राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-1473/2012
(जिला उपभोक्ता फोरम, फैजाबाद द्वारा परिवाद संख्या-१०७/२००८ में पारित निर्णय/आदेश दिनांक-०३/०२/२०१२ के विरूद्ध)
अयोध्या फैजाबाद डेवपलपमेंट अथारिटी लायड गेट चौक फैजाबाद द्वारा वाईस चेयरमैन।
.............अपीलार्थी.
बनाम
श्री नाथ बक्स सिंह अधिवक्ता श्री एम0पी0 सिंह निवासी एचआईजी २ कोशलपुरी फेज-१ फैजाबाद।
..............प्रत्यर्थी
समक्ष:-
- माननीय श्री राज कमल गुप्ता, पीठा0सदस्य।
- माननीय श्री महेश चन्द, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री वीर राघव चौबे विद्वान
अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित: नाथ बक्स सिंह।
दिनांक: 14/12/2017
माननीय श्री महेश चन्द, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील जिला उपभोक्ता फोरम, फैजाबाद द्वारा परिवाद संख्या-१०७/२००८ नाथ बक्स सिंह बनाम अयोध्या फैजाबाद डेवलपमेंट में पारित निर्णय/आदेश दिनांक-०३/०२/२०१२ के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में विवाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने अयोध्या फैजाबाद विकास प्राधिकरण की आवासीय योजना के अन्तर्गत पत्रकारों हेतु आरक्षित योजना में एचआईजी श्रेणी के एक भवन के आवंटन हेतु आवेदन किया। उसके लिए पंजीकरण/आवंटन शुल्क भी जमा किया। अपीलकर्ता अयोध्या विकास प्राधिकरण द्वारा दिनांक ०६/०१/२००४ को भवन आवंटित करते हुए भवन का अनुमानित मूल्य रू0 ०५ लाख प्रत्यर्थी/परिवादी को अवगत कराया। प्रत्यर्थी/परिवादी के अनुसार अपीलकर्ता द्वारा दिनांक ०६/०४/२००४ के एक वर्ष बाद प्रत्यर्थी/परिवादी को कब्जा देने का आश्वासन दिया गया था किन्तु अपीलकर्ता द्वारा समय से प्रश्नगत भवन का कब्जा नहीं दिया जा सका। प्रश्नगत भवन का भौतिक कब्जा प्रत्यर्थी/परिवादी को दिनांक ०४/०८/२००७ को दिया गया। प्रत्यर्थी/परिवादी के अनुसार भवन के निर्माण कार्य की गुणवत्ता बहुत ही असंतोषजनक थी। कब्जा लेते समय अपीलकर्ता द्वारा उसे ठीक कराने का आश्वासन दिया गया था किन्तु वह ठीक नहीं कराया गया। परिवादी के अनुसार अपीलकर्ता को दिनांक १५/०९/२००७ को एक पत्र लिखकर अवगत कराया गया कि उक्त भवन में शौचालय, बाथरूम अर्धनिर्मित हैं। बिजली की वायरिंग भी पूर्ण नहीं है। इसमें दरवाजे भी नहीं लगे हैं और उस पर पुताई भी नहीं हुई है। खिडकियों के शीशे भी टूटे हुए हैं। पानी की निवासी का पाईप नहीं था, बिजली आपूर्ति भी चालू नहीं थी। भवन का प्लास्टर मानक के अनुरूप नहीं था जिससे बालू नीचे गिर रही थी, कालोनी की सड़क टूटी हुई थी। स्ट्रीट लाईट और निर्माण कार्य में जो ईंटों का प्रयोग किया गया था वह भी घटिया स्तर की थी। परिवाद पत्र के अनुसार अपीलकर्ता द्वारा परिवादी से रू0 १,५७,७४७/- की धनराशि अधिक जमा कर ली गयी थी। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा कई बार मौखिक शिकायत कराने के बावजूद उपरोक्त उल्लिखित दोषों का निवारण अपीलकर्ता द्वारा नहीं किया गया। इससे क्षुब्ध होकर उपरोक्त उल्लिखित परिवाद जिला मंच के समक्ष योजित किया गया।
उक्त परिवाद का अपीलकर्ता द्वारा प्रतिवाद किया गया और कहा गया कि प्रत्यर्थी/परिवादी को उपरोक्त उल्लिखित भवन आवंटित किया गया था। प्रतिवाद पत्र में यह भी अभिकथन किया गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने भवन की कीमत समय पर जमा नहीं की। इसके कारण उस पर ब्याज तथा अतिदेय ब्याज देय था। इसके अतिरिक्त परिवाद पत्र में परिवादी के शेष कथनों को इनकार किया गया है।
