सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, झांसी द्वारा परिवाद संख्या 72 सन 2011 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 29.07.2015 के विरूद्ध)
अपील संख्या 1826 सन 2015
चोलामण्डलम एमएस जनरल इंश्योरंश कम्पनी लि0 रीजनल आफिस द्वितीय तल, 4 मोरी गोल्ड शाहनजफ रोड, सप्रूमार्ग, लखनऊ द्वारा सहायक प्रबन्धक (लीगल)
.......अपीलार्थी/प्रत्यर्थी
-बनाम-
1. प्राजीव दुवे पुत्र श्री नरायण दास, निवासी मकान नम्बर 197, चांद दरवाजा नई
बस्ती, झांसी।
2. प्रबन्धक जेएमके मोटर्स लि0 इलाइट क्रांसिंग, झांसी ।
. .........प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
मा0 श्री गोवर्धन यादव, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता - श्री टी0के0 मिश्रा ।
प्रत्यर्थी सं0 01 की ओर से विद्वान अधिवक्ता - श्री आलोक सिन्हा।
दिनांक:-05-08-2019
श्री गोवर्धन यादव, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, झांसी द्वारा परिवाद संख्या 72 सन 2011 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 29.07.2015 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी है ।
संक्षेप में, प्रकरण के आवश्यक तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने जेएमके मोटर्स लि0 इलाइट क्रांसिंग, झांसी से एक टाटा इंडिका डी0एल0एफ0 कार क्रय की और उसका बीमा चोलामण्डलम एमएस जनरल इंश्योरंश कम्पनी लि0 से दिनांक 23.10.2009 से दिनांक 22.10.2010 तक की अवधि हेतु कराया। उक्त बीमित कार दिनांक 13/14.03.2010 को प्रत्यर्थी/परिवादी के घर से चोरी हो गयी जिसकी सूचना थाना तथा बीमा कम्पनी को दी गयी । परिवादी का कहना है कि बीमा कम्पनी द्वारा जो पालिसी जारी की गयी थी उसका नम्बर 3362/00468903/000/00 परन्तु प्रश्नगत बीमा पालिसी प्रत्यर्थी/परिवादी को उपलब्ध नहीं करायी गयी, मात्र पालिसी नम्बर बताया गया। प्रत्यर्थी/परिवादी ने समस्त औपचारिकताऐं पूर्ण कर दावा प्रस्तुत किया लेकिन बीमा कम्पनी द्वारा विलम्ब से सूचना देने के आधार पर परिवादी का क्लेम खारिज कर दिया, जिससे क्षुब्ध होकर जिला मंच के समक्ष परिवाद योजित किया गया ।
जिला मंच के समक्ष विपक्षीगण की ओर से वादोत्तर दाखिल कर उल्लिखित किया गया कि परिवादी का प्रश्नगत बीमित वाहन दिनांक 13/14.03.2010 को चोरी गया था लेकिन इसकी सूचना तीन माह बाद दिनांक 16.07.2010 को दी गयी जिसके कारण परिवादी का क्लेम विलम्ब से सूचना देने के आधार पर खारिज कर दिया गया।
जिला मंच ने उभय पक्ष के साक्ष्य एवं अभिवचनों के आधार पर क्लेम का भुगतान '' नॉन स्टैण्डर्ड बेसिस'' के आधार पर करने का निर्देश देते हुए निम्न आदेश पारित किया :-
'' परिवादी का परिवाद विपक्षी संख्या 02 के विरूद्ध स्वीकार किया जाता है और विपक्षी संख्या 02 को निर्देशित किया जाता है कि इस निर्णय के दो माह के भीतर परिवादी को मु0 1,35,000.00 रू0 की धनराशि 12 प्रतिशत ब्याज की दर से दिनांक 14.03.2010 से भुगतान की तिथि तक अदा करे। मानसिक कष्ट हेतु 5000.00 रू0 तथा वाद व्यय हेतु 3000.00 रू0 भी परिवादी को अदा करेगा। विपक्षी संख्या 01 के वियद्ध परिवाद खारिज किया जाता है। ''
उक्त आदेश से क्षुब्ध होकर प्रस्तुत अपील चोलामण्डलम एमएस जनरल इंश्योरंश कम्पनी लि0 द्वारा प्रस्तुत की गयी है।
अपील के आधारों में कहा गया है कि जिला मंच का प्रश्नगत निर्णय विधिपूर्ण नहीं है तथा सम्पूर्ण तथ्यों को संज्ञान में लिए बिना प्रश्नगत निर्णय पारित किया गया है, जो अपास्त किए जाने योग्य है।
हमने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क विस्तारपूर्वक सुने एवं पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्यों का सम्यक अवलोकन किया।
