेटमेन्ट में भी उक्त वाहनका कामर्शिय उपयोग दर्ज है। परिवाद में यह कही नहीं कहा गया है कि परिवादी उक्त वाहन को स्वयं संचालित करता है। अतः परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है और उसका परिवाद विधिक रूप से पोषणीय नहीं है। विपक्षी का यह भी अभिकथन है कि वह टाटा मोटर्स कम्पनी का डीलर है और वह ग्राहकों की पसन्द के आधार पर उन्हें गाडियाॅं उपलब्ध कराता है और उनका रजिस्ट्रेशन कराता है लेकिन वाहन के फाइनेन्स के सम्बन्ध में ग्राहक अपने विवके के आधार पर निर्णय करता है। अतः विपक्षी संख्या 2 किसी फाइनेन्स कम्पनी के क्रिया कलाप के लिए उत्तरदायी नहीं है उसे मुकदमें में गलत तौर पर पक्षकार बनाया गया है और इस प्रकार परिवाद स्पेशल कास्ट सहित खारिज किये जाने योग्य है।
5- परिवादी की ओर से परिवादी अनीत कुमार यादव ने अपने परिवाद के समर्थन में अपना शपथ पत्र दाखिल किया है इसके अतिरिक्त दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में विक्रय प्रमाण पत्र,फार्म नं0 21,फार्म नं0 22,बीमा कवर नोट,प्रश्नगत वाहन का पंजीयन प्रमाण पत्र,फिटनेस प्रमाण पत्र,परमिट,पुनीत आटो मोबाइल्स का स्टालमेन्ट कार्ड, पुनीत आटो मोबाइल्स द्वारा पैसा प्राप्त करने की रसीदे,2 अदद्,टाटा मोटर्स फाइनेन्स लि0 द्वारा पैसा प्राप्त करने की रसीदे 9अद्द दाखिल किया गया है।
6- विपक्षी संख्या 1 की ओर से उनके लीगल हेड आलोक श्रीवास्तव का शपथ पत्र जबाबदावा के समर्थन में दाखिल है तथा दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में लोन एग्रीमेन्ट दिनांकित 26-2-2010की छायाप्रति,लोन गारन्टी एग्रीमेन्ट की छायाप्रति,टाटा मोटर्स फाइनेन्स लि0 के कान्ट्रैक्ट डिटेल की छायाप्रति,रिपेमेन्ट के विवरण की छायाप्रति,पावर आफ एटार्नी की छायाप्रति,आरबीट्रेटर के समक्ष दाखिल आरबीट्रैशन केस में पारित आदेश की छायाप्रति दाखिल की गयी है। उभय पक्ष की बहस सुनी गयी है, उनके द्वारा दाखिल लिखित तर्क तथा पत्रावली का सम्यक परिशीलन किया गया।
7- परिवादी के अधिवक्ता द्वारा यह तर्क दिया गया है कि परिवादी ने अपने जीविकोपार्जन हेतु विपक्षी संख्या 2 पुनीत आटो मोबाइल्स से एक टाटा मैजिक सवारी वाहन रू0 103500/- डाऊन पेमेन्ट जमा करके लिया था जिसका फाइनेन्स विपक्षी संख्या 1 टाटा मोटर्स फाइनेन्स लि0 द्वारा किया गया था और लोन की धनराशि 34 किस्तों में अदा की जानी थी। परिवादी अप्रैल सन् 2011 तक की किश्ते सद्भावना पूर्वक अदा करता रहा जिसका उल्लेख उसकी पासबुक में भी है। 20 मई सन् 2011को परिवादी का वाहन एक मोटरसाइकिल सवार को बचाने में क्षतिग्रस्त हो गया जिसे बनवाने में परिवादी का काफी पैसा खर्च हुआ और वह केवल 2 किश्त समय से अदा नहीं कर पाया और उसने वाहन क्षतिग्रस्त होने की सूचना भी उसी समय विपक्षीगण को दे दिया लेकिन 4 जून 11 को विपक्षीगण के
