(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 1069/2016
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग प्रथम, आगरा द्वारा परिवाद सं0- 129/2004 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 26.04.2016 के विरुद्ध)
1. Bank of Baroda, through Manager, Rashmi Palace Bye Pass Road, Kamla Nagar, Agra Police Station, New Agra.
2. Chairman Bank of Baroda (Gujrat).
….....Appellants
Versus
Munna Lal Gupta, Son of Late Roshan Lal Gupta, Resident of 31/5, M.G. Road, Rawali, Agra.
……Respondent
समक्ष:-
माननीय श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री एच0पी0 श्रीवास्तव,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री नवीन कुमार तिवारी,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:- 07.10.2022
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
परिवाद सं0- 129/2004 श्री मुन्नालाल गुप्ता बनाम बैंक आफ बड़ौदा द्वारा प्रबंधक व एक अन्य में जिला उपभोक्ता आयोग प्रथम, आगरा द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दि0 26.04.2016 के विरुद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने प्रत्यर्थी/परिवादी का परिवाद स्वीकार करते हुए प्रत्यर्थी/परिवादी को बनारस स्टेट बैंक के शेयरों के बदले बैंक आफ बड़ौदा के एक हजार शेयर प्रोरेटा आधार पर आवंटित करने तथा विकल्प में दिसम्बर 2010 को उक्त शेयरों के बाजार मूल्य मय 6 प्रतिशत ब्याज वास्तविक अदायगी तक भुगतान करने एवं अन्य क्षतिपूर्ति अदा करने के आदेश पारित किए हैं।
प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन परिवाद पत्र में इस प्रकार आया कि प्रत्यर्थी/परिवादी बनारस स्टेट बैंक के एक हजार शेयर का धारक था। प्रत्यर्थी/परिवादी ने उक्त एक हजार शेयर के बदले बैंक आफ बड़ौदा के शेयर देने अथवा अपने बचत खाते में उक्त के अनुसार पैसा दिए जाने हेतु परिवाद प्रस्तुत किया। प्रत्यर्थी/परिवादी ने वर्ष 1998 में बनारस स्टेट बैंक के एक हजार शेयर खरीद थे। उक्त बैंक का विलय बैंक आफ बड़ौदा में हो गया जिससे बनारस स्टेट बैंक के सभी दायित्वों का निर्वहन अपीलार्थीगण/विपक्षीगण बैंक को हो गया। प्रत्यर्थी/परिवादी के अनुसार विलय के बाद बनारस स्टेट बैंक के शेयर के बदले बैंक आफ बड़ौदा को अपने शेयर प्रत्यर्थी/परिवादी को देने चाहिए, जिसके लिए प्रत्यर्थी/परिवादी ने अनेकों पत्र दिए, किन्तु धनराशि अथवा शेयर न दिए जाने पर यह परिवाद प्रस्तुत किया गया।
परिवाद के दौरान अपीलार्थी/विपक्षी ने अपना प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया एवं यह कहा कि भारतीय स्टेट बैंक अमलगेमेशन स्कीम, 2002 के अंतर्गत ''बनारस स्टेट बैंक'' का विलय बैंक आफ बड़ौदा में कर दिया गया था जिसे भारत सरकार के गजट द्वारा अनुमोदित किया गया जिसके अनुसार बैंक आफ बड़ौदा के शेयर के बदले अपने शेयर देने के लिए बाध्य नहीं है। अपीलार्थी/विपक्षी अमलगेमेशन स्कीम के आधार पर प्रोरेटा आधार पर शेयर आवंटित किए जायेंगे जिसका निर्णय भारतीय रिजर्व बैंक करेगा। इस प्रकार प्रत्यर्थी/परिवादी को प्री-मेच्योर बताते हुए यह भी कहा गया कि प्रत्यर्थी/परिवादी शेयर होल्डर है एवं वह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है। अत: परिवाद का क्षेत्राधिकार उपभोक्ता न्यायालय को नहीं है। इस आधार पर भी परिवाद निरस्त किए जाने की प्रार्थना की गई।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा परिवाद की आज्ञप्ति इस आधार पर की गई कि निर्णय की तिथि पर बनारस स्टेट बैंक का विलय बैंक आफ बड़ौदा में हुए लगभग 12 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं एवं प्रत्यर्थी/परिवादी को अपनी निवेश की गई राशि का कोई भुगतान नहीं मिला है। अत: अपीलार्थीगण/विपक्षीगण बैंक द्वारा सेवा में कमी की गई है। इस आधार पर उपरोक्त निर्णय पारित किया गया, जिससे व्यथित होकर यह अपील प्रस्तुत की गई है।
अपील में मुख्य रूप से निर्णय के विरुद्ध यह आपत्ति की गई कि भारत सरकार का नोटिफिकेशन जो राजस्व मंत्रालय भारत सरकार द्वारा दिनांकित 19.06.2002 जारी किया गया है उसके अनुसार बनारस स्टेट बैंक का कोई लेनदार बैंक आफ बड़ौदा से कोई मांग नहीं कर सकता है एवं बैंक आफ बड़ौदा का उत्तरदायित्व स्कीम के अंतर्गत प्रदान किए गए उत्तरदायित्व तक सीमित रहेगा। स्कीम के प्रस्तर 10 में यह भी उल्लेख किया गया है कि इस बैंक का विलय के सम्बन्ध में बैंक, रिजर्व बैंक आफ इंडिया अथवा केन्द्र सरकार के विरुद्ध कोई वाद अथवा वैधानिक कार्यवाही नहीं की जा सकती है। इस कारण भी परिवाद पोषणीय नहीं है। इस नोटिफिकेशन के अध्याय 4 के प्रस्तर 7 में यह प्रदान किया गया है कि बनारस स्टेट बैंक की सभी लेनदारियां संदेहपूर्ण ऋण की श्रेणी में रखी जायेंगी जो बनारस स्टेट बैंक की सम्पत्ति से प्रदान की जायेंगी। इस स्कीम के अनुसार शेयरधारक अंतरिती बैंक अर्थात बैंक आफ बड़ौदा से कोई भी धनराशि प्राप्त करने के अधिकारी नहीं हैं। इसके अतिरिक्त यह प्रश्न उठाया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादी शेयर होल्डर है। वह उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है। इस कारण भी परिवाद पोषणीय नहीं है। इन आधारों पर परिवाद निरस्त किए जाने की प्रार्थना की गई।
