Uttar Pradesh

Chanduali

CC/17/2015

UTKARSH SINGH - Complainant(s)

Versus

POSTMASTAR - Opp.Party(s)

R.K Singh

27 Sep 2016

ORDER

District Consumer Disputes Redressal Forum, Chanduali
Final Order
 
Complaint Case No. CC/17/2015
 
1. UTKARSH SINGH
Vill&PO- Bllipur DIST-chandauli
Chandauli
UP
...........Complainant(s)
Versus
1. POSTMASTAR
Bllipur DIST-Chandauli
Chandauli
UP
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE Ramjeet Singh Yadav PRESIDENT
 HON'BLE MR. Lachhaman Swaroop MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
Dated : 27 Sep 2016
Final Order / Judgement

न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, चन्दौली।
परिवाद संख्या 17                               सन् 2015ई0
उत्कर्ष सिंह उम्र लगभग 11 वर्ष पुत्र रामप्रताप सिंह ग्राम व पो0बल्लीपुर तहसील सकलडीहा जिला चन्दौली जरिये संरक्षक पिता खास रामप्रताप सिंह पुत्र जगदीश सिंह।
                                      ...........परिवादी                                                                                                                                    बनाम
1-सुपरीटेन्डेन्ट आफ पोस्ट आफिस रीजनल कार्यालय वाराणसी।
2-पोस्ट मास्टर मुख्य डाकघर विश्वेश्वरगंज शहर वाराणसी।
3-पोस्ट मास्टर पोस्ट आफिस बल्लीपुर जनपद चन्दौली।
                                            .............................विपक्षीगण
उपस्थितिः-
 रामजीत सिंह यादव, अध्यक्ष
 लक्ष्मण स्वरूप,सदस्य
                               निर्णय
द्वारा श्री रामजीत सिंह यादव,अध्यक्ष
1-    परिवादी ने यह परिवाद विपक्षीगण पोस्ट आफिस द्वारा अपने कर्तव्य में लापरवाही से परिवादी को हुई आर्थिक,मानसिक क्षतिपूर्ति हेतु रू0 4,99000/- दिलाये  जाने हेतु प्रस्तुत किया है।
2-    संक्षेप में परिवादी की ओर से कथन किया गया है कि परिवादी का पुत्र उत्कर्ष सिंह का नामांकन/प्रवेश आवेदन पत्र सैनिक स्कूल सरोजनी नगर लखनऊ में कराने हेतु दिनांक 29-10-2014 को विपक्षी 2 के यहाॅं से सभी औपचारिकताओं को पूर्ण कर स्पीड पोस्ट आर्टिकल ई0यू0ओ0 43012567 लखनऊ के लिए भेजा, उक्त प्रवेश आवेदन पत्र प्रधानाचार्य सैनिक स्कूल सरोजनी नगर लखनऊ के यहाॅं पहुंचने की अन्तिम तिथि दिनांक 14-11-2014 थी, किन्तु वह वहाॅं नहीं पहुंचा और-55 दिन बाद दिनांक 26-12-2014 को प्रवेश आवेदन पत्र विपक्षी संख्या 3 के माध्यम से परिवादी को वापस प्राप्त हुआ। परिवादी का प्रवेश आवेदन पत्र दिनांक 20-12-2014 तक वाराणसी पोस्ट आफिस का चक्कर काटता रहा और विपक्षीगण की लापरवाही के कारण उक्त प्रवेश आवेदन पत्र अन्तिम तिथि दिनांक 14-11-2014 तक उपरोक्त स्थान पर नहीं पहुंचा। परिवादी का पुत्र एक होनहार मेधावी पढने में तीव्र बुद्धि का छात्र है जिसको अच्छी शिक्षा के लिए परिवादी सैनिक स्कूल में नामांकन कराना चाहता था जिसके लिए दो वर्ष से परिवादी अपने बच्चे को कोचिंग करा रहा था। किन्तु विपक्षीगण के उपेक्षात्मक कार्य एवं कर्तव्य में लापरवाही के कारण उसके पुत्र की अच्छी शिक्षा की मंशा पर पानी फिर गया जिसकी किसी भी रूप में भरपाई सम्भव नहीं है। परिवादी का पुत्र उम्र सीमा के कारण अब भविष्य में पुनः आवेदन नहीं कर सकता।सैनिक स्कूल में दाखिला हेतु नामांकन कक्षा 7 में होता है। कक्षा 7 में नामांकन होने के बाद कक्षा 12 तक की पढाई कम खर्च में पूर्ण हो जाती उसके बाद उच्च शिक्षा एवं अच्छे संस्थान में दाखिला में सुविधा मिलती किन्तु विपक्षीगण के लापरवाही के कारण परिवादी के