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मसलमैन परिवादी के उक्त वाहन को जबरदस्ती अपनी एजेन्सी पर ले गये और सूचना पर जब परिवादी वहाॅं पहुंचा तो उससे गाडी के समस्त कागजात मांगे गये और यह कहा गया कि कागजों को बम्बई भेजा जायेगा और वहाॅं से अनुमति मिलने के बाद परिवादी का वाहन वापस किया जायेगा। परिवादी के बार-बार निवेदन पर भी उसका वाहन वापस नहीं किया गया। विपक्षीगण उसे बार-बार दौडते रहे और अन्ततः दिनांक 12-10-2012 को परिवादी को डाटकर भगा दिये और कहा कि तुम्हारी गाडी बेच दी गयी है अब यहाॅं आओगे तो हाथ पैर तोड दिया जायेगा। परिवादी के अधिवक्ता का तर्क है कि परिवादी नियमित रूप से किश्त अदा करता रहा केवल वाहन क्षतिग्रस्त हो जाने के कारण 2 महीने की किश्त जमा नहीं कर पाया। विपक्षीगण ने विधि का उल्लंघन करके जबरदस्ती परिवादी का वाहन खिचवा लिये है जिससे परिवादी को घोर आर्थिक कठिनाई का सामना करना पड रहा है और उसे शारीरिक मानसिक क्षति पहुंची है अतः वह अपना वाहन वापस प्राप्त करने बिना व्याज के शेष किश्त अदा करने तथा मानसिक व शारीरिक कष्ट हेतु रू0 50000/- क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकारी है और उसका परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य है।
8- इसके विपरीत विपक्षीगण की ओर से यह तर्क दिया गया है कि प्रस्तुत मामले में परिवादी तथा विपक्षी के मध्य जो एग्रीमेन्ट निष्पादित हुआ था उसके क्लाज 23 में पक्षकारों के मध्य यह शर्त तय पायी गयी कि यदि उनके मध्य कोई विवाद उत्पन्न होता है तो उसका निपटारा मध्यस्थ कार्यवाही के द्वारा किया जायेगा। अतः प्रस्तुत मामले में विवाद का निपटारा मध्यस्थम एवं सुलह अधिनियम 1996 के तहत पंच कार्यवाही के द्वारा ही किया जा सकता है और मध्यस्थ का पंचाट पक्षकारों के मध्य अंन्तिम एवं बाध्यकारी होगा। परिवादी द्वारा अनुबंध की शर्तो की अवहेलना की गयी अतः विपक्षी संख्या 1अनुबंध की शर्तो के अनुसार आरबीट्रेशन की कार्यवाही किया और परिवादी को समुचित अवसर प्रदान करने के उपरान्त आरबीट्रेटर ने दिनांक 26-11-12 को एवार्ड पारित किया जा चुका है इसलिए इस फोरम के समक्ष दाखिल किया गया परिवाद अवैधानिक होने के कारण पोषणीय नहीं है। विपक्षी की ओर से एवार्ड की प्रतिलिपि संलग्नक-5 के रूप में दाखिल की गयी है।
9- इस सम्बन्ध में विपक्षी की ओर से माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग नई दिल्ली द्वारा इंस्टालमेन्ट सप्लाई लि0 बनाम कांगडा एक्स सर्विस मैन ट्रांसपोर्ट 1(2007)सी.पी.जे. 34 (एनसी) की विधि व्यवस्था का हवाला दिया गया है इस मुकदमे में माननीय राष्ट्रीय आयोग के समक्ष मुख्य विचारणीय प्रश्न यही था कि क्या आरबीट्रैशन एवार्ड पास होने के बाद भी उपभोक्ता फोरम द्वारा परिवाद के तहत मुकदमे का निस्तारण किया जा सकता है ?इसके उत्तर में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह विधिक सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया है कि जहाॅं आरबीट्रेटर द्वारा एवार्ड पारित कर दिया गया हो तब उपभोक्ता फोरम द्वारा उक्त एवार्ड को नजरअन्दाज करते हुए आदेश पारित नहीं किया जा सकता है।विपक्षीगण की ओर से उत्तर प्रदेश राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग द्वारा हिन्दुजा लैलेण्ड