हमने अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री एच0पी0 श्रीवास्तव तथा प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री नवीन कुमार तिवारी को सुना। प्रश्नगत निर्णय व आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का सम्यक परिशीलन किया।
अपीलार्थीगण/विपक्षीगण बनारस स्टेट बैंक के शेयर के बदले बैंक आफ बड़ौदा के शेयर की मांग की है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने प्रत्यर्थी/परिवादी का परिवाद स्वीकार करते हुए प्रत्यर्थी/परिवादी को बनारस स्टेट बैंक के बदली अपने बैंक के एक हजार शेयर प्रोरेटा के आधार पर आवंटित करने के निर्देश दिए हैं। इस पर ब्याज भी लगाया गया है। इस सम्बन्ध में अपीलार्थीगण/विपक्षीगण की ओर से मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय बैंक आफ बड़ौदा बनाम सुश्री पारूल अग्रवाल तथा अन्य पुनरीक्षया याचिका सं0- 2952/2006 निर्णय तिथि दि0 01.09.2010 द्वारा मा0 राष्ट्रीय आयोग प्रस्तुत किया गया। इस निर्णय में बनारस स्टेट बैंक लि0 के बैंक आफ इंडिया में विलय होने के आधार पर बनारस बैंक के देनदार का मामला निस्तारित किया गया जिसके तथ्य प्रस्तुत मामले के तथ्य के समान हैं।
निर्णय के अनुसार बनारस स्टेट बैंक लि0 का विलय धारा 45 बैंकिंग रेगुलेशन अधिनियम, 1945 के अंतर्गत हुआ जो गजट आफ इंडिया (असाधारण) के अंतर्गत बी0एस0बी0एल0 (बैंक आफ बड़ौदा के साथ विलय) 2002 में केन्द्र सरकार द्वारा प्रकाशित किया गया। उक्त योजना के प्रस्तर 5 में यह प्रदान किया गया था कि पूर्व बनारस स्टेट बैंक लि0 के उत्तरदायित्वों को स्कीम के अुनसार निस्तारित किया जायेगा तथा यह बैंक एवं लेनदार दोनों पर लागू होगा। इस गजट की समुचित प्रसारण भी किया गया जिसे समाचार पत्रों आदि में प्रकाशित किया गया। इसके तहत केन्द्र सरकार द्वारा जारी नोटिफिकेशन दिनांकित 19.06.2000 के अनुसार कोई भी परिवाद या वैधानिक कार्यवाही बैंक आफ बड़ौदा के विरुद्ध नहीं योजित की जा सकेगी। स्कीम में यह भी प्रावधानित किया गया कि लेनदारों को 85.85 प्रतिशत लेनदारी का भुगतान किया जायेगा। मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा जिला उपभोक्ता आयोग एवं राज्य आयोग द्वारा पारित निर्णय को अपास्त करते हुए निगरानी स्वीकार की गई। राज्य आयोग द्वारा सम्पूर्ण शेयर की धनराशि दिए जाने का आदेश दिया गया था।
मा0 राष्ट्रीय आयोग के उपरोक्त निर्णय एवं केन्द्र सरकार द्वारा जारी नोटिफिकेशन के आधार पर यह पीठ इस मत की है कि बैंक आफ बड़ौदा द्वारा सद्भावनापूर्ण किए गए कार्य के विरुद्ध कोई वैधानिक कार्यवाही नहीं की जा सकेगी।
इस मामले में विलय स्कीम के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी को शेयर की धनराशि दी जानी है, किन्तु विलय के उपरांत एक लम्बा समय गुजर जाने के बाद कोई धनराशि प्रदान नहीं की गई है। अत: धनराशि प्रदान न किया जाना सद्भावी कार्यवाही नहीं कही जा सकती। अत: यह उचित होगा कि अपीलार्थीगण/विपक्षीगण बैंक एक युक्ति-युक्ति समय के अन्दर शेयरों की धनराशि बनारस स्टेट बैंक विलय स्कीम (उपरोक्त) के अनुसार शेयर की धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादी को प्रदान करें। तदनुसार अपील आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है एवं प्रश्नगत निर्णय व आदेश अपास्त किए जाने योग्य है।
आदेश
अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। अपीलार्थीगण/विपक्षीगण बैंक को निर्देश दिया जाता है कि वे अन्दर 06 माह प्रत्यर्थी/परिवादी को गजट आफ इंडिया (असाधारण) में प्रकाशित बी0एस0बी0एल0 (अमलगेमेशन विथ बैंक आफ बड़ौदा) 2002 एवं तत्सम्बन्धी केन्द्र सरकार द्वारा जारी स्कीम व नोटिफिकेशन के अनुसार प्रश्नगत शेयरों की अनुपातिक धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादी को प्रदान करें। शेष निर्णय व आदेश अपास्त किया जाता है।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
अपील में धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत अपीलार्थीगण द्वारा जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित इस निर्णय व आदेश के अनुसार जिला उपभोक्ता आयोग को निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय व आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(विकास सक्सेना) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
निर्णय आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(विकास सक्सेना) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0-2