Uttar Pradesh

StateCommission

A/1479/2016

Tata AIA Life Insurance Co. Ltd - Complainant(s)

Versus

Naresh Kumar Chaursiya - Opp.Party(s)

Prasoon Srivastava

25 May 2023

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/1479/2016
( Date of Filing : 29 Jul 2016 )
(Arisen out of Order Dated 13/04/2015 in Case No. C/369/2011 of District Allahabad)
 
1. Tata AIA Life Insurance Co. Ltd
14 Floor, Tower A Mumbai
...........Appellant(s)
Versus
1. Naresh Kumar Chaursiya
1039/712, Dara Ganj Allahabad
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Vikas Saxena PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MRS. SUDHA UPADHYAY MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 25 May 2023
Final Order / Judgement

(सुरक्षित)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

अपील सं0 :- 1479/2016

(जिला उपभोक्‍ता आयोग, इलाहाबाद द्वारा परिवाद सं0-369/2011 में    पारित निर्णय/आदेश दिनांक 13/04/2015 के विरूद्ध)

TATA AIA LIFE INSURANCE CO. LTD. Registered office at: 14th Floor, Tower A, Peninsula Business Park Senapati Bapat road, Lower Parel Mumbai-400013

                                                                                                         ……….Appellant  

Versus

Naresh Kumar Chaurasia S/O Late Sh. Gopal Ji Chaurasia R/O 1039/712, Darganj, Near Badi Kothi District-Allahabad (UP)-211005.

  •                                      Respondent  

समक्ष

  1. मा0 श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य
  2. मा0 श्रीमती सुधा उपाध्‍याय, सदस्‍य

उपस्थिति:

अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता:- श्री प्रसून श्रीवास्‍तव      

प्रत्‍यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता:- श्री प्रशांत कुमार