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बच्चे का भविष्य समाप्त हो गया। इस आधार पर विपक्षीगण से रू0 4,99000/- क्षतिपूर्ति दिलाये जाने हेतु परिवादी द्वारा  यह परिवाद प्रस्तुत किया है।
3-    विपक्षीगण की ओर से जबादावा प्रस्तुत करके संक्षेप में कथन किया गया है कि परिवादी ने प्रधान डाकघर वाराणसी में स्पीड पोस्ट संख्या ई.यू.ओ.43012567 आई.एन. दिनांक 20-10-2014 को बुक किया जो दिनांक 26-12-2014 को प्रेषक को वापस प्राप्त हुआ। परिवादी द्वारा जिस तिथि में अपना स्पीड पोस्ट बुक किया गया था उस दौरान स्पीड आर्टिकलों का अम्बार लगा हुआ था तथा किन्ही कारणों से परिवादी द्वारा बुक की गयी स्पीड पोस्ट आर्टिकल सही दिशा नहीं पकड सकी और वितरण में विलम्ब होने के कारण परिवादी को वापस प्राप्त हो गया। उक्त स्पीड पोस्ट के वितरण में विभाग द्वारा जानबूझकर उपेक्षा या लापरवाही नहीं बरती गयी है बल्कि यह एक संयोग था कि उक्त स्पीड पोस्ट समय से वितरित नहीं हो पाया। परिवादी का परिवाद अनुमान पर आधारित है सफलता के बाबत कथन साक्ष्य प्रमाणित नहीं है ।यह एक दुर्घटना कही जायेगी कि परिवादी के स्पीड पोस्ट के वितरण में विलम्ब हुआ जिसके लिए परिवादी विभागीय नियमानुसार तथा भारत के राजपत्र भाग द्वितीय खण्ड-3 दिनांक 21 जनवरी 1999 के प्रावधानों के अनुरूप क्षतिपूर्ति प्राप्त कर सकता है। भारतीय पोस्ट आफिस अधिनियम 1898 की धारा-6 के अनुसार किसी भी पोस्टल आर्टिकिल के रास्ते में नष्ट होने, बिलम्ब से वितरण होने या गलत वितरण होने के कारण उत्पन्न हुए नुकसान के लिए भारत सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी। इस कथन के साथ परिवादी के परिवाद को पोषणीय न मानते हुए परिवादी के परिवाद को खारिज किये जाने की प्रार्थना की गयी है।
4-    परिवादी की ओर से साक्ष्य के रूप में परिवादी उत्कर्ष सिंह के पिता राम प्रताप सिंह का शपथ पत्र दाखिल किया गया है तथा दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में हंस प्रताप सिंह के पत्र दिनांकित 6-1-2015 की छायाप्रति कागज संख्या 4/1 ता 4/17 तथा आवेदित फार्म की छायाप्रति कागज संख्या 4/18 दाखिल की गयी है।
5-    विपक्षी की ओर से प्रवर अधीक्षक डाकघर पूर्व मण्डल वाराणसी संतराम दूबे का शपथ पत्र जबाबदावा के समर्थन में दाखिल है इसके अतिरिक्त अन्य कोई साक्ष्य दाखिल नहीं है।
6-    उभय पक्ष की ओर से लिखित तर्क दाखिल किया गया है तथा उनकी मौखिक बहस भी सुनी गयी तथा पत्रावली का पूर्ण रूपेण परिशीलन किया गया।
7-    परिवादी की ओर से तर्क दिया गया कि परिवादी उत्कर्ष सिंह का सैनिक स्कूल सरोजनी नगर लखनऊ में एडमिशन कराने हेतु आवेदन फार्म स्पीड पोस्ट द्वारा दिनांक 29-10-2014 को भेजा गया था। आवेदन फार्म पहुंचने की अन्तिम तिथि दिनांक 14-11-2014 थी लेकिन विपक्षीगण की लापरवाही के कारण परिवादी का आवेदन फार्म गन्तव्य तक नहीं पहुंच सका और फार्म भेजने के लगभग 55 दिन बाद दिनांक 26-12-2014 को यह आवेदन फार्म वापस परिवादी को प्राप्त हुआ। 
