Uttar Pradesh

StateCommission

A/2013/28

Magma Leasing Ltd - Complainant(s)

Versus

Naseem Bano - Opp.Party(s)

R Chaddha

12 May 2017

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2013/28
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Magma Leasing Ltd
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Naseem Bano
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN PRESIDENT
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 12 May 2017
Final Order / Judgement

सुरक्षि‍त

 

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

 

                                                                                             अपील संख्‍या 28/2013

 

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, लखनऊ  प्रथम  द्वारा परिवाद संख्‍या-716/2008 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 08.08.2012 के विरूद्ध)

 

मैग्‍मा लीजिंग लिमिटेड द्धितीय तल वाईएमसीए बिल्डिंग 13, राना प्रताप मार्ग, लखनऊ 226001

 अपीलार्थी/विपक्षी

               

                               बनाम

नसीम बानो पत्‍नी  नसीमउलहक, निकट पोस्‍ट आफिस, बछरांवा, रायबरेली

                                                                                                                                                                              प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण

समक्ष:-

 माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष।

 

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित    : विद्वान अधिवक्‍ता श्री राजेश चड्ढा।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित      : श्री टी0एच0 नकवी।

 

दिनांक:.16-06-2017

   

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष द्वारा उदघोषित

                                                                                             निर्णय

 

          परिवाद संख्‍या 716 सन् 2008 नसीम बानो बनाम मैग्‍मा लीजिंग लिमिटेड में जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, प्रथम लखनऊ द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 08-08-2012 के विरूद्ध  यह  अपील  उपरोक्‍त परिवाद के विपक्षी, मैग्‍मा लीजिंग लिमिटेड की ओर से धारा 15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अन्‍तर्गत आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गयी है।

      

 

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आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद स्‍वीकार करते हुये अपीलार्थी/विपक्षी को आदेशित कि‍या है कि‍ वह 2,33,405/- रूपये 9 प्रतिशत वार्षिक की दर से परिवाद प्रस्‍तुत करने की तिथि से अदायगी की तिथि तक ब्‍याज सहित प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी को अदा करें। इसके साथ जिला फोरम ने यह भी आदेशित कि‍या है कि अपीलार्थी/विपक्षी 30,000/- रूपये शारीरिक एवं मानसिक कष्‍ट हेतु क्षतिपूर्ति और 3000/- रूपये वाद व्‍यय भी  प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी को अदा करेंगे।

     अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री राजेश चड्ढा और प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री टी०एच० नकवी उपस्थित आए।

     मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्‍तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।

     अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्‍त और सुसंगत तथ्‍य इस प्रकार हैं कि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी ने जिला फोरम के समक्ष परिवाद इस कथन के साथ प्रस्‍तुत किया है कि उसने विपक्षी की हायर परचेज स्‍कीम के अन्‍तर्गत मारूति वैन संख्‍या यू0पी0 33 एच-5786 उसने लोन लेकर क्रय किया। मारूति वैन का कुल मूल्‍य 2,33,405/- रूपये था। लोन के भुगतान की मासिक कि‍स्‍त 5,874/- रूपये थी। प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी मासिक कि‍स्‍तों का भुगतान नियमित रूप से करते हुये अपीलार्थी/विपक्षी को 1,07,200/- रूपये का भुगतान कर चुकी थी और अवशेष धनराशि के भुगतान हेतु व्‍यवस्‍था कर रही थी। इसी बीच दिनांक   09-12-2006 को एकाएक बिना कि‍सी पूर्व सूचना या नोटिस के अपीलार्थी/विपक्षी ने उसकी मारूति वैन को कब्‍जे में ले लिया जिसके सम्‍बन्‍ध में प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी  ने  प्रथम  सूचना  रिपोर्ट  थाना में दर्ज  कराया  और

