(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील सं0 :-1100/2002
(जिला उपभोक्ता आयोग, (द्वितीय) आगरा द्वारा परिवाद सं0-334/1995 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 20/03/2002 के विरूद्ध)
M/S Nandlal Ramesh Kumar, through New Narendra Transport company, Yamuna Kinara, Agra, Police Station Chatta, District-Agra.
- Appellant
Versus
- M/S Prakash Agriculture Industries, Hathras Road Foundary Nagar, Police Station Etmadaula, District Agra.
- M/S Laxmi Transport Company, Village Mehraula, District Sitapur, Uttar Pradesh.
- M/S Nand Lal Ramesh Kumar (regd.) 3901-3 Mori Gate, Delhi.
- Respondents
समक्ष
- मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य
- मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य
उपस्थिति:
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता:- श्री वी0पी0 शर्मा
प्रत्यर्थी सं0 1 की ओर से विद्वान अधिवक्ता:- श्री वी0एस0 बिसारिया
दिनांक:-11.07.2023
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
- जिला उपभोक्ता आयोग, (द्वितीय) आगरा द्वारा परिवाद सं0-334/1995 मेसर्स प्रकाश एग्रीकल्चर इन्डस्ट्रीज बनाम मैसर्स नन्द लाल व अन्य में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 20/03/2002 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गयी है।
- संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी ने दिनांक 25.08.1993 को बिक्री हेतु माल ट्रांसपोर्ट कम्पनी के द्वारा जी0आर0 सं0 3754 एवं संबंधित अन्य सामान हेतु आगरा से बाहर भेजा था, जिसकी कुल कीमत रू0 22,592/- एवं भाड़ा रू0 480/- है, जिसका भुगतान विपक्षी को किया गया था। प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी का व्यक्ति जब माल लेने गया तो देने से इंकार कर दिया और न तो माल दिया, न ही माल की कीमत अदा की। विपक्षीगण द्वारा परिवादी को सेवा न देकर उसके माल को बेचकर भुगतान भी नहीं किया गया। भुगतान न किये जाने हेतु यह परिवाद योजित किया गया।
- विपक्षी सं0 1 व 3 ने अपना जवाबदावा दाखिल किया है जिसमें यह कथन किया गया है कि मैसर्स नन्दलाल रमेश चन्द्र का स्थानीय कार्यालय का मालिक/ पार्टनर है जी0आर0सं0 03754 तथा जी0आर0सं0 3757 पर विपक्षी के यहां माहोली सीतापुर के लिए माल बुक 25.08.1993 को हुआ था और वह माल 30.08.1993 को लक्ष्मी ट्रान्सपोर्ट कम्पनी महोली सीतापुर पर पहुंच गया,परंतु उस माल को लेने के लिए मै0 लक्ष्मी ट्रान्सपोर्ट महोली पर लेने कोई भी नहीं आया। उस पर डेमरेज अधिक होने के कारण उसको लेने से मना कर दिया, जिसमें विपक्षी की कोई गलती नहीं है।
- प्रत्यर्थी स0 2/विपक्षी सं0 2 ने भी जवाबदावा दाखिल किया है जिसमें कथन किया गया है कि प्रत्यर्थी स0 2/विपक्षी सं0 2 को विधि विरूद्ध ढंग से पक्षकार बनाया गया है। प्रत्यर्थी स0 2/विपक्षी सं0 2 की कोई व्यक्तिगत जिम्मेदारी नहीं है, इसलिए प्रत्यर्थी स0 2/विपक्षी सं0 2 को गलत पार्टी बनाया है। प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा बुक कराया गया माल लक्ष्मी ट्रासंपोर्ट कम्पनी मोरी गेट दिल्ली की शाखा महोली जिला सीतापुर से जरिए बैक बिल्टी प्राप्त करना था, लेकिन बैक बिल्टी लेकर विपक्षी सं0 2 के यहां कभी कोई नहीं आया। काफी समय पश्चात प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी का एक व्यक्ति उसके संबंध में जानकारी करने आया तो उससे बैक बिल्टी देने, डेमरेज व भाड़ा आदि अदा करने को कहा गया तो उसने माल लेने में असमर्थता की और वह पुन: आने का आश्वासन देकर चला गया। माल अब भी रखा हुआ है। विपक्षी सं0 2 को परेशान करने की नीयत से उक्त आधार पर वाद दाखिल किया गया है। प्रत्यर्थी सं0 2/विपक्षी सं0 2 की कोई गलती नहीं है।
- अपील में मुख्य रूप से यह आधार लिये गये हैं कि विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम ने इस तथ्य को अपने प्रसंज्ञान में नहीं लिया है कि प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह संस्वीकृति की है कि उसके द्वारा बुक किये गये माल परिवहन के माध्यम से गन्तव्य स्थान पर पहुंच गया था तथा अपीलकर्ता ने अपने वादोत्तर में स्पष्ट रूप से कहा है कि दिनांक 25.08.1993 को जो माल रसीद सं0 3754 तथा 3757 के माध्यम से प्रेषित किया गया था, वे गंतव्य स्थान पर पहुंच गये थे, किन्तु कोई भी व्यक्ति इस माल को लेने नहीं आया। विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा इस तथ्य को भी नहीं देखा गया कि प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी ने प्रश्नगत माल को परिवहनकर्ता के गोदाम तक प्रेषित किये जाने की संविदा की थी। इस प्रकार गन्तव्य स्थान तक माल प्रेषित कर दिये जाने के उपरान्त अपीलकर्ता की ओर से सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है। माल को वापस प्रेषित किया जाना माल की रिबुकिंग और पृथक संविदा है, जो प्रस्तुत संविदा के अंतर्गत अपीलकर्ता का उत्तरदायित्व नहीं है। प्रत्यर्थी सं0 2 मेसर्स लक्ष्मी ट्रांसपोर्ट कम्पनी ने स्पष्ट रूप से अपने वादोत्तर में कहा है कि प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी का माल सीतापुर स्थित गोदाम में पहुंच गया है तथा प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा टूट फूट तथा रिबुकिंग की धनराशि प्रदान करने के उपरान्त प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी माल ले जा सकता है, किन्तु प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी ने माल लेने का कोई प्रयत्न नहीं किया है। अधिनियमों का उल्लंघन करते हुए निर्णय पारित किया गया है अत: निर्णय अपास्त होने योग्य है एवं अपील स्वीकार किये जाने योग्य है।
- अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री वी0पी0 शर्मा एवं प्रत्यर्थी सं0 1 की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री वी0एस0 बिसारिया को विस्तार से सुना गया। पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेख का अवलोकन किया गया।
- प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी का कथन इस मामले में इस प्रकार आया है कि गन्तव्य स्थान पर प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा बुक किया गया माल पहुंचने पर इसकी डिलीवरी नहीं दी गयी। परिवाद पत्र के प्रस्तर 4 में परिवादी का कथन निम्नलिखित प्रकार से दी-
‘’यह कि परिवादी का व्यक्ति पास लेने गया तो देने से इंकार कर दिया और ना तो माल दिया न ही माल की कीमत अदा की गयी है। परिवादी ने कई बार व्यक्ति को व्यक्तिगत भेजकर तथा पत्रों द्वारा माल को पुन: बुक कराने की प्रार्थना की थी, किन्तु विपक्षीगण द्वारा न तो माल वापिस किया गया और न ही माल की कीमत अदा की गयी है।‘’
- इस प्रकार प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी ने प्रश्नगत माल को उसकी डिलीवरी न दिये जाने का जो आक्षेप किया है। उसमें डिलीवरी न देने के संबंध में कोई नोटिस दिया जाना अंकित नहीं किया है, बल्कि पत्र द्वारा पुन: बुकिंग के निर्देश दिये जाने का कथन किया है, तत्समय यह वाद के समय लागू कैरियर अधिनियम 1865 की धारा 8 के अनुसार सामान्य कैरियर अथवा अपने किसी कर्मचारी के द्वारा किये गये छल लापरवाही के कारण हुई क्षतिपूर्ति के लिए बुक करने वाले व्यक्ति के प्रति उत्तरदायित्व रखता है। इसके अतिरिक्त धारा 9 उपरोक्त अधिनियम के अनुसार डिलीवरी न होने पर बिना छल अथवा लापरवाही के सबूत की सामान्य कैरियर ‘’डिलीवरी न होने’’ (Non Delivery) का उत्तरदायित्व रखती है किन्तु उपरोक्त कैरियर अधिनियम 1865 धारा 10 के अनुसार डिलीवरी न होने पर 06 माह के भीतर इसकी नोटिस दिये जाने पर वाद योजन का अधिकार प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी को बनता है, किन्तु इस प्रकार की नोटिस दिये जाने का कोई उल्लेख न तो परिवाद पत्र में है न ही अभिलेख पर लाया गया है। अत: धारा 10 कैरियर अधिनियम 1865 के अनुसार प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी का वाद मैच्योर नहीं माना जा सकता है एवं यह नहीं माना जा सकता कि सामान्य कैरियर अपीलार्थी द्वारा माल की डिलीवरी नहीं की गयी है।
- स्वयं प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी ने माल की डिलीवरी की पुन: बुकिंग की बात की है, जिससे स्पष्ट है कि माल गन्तव्य स्थान पर पहुंच गया था और वापसी हेतु प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी ने प्रार्थना की थी जो निश्चय ही एक पृथक संविदा होगी एवं संविदा के लिए सामान्य कैरियर को मजबूर नहीं किया जा सकता है।
- विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम ने इस आधार पर परिवाद योजित किया है कि प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी की ओर से यदि कोई माल लेने नहीं आया था तो सामान्य कैरियर द्वारा किसी पत्र के माध्यम से प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी को सूचित नहीं किया गया। इसी आधार पर परिवाद आज्ञप्त किया गया है, किन्तु यह आधार पर्याप्त प्रतीत नहीं होता। इसके विपरीत विवेचना से स्पष्ट है कि धारा 10 कैरियर अधिनियम 1865 के अनुसर यह प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी का उत्तरदायित्व था कि वह नोटिस के माध्यम से नॉन डिलीवरी के 06 माह के भीतर इसकी सूचना सामान्य कैरियर को देता, किन्तु ऐसी कोई सूचना या पत्र अभिलेख पर नहीं है अत: यह तथ्य साबित नहीं होता है कि सामान्य कैरियर के द्वारा अपीलार्थी ने माल की डिलीवरी समय के भीतर नहीं दी। विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम ने उक्त तथ्य को नजरअंदाज करते हुए निर्णय/आदेश पारित किया है। जो अपास्त होने योग्य है।
-
अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश अपास्त किया जाता है।
उभय पक्ष अपीलीय वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
प्रस्तुत अपील मे अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गयी हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुधा उपाध्याय)(विकास सक्सेना)
संदीप आशु0कोर्ट नं0 3