दिनांक:-28.06.2023

माननीय श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

  1.              जिला उपभोक्‍ता आयोग, इलाहाबाद द्वारा परिवाद सं0-369/2011 नरेश कुमार चौरसिया बनाम टाटा ए0आई0जी0 लाइफ इंश्‍योरेंस कम्‍पनी लिमिटेड में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 13/04/2015 के विरूद्ध यह अपील प्रस्‍तुत की गयी है।                  
  2.           संक्षेप में वाद के तथ्‍य इस प्रकार हैं कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी के पिता गोपाल जी चौरसिया ने दिनांक 23.07.2009 को टाटा ए0आई0जी0 लाइफ इंश्‍योरेंस कम्‍पनी लिमिटेड से 30,00,000/-रू0 का बीमा पॉलिसी लिया था, जिसका पॉलिसी नं0 U130400130 था। बीमा की प्रथम किस्‍त 50,000/-रू0 दिनांक 13.07.2009 को जमा किया था। प्रत्‍यर्थी/परिवादी के पिता का उक्‍त बीमा पॉलिसी टाटा ए0आई0जी0 लाइफ इंश्‍योरेंस कम्‍पनी लिमिटेड के एजेण्‍ट श्री भूपेन्‍द्र  सिंह द्वारा किया गया है। पॉलिसी को स्‍वीकार करने से पहले अधिकृत डॉक्‍टर द्वारा इंदिरा डायग्‍नोस्टिक सेंटर से पूर्णत: जांच करायी गयी। मेडिकल जांच से संतुष्‍ट होने के बाद कम्‍पनी ने प्रत्‍यर्थी/परिवादी के पिता का मात्र 10,00,000/-रू0 का बीमा पॉलिसी दिनांक 28.07.2009 को स्‍वीकार किया। प्रत्‍यर्थी/परिवादी के पिता की मृत्‍यु  बीमार होने के बाद दिनांक 21.10.2009 को हो गयी। प्रत्‍यर्थी/परिवादी के पिता ने उक्‍त पॉलिसी में नॉमित किया था, इसलिए प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने ए0आई0जी0 के एजेंट श्री भूपेन्‍द्र सिंह के जरिये क्‍लेम मांगा और प्रार्थना पत्र के साथ सभी मूल दस्‍तावेज जमा कर दिया, लेकिन कम्‍पनी ने काफी दिनों तक हीलाहवाली करती रही और जांच आदि का बहाना बनाती रही। इसी बीच प्रत्‍यर्थी/परिवादी से सादे कागज पर यह कहकर की पैसा देना है, हस्‍ताक्षर करा लिया था, लेकिन आज तक पैसा नहीं दिया। काफी दिनों बाद क्‍लेम देने से मना कर दिया और कहा कि आपके पिता को गंभीर रोग था और पूर्व चार वर्षों से डायबिटिक (शुगर रोग) से पीडि़त थे। प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने कम्‍पनी के उच्‍चाधिकारियों से शिकायत की, परंतु कोई कार्यवाही नहीं की गयी। प्रत्‍यर्थी/परिवादी के पिता को किसी प्रकार की कोई बीमारी नहीं थी। क्‍लेम न दिये जाने के कारण परिवाद योजित किया गया है।
  3.           अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा प्रतिवाद पत्र दाखिल किया गया है जिसमें यह कथन किया गया है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने विपक्षीगण से पॉलिसी ली थी, उनके द्वारा दिनांक 13.07.2009 को प्रपोजल फार्म भरा गया और 30,00,000/- (तीस लाख रूपया) की बीमा पॉलिसी के लिए आवेदन किया था, जिसका प्रीमियम 05 वर्ष के लिए 50,000/-रू0 वार्षिक था। प्रत्‍यर्थी/परिवादी नरेश कुमार चौरसिया उस पॉलिसी का नामिनी था। पॉलिसी जारी करने से पूर्व बीमित की सम्‍पूर्ण जांच की गयी तदोपरांत मृतक बीमाधारक को दिनांक 28.07.2009 को एक पॉलिसी वास्‍ते रू0 10,00,000/- दी गयी। विपक्षीगण द्वारा यह भी कहा गया कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने विपक्षी के यहां क्षतिपूति दावा दिनांक 08.12.2009 को प्रस्‍तुत किया, जिसमें यह कहा गया कि उसके बीमित पिता की मृत्‍यु दिनांक 21.10.2009 को हो गयी। विपक्षीगण का कथन है कि बीमित द्वारा प्रपोजल में यह तथ्‍य छिपाया गया कि वह चार साल से डायबिटीज से पीडित था, जिसका इलाज डॉ0 देवेन्‍द्र सामन्‍ता द्वारा 04 साल से किया जा रहा था। बीमाधारक की मृत्‍यु दिनांक 21.10.2009 को प्रीति हॉस्पिटल में हुई थी। विपक्षीगण द्वारा क्षतिपूर्ति का दावा निरस्‍त किया गया, परंतु दिनांक 15.03.2010 को 27,95,329/-रू0 का चेक प्रत्‍यर्थी/परिवादी को दिया गया। प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा इंश्‍योरेंस ओमबड्समैन के समक्ष अपना दावा प्रस्‍तुत किया गया जिसमें भी क्षतिपूर्ति का दावा खारिज किया गया। अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा सेवा में कमी नहीं की गयी। अत: परिवाद निरस्‍त किये जाने योग्‍य है।
  4.           जिला उपभोक्‍ता आयोग ने उभय पक्ष को सुनने के उपरान्‍त प्रत्‍यर्थी/परिवादी का परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध आंशिक रूप से किया है।       
  5.           प्रश्‍नगत निर्णय में प्रत्‍यर्थी/परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्‍वीकार करते हुए इसे बीमे की धनराशि रूपये 10,00,000/- तथा परिवाद दाखिल करने की तिथि से वास्‍तविक अदायगी तक 08 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्‍याज दिलाये जाने के आदेश पारित किये गये हैं। इसके अतिरिक्‍त क्षतिपूर्ति के रूप में 500/-रू0 एवं वाद व्‍यय के रूप में 500/-रू0 दिये जाने के आदेश पारित किये गये हैं। विपक्षी ने अपील मेमो का यह आधार लिया है कि बीमे के प्रस्‍ताव फार्म में स्‍टेप 10 के प्रश्‍न सं0 5सी तथा पश्‍न सं0 7 में जो प्रश्‍न पूछे गये हैं उनका बीमित ने नकारात्‍मक उत्‍तर दिये थे उक्‍त स्‍टेप 10 निम्‍नलिखित प्रकार से है:-

     Are you now or have you ever been diagnosed with any of the following conditions?

            (iii) Diabetes, thyroid disorders or any other bormonal disorder?  No

(Xii) In the last 5 years, have you attended any doctor or any other medical facility for investigation or diagnostic test (such as X-Ray, ultrasound, CT scan, biopsy, ECG, blood or urine, etc)?  No