विद्वान जिला मंच द्वारा उभयपक्षों के द्वारा प्रस्तुत किए गए साक्ष्यों का परिशीलन करने तथा उभय पक्षों के तर्कों को सुनने के बाद निम्नानुसार प्रश्नगत आदेश पारित किया गया-
‘’ विपक्षीगण को निर्देशित किया जाता है कि परिवादी से लिया गया ४४.४५ वर्गमीटर अतिरिक्त भूमि का मूल्य रूपये १०५५५९/-(रूपये एक लाख पांच हजार पांच सौ उनसठ मात्र) वापस करे तथा भवन निर्माण में प्रयोग की गयी घटिया सामग्री तथा अपूर्ण कार्य के मद में विपक्षी परिवादी को रू0 ५००००/-(पचास हजार रूपये) तथा समस्त धनराशि रू0 १,५५,५५९/-(एक लाख पचपन हजार पांच सौ उनसठ मात्र) पर दिसम्बर २००८ से वास्तविक भुगतान की तिथि तक परिवादी को १२ प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज भी अदा करे तथा क्षतिपूर्ति के मद में विपक्षी परिवादी को रूपये १०,०००-(दस हजार मात्र) का भी भुगतान आदेश की दिनांक से ३० दिन के अन्दर करे। परिवाद इस सीमा तक स्वीकार किया जाता है। ‘’
इस आदेश से क्षुब्ध होकर अपीलार्थी द्वारा यह अपील योजित की गयी है।
अपीलकर्ता की ओर से जो आधार लिए गए हैं उसमें कहा गया है कि विद्वान जिला मंच द्वारा तथ्यों की अनदेखी करके उक्त आक्षेपित आदेश पारित किया गया है जो विधि विरूद्ध एवं तथ्यों के विपरीत है। प्रश्नगत भवन का कब्जा प्रत्यर्थी को दिनांक ०४/०७/२००७ को दे दिया गया था। अपील में यह भी आधार लिया गया है कि प्रश्नगत भवन में ४४.४५ वर्ग मीटर भूमि अतिरिक्त है और उसका कुल मूल्यरू0 १,०५,५५९/-है जिसका प्रत्यर्थी/परिवादी ने भुगतान नहीं किया है। विद्वान जिला मंच ने इस तथ्य की अनदेखी की है और यह अवधारित करके भी त्रुटि की है। उक्त भूमि सड़क के लिए आरक्षित रखना चाहिए था । अपूर्ण कार्यों के लिए रू0 ५००००/- की क्षतिपूर्ति अधिरोपित करके भी विद्वान जिला मंच ने त्रुटि की है। अपील में यह भी आधार लिया गया है कि विद्वान जिला मंच द्वारा यह निर्देश देना त्रुटिपूर्ण है कि ९१.५८ वर्गमीटर भूमि सड़क के लिए छोडी जाए और सड़क की प्रकृति को न बदला जाए। यह प्राधिकरण का नीति विषय निर्णय है। उपरोक्त आधारों पर अपील स्वीकार करने की प्रार्थना की गयी है। अपीलकर्ता की अपील का प्रत्यर्थी की ओर से विरोध किया गया।
यह अपील सुनवाई हेतु इस पीठ के समक्ष प्रस्तुत हुई। अपीलकर्ता की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री वीर राघव चौबे उपस्थित हैं। प्रत्यर्थी नाथ बक्स सिंह स्वयं उपस्थित हैं। उनके तर्कों को सुना गया एवं पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का परिशीलन किया गया।
अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्ता ने तर्क प्रस्तुत करते हुए उन सभी बिन्दुओं को दोहराया है जो उनकी अपील में आधार लिए गए है। बहस के समय अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्ता ने तर्क प्रस्तुत किया है कि विद्वान जिला मंच ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम अन्तर्गत नियमावली १९८७ के नियम ४(१०) का उल्लंघन किया है और प्रश्नगत आदेश की सूचना प्रत्यर्थी/परिवादी को नहीं दी है। अपीलकर्ता ने विलंब से प्रस्तुत किए गए अपील के संबंध में विलंब के दोष को क्षमा करने की भी प्रार्थना की गयी। प्रश्नगत आदेश दिनांक ०३/०२/२०१२ का है जिसकी प्रमाणित प्रति उसे दिनांक १०/०२/२०१२ को प्राप्त हुआ है। विलंब के दोष को क्षमा किए जाने के प्रार्थना पत्र के साथ जो शपथ पत्र दिया गया है उसमें कहा गया है कि आदेश दिनांक ०३/०२/२०१२ की छायाप्रति दिनांक १०/०२/२०१२ को प्राप्त हो गयी थी किन्तु उस पर अपीलकर्ता विकास प्राधिकरण ने अपने अधिवक्ता से विधिक राय मांगी और उसके अधिवक्ता अपने काम से लखनऊ गए हुए थे और अपील समय पर दायर नहीं हो सकी। गर्मी की छुट्टियों में अपील दायर की गयी किन्तु वह दायर नहीं हो सकी। अपीलकर्ता द्वारा उपरोक्त कारण उल्लेख करते हुए अपील दायर करने मे हुए विलंब को क्षमा किए जाने की प्रार्थना की गयी है।