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फाइनेन्स लि0 तथा अन्य बनाम राजेश तिवारी के मुकदमें में पारित विधि व्यवस्था का भी हवाला दिया गया है इस मुकदमें में भी माननीय राज्य आयोग द्वारा यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया है कि यदि पक्षकारों के मध्य निष्पादित एग्रीमेन्ट में आरबीट्रैशन क्लाज हो और उसके अन्र्तगत आरबीट्रैशन की कार्यवाही प्रारम्भ हो चुकी हो तब ऐसे मामले में जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा निर्णय किया जाना उचित नहीं है।
10- इसी प्रकार विपक्षी की ओर से (2007) 3 एस.सी. केसेज 686 एग्रीगोल्ड एग्जिम्स लि0 बनाम श्री लक्ष्मी निट्टस एण्ड वूभेन्स तथा अन्य की विधि व्यवस्था का भी हवाला दिया गया है जिसमे माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया है कि जहाॅं पक्षकारों के मध्य निष्पादित एग्रीमेन्ट में विवाद का निस्तारण आरबीट्रैशन के माध्यम से किये जाने की शर्त हो वहाॅं विवाद का निस्तारण आरबीट्रैशन के माध्यम से किया जाना बाध्यकारी होगा।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय, माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग नई दिल्ली तथा राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग उ0प्र0 द्वारा उपरोक्त विधि व्यवस्थाओं में प्रतिपादित सिद्धान्तों के प्रकाश में प्रस्तुत मुकदमें के तथ्यों एवं साक्ष्य का परिशीलन करने से यह स्पष्ट है कि प्रस्तुत मामले में पक्षकारों के मध्य जो एग्रीमेन्ट निष्पादित हुआ है उसके क्लाज 23 में स्पष्ट रूप से यह प्राविधान है कि पक्षकारों के मध्य उत्पन्न किसी भी विवाद का निस्तारण आरबीट्रैशन एण्ड कंन्सिलेयेशन एक्ट 1996 के अन्र्तगत लोन दाता द्वारा नियुक्त आरबीट्रैटर के द्वारा ही किया जायेगा। इसी प्रकार विपक्षी की ओर से एनेक्सर 5 के रूप में आरबीट्रैटर द्वारा दिये गये एवार्ड की प्रतिलिपि दाखिल की गयी है जिसके अवलोकन से यह स्पष्ट है कि प्रस्तुत मामले में विपक्षी टाटा मोटर्स फाइनेन्स लि0 द्वारा श्री कामेश्वर आर तिवारी एडवोकेट को प्रस्तुत मामले में एक मात्र आरबीट्रैटर के रूप में नियुक्त किया गया है और उन्होने दिनांक 26-11-12को एवार्ड पारित कर दिया है ऐसी स्थिति में उपरोक्त विधि व्यवस्थाओं में प्रतिपादित सिद्धान्तों के प्रकाश में यह फोरम इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि प्रस्तुत मामले में सुनवाई का क्षेत्राधिकार इस फोरम को प्राप्त नहीं है क्योंकि आरबीट्रैटर द्वारा एवार्ड पारित किया जा चुका है। अतः फोरम की राय में परिवादी का परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी का परिवाद निरस्त किया जाता है। मुकदमें के तथ्यों एवं परिस्थितियों को देखते हुए पक्षकार अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेगे।
(शशी यादव) (रामजीत सिंह यादव)
सदस्या अध्यक्ष
दिनांक-26-4-2016