राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(सुरक्षित)
अपील संख्या:-1290/2016
(जिला फोरम, दि्वतीय लखनऊ द्धारा परिवाद सं0-953/2008 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 11.5.2016 के विरूद्ध)
Managing Director, U.P. Cooperative Sugar Factories Federatin Ltd. 9-A, Rana Pratap Marg, Lucknow.
........... Appellant/ Opp. Party
Versus
1- Mubarak Ahmad Khan, S/o Late Sohrab Khan, R/o 5/287, Viram Khand, Gomti Nagar, Lucknow.
…….. Respondent/ Complainant
2- General Manager, Kisan Sahkari Chini Mills Ltd., Rasra District-Ballia
3- Assistant Commissioner Provident Fund, Labour Camp in front of Carmal School, Gorakhpur-273009.
…….. Respondents/ Opp. Parties
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष
अपीलार्थी के अधिवक्ता : कोई नहीं।
प्रत्यर्थी/परिवादी स्वयं : श्री मुबारक अहमद खान, व्यक्तिगत
दिनांक :-31-10-2019
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-953/2008 मुबारक अहमद खान बनाम प्रबन्ध निदेशक, उ0प्र0 सहकारी चीनी मिल्स संघ व दो अन्य में जिला फोरम, दि्वतीय लखनऊ द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 11.5.2016 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है।
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आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
“परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण संयुक्त एवं एकल रूप से आदेशित किया जाता है कि वह इस निर्णय की तिथि से चार सप्ताह के अन्दर परिवादी को रू0 1,28,799.57 मय ब्याज दौनान वाद व आइंदा बशरह 09 (नौ) प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज की दर के साथ अदा करें। इसके अतिरिक्त विपक्षीगण संयुक्त एवं एकल रूप में परिवादी को मानसिक व शारीरिक कष्ट हेतु रू0 10,000.00 तथा रू0 5,000.00 वाद व्यय अदा करगें, यदि विपक्षी उक्त निर्धारित अवधि के अन्दर परिवादी को यह धनराशि अदा नहीं करते है तो विपक्षी को समस्त धनराशि पर ता अदायगी तक 12 (बारह) प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर के साथ अदा करना पड़ेगा।”
जिला फोरम के निर्णय व आदेश से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षी मैंनेजिंग डायरेक्टर, यू0पी0 सहकारी चीनी मिल्स संघ लिमिटेड ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री सुधांशु चौहान उपस्थित नहीं हुए है। प्रत्यर्थी/परिवादी
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सं0-1 व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुए है। प्रत्यर्थीगण सं0-2 व 3 की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ है।
अपीलार्थी की ओर से लिखित तर्क प्रस्तुत किया गया है।
मैंने प्रत्यर्थी/परिवादी को सुना है और आक्षेपित निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
मैंने अपीलार्थी की ओर से प्रस्तुत लिखित तर्क का भी अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी एवं प्रत्यर्थीगण सं0-2 व 3 के विरूद्ध इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि वह किसान सहकारी चीनी मिल रसडा बलिया में दिनांक 22.9.1975 से सहायक अभियंता के पद पर कार्यरत था और जून,1982 तक वहॉ कार्यरत रहा। दिनांक 22.9.1975 से दिनांक 30.11.1978 तक मिल में उसे पी0एफ0 की सुविधा नहीं दी गयी, जबकि उसे यह सुविधा संघ के कार्यालय ज्ञापन सं0 13623 यू.पी. एफ-स्थ 57/75 दिनांक 12.12.1979 के अनुसार प्राप्त होनी थी। परिवाद पत्र के अनुसार विपक्षीगण ने उसे यह सुविधा वर्ष-1997 तक उपलब्ध नहीं होने दी। इस संदर्भ में उसने कई बार पत्राचार किया और नोटिस भी भिजवाई, लेकिन परिणाम शून्य रहा।
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परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि विपक्षीगण ने परिवादी द्वारा इम्पलाई अंश न जमा किये जाने को आधार बनाकर वर्ष-1975 से वर्ष-1997 तक भविष्य निधि पर दिये जाने वाले ब्याज का भुगतान नहीं किया है जबकि इम्पलाइज प्रोविडेंट फण्ड एवं मिसलिनियस एक्ट, 1952 की धारा-5 के अनुसार इम्पलायर और इम्पलाई के भविष्य निधि को जमा कराने का दायित्व इम्प्लायर का ही है और धारा-7 क्यू के अनुसार पी0एफ0 की धनराशि जिस दिन से देय होती है उस पर 12 प्रतिशत की दर से ब्याज का भुगातन इम्पलायर की जिम्मेदारी है। अत: विपक्षीगण ने परिवादी को प्रोविडेन्ट फण्ड की धनराशि व उस पर ब्याज का भुगातन न कर सेवा में कमी की है, जिससे क्षुब्ध होकर प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है और निम्न अनुतोष चाहा है:-
(अ)- विपक्षी को यह निर्देश दिया जाना चाहिए कि वह परिवादी को दिनांक 22.9.1975 से 30.11.1978 तक कर्मचारी एवं नियोक्ता का अंशदान तथा इस पर लागू ब्याज 12 प्रतिशत की दर से अब तक का भुगतान करे जो कुल धनराशि 1,28,799.57 बनती है।