पत्रावली का परिशीलन किया गया। सम्यक विचारोपरांत यह पीठ इस मत की है कि विलंब के दोष को क्षमा किए जाने के लिए जो तर्क प्रस्तुत किए गए हैं और विलंब का दोष क्षमा करने के लिए प्रार्थना पत्र के साथ दिए गए शपथ पत्र में जो कारण प्रदर्शित किए गए हैं वह संतोषजनक नहीं है। यह प्राधिकरण के स्तर पर घोर लापरवाही का नमूना है जो क्षमा नहीं किया जा सकता। प्रत्येक दिन के विलंब का स्पष्टीकरण दिया जाना आवश्यक है। इस संबंध में मा0 सर्वोच्च न्यायालय के अनेक आदेश हैं कि विलंबके दोष को क्षमा किए जाने के लिए पर्याप्त एवं संतोषजनक कारण होने चाहिए। SLP NO 6609-661 of 2014 बृजेश कुमार तथा अन्य बनाम स्टेट आफ हरियाणा तथा अन्य का उदृरण उल्लेखनीय है किन्तु पीठ के समक्ष प्रस्तुत प्रकरण में ऐसा कोई विशेष कारण नहीं दिया गया है जो क्षमा किया जा सके। इसके अतिरिक्त गुण-दोष के आधार पर अपीलकर्ता द्वारा यह अवगत नहीं कराया गया है कि सड़क के क्षेत्रफल को किस प्रकार भवन में शामिल कर लिया गया और उसकी क्या आवश्यकता थी। सड़क का क्षेत्रफल सडक के लिए ही छोडा जाना चाहिए । यदि कोई नीति गत निर्णय सडक के क्षेत्रफल को भवन में शामिल किए जानेके लिए किया गया है तो उक्त निर्णय की प्रतिलिपि अपील के साथ अथवा प्रतिवाद पत्र के साथ दाखिल की जानी चाहिए थी कि ऐसा क्या कारण है कि सड़क के क्षेत्रफल को भवन की भूमि केसाथ शामिल किया गया है। यदि सड़क का क्षेत्रफल है तो उसको सड़क में ही इस्तेमाल किया जाए और भवन के साथ उसको इस्तेमाल न किया जाए। कब्जा पत्र की प्रतिलिपि भी पत्रावली पर नहीं है जिससे यह स्पष्ट होता हो कि कितनी भूमि का कब्जा प्रत्यर्थी/परिवादी को दिया गया है। इसलिए अतिरिक्त भूमि का मूल्य लिए जाने का भी कोई औचित्य नहीं है। अपीलार्थी ने सड़क की भूमि के भू-उपयोग परिवर्तित किए जाने संबंधित प्राधिकरण बोर्ड का कोई आदेश भी प्रस्तुत नहीं किया है। अत: सड़क की भूमि भवन के साथ शामिल नहीं की जा सकती। सड़क की भूमि को सड़क में ही शामिल किया जाए न कि आवंटी को दी जाए। जहां तक भवन में घटिया सामग्री और अपूर्ण कार्य पर हुए व्यय का संबंध है। इसके संबंध में सिविल इंजीनियर एस0के0 श्रीवास्तव की रिपोर्ट विद्वान जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत की गयी है जिसमें अभिकथन किया गया है कि भवन में घटिया सामग्री का प्रयोग किया गया है और निर्माण मानको के अनुसार नहीं है। खिड़कियों में शीशे न होने, दरवाजे न होना परिवादी द्वारा बतायी गयी कमियां थी इन कमियों को विद्वान जिला मंच ने अपने निर्णय में उल्लेख किया है। अत: रू0 ५००००/-की क्षतिपूर्ति का आदेश भी औचित्यपूर्ण हैं। प्रश्नगत आदेश में किसी प्रकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। अपीलकर्ता की अपील में बल नहीं है । ४४.४५ वर्गमीटर भवन में शामिल है तो प्राधिकरण को उस भूमि को वापिस अपनी सड़क में शामिल करना चाहिए। तदनुसार अपील निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
अपील निरस्त की जाती है। जिला उपभोक्ता फोरम, फैजाबाद द्वारा परिवाद संख्या-१०७/२००८ में पारित निर्णय/आदेश दिनांक-०३/०२/२०१२ की उपरोक्त उल्लिखित अवधारणा के साथ पुष्टि की जाती है।
उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
उभयपक्षों को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार नि:शुल्क उपलब्ध कराई जाए।
(राज कमल गुप्ता) (महेश चन्द)
पीठा0सदस्य सदस्य
सत्येन्द्र, आशु0 कोर्ट नं0-५