  1.                  अपील में यह कथन भी किया गया है कि बीमित व्‍यक्ति की देखभाल करने वाले चिकित्‍सक डॉक्‍टर देवेन्‍द्र सामन्‍ता जो बीमित के पारिवारिक चिकित्‍सक हैं। उनके द्वारा दिनांक 03.12.2009 को भरकर दिया गया है, जिन्‍होंने यह कथन किया है कि बीमित डायबिटीज मैलिटस टाइप फोर का मरीज चार साल से था तथा टेबलेट डायबिटोल का सेवन कर रहा था। संलग्‍नक ए/6 के रूप मे उक्‍त वक्‍तव्‍य प्रस्‍तुत किया गया है। बीमाकर्ता ने इस मामले की विवेचना आरएल एसोसिएट्स, कन्‍सलटेंट इंजीनियर तथा लॉस एसेसर से कराया। बीमित व्‍यक्ति के पारिवारिक सदस्‍यों, पड़ोसियों तथा मित्रों ने भी इस तथ्‍य को विवेचना के दौरान साबित किया कि बीमित व्‍यक्ति डायबिटीज मैलिटस तथा रक्‍तचाप की बीमारी से ग्रसित था। बीमे की संविदा सदभावना पर आधारित होती है। बीमित व्‍यक्ति ने अपनी बिमारियों को छुपाकर बीमा की शर्तों का उल्‍लंघन किया। विद्धान जिला उपभोक्‍ता फोरम ने इस तथ्‍य को अनदेखा किया है कि बीमित व्‍यक्ति ने बीमा पॉलिसी अपनी बीमारी संबंधी आवश्‍यक तथ्‍य  को छुपाकर किया था। उक्‍त तथ्‍य को छुपाये जाने से बीमा पॉलिसी सदभावना पर आधारित नहीं मानी जा सकती है। अपीलार्थी ने मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय एवं मा0 राष्‍ट्रीय आयोग के अनेक निर्णयों को अपने अभिवचन मेमो आफ अपील में उद्घृत करते हुए अपील को स्‍वीकार किये जाने एवं प्रश्‍नगत निर्णय व आदेश को अपास्‍त किये जाने की प्रार्थना की है।
  2.           अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्‍ता श्री प्रसून श्रीवास्‍तव एवं प्रत्‍यर्थी के विद्धान अधिवक्‍ता श्री प्रशांत कुमार को विस्‍तार से सुना गया। पत्रावली पर उपलब्‍ध समस्‍त अभिलेख का अवलोकन किया गया।
  3.           अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी द्वारा मुख्‍य रूप से प्रश्‍नगत पॉलिसी सं0 U130400130 के एप्‍लीकेशन फार्म फॉर डेथ क्‍लेम पर आधारित किया, जिसमें डॉ0 सामन्‍ता के0के0 हॉस्पिटल इलाहाबाद द्वारा बीमित का इलाज करना दर्शाया गया है। यह पत्र प्रत्‍यर्थी/परिवादी नरेश कुमार चौरसिया द्वारा भरा गया एवं हस्‍ताक्षरित है। मेमो आफ अपील के साथ प्रूफ ऑफ डेथ (फिजीशियन स्‍टेटमेंट) दिनांकित 03.12.2007 पर भी आधारित किया गया है, जिसकी प्रतिलिपि अभिलेख पर है। यह पत्र डॉ0 देवव्रत सामन्‍ता द्वारा भरा गया है। इस प्रपत्र में बीमित गोपाल जी चौरसिया को चिकित्‍सक डॉ0 डी0 सामन्‍ता द्वारा 04 वर्ष से स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी हिदायतें देना दर्शाया गया है एवं स्‍वयं वर्ष 2005 से 2009 के मध्‍य गोपाल जी चौरसिया उक्‍त का इलाज करना बताया गया है, किन्‍तु उक्‍त चिकित्‍सक का पूर्व के कोई प्रपत्र अभिलेख पर नहीं है। एकमात्र यही फिजीसियन स्‍टेटमेंट की प्रतिलिपि ही अभिलेख पर है। विद्धान जिला उपभोक्‍ता फोरम ने यह तर्क दिया है कि ‘’विपक्षी के अधिवक्‍ता ने यह स्‍वीकार किया है कि डॉ0 सामन्‍ता ने प्रीति अस्‍पताल में बीमाधारक का कोई इलाज नहीं किया था और न ही प्रीति हॉस्पिटल में इलाज के कागजातों में सामन्‍ता का कोई उल्‍लेख है। पत्रावली पर प्रीति हॉस्पिटल द्वारा दिये गये डेथ सर्टिफिकेट के अवलोकन से यह स्‍पष्‍ट होता है कि बीमाधारक का इलाज डॉ0 गुप्‍ता द्वारा किया जा रहा था। अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा इस बात का कोई स्‍पष्‍टीकरण नहीं दिया    गया है कि बीमाधारक की मृत्‍यु के समय डॉ0 गुप्‍ता द्वारा इलाज किया जा रहा था न कि डॉ0 सामन्‍ता द्वारा, तो किन परिस्थितियों में तथा किस कारण से डॉ0 सामन्‍ता द्वारा यह प्रूफ आफ डेथ सर्टिफिकेट दिया गया है। अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा पत्रावली पर डॉ0 सामन्‍ता द्वारा दिया गया सर्टिफिकट दाखिल किया गया है उसने लिखा है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी का पिछले 04 सालों से डायबिटीज का इलाज कर रहे थे। यह सर्टिफिकेट अपीलार्थी/विपक्षी के इन्‍वेस्‍टीगेटर आर0एल0 एसोसिएट द्वारा डॉ0 सामन्‍ता से प्राप्‍त किया था।‘’
