सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, मथुरा द्वारा परिवाद संख्या 110/2012 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 13.8.2015 के विरूद्ध)
अपील संख्या 1901 सन 2015
श्रीराम जनरल इंश्योरेंस कम्पनी लि0 ............अपीलार्थी
बनाम
मै0 शोभा राम शर्मा . .............प्रत्यर्थी
समक्ष:-
1 मा0 श्री चन्द्र भाल श्रीवास्तव, पीठासीन सदस्य।
2 मा0 श्री जुगुल किशोर, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता - श्री दिनेश कुमार ।
प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता - श्री नवीन कुमार तिवारी ।
दिनांक:
श्री चन्द्रभाल श्रीवास्तव, सदस्य (न्यायिक) द्वारा उदघोषित ।
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, मथुरा द्वारा परिवाद संख्या 110/2012 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 13.8.2015 जिसके द्वारा जिला फोरम ने परिवादी के परिवाद को निम्न लिखित रूप में स्वीकार किया है :-
‘’ परिवादी का परिवाद स्वीकार किया जाता है तथा विपक्षी संख्या 1 बीमा कम्पनी को आदेश दिया जाता है कि वह परिवादी का बीमा दावा धनराशि के रूप में अंकन 13,30,465/- रूपये 8 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज की दर से परिवाद योजित किए जाने की तिथि से भुगतान किए जाने की तिथि तक आज से 45 दिन के अन्दर भुगतान करे । 5000/- रूपये व वाद व्यय के रूप में 2000/- रूपये का भुगतान करे। ‘’
संक्षेप में, परिवादी का कथन है कि परिवादी वाहन संख्या यू0पी0 85 बी 9050 का पंजीकृत स्वामी है जो दिनांक 28.4.2011 से दिनांक 27.42012 तक की अवधि हेतु विपक्षी बीमा कम्पनी के यहां बीमित था। दिनांक 02/3.6.2011 की रात में उक्त वाहन चोरों द्वारा चुरा लिया गया। घटना की रिपोर्ट थाने पर की गयी तथा बीमा कम्पनी के समक्ष बीमा दावा प्रस्तुत किया गया किंतु बीमा कम्पनी द्वारा दावा ‘नो-क्लेम’ कर दिया गया। जिला फोरम के समक्ष बीमा कम्पनी द्वारा जो लिखित कथन प्रस्तुत किया गया उसमें यह कहा गया कि वाहन स्वामी ने वाहन की समुचित सुरक्षा नहीं की और वाहन रनिंग कण्डीशन में छोड़कर सौंच के लिए चला गया तथा वाहन की चाबी वाहन में ही लगी थी। इस प्रकार स्वयं परिवादी ने बीमा शर्तो का उल्लंघन किया तथा घटना की सूचना भी बीमा कम्पनी को विलम्ब से दी गयी। जिला फोरम ने उभय पक्ष के साक्ष्य के आधर पर परिवाद को उपरोक्तानुसार स्वीकार कर लिया जिससे क्षुब्ध होकर यह अपील संस्थित की गयी है।
अपील के आधारों में कहा गया है कि फोरम ने समस्त तथ्यों का सम्यक् विवेचन नहीं किया है। बीमा पालिसी की शर्त संख्या-5 का पालन परिवादी द्वारा नहीं किया गया है, चोरी की सूचना विलम्ब से दी गयी है, फाइनेंसर को पक्षकार नहीं बनाया गया है, बीमा कम्पनी ने सही रूप में नो-क्लेम किया है।
हमने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण की बहस सुन ली है एवं अभिलेख का ध्यानपूर्वक अनुशीलन कर लिया है।
अभिलेख के अनुशीलन से स्पष्ट है कि उभय पक्षों ने यह तथ्य स्वीकार किया कि परिवादी प्रश्नगत वाहन का स्वामी है एवं वाहन की चोरी बीमित अवधि में हुयी थी । बीमा कम्पनी द्वारा दावे के खण्डन का मुख्य आधार यह लिया गया है कि प्रश्नगत वाहन के चालक एवं क्लीनर द्वारा गाड़ी को असुरक्षित सड़क पर छोडकर सौंच के लिए जाना असावधानी का द्योतक है और वाहन की पर्याप्त सुरक्षा नहीं की गयी जबकि परिवादी की ओर से इस तथ्य का खण्डन किया गया है। इस संबंध में बीमा कम्पनी के सर्वेयर ने कुछ गवाहों के वयान लिए हैं जिनके आधार पर सर्वेयर ने यह रिपोर्ट दी है कि वाहन को असुरक्षित रूप में छोड़ा गया । किंतु सर्वेयर द्वारा लिए गए गवाहों के वयान मात्र से ही यह स्थापित नहीं होता कि परिवादी के वाहन चालक द्वारा असावधानी वरती गयी । इस संबंध में थाने पर रिपोर्ट भी करायी गयी है तथा परिवादी द्वारा चोरी की सूचना भी विपक्षी बीमा कम्पनी को दी गयी है तथा विपक्षी के टोलफ्री नम्बर पर भी सूचना दी गयी है जिसका कोई खण्डन विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा नहीं किया गया है। पत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता ने यहां यह भी तर्क लिया है कि परिवादी ने मात्र बीमा पालिसी की शर्तो के उल्लंघन के आधार पर बीमा दावे का खण्डन किया है जबकि चोरी के प्रकरण में पालिसी की शर्तो का उल्लंघन विशेष महत्व नहीं रखता है, जैसा कि मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा IV (2008) 1 (SC) नेशनल इंश्योरेंस कम्पनी बनाम नितिन खण्डेलवाल में अवधारित किया गया है।
जिला फोरम द्वारा बीमित धनराशि 13,30,465.00 रू0 08 प्रतिशत ब्याज के साथ दिए जाने का निर्देश दिया है । साथ ही साथ मानसिक संताप हेतु 5000.00 रू0 व वाद व्यय हेतु 2000.00 रू0 दिलाया गया है, जोकि न्यायोचित प्रतीत होता है। बीमा कम्पनी द्वारा यह तर्क लिया गया है कि फाइनेंसर को पक्षकार नहीं बनाया गया है, ऐसी स्थिति में बीमित धनराशि के भुगतान के पूर्व फाइनेंसर से अनापत्ति प्रमाण-पत्र प्राप्त करके प्रस्तुत करने हेतु परिवादी को निर्देशित किया जाना उचित होगा ।
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि इस अपील में कोई बल नहीं है और यह अपील तद्नुसार निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील तद्नुसार निरस्त करते हुए जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, मथुरा द्वारा परिवाद संख्या 110/2012 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 13.8.2015 सम्पुष्ट किया जाता है।
बीमित धनराशि के भुगतान के पूर्व परिवादी, फाइनेंसर कोटक मेहन्द्रा बैंक से अनापत्ति प्रमाण-पत्र प्राप्त कर बीमा कम्पनी में जमा करेगा एवं उक्त अनापत्ति प्रमाण-पत्र के उपरांत ही बीमित धनराशि का भुगतान परिवादी को किया जाएगा ।
उभय पक्ष इस अपील का अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार नि:शुल्क उपलब्ध करा दी जाए।
(चन्द्र भाल श्रीवास्तव) (जुगुल किशोर)
पीठा0 सदस्य (न्यायिक) सदस्य
कोर्ट-1
(S.K.Srivastav,PA)