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अपीलार्थी/विपक्षी के एरिया सेल मैनेजर से मिली जिन्‍होंने आश्‍वासन दिया कि‍ प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा कुछ पेमेण्‍ट कर दिया जाए तो वह अपनी रिपोर्ट मारूति वैन रिलीज करने हेतु देंगे और उसे अवशेष धनराशि जमा करने हेतु समय देंगे। तब प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी ने रूपये की व्‍यवस्‍था करना शुरू कि‍या, कुछ धनराशि जमा की फिर भी  अपीलार्थी/विपक्षी ने उसकी मारूति वैन को रिलीज नहीं कि‍या और एक के बाद एक बहाने करता रहा तथा वैन की नीलामी की प्रक्रिया शुरू कर दी। तब वह अपीलार्थी/विपक्षी के सीनियर मैनेजर से देय धनराशि के साथ मिली फिर भी उन्‍होंने धनराशि स्‍वीकार नहीं की और बहाने बनाने लगे तथा उसकी मारूति वैन की नीलामी हेतु विज्ञापन जारी कर दिया और अंत में मारूति वैन को उसके वास्‍तविक मूल्‍य से कम दाम पर  नीलाम कर दिया।

     परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी का कथन है कि‍ वह अवशेष धनराशि जमा करने को तैयार थी और अवशेष धनराशि जमा करने हेतु अपीलार्थी/विपक्षी के कार्यालय में दौड़ती रही परन्‍तु उन्‍होंने धनराशि जमा नहीं की जिससे उसका उत्‍पीड़न हुआ है और उसे मा‍नसिक कष्‍ट हुआ है।

     जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षी ने लिखित कथन प्रस्‍तुत कर परिवाद का विरोध कि‍या है और कहा है कि‍ प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अन्‍तर्गत उपभोक्‍ता नहीं है। उसने 1,60,000/- का लोन हायर परचेज फाइनेन्‍स स्‍कीम के अन्‍तर्गत मारूति वैन खरीदने हेतु लिया था जो 5,874/- रूपये की मासिक कि‍स्‍तों में अदा होना था। परन्‍तु व मासिक कि‍स्‍तें अदा नहीं कर सकी। अत: अपीलार्थी/विपक्षी ने दिनांक 25-11-2006 को वैन को अपने कब्‍जे में उस समय लिया जब मासिक किस्‍तों की धनराशि 21,679/- रूपये देय थी।

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लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा यह भी कहा गया है कि‍ वाहन को कब्‍जे में लेने के बाद दिनांक 20-12-2006 को विक्रय की नोटिस जारी की

गयी है जिसकी सूचना रजिस्‍टर्ड डाक से प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी को भेजी गयी है और उससे कुल धनराशि 1,00,289/- रूपये सात दिन के अन्‍दर जमा करने हेतु कहा गया है। परन्‍तु उसने यह धनराशि जमा नहीं की है। अत: वैन को नीलामी द्वारा दिनांक 29-12-2006  को 60,000/- रूपये में बेंचा गया है। मारूति वैन के विक्रय से प्राप्‍त यह धनराशि 60,000/- रूपये ऋण की धनराशि में समायोजित करने पर अब भी प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के जिम्‍मा 19,890/- रूपये अवशेष है।

     लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी ने यह भी कहा है कि‍ हायर परचेज एग्रीमेंट के अन्‍तर्गत वाहन को अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा  कब्‍जा में लिये जाने को सेवा में त्रुटि नहीं कहा जा सकता है। अत: परिवाद जिला फोरम के क्षेत्राधिकार से परे है।

     जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन व प्रस्‍तुत साक्ष्‍यों पर विचार करने के उपरान्‍त प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी द्वारा प्रस्‍तुत परिवाद आंशिक रूप से स्‍वीकार करते हुये उपरोक्‍त प्रकार से आदेश पारित कि‍या है।

     अपीलार्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि‍ जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश तथ्‍य और साक्ष्‍य के विरूद्ध है। उनका तर्क है कि‍ प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी द्वारा अवशेष कि‍स्‍तों के भुगतान में चूक कि‍ये जाने पर वाहन को करार के अनुसार कब्‍जे में लिया गया है और उसके बाद प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी को अवशेष धनराशि जमा करने हेतु नोटिस जारी की गयी है परन्‍तु उसने अवशेष धनराशि जमा नहीं की है तब वाहन की नीलामी दिनांक 29-12-2006 को की गयी है। वाहन की नीलामी में कि‍सी भी प्रकार की