पत्रावली के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि परिवादी ने अपनी इंडिका डी0एल0एफ0 कार का बीमा चोलामण्डलम एमएस जनरल इंश्योरंश कम्पनी लि0 से 23.10.2009 से 22.10.2010 तक की अवधि हेतु कराया था। उक्त बीमित कार बीमित अवधि में चोरी हो गयी । परिवादी का कहना है कि बीमा कम्पनी द्वारा जो पालिसी जारी की गयी थी उसे उपलब्ध नहीं कराया गया, मात्र पालिसी नम्बर बताया गया। प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा बीमा कम्पनी द्वारा विलम्ब से सूचना देने के आधार पर खारिज कर दिया ।
पत्रावली के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि परिवादी का प्रश्नगत बीमित वाहन दिनांक 13/14.03.2010 को चोरी गया था लेकिन इसकी विलम्ब से दिनांक 16.07.2010 को बीमा कम्पनी को दी गयी बीमा कम्पनी द्वारा यह तर्क लिया गया है कि चोरी की सूचना बीमा कम्पनी को विलम्ब से दी गयी है जबकि परिवादी द्वारा परिवाद पत्र में यह उल्लिखित किया गया है कि घटना की प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने के उपरांत बीमा कम्पनी को भी सूचित किया गया था । परिवादी द्वारा स्पष्ट रूप से कहा गया कि गाड़ी के साथ सारे कागजात चोरी हो गए थे फिर भी जानकारी के आधार पर बीमा कम्पनी को सूचना दी गयी थी अत: यह नहीं कहा जा सकता है कि परिवादी ने जानबूझ कर बीमा कम्पनी को चोरी की सूचना विलम्ब से दी है। परिवादी ने विलम्ब का समुचित स्पष्टीकरण दिया है । यहां यह उल्लेखनीय है कि इस संबंध में बीमा कम्पनी द्वारा सर्वेयर भी नियुक्त किया गया है और सारे अभिलेख उपलब्ध कराए जाने के उपरांत भी बीमा कम्पनी द्वारा बीमित धनराशि का भुगतान किया गया है। बीमा कम्पनी द्वारा जारी की गयी बीमा पालिसी के संबंध में कोई आपत्ति नहीं की गयी है।
प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा IV (2008) CPJ I (SC) नेशनल इंश्योरेंस कम्पनी लि0 बनाम नितिन खण्डेलवाल को उद्धरित किया गया है जिसमें मा0 उच्चतम न्यायालय ने यह अवधारित किया है कि चोरी के प्रकरणो में पालिसी की शर्तो का उल्लंघन विशेष महत्व नहीं रखता।
'' In the case in hand, the vehicle has been snatched or stolen. In the case of theft of vehicle breach of condition is not germane. The appellant Insurance Company is liable to indemnify the owner of the vehicle when the insurer has obtained comprehensive policy for the loss caused to the insurer.''
मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्णीत वाद 2010)2)टी0ए0सी0-374)एससी अमलेन्दु साहू बनाम ओरियंटल इंश्योरेंस कम्पनी लि0 के मामले में मा0 सर्वोच्च न्यायालय ने यह अवधारित किया है कि परिवादी द्वारा बीमा शर्तो का इस प्रकार उल्लंघन हुआ है, तो भी बीमा कम्पनी पूरे बीमा क्लेम को निरस्त नहीं कर सकती है तथा ऐसी बीमा क्लेम का निस्तारण नांन स्टैण्डर्ड बेसिस पर किया जाना चाहिए। जिला फोरम द्वारा अपने विवेच्य निर्णय में यह अवधारित किया गया है कि प्रश्नगत कार 1,80,000.00 रू0 हेतु बीमित थी। उक्त के आधार पर जिला मंच द्वारा बीमित धनराशि 1,80,000.00 का 75 प्रतिशत अर्थात 1,35,000.00 रू0 का भुगतान नांन स्टैण्डर्ड बेसिस पर करने का आदेश पारित किया है जो हमारे विचार से विधि-सम्मत है।
केस के तथ्य एवं परिस्थितियों के आधार पर हम यह पाते हैं कि जिला मंच द्वारा अपने विवेच्य निर्णय में बीमित धनराशि को 12 प्रतिशत ब्याज सहित अदा करने का आदेश पारित किया है, जो हमारे विचार से अधिक प्रतीत होता है उसे 06(छह) प्रतिशत में परिवर्तित करना न्यायोचित होगा तथा जिला फोरम द्वारा मानसिक कष्ट हेतु आरोपित 5000.00 रू0 का कोई औचित्य नहीं है, जो निरस्त होने योग्य है।
तदनुसार अपील आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, झांसी द्वारा परिवाद संख्या 72 सन 2011 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 29.07.2015 में आरोपित 12 प्रतिशत ब्याज दर को 06(छह) प्रतिशत में परिवर्तित किया जाता है एवं मानसिक कष्ट हेतु आरोपित 5000.00 रू0 की क्षतिपूर्ति को निरस्त करते हुए शेष आदेश की पुष्टि की जाती है।
पक्षकारान अपना-अपना अपील व्यय भार स्वयं वहन करेंगे।
(उदय शंकर अवस्थी) (गोवर्धन यादव)
पीठासीन सदस्य सदस्य
कोर्ट-2
(S.K.Srivastav,PA)