राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-२५८/२०१६
(जिला आयोग, शाहजहॉपुर द्वारा परिवाद सं0-१०५/२०१४ में पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक ११-१२-२०१५ के विरूद्ध)
श्रीमती मुख्तरी पत्नी श्री जाबिल अली निवासी ग्राम गोरा रायपुर, परगना व तहसील पुवायां, जिला शाहजहॉपुर।
............. अपीलार्थी/परिवादिनी।
बनाम
परिवार सेवा क्लीनिक, राम निवास, टाउन हॉल रोड, थना सदर बाजार, शाहजहॉंपुर।
............ प्रत्यर्थी/विपक्षी।
समक्ष:-
१- मा0 श्री गोवर्द्धन यादव सदस्य।
२- मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री सुश्री तारा गुप्ता विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री शम्भू चतुर्वेदी विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक :- ०९-०२-२०२१.
मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला आयोग, शाहजहॉपुर द्वारा परिवाद सं0-१०५/२०१४ में पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक ११-१२-२०१५ के विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ की धारा १५ के अन्तर्गत संस्थित की गई है।
संक्षेप में अपीलार्थी का कथन है कि विद्वान जिला आयोग द्वारा विधि विरूद्ध, त्रुटियुक्त निर्णय पारित किया गया है जिसके द्वारा उन्होंने परिवादिनी के परिवाद को गलत तथ्यों पर निरस्त कर दिया। जिला आयोग द्वारा अपीलार्थी/परिवादिनी के कथनों को उचित रूप से मूल्यांकन नहीं किया गया। जिला आयोग द्वारा न्याय का हनन किया गया है तथा प्रत्यर्थी द्वारा आधारहीन लिखित कथन प्रस्तुत किया गया जो स्वीकार किए जाने योग्य नहीं था। विद्वान जिला आयोग ने पंजाब सरकार बनाम शिवराम, लीगल ईगल (एससी) ६४४ का सन्दर्भ लिया तथा प्रस्तुत तथ्यों की अनदेखी की। अपीलार्थी/परिवादिनी के कथनों को नहीं देखा। ऑपरेशन के पश्चात् गर्भधारण करने की
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सम्भावना हो सकती है किन्तु यह प्रत्येक मामले में लागू नहीं होता क्योंकि प्रत्येक मामले के तथ्य एवं परिस्थितियॉं अलग-अलग होती हैं। विद्वान जिला आयोग का निर्णय मात्र एक रूलिंग पर आधारित है और उन्होंने इसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं देखा। विद्वान जिला आयोग ने उस सहमति पत्र का संज्ञान लिया जिसमें यह लिखा था कि अंगर आपरेशन सफल नहीं हुआ तो क्लीनिक या डॉक्टर उत्तरदायी नहीं होंगे। यह प्रथा सभी क्लीनिकों और डॉक्टरों के सम्बन्ध में चल रही है किन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि अगर सेवा में घोर लापरवाही हो तब उन तथ्यों को नहीं देखा जाएगा। इन परिस्थितियों में मा0 राज्य आयोग से निवेदन है कि प्रश्नगत निर्णय दिनांक ११-१२-२०१५ को निरस्त किया जाए।
हमने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण को सुना तथा पत्रावली पर प्रस्तुत किए गए कथनों/साक्ष्यों एवं अभिलेखों का अवलोकन किया।
श्रीमती मुख्तारी द्वारा विद्वान जिला आयोग शाहजहॉंपुर में एक परिवाद पत्र प्रस्तुत किया गया जिसमें कहा गया कि उसके ०५ बच्चे हैं और वह नसबन्दी कराना चाहती है। परिवादिनी दिनांक ०१-०५-२०१० को विपक्षी के क्लीनिक गई और उसी दिन उसका नसबन्दी आपरेशन किया गया तथा उसे बताया बया कि उसे भविष्य में कोई सन्तान नहीं होगी। दो वर्ष के पश्चात् परिवादिनी को गर्भधारण का सन्देह हुआ तब दिनांक ०३-०६-२०१४ को जांच हेतु के0के0 अस्पताल मैटरनिटी सेण्टर पुवायां रोड, चिनौर, शाहजहॉपुर गई जहॉं पर उसे गर्भवती पाया गया और प्रसव का दिनांक ०९-११-२०१४ बताया गया। इस गर्भधारण से उसे मानसिक, शारीरिक आघात पहुँचा। वह परिवार की आर्थिक तंगी से परेशान है। उसे विपक्षी ने आश्वासन दिलाया था कि उसे गर्भधारण नहीं होगा। विपक्षी का यह कृत्य सेवा में कमी है।
विद्वान जिला आयोग शाहजहॉंपुर द्वारा दिनांक ११-१२-२०१५ को इस मामले में उभय पक्ष को सुनने के बाद निर्णय देते हुए परिवाद निरस्त किया गया जिससे व्यथित होकर वर्तमान अपील प्रस्तुत की गई है।
प्रत्यर्थी की ओर से बताया गया कि यदि कोई प्रक्रिया असफल होती है तब इसका