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कोई त्रुटि नहीं की गयी है। अपीलार्थी/विपक्षी ने कि‍सी भी प्रकार से सेवा में कोई त्रुटि नहीं की है।

     प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्‍ता का कथन है कि‍ जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश साक्ष्‍य और विधि के अनुकूल है, इसमें हस्‍तक्षेप की आवश्‍यकता नहीं है।

     मैंने उभय पक्ष के तर्क पर विचार कि‍या है।

     स्‍वयं प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी ने परिवाद पत्र की धारा 5 में कथन कि‍या है कि‍ उसने 1,07,200/- रूपये ऋण धनराशि जमा की थी और सभी अवशेष धनराशि को क्‍लीयर करने हेतु धन की व्‍यवस्‍था कर रही थी। उभय पक्ष को यह स्‍वीकार है कि‍ प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी ने 1,60,000/- रूपये की ऋण धनराशि  अपीलार्थी/विपक्षी से दिनांक 31-01-2007 को लिया था और इस धनराशि से उपरोक्‍त मारूति वैन खरीदी थी। निर्विवाद रूप से 1,60,000/- रूपये की ऋण धनराशि ब्‍याज सहित 35 कि‍स्‍तों में देय थी और कुल ब्‍याज सहित देय धनराशि 2,05,590/- रूपये थी। निर्विवाद रूप से प्रत्‍येक मासिक कि‍स्‍त 5,874/- रूपये थी। अपीलार्थी/विपक्षी के अनुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी ने कि‍स्‍तों के भुगतान में चूक की थी और उसके जिम्‍मे मासिक किस्‍तों का 21,679/- रूपये बकाया था जिसके लिए वाहन अपीलार्थी/विपक्षी के एजेंट ने कब्‍जे में दिनांक 25-11-2006 को लिया है। अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा वाहन कब्‍जे में लिये जाने के समय प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के जिम्‍मे मासिक किस्‍तों की उक्‍त धनराशि अवशेष थी इस बात से प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी की ओर से इन्‍कार नहीं कि‍या गया है। इसके विपरीत‍ परिवाद पत्र के उपरोक्‍त कथन से यह स्‍पष्‍ट है कि‍ उसे यह तथ्‍य स्‍वीकार है कि‍ अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा वाहन जब कब्‍जे में लिया गया उस समय ऋण की  कि‍स्‍तों की धनराशि बाकी थी। अत: ऐसी स्थिति में

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हाइपोथिकेशन लोन एग्रीमेंट के अनुसार ऋण भुगतान में चूक होने पर अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा वाहन कब्‍जे लिया जाना अनुचित और अवैधानिक नहीं कहा जा सकता है।

जिला फोरम ने आक्षेपित निर्णय और आदेश में उल्‍लेख कि‍या है कि‍ प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी अवशेष धनराशि अदा कर अपना वाहन छुड़ाना चाहती थी परन्‍तु अपीलार्थी/विपक्षी ने उसे पर्याप्‍त समय नहीं दिया और वाहन को नीलाम कर दिया। जिला फोरम ने अपने आक्षेपित निर्णय और आदेश में यह भी उल्‍लेख कि‍या है कि‍ अपीलार्थी/विपक्षी ने प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी का वाहन 60,000/- रूपये में मनमाने ढंग से नीलाम कि‍या है।

     मैंने जिला फोरम के आक्षेपित निर्णय और आदेश की समीक्षा की है।

     अपीलार्थी/विपक्षी ने अपने लिखित कथन की धारा 4 में कहा है कि‍ दिनांक 25-11-2006 को वाहन की कि‍स्‍तों के भुगतान में चूक होने पर उनके एजेंट द्वारा वैन को कब्‍जे में लिया गया है और उस समय कुल 21,679/- रूपये की धनराशि की कि‍स्‍तें अवशेष थी। अपीलार्थी/विपक्षी ने परिवाद पत्र के लिखित कथन की धारा 4 में कहा है कि‍ दिनांक 20-12-2006  को प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी को रजिस्‍टर्ड डाक से नोटिस इस आशय की भेजी गयी की वह सम्‍पूर्ण धनराशि 1,00,289/- रूपये एक सप्‍ताह के अन्‍दर जमा करे, अन्‍यथा वाहन को नीलाम कर दिया जाएगा। प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी ने परिवाद पत्र में यह स्‍पष्‍ट रूप से कहा है कि‍ अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा वाहन को कब्‍जे में लिये जाने के बाद उसने अवशेष कि‍स्‍तों का भुगतान अपीलार्थी/विपक्षी को कर वाहन छुड़ाने का प्रयास कि‍या परन्‍तु उसे वाहन छुड़ाने का मौका दिये बिना अपीलार्थी/विपक्षी ने वाहन को नीलाम कर दिया। आक्षेपित निर्णय और आदेश में जिला फोरम ने अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा   प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी   के   एकाउंट