(ब)- विपक्षी को यह निर्देशित किया जाये कि परिवादी को मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक कष्ट एवं दौड़धूप हेतु 10,000.00
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रू0 तथा बाद व्यय हेतु 2,000.00 रू0 दिलवाये जाने का कष्ट करें। मानसिक शारीरिक एवं आर्थिक कष्ट के लिए 10,000.00 रू0 परिवाद व्यय के लिये 2,000.00 रू0, भविष्य निधि ब्याज सहित 1,28,799.00 रू0 कुल 1,40,800.00 रू0
(स)- उपरोक्त वाद न्यायालय के क्षेत्राधिकार में है और परिवादी फोरम के क्षेत्राधिकार में रहता है।
(द)- अन्य उपसम जो माननीय फोरम न्याय संगत समझे उसे विपक्षीगण से परिवादी को दिलाया जावें।
जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षी और प्रत्यर्थी सं0-2 जो परिवाद में विपक्षीगण सं0-1 व 2 हैं, की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है और कहा गया है कि परिवादी की कुल 21,77,360.00 रू0 का भुगतान किया जा चुका है उसके खाते में अब कोई धनराशि शेष नहीं है। परिवादी और उसके बीच नियोक्ता और कर्मचारी का सम्बन्ध रहा है न कि उपभोक्ता और स्वामी का। लिखित कथन में उन्होंने कहा है कि जिला फोरम को परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है। अत: परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।
जिला फोरम के समक्ष अपील के प्रत्यर्थी सं0-3 जो परिवाद में विपक्षी सं0-3 है, ने लिखित कथन प्रस्तुत नहीं किया है।
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जिला फोरम ने अपने निर्णय में यह उल्लेख किया है कि प्रत्यर्थी सं0-1 व 2 ने लिखित कथन प्रस्तुत किया है लेकिन बहस के स्तर पर उपस्थित नहीं हुए है। ऐसी स्थिति में मंच को परिवादी के कथन पर विशवास करने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं है। अत: जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार करते हुए आक्षेपित आदेश पारित किया है, जो ऊपर अंकित है।
अपीलार्थी की ओर से लिखित तर्क में कहा गया है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय अधिकाररहित और विधि विरूद्ध है।
प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय तथ्य और विधि के अनुकूल है। जिला फोरम के निर्णय में हस्तक्षेप हेतु उचित आधार नहीं है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत परिवाद ग्राह्य है और जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय अधिकार युक्त है।
मैंने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।
Regional Provident Fund Commissioner Vs. Bhavani A.I.R. 2008 S.C. 2957 के निर्णय में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने Employees Family Pension Scheme के सदस्य को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम,1986 की धारा-2 (1) (डी) के अन्तर्गत उपभोक्ता Provident Fund Commissioner की सेवा का माना है।
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नियोजक द्वारा कर्मचारी के प्रोविडेन्ट फण्ड में अंशदान न करने पर देय अंशदान की वसूली प्रोविडेन्ट फण्ड कमिशनर The Employees Provident Funds Scheme, 1952 के नियम 32 ए के अनुसार Penalty एवं Damage के रूप में नियोजक से वसूलेगा।
प्रत्यर्थी सं0-3 Assistant Commissioner Provident Fund जो परिवाद में विपक्षी है, ने जिला फोरम के निर्णय व आदेश के विरूद्ध अपील प्रस्तुत नहीं किया है और परिवाद पत्र के अनुसार प्रोविडेन्ट फण्ड कमिश्नर ने उपरोक्त नियम 32 ए के अनुसार नियोक्ता से 1979 के ज्ञापन के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी के प्रोविडेन्ट फण्ड के अंशदान को वसूल नहीं किया है। अत: प्रत्यर्थी सं0-3 की सेवा में कमी मानने हेतु उचित आधार है।
प्रत्यर्थी/परिवादी प्रोविडेन्ट फण्ड का कथित अंशदान नियोक्ता से सीधे नहीं मॉग सकता है। वह प्रोविडेन्ट फण्ड कमिश्नर अर्थात प्रत्यर्थी सं0-3 के माध्यम से ही यह धनराशि पा सकता है। जिला फोरम सीधे नियोजक को इस धनराशि का भुगतान प्रत्यर्थी/परिवादी को करने का आदेश नहीं दे सकता है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपीलार्थी द्वारा प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा अपीलार्थी के विरूद्ध पारित आक्षेपित आदेश इस छूट के साथ निरस्त किया
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जाता है कि प्रत्यर्थी/परिवादी के विवादित प्रोविडेन्ट फण्ड के अंशदान की वसूली Penalty एवं Damage के रूप में The Employees Provident Funds Scheme, 1952 के नियम 32 ए के अनुसार करने हेतु प्रत्यर्थी सं0-3 (प्रोविडेन्ट फण्ड कमिश्नर) स्वतंत्र है।
अपील में उभय पक्ष अपना अपना वाद व्यय स्वयं बहन करेगें।
धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनिमय, 1986 के अन्तर्गत अपील में जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को वापस की जायेगी।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
हरीश आशु.,
कोर्ट सं0-1