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यह अर्थ नहीं कि डॉक्टर दोषी है। डॉक्टर जब कोई ऐसी गलती करे जो सामान्य दूरदर्शी वाला डॉक्टर न करे तब त्रुटि मानी जाएगी। किसी भी हास्पिटल के डॉक्टर को मात्र इसलिए अज्ञानता का दोषी नहीं माना जा सकता कि कोई चिकित्सीय प्रक्रिया असफल हो गई। परिवादिनी दिनांक ०१-०५-२०१० को उसके क्लीनिक आयी थी और उसे बता दिया गया था कि पूर्ण सफलता की गारण्टी नहीं दी जा सकती। इसके पश्चात् परिवादिनी ने अपनी सहमति दी। इस मामले में प्रत्यर्थी द्वारा उत्तर प्रदेश राज्य परिवाद नियोजन कार्यक्रम के अन्तर्गत इन्फ्रास्ट्रक्चर सहयोग दिया जाता है। प्रक्रिया राजकीय डॉक्टर, डॉक्टर किरन बाला द्वारा की गई जो कुशल और अनुभवी डॉक्टर हैं। परिवादिनी से ०४ सप्ताह बाद आने के लिए कहा गया था किन्तु वह नहीं आयी। इसके पश्चात् परिवादिनी दिनांक २०-०३-२०१४ को प्रत्यर्थी के क्लीनिक आयी जिसमें प्रारम्भिक गर्भधारण के चिन्ह पाए गए और उसे बताया गया कि बंध्याकरण के असफल का मामला है और यदि वह गर्भपात कराना चाहती है तो नि:शुल्क गर्भपात कराया जाएगा, जिसके लिए परिवादिनी और उसके पति तैयार नहीं हुए। उस समय गर्भधारण की प्रारम्भिक अवस्था थी। बंध्याकरण की प्रक्रिया में असफल होने का खतरा रहता है। मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पंजाब राज्य व अन्य बनाम शिवराम २००५(७) एससीसी १ में यह कहा गया है :-
‘’25- We are, therefore clearly of the opinion that merely because a woman having undergone a sterilization operation became pregnant and delivered a child, the operating surgeon or his employer cannot be held liable for compensation of account of unwanted pregnancy or unwanted child. The claim in tort can be sustained only if there was negligence on the part of the surgeon in performing the surgery…..
28- The method of sterilization so far known to medical science which are most popular and prevalent are not 100% safe and secure. In spite of the operation having been successfully performed and without any negligence on the part of the surgeon, the sterilized woman can
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become pregnant due to natural causes. Once the woman misses the menstrual cycle, it is expected of the couple to visit the doctor and seek medical advice.
30- The cause of action for claiming compenstation in cases of failed sterilization operation arises on account of negligence of the surgeon and not on account of child birth. Failure due to natural causes would not provide any ground for claim. It is for the woman who has conceived the child to go or not to go for medical termination of pregnancy. Having gathered the knowledge of conception in spite of having undergone sterilization operation, if the couple opts for wearing the child, it ceases to be an unwanted child. Compensation for maintenance and upbringing of such a child cannot be claimed. ”
इस तरह के कई चिकित्सीय अध्ययन किए गए जो यह बताते हैं कि महिला बंध्याकरण में असफलता का खतरा रहता है। इस सम्बन्ध में सर नोर्मन जैफकोट ने प्रिंसिपल्स आफ गाइनेकोलाजी में कहा है ‘’ No method, however, is absolutely reliable and pregnancy is reported after sub-total and total hysterectomy, and even after hysterectomy with bilateral salpingectomy. The explanation of these extremely rare cases is a persisting communication between the ovary or tube and vaginal vault. Even when tubal occlusion operations are competently performed and all technical precautions taken, intrauterine pregnancy occurs aubsequently in 0.3% cases. This is because an ovum gains access to spermatozoa through a recanalized inner segment of the tube. ‘’ ।
प्रत्यर्थी एक चेरिटेबल सोसायटी है जो परिवार सेवा संस्थान के नाम से कई क्लीनिक चलाती है। इसका हैड आफिस नई दिल्ली में है और शाखाऐं कई शहरों में हैं,
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जिनमें से एक शाखा टाउन हाल रोड शाहजहॉंपुर में है। इस बात से इन्कार है कि उसके द्वारा कोई सेवा में कमी की गई क्योंकि महिला बंध्याकरण १०० प्रतिशत सफल नहीं होता। परिवादिनी के परिवाद पत्र का कोई चिकित्सीय आधार नहीं है और न ही किसी चिकित्सक की आख्या ही संलग्न है।
