(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-301/2009
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, सहारनपुर द्वारा परिवाद संख्या-87/2006 में पारित निणय/आदेश दिनांक 19.01.2009 के विरूद्ध)
1. टाटा मोटर्स लिमिटेड, कामर्शियल व्हीकल डिविजन, 5, जीवन तारा बिल्डिंग, पार्लियामेंट स्ट्रीट, नई दिल्ली एण्ड मेन्शन्ड इन द कम्लेंट एज मैनेजिंग डायरेक्टर, मै0 टाटा मोटर्स, मार्केटिंग एण्ड कस्टमर्स सपोर्ट, पैसेन्जर कार, बिजनेस यूनिट, 8th फ्लोर, सेण्टर नं0-1, वर्ल्ड ट्रेड सेण्टर, कफी परेड, मुम्बई।
2. ब्रांच मैनेजर, मैसर्स ओबराय मोटर्स, ब्रांच आफिस, अम्बाला रोड, सहारनपुर।
3. श्री राघव ओबराय, डायरेक्टर, मैसर्स ओबराय मोटर्स, पी.ओ. माजरा, सहारनपुर रोड, देहरादून।
अपीलार्थीगण/विपक्षीगण
बनाम
निशान्त गर्ग पुत्र श्री एस.पी. गर्ग, 31/60, गोविन्द गढ़, देहरादून, वर्तमान पता ई-3, मिशन कम्पाउण्ड, सहारनपुर (यू.पी.)।
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. माननीय श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
2. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री राजेश चड्ढा, विद्वान
अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री पियूष मणि त्रिपाठी, विद्वान
अधिवक्ता।
दिनांक: 05.10.2021
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-87/2006, निशान्त गर्ग बनाम ब्रांच मैनेजर, मै0 ओबराय मोटर्स तथा दो अन्य में विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग, सहारनपुर द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक 19.01.2009 के विरूद्ध यह अपील योजित की गई है। इस निर्णय/आदेश द्वारा विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए विपक्षीगण को निर्देशित किया गया है कि वह परिवादी को कार की कीमत अंकन 3,85,168/- रूपये तथा सेवा में कमी की मद में अंकन 10,000/- रूपये और वाद व्यय के रूप में अंकन 5,000/- रूपये अदा करें और परिवादी को दी गई पुरानी कार उससे वापस प्राप्त कर ली जाए। नियत अवधि में भुगतान न करने पर 10 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज अदा करने का भी आदेश दिया गया है।
2. परिवाद पत्र के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादी ने विपक्षी संख्या-1 से एक कार Indica DLG Euro (II) अंकन 3,85,168/- रूपये में क्रय करने हेतु बुक कराई थी। विपक्षी संख्या-1 ने ऋण स्वीकृत कराकर गाड़ी प्रदान करने का आश्वासन दिया था। विपक्षी संख्या-1 ने सम्पर्क करने पर बताया कि अंकन 3 लाख रूपये का लोन करा दिया गया है और दिनांक 21.01.2005 को विपक्षी संख्या-2 से कार प्राप्त करा देंगे। परिवादी ने विपक्षी संख्या-1 के कथन पर विश्वास करते हुए दिनांक 21.01.2005 को विपक्षी संख्या-2 के यहां से कार प्राप्त कर ली, परन्तु सहारनपुर के रास्ते में ही गाड़ी बार-बार बन्द होने लगी। स्टार्ट करने में दिक्कत आने लगी। अगले दिन परिवादी ने विपक्षी संख्या-1 के यहां गाड़ी का परीक्षण कराया, उनके द्वारा कार कनेक्शन में फॉल्ट बताया गया तथा ठीक कराना कहा गया, परन्तु गाड़ी लगातार खराब चल रही है। परिवादी ने पुन: दिक्कत के बारे में विपक्षी संख्या-1, 2 तथा 3 सभी से सम्पर्क किया, किंतु गाड़ी की स्टार्टिंग प्राबलेम ठीक नहीं हुई। गाड़ी का ECU (मिनी कम्प्यूटर) बिल्कुल खराब हो गया और मात्र 4388 किलोमीटर चलते ही उसका मोबिऑयल भी खत्म हो गया