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नेट द्वारा उक्त आर्टिकल का डिटेल ज्ञात करने पर पता चला कि परिवादी का आवेदन फार्म दिनांक 20-12-2014 तक वाराणसी पोस्ट आफिस में ही पडा रहा और आवेदन की अन्तिम तिथि बीत जाने के बाद जब यह आवेदन फार्म सैनिक स्कूल लखनऊ पहुंचा तो वहाॅं से इसे वापस कर दिया गया। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि लगभग 53 दिन तक परिवादी का आवेदन पत्र का लिफाफा वाराणसी पोस्ट आफिस में ही पडा रहा जो विपक्षीगण की घोर लापरवाही एवं दुर्भावना को साबित करता है, परिवादी ने अपना आवेदन फार्म अन्तिम तिथि से 15 दिन पहले भेजा था इसके बावजूद फार्म पोस्ट आफिस की लापरवाही के कारण समय से गन्तब्य तक नहीं पहुंचा जिसके कारण परिवादी का भविष्य पूरीतरह से खराब हो गया। परिवादी के अधिवक्ता का तर्क है कि परिवादी एक होनहार तथा मेधावी छात्र है और उसने सैनिक स्कूल मे ंप्रवेश हेतु काफी तैयारी किया था और कोचिंग भी कर रहा था। यदि समय से उसका आवेदन फार्म पहुंचा होता तो उसका एडमिशन सैनिक स्कूल में अवश्य हुआ होता और यदि एडमिशन होता तो कक्षा 7 से कक्षा 12 तक परिवादी रियायती दर पर शिक्षा प्राप्त करता किन्तु ऐसा न होने से परिवादी को काफी आर्थिक क्षति पहुंची है और परिवादी एवं उसके परिवारजन को मानसिक आघात भी पहुंचा है अतः परिवादी विपक्षीगण से क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकारी है।
8-    इसके विपरीत विपक्षीगण के अधिवक्ता द्वारा तर्क दिया गया है कि विपक्षीगण ने जानबूझकर कोई उपेक्षा या लापरवाही नहीं बरती है और न ही सेवा में कोई कमी की गयी है बल्कि जिस समय परिवादी का आवेदन पत्र पोस्ट आफिस के जरिये भेजा गया था उस समय स्पीड आर्टिकल्स का अम्बार लगा हुआ था और संयोगवश परिवादी का आर्टिकल सही दिशा नहीं पकड सका जिसके कारण समय से गन्तब्य तक नहीं पहुंच पाया। विपक्षी के अधिवक्ता का तर्क है कि स्पीड आर्टिकल के वितरण में बिलम्ब होने या समय से वितरित न होने की दशा में भारतीय पोस्टल अधिनियम 1898 की धारा 6 में विहित प्राविधान के अनुरूप विपक्षीगण को दायित्व से मुक्त रखा गया है अतः परिवाद उपरोक्त अधिनियम की धारा 6 से वाधित है। विपक्षीगण का यह भी तर्क है कि भारत संघ द्वारा निर्गत’’भारत का राजपत्र’’ दिनांकित 21-1-1999 में दी गयी  व्यवस्था के अनुरूप अदा किये गये कुल स्पीड पोस्ट शुल्क की राशि का दुगुना अथवा 1000/-रू0 इसमे जो भी कम हो कि क्षतिपूर्ति हो सकती है। अतः परिवादी का परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।
9-    उभय पक्ष को सुनने तथा पत्रावली के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि प्रस्तुत मामले में यह स्वीकृत तथ्य है कि परिवादी उत्कर्ष सिंह के सैनिक स्कूल लखनऊ में प्रवेश हेतु आवेदन पत्र स्पीड पोस्ट के जरिये दिनांक 29-10-2014 को प्रेषित किया गया था किन्तु उक्त आवेदन पत्र समय से अपने गन्तब्य तक नहीं पहुंच सका और करीब 55 दिन बाद दिनांक 26-12-2014 को यह आवेदन पत्र पुनः परिवादी को वापस प्राप्त हो गया जिसके कारण परिवादी का एडमिशन सैनिक स्कूल में नहीं हो सका।
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    प्रस्तुत मामले में पत्रावली में उपलब्ध सम्पूर्ण साक्ष्य के परिशीलन से यह स्पष्ट है कि विपक्षीगण के विभाग के लापरवाही के कारण परिवादी का आवेदन पत्र समय से गन्तब्य तक नहीं पहुंच सका। अतः विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या परिवादी को हुई क्षति के लिए कोई क्षतिपूर्ति प्रदान की जा सकती है और यदि हाॅं तो कितनी ?