  4.           विद्धान जिला उपभोक्‍ता फोरम द्वारा यह भी अंकित किया गया है कि इन्‍वेस्‍टीगेटर के उक्‍त रिपोर्ट के आधार पर प्रत्‍यर्थी/परिवादी का क्‍लेम बीमा कम्‍पनी द्वारा निरस्‍त कर दिया गया, लेकिन रिपोर्ट के समर्थन में इन्‍वेस्‍टीगेटर आर0एल0 एसोसिएट की ओर से कोई शपथ पत्र पत्रावली पर दाखिल नहीं है, न ही डॉ0 सामन्‍ता का शपथ पत्र पत्रावली पर दाखिल किया गया है। यदि डॉ0 सामन्‍ता पिछले 04 वर्षों से प्रत्‍यर्थी/परिवादी का इलाज कर रहे थे तो उनके अभिलेखों में बीमाधारक की मेडिकल फाइल उपलब्‍ध होनी चाहिए थी, किन्‍तु बीमाधारक के चिकित्‍सा का कोई चिकित्‍सीय प्रमाण डॉ0 सामन्‍ता या अस्‍पताल के पर्चे प्रस्‍तुत करके अपीलार्थी/विपक्षी ने साबित नहीं किया है जबकि इसका सबूत का भार विपक्षी बीमाकर्ता पर है क्‍योंकि यह स्‍थापित विधि है कि बीमाधारक द्वारा बीमे की शर्तों का उल्‍लंघन करने का आक्षेप यदि बीमाकर्ता लगाता है तो इसको सिद्ध करने का भार बीमाकर्ता पर ही होता है। इस संबंध में मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा पारित निर्णय स्‍कैण्डिया इन्‍श्‍योरेंस कम्‍पनी प्रति कोकिलाबेन चन्‍द्र बदन प्रकाशित ए0आई0आर0 1987 (एस.सी.) पृष्‍ठ 1184, काशीराम यादव प्रति ओरियण्‍टल फायर एण्‍ड जनरल इंश्‍योरेंस कम्‍पनी लिमिटेड प्रकाशित ए0आई0आर0 1989 (एस.सी.) पृष्‍ठ 2002 तथा निर्णय सोहन लाल पासी प्रति पीशेष रेड्डी ए0आई0आर0 1986 (एस.सी.) पृष्‍ठ 2627 ने मा0 सर्वोच्‍च  न्‍यायालय द्वारा इस बिन्‍दु पर निष्‍कर्ष दिया है कि यदि बीमाकर्ता बीमाधारक द्वारा बीमा की शर्तों का उल्‍लंघन करने का आक्षेप करता है तो इस तथ्‍य को सिद्ध करने का भार बीमाकर्ता का ही होता है। प्रस्‍तुत मामले में बीमाकर्ता बीमित व्‍यक्ति द्वारा बीमारी छिपाये जाने का आक्षेप किया है किन्‍तु उसके द्वारा ठोस एवं प्रमाणिक साक्ष्‍य से इस तथ्‍य को साबित नहीं किया गया है कि वास्‍तव में इस बीमारी का इलाज बीमित व्‍यक्ति ने कराया था एवं जानबूझकर इस तथ्‍य का बीमा के प्रस्‍ताव फार्म को भरते समय जानबूझकर छिपाया गया था।
  5.           अत: ठोस एवं प्रमाणिक साक्ष्‍य के अभाव में इस मामले में यह नहीं माना जा सकता था कि बीमित व्‍यक्ति ने अपनी बीमारी डायबिटीज मैलिटस को जानबूझकर बीमा प्रस्‍ताव देते समय छिपाया था। विद्धान जिला उपभोक्‍ता फोरम ने उचित प्रकार से यह निष्‍कर्ष दिया कि बीमाकर्ता इस तथ्‍य को साबित करने में असफल रहे हैं। अत: प्रश्‍नगत निर्णय तथा निर्णय में दिये गये निष्‍कर्ष में हस्‍तक्षेप की कोई आवश्‍यकता एवं अवसर नही है। निर्णय पुष्‍ट होने योग्‍य है एवं अपील निरस्‍त किये जाने योग्‍य है।     
  6.  

अपील निरस्‍त की जाती है। जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश की पुष्टि की जाती है।

प्रस्‍तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्‍त जमा धनराशि अर्जित ब्‍याज सहित सम्‍बंधित जिला उपभोक्‍ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्‍तारण हेतु प्रेषित की जाए।

             आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

 

 

(सुधा उपाध्‍याय)(विकास सक्‍सेना)

  •  

 

     संदीप आशु0कोर्ट नं0 2

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Vikas Saxena]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MRS. SUDHA UPADHYAY]
MEMBER
 

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