और गाड़ी क्रय करने के 08 माह के अन्दर ही सेल्फ खराब हो गया और दिनांक 22.08.2005 को गाड़ी का इंजन एवं सेल्फ दोनों बदलने पड़े। गाड़ी में कूलैन्ट व ट्रांसमिशन भी कम हो गया। गाड़ी का हॉज पाईप भी खराब हो गया। एलाईनमेंट भी खराब हो गया। यह सभी विपक्षीगण द्वारा ठीक किए गए, परन्तु गारण्टी पिरियड में होने के बावजूद परिवादी से अंकन 289/- रूपये वसूल लिए गए। इंजन बदलने के बाद भी गाड़ी की कमियां ठीक नहीं हुई हैं। ऑयल लीक होने लगा और गाड़ी चलने के काबिल नहीं रही। गाड़ी का एवरेज बहुत कम है। गाड़ी का फ्यूल सिस्टम उतार कर दो बार लूकस कम्पनी देहरादून को भेजा जा चुका है, जो आज भी ठीक से काम नहीं कर रहा है। दिनांक 21.10.2005 को बीमारी के कारण परिवादी अपनी पत्नी को डा0 के यहां लेकर चला तो गाड़ी रास्ते में ही बन्द हो गई। दिनांक 06.12.2005 को विपक्षी संख्या-2 ने पूर्ण परीक्षण के लिए गाड़ी को देहरादून बुलवाया, परन्तु कोई सुनवाई नहीं की और परिवादी वापस आ गया। परिवादी अत्यधिक मानसिक, आर्थिक और शारीरिक प्रताड़ना झेल रहा है, इसलिए परिवाद प्रस्तुत किया गया।
3. विपक्षी संख्या-1 का कथन है कि गाड़ी देहरादून से क्रय की गई है, इसलिए सहारनपुर स्थित जिला फोरम को सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है। विपक्षी संख्या-2 को गलत नाम से पक्षकार बनाया गया है। दिनांक 30.04.2005 को सहारनपुर में फ्रि सर्विस कराई गई, उस समय तक गाड़ी 2348 किलोमीटर चल चुकी थी। कूलेन्ट पाईप तथा क्लिप को फ्रि में बदल दिया गया। दिनांक 23.12.2005 को सर्विस के लिए आने पर 5142 किलोमीटर चल चुकी थी। इंजन की आवाज दुरूस्त कर दी गई थी। इसके बाद यह गाड़ी सहारनपुर सर्विस स्टेशन पर नहीं आई। इसके पश्चात सभी कथन असत्य हैं। गाड़ी का व्यावसायिक प्रयोग किया जा रहा है। परिवाद निरस्त होने योग्य है।
4. विपक्षी संख्या-2 एवं 3 द्वारा ठीक इसी प्रकार की आपत्ति की गई।
5. सभी पक्षकारों की साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग, सहारनपुर को क्षेत्राधिकार प्राप्त है। दूसरा इंजन बदलकर लगाया गया, उसने भी सही ढंग से कार्य नहीं किया। अनेकों बार की अन्य त्रुटियों का उल्लेख करते हुए प्रश्नगत कार को परिवादी से वापस प्राप्त कर कार की कीमत अदा करने संबंधी उपरोक्त निर्णय/आदेश पारित किया गया।
6. इस निर्णय/आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश विधि विरूद्ध है। यह निर्णय/आदेश मनमाने रूप से तथ्य एवं साक्ष्य के विपरीत पारित किया गया है। वाहन में वह त्रुटियां नहीं थीं, जिनका उल्लेख परिवादी द्वारा किया गया। लूक्स कम्पनी देहरादून फ्यूल सिस्टम का कार्य नहीं करती। जॉब कार्ड जो स्थिति को स्पष्ट करने के लिए सक्षम था, पर विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा कोई विचार नहीं किया गया।
7. अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री राजेश चड्ढा तथा प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री पियूष मणि त्रिपाठी की बहस सुनी गई तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
8. अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवादी द्वारा क्रय की गई कार में कोई निर्माण की त्रुटि नहीं है, इसलिए पूरे वाहन की कीमत को अदा करने का आदेश देना विधि विरूद्ध है। गाड़ी जब भी मरम्मत के लिए आई गाड़ी की मरम्मत की गई। इंजन कभी भी नहीं बदला गया। सहारनपुर स्थित मंच को सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं था।