    इस सम्बन्ध में विपक्षी की ओर से इण्डियन पोस्ट आफिस एक्ट 1898 की धारा 6 का हवाला दिया गया है जिसमे यह प्राविधान है कि यदि कोई पोस्टल आर्टिकल खो जाता है या उसकी गलत डिलेवरी हो जाती है या विलम्ब से डिलेवरी होती है तो सरकार इसके लिए उत्तरदायी नहीं होगी जब तक कि केन्द्रीय सरकार ने स्पष्ट रूप से अपने ऊपर कोई दायित्व न लिया हो और इसी प्रकार पोस्ट आफिस के अधिकारियों का भी उत्तरदायित्व तभी होगा जब उनके द्वारा कोई धोखाधडी की गयी हो या जानबूझकर कोई ऐसा एक्ट या डिफाल्ट किया गया हो। जिसके कारण पोस्टल आर्टिकल की डिलेवरी सही ढंग से नहीं हो सकी हो।
    इसी प्रकार भारत के राजपत्र दिनांकित 21-1-1999 में प्रकाशित भारतीय डाक घर नियम 1999 में यह प्राविधानित किया गया है कि घरेलू स्पीड पोस्ट वस्तु के गुम होने या उसके अन्तर वस्तुओं के गुम होने अथवा अन्तरवस्तुओं के क्षतिग्रस्त होने के मामले में क्षतिपूर्ति,अदा किये गये कुल स्पीड पोस्ट शुल्क की राशि का दुगुना अथवा रू0 1000/-,इनमे से जो भी कम हो, होगी। इस प्रकार उपरोक्त नियम से स्पष्ट है कि पोस्टल वस्तुत के गुम होने अथवा क्षतिग्रस्त होने के मामले में अधिकतम क्षतिपूर्ति पोस्टल शुल्क का दुगुना या 1000/-रू0,इनमें से जो कम ही हो सकती है।
    परिवादी की ओर से उपरोक्त विधियाॅ ंके विरूद्ध कोई विधि नहीं दिखायी गयी है अतः यह स्पष्ट है कि प्रस्तुत मामले में परिवादी को जो क्षति हुई है उसकी  क्षतिपूर्ति के रूप में उसके द्वारा स्पीड पोस्ट भेजने में जो खर्च हुआ है उसकी दुगुनी धनराशि प्राप्त हो सकती है। परिवादी की ओर से स्पीड पोस्ट भेजने की जो पोस्टल रसीद दाखिल की गयी है वह रू0 39/- की है। अतः परिवादी का आवेदन पत्र गन्तब्य तक न पहुंचने के कारण हुई क्षति की क्षतिपूर्ति के रूप में उसे विधिक रूप से रू0 78/- ही बतौर क्षतिपूर्ति प्रदान किया जा सकता है।
    किन्तु यह स्पष्ट है कि परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद दाखिल करने और उसे लडने ,आने-जाने में परिवादी को काफी समय व धन व्यय हुआ है। अतः सम्पूर्ण तथ्यों एवं परिस्थितियों को देखते हुए परिवादी को वाद व्यय एवं आवागमन व्यय के रूप में रू0 3000/- दिलाया जाना न्यायोचित प्रतीत होता है और इस प्रकार परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
                        आदेश
    परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि  वे इस निर्णय की तिथि से 2 माह के अन्दर परिवादी
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को उसको आवेदन पत्र गन्तब्य तक न पहुंचने के कारण जो क्षति हुई है उसकी क्षतिपूर्ति के रूप में रू0 78/- तथा वाद व्यय व आवागमन व्यय के रूप में रू0 3000/-(तीन हजार) अर्थात कुल रू0 3078/-(तीन हजार अठ्हत्तर रू0)अदा करें। यदि विपक्षीगण उपरोक्त अवधि में उपरोक्त धनराशि अदा नहीं करते है तो परिवादी निर्णय की तिथि से पैसा प्राप्त करने की तिथि तक उपरोक्त धनराशि पर 8 प्रतिशत साधारण वार्षिक की दर से व्याज प्राप्त करने का अधिकारी होगा। 

(लक्ष्मण स्वरूप)                                      (रामजीत सिंह यादव)
 सदस्य                                                अध्यक्ष
                                                  दिनांकः 27-9-2016

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE Ramjeet Singh Yadav]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. Lachhaman Swaroop]
MEMBER

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