परिवादिनी जब दिनांक २०-०३-२०१४ को उसके क्लीनिक आयी थी तब उसे ०६ सप्ताह का गर्भ था। उसे इस बारे में बताते हुए कहा गया कि बंध्याकरण सफल नहीं हुआ और उसका गर्भपात नि:शुल्क कराया जाएगा, जिसके लिए वह तैयार नहीं हुई। यदि उसे बच्चा नहीं चाहिए था तब उसे गर्भपात कराना चाहिए था और जब उसने बच्चे को जन्म देने की इच्छा व्यक्त की तब वह हर्जाना के लिए दावा नहीं कर सकती। डॉक्टर की कोई लापरवाही नहीं है। उसके द्वारा ऐसा कोई कार्य नहीं किया गया जो एक दूरदर्शी डॉक्टर न करे। परिवादिनी को बंध्याकरण के समय बताया गया था कि इसमें पूर्ण सफलता का विश्वास नहीं दिया जा सकता। ऑपरेशन करने वाली डॉक्टर, डॉक्टर किरना बाला एक कुशल और अनुभवी डॉक्टर इस क्षेत्र की हैं। यदि बंध्याकरण असफल होता है और उसके बाद गर्भधारण होता है तब प्रत्यर्थी की क्लीनिक नि:शुल्क गर्भपात कराने की व्यवस्था करती है। परिवादिनी ने जिस घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए थे उसमें साफ लिखा है ‘’ if after the sterilization operation, i get pregnant, I shall report within two weeks of missed menstrual cycle to the Doctor/Clinic, and get abortion done at free of cost …….. ‘’
बंध्याकरण के ऑपरेशन १०० प्रतिशत सफल नहीं होते हैं और इस आपरेश के बाद यदि किसी महिला को मासिक धर्म नहीं होता तब उसे डॉक्टर के यहॉं आने की सलाह दी जाती है।
इस मामले में महिला जब गर्भधारण होने के सन्देह पर परिवार सेवा क्लीनिक पहुँची तब उससे स्पष्ट पूछा गया था कि यदि वह गर्भपात कराना चाहती है तब इसे नि:शुल्क किया जाएगा किन्तु उसके द्वारा गर्भपात कराने से मना किया गया। उसके द्वारा एक प्रार्थना पत्र दिया गया था जिसमें उसने कहा ‘’ मैंने बच्चा न होने का
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आपरेशन करवाया था वह फेल हो गया है। आज उसे बिना किसी मूल्य के सफाई कराने की सलाह दी गई है, लेकिन मैं अपनी मर्जी से सफाई नहीं कराना चाहती और अब परिवाद सेवा की कोई जिम्मेदारी नहीं है ‘’।
इस प्रकार स्पष्ट है कि अपीलार्थी ने स्वयं गर्भपात कराने से मना कर दिया जबकि उसे यह सेवा नि:शुल्क प्रदान की जा रही थी।
बंध्याकरण का आपरेशन कितना सफल होता है और कितना नहीं, इसका कोई निश्चित पैमाना नहीं है किन्तु भारतीय संविधान में नीति निदेशक तत्वों को देखते हुए और परिवार कल्याण कार्यक्रम को देखते हुए यदि बन्ध्याकरण उचित ढंग से कराया जाता है तो इस तरह के केस नहीं होते किन्तु कभी-कभी ऐसा भी केस आता है कि बंध्याकरण के बाद महिला गर्भवती हो जाती है। इस सम्बन्ध में दोनों पक्षों ने कई प्रकार के कई न्यायिक दृष्टान्त प्रस्तुत किए हैं। इन सभी न्यायिक दृष्टान्तों में श्री शोभा व न्य बनाम गवर्नमेण्ट एनसीटी आफ दिल्ली, एआईआर २००३ दिल्ली ३९९ :: (२००५) १ टी ए सी ७९९ जो मा0 उच्च न्यायालय दिल्ली का है, के मामले में मा0 उच्च न्यायालय दिल्ली ने कई न्यायिक दृष्टान्तों का सन्दर्भ लेते हुए और विभिन्न पुस्तकों का दृष्टान्त देते हुए और मा0 सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का भी सन्दर्भ लेते हुए अपने निष्कर्ष में यह कहा कि बंध्याकरण आपरेशन के असफल होने के पश्चात् भी गर्भधारण से बचा जा सकता था, इसलिए इस मामले में १०,०००/- रू० टोकन डेमेज दिया गया। वर्तमान मामले में अपीलार्थी को मात्र टोकन डेमेज २०,०००/- रू० देना पर्याप्त होगा किन्तु उक्त निर्णय वर्ष २००५ का है। वर्ष २००५ के प्राइस इण्डेक्स को देखते हुए उस समय के १०,०००/- रू० का मूल्य अब २०,०००/- रू० से अधिक है। अत: वर्तमान अपील इस सन्दर्भ में आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला आयोग, शाहजहॉपुर द्वारा परिवाद सं0-१०५/२०१४ में पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक ११-१२-२०१५ अपास्त करते हुए परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। प्रत्यर्थी को निर्देशित किया
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जाता है कि वह अपीलार्थी/परिवादिनी को क्षतिपूर्ति के रूप में टोकन २०,०००/- रू० का भुगतान निर्णय की तिथि से ३० दिन के अन्दर करे। इस राशि पर कोई ब्याज देय नहीं होगा।
अपील व्यय उभय पक्ष पर।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(राजेन्द्र सिंह) (गोवर्द्धन यादव)
सदस्य सदस्य
निर्णय आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(राजेन्द्र सिंह) (गोवर्द्धन यादव)
सदस्य सदस्य
प्रमोद कुमार,
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-१.