9. प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि कार क्रय करने के दिन से ही गतिशील नहीं रही। कार के अनेक पार्ट्स स्वंय विपक्षी संख्या-1 द्वारा बदले गए। कार ने कभी भी ठीक से कार्य नहीं किया। चूंकि विपक्षी संख्या-1 के यहां से कार लेने का करार हुआ था। यद्यपि डिलिवरी विपक्षी संख्या-2 के यहां से कराई गई, इसलिए विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग, सहारनपुर में सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्त है।
10. सर्वप्रथम क्षेत्राधिकार के बिन्दु पर ही विचार किया जाता है। यह स्थिति स्वीकार्य है कि विपक्षी संख्या-1 मै0 ओबराय मोटर्स की शाखा जो सहारनपुर में कार्यरत है। परिवादी द्वारा इसी शाखा पर सम्पर्क किया गया। विपक्षी संख्या-1 द्वारा ही परिवादी के लिए ऋण स्वीकृत कराया गया, परन्तु कार की डिलिवरी विपक्षी संख्या-2 के यहां स्थित शोरूम से कराई गई। चूंकि विपक्षी संख्या-2 एवं 3 की शाखा सहारनपुर में स्थित हैं और इसी शाखा से क्रय करने की कार्यवाही प्रारम्भ हुई, इसलिए विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग, सहारनपुर को सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्त है।
11. स्वंय विपक्षीगण द्वारा प्रस्तुत किए गए लिखित कथन से यह तथ्य स्पष्ट होता है कि दिनांक 30.04.2005, 17.09.2005, 15.11.2005 तथा दिनांक 23.12.2005 को कार की मरम्मत की गई, जबकि स्वंय उसके लिखित कथन के अनुसार इस अवधि तक कार केवल 5922 किलोमीटर चली थी। इतने सीमित अवधि में चलने के बावजूद दिनांक 15.11.2005 के पश्चात अत्यधिक सीमित अवधि के अन्दर यानी दिनांक 23.12.2005 को ही कार की पुन: मरम्मत की गई।
12. अनेग्जर संख्या-3 गाड़ी की मरम्मत से संबंधित जॉब कार्ड है, जो दिनांक 22.01.2005 का है। इसमें पावर स्टेयरिंग ऑयल लीकेज की चर्चा है। अनेग्जर संख्या-4 दिनांक 23.02.2005 का जॉब कार्ड है, इसमें भी स्टेयरिंग प्राबलेम की चर्चा है। अनेग्जर संख्या-5 में इंजन लाईट और अनेग्जर संख्या-6 वाले जॉब कार्ड में इंजन की आवाज तथा ECU में कमी बताई गई। इस तथ्य से साबित होता है कि मिनी कम्प्यूटर दोषपूर्ण है। अनेग्जर संख्या-7 वाले जॉब कार्ड से PCU चेंज किया गया तथा FIP का भी परीक्षण किया गया, जिससे साबित होता है कि कार को संचालित करने वाला पार्ट्स त्रुटिपूर्ण है।
13. अनेग्जर संख्या-8 दिनांक 21.07.2005 के अवलोकन से ज्ञात होता है कि इंजन में कमी है तथा अनेग्जर संख्या-9 के जॉब कार्ड से High Engine Oil Comsumption, Wheel Alignment Starting Problem आदि का उल्लेख है। अनेग्जर संख्या-11 दिनांक 17.09.2005 के जॉब कार्ड में कूलेंट लीकेज का हवाला दिया गया है तथा अनेग्जर संख्या-15 दिनांक 03.09.2005 में इंजन बदलने का उल्लेख है तथा सेल्फ बदलने का भी उल्लेख है। इस मामूली अवधि के दौरान उपरोक्त दो महत्वपूर्ण पार्ट्स बदले जाने से साबित है कि वाहन में उत्पादन के समय से ही अन्तरनिहित कमियां थीं, इसलिए विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित आदेश में कोई हस्तक्षेप अपेक्षित प्रतीत नहीं होता है। अपील तदनुसार खारिज होने योग्य है।
आदेश
14. प्रस्तुत अपील खारिज की जाती है।
पक्षकार अपना-अपना अपीलीय व्यय स्वंय वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
निर्णय/आदेश आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2