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स्‍टेटमेंट के आधार पर उल्‍लेख कि‍या है कि‍ अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा दिनांक  27-11-2006 को वाहन कब्‍जे में लिये जाने के बाद प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी ने 10,000/- रूपये जमा कि‍या है और उसके बाद अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा कथित रूप से दिनांक 29-12-2006 को वाहन नीलाम कि‍ये जाने के बाद 23,427/- रूपये अपीलार्थी/विपक्षी के यहॉं जमा कि‍या है। इस प्रकार यह स्‍पष्‍ट है कि‍ प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी अपीलार्थी/विपक्षी के ऋण की अवशेष धनराशि के भुगतान हेतु तत्‍पर एवं तैयार रही है और अपीलार्थी/विपक्षी के लिखित कथन की उपरोक्‍त धारा 4 से यह स्‍पष्‍ट है कि‍ उन्‍होंने वाहन रिलीज हेतु अवशेष कि‍स्‍तों के भुगतान की मॉंग करने के स्‍थान पर ऋण की सम्‍पूर्ण अवशेष धनराशि के भुगतान की शर्त रखी जबकि‍ ऋण करार के अनुसार ऋण की सम्‍पूर्ण धनराशि का भुगतान 31-12-2007 तक होना था। अत: वाहन कब्‍जे में लेने के बाद अपीलार्थी/विपक्षी ने वाहन रिलीज करने हेतु अवशेष किस्‍तों की धनराशि की मॉंग न कर जो सम्‍पूर्ण अवशेष धनराशि के भुगतान की शर्त वाहन रिलीज  हेतु रखा है वह अनुचित व्‍यापार पद्धति है और सेवा में त्रुटि है। इसके साथ ही यह उल्‍लेखनीय है कि‍ वाहन दो वर्ष पुराना था जिसे प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी ने वर्ष 2005 में 2,33,405/- रूपये में क्रय कि‍या था। अत: दो साल बाद उक्‍त वाहन 60,000/- रूपये में बेचा जाना भी युक्तिसंगत प्रतीत नहीं होता है। अपीलार्थी/विपक्षी ने यह दर्शित नहीं कि‍या है  कि‍ वाहन  की नीलामी के पहले उसका मूल्‍यांकन ए०आर०टी०ओ०  कार्यालय अथवा सक्षम व्‍यक्ति से कराया गया था तथा वाहन की नीलामी हेतु विज्ञापन प्रकाशित कि‍या गया था। अपीलार्थी/विपक्षी यह भी दर्शित करने में असफल रहा है कि‍ वाहन का नीलाम सार्वजनिक नीलामी के द्वारा कि‍या गया है।

    

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अत: सम्‍पूर्ण तथ्‍यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुये यह मानने हेतु उचित और युक्तिसंगत आधार है कि‍ अपीलार्थी/विपक्षी ने वाहन की नीलामी मनमाने ढंग से 60,000/- रूपये में की है जो वाहन के वास्‍तविक मूल्‍य से कम है। अत: इस आधार पर भी यह स्‍पष्‍ट है कि‍ अपीलार्थी/विपक्षी ने सेवा में त्रुटि की है।

     वाहन दो वर्ष पुराना था और 2,33,405/- रूपये में क्रय कि‍या गया था। अत: 20 प्रतिशत का डिप्रीशिएशन प्रतिवर्ष मानकर नीलामी के समय वाहन का मूल्‍य 1,50,000/- रूपये निर्धारित कि‍या जाना उचित है।

     उपरोक्‍त सम्‍पूर्ण विवेचना के आधार पर मैं इस मत का हॅू कि‍ वाहन का मूल्‍य 1,50,000/- रूपये मानते हुये उसे प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के ऋण में समायोजित कर शेष धनराशि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी को वापस कि‍या जाना आवश्‍यक  और उचित है।

     जिला फोरम ने आक्षेपित निर्णय और आदेश में जो वाहन का सम्‍पूर्ण मूल्‍य 2,33,405/- रूपये प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी को दिये जाने का आदेश दिया है, वह मेरी राय में उचित नहीं है। उपरोक्‍त सम्‍पूर्ण तथ्‍यों पर विचार करते हुये मेरी राय में उचित यही है कि‍ वाहन की नीलामी के समय वाहन का जो मूल्‍य था वह मूल्‍य प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी को दिया जाए और वाहन के मूल्‍य की धनराशि को उसके ऋण में समायोजित कर शेष धनराशि का भुगतान ब्‍याज सहित उसे कि‍या जाए।

     जिला फोरम ने प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी को जो 30,000/- रूपये मानसिक और शारीरिक कष्‍ट हेतु क्षतिपूर्ति  प्रदान की है उसे  कम  कर   20,000/-   रूपये

 

 

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निर्धारित कि‍या जाना उचित प्रतीत होता है। जिला फोरम ने 3000/- रूपये जो वाद व्‍यय दिया है वह उचित है, उसमें कि‍सी हस्‍तक्षेप की आवश्‍यकता नहीं है।

     जिला फोरम ने जो ब्‍याज दर 9 प्रतिशत निर्धारित की है वह उचित है।  उपरोक्‍त निष्‍कर्षों के आधार पर यह उचित प्रतीत होता है कि वाहन का मूल्‍य 1,50,000/- रूपये ऋण की अवशेष धनराशि में समायोजित करने के उपरान्‍त वाहन मूल्‍य की अवशेष धनराशि ब्‍याज सहित प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी को वापस की जाए। अपीलार्थी/विपक्षी के लिखित कथन से यह स्‍पष्‍ट है  कि वाहन 60,000/- रूपये में नीलाम होने पर प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के ऋण की अवशेष धनराशि 19,890/- रूपये बची थी। अत: वाहन के 1,50,000/ रूपये मूल्‍य पर सम्‍पूर्ण अवशेष धनराशि का समायोजन करने पर वाहन मूल्‍य की धनराशि रूपये 70,110/- शेष बचेगी। अत: यह धनराशि ब्‍याज सहित प्रत्‍यर्थी/ परिवादिनी  को दिलाया जाना उचित है। इसके साथ ही उपरोक्‍त निष्‍कर्ष के अनुसार उसे 20,000/- रूपये मानसिक व शारीरिक कष्‍ट हेतु क्षतिपूर्ति व 3000/- रूपये परिवाद व्‍यय दिलाया जाना उचित है।

     उपरोक्‍त निष्‍कर्षों के आधार पर अपील आंशिक रूप से स्‍वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश को संशोधित करते हुये अपीलार्थी/विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह ऋण में समायोजन के पश्‍चात वाहन मूल्‍य की शेष धनराशि 70,110/- रूपये  परिवाद प्रस्‍तुत करने की तिथि से अदायगी की तिथि तक 9 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्‍याज सहित अदा करें। इसके साथ ही अपीलार्थी/विपक्षी को यह भी आदेशित किया जाता है कि वह प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी को 20,000/- रूपये शारीरिक व मानसिक कष्‍ट हेतु क्षतिपूर्ति एवं 3000/- रूपये जिला फोरम द्वारा प्रदान किया गया वाद व्‍यय भी अदा करें।

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     अपील में उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

धारा 15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अन्‍तर्गत अपील में जमा धनराशि 25,000/- रूपये ब्‍याज सहित जिला फोरम को इस निर्णय के निस्‍तारण हेतु प्रेषित की जाएगी। 

      

 

 

 

             (न्‍याय‍मूर्ति अख्‍तर हुसैन खान)       

                     अध्‍यक्ष

 

कृष्‍णा– आशु0

कोर्ट-1

 

 


 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN]
PRESIDENT

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