मौखिक
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग उ0प्र0 लखनऊ
अपील संख्या 563 सन 2009
इक्जी0 इंजीनियर इलेक्ट्रिसिटी अर्वन डिस्ट्रीव्यूशन डिवीजन ।
.................अपीलार्थी
-बनाम-
मै0 चन्द्रा इण्टरप्राइजेज ।
....................प्रत्यर्थी
समक्ष
मा० न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष ।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री इसार हुसैन ।
प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री मनोज मोहन ।
दिनांक - 23.11.2023
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित
प्रस्तुत अपील जिला उपभोक्ता आयोग, मुजफ्फरनगर द्वारा परिवाद संख्या 314 सन 1993 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 07.3.2009 के विरुद योजित की गयी है।
संक्षेप में, वाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादी ने मिल बोर्ड उत्पादन की लिये विपक्षीगण से 100 केवीए का विद्युत भार नान कन्टीन्यूअस प्रकिया व विद्युत सप्लाई के अन्तर्गत स्वीकृत कराया था। परिवादी का कोई भी स्वतंत्र फीडर नहीं था। विपक्षीगण अपने पत्रांक सं०.3648 दिनांक 13.10.82 के द्वारा परिवादी को यह सूचित किया कि परिवादी प्रत्येक सप्ताह में बृहष्पतिवार के शुन्य काल से शुकवार के शुन्य काल में विद्युत उपभोग नहीं करेगा इसके अतिरिक्त यह भी निर्देश दिया गया कि गर्मियों में अप्रैल से सितम्बर माह तक प्रत्येक दिन शाम 6.00 बजे से 10.00 रात्री तक एवं सर्दियों में अक्टूबर से मार्च माह तक शाम 5.00 बजे से रात्री के 9.00 तक पीक आवर पावर कट का भी पालन करेगा। विपक्षीगण द्वारा वर्ष 1985 में प्रदेश में वर्षा कम होने के कारण औद्योगिक ईकाईयों को विद्युत उपभोग करने के सम्बन्ध आदेश दिनांक 11.2.85 के द्वारा पावंदी लगाई गई थी जिसके सम्बन्ध में विद्युत विभाग द्वारा अपने पत्रांक सं0.1481 दिनांकित 14.3.85 के द्वारा परिवादी के ईकाई पर विद्युत उपभोग का 50 प्रतिशत पावर कट लगा दिया गया था। उक्त मुजफ्फर नगर के समक्ष वाद सं0.211/85 प्रस्तुत कर पावर कट के विरुद्ध अंतरित निषेधाज्ञा प्राप्त कर अपनी ईकाई चलायी तो विपक्षीगण ने अपने पत्राक सं0.2031 दिनांकित 23.5.85 के द्वारा अंकन 5000.रू० उक्त ईकाई चलाने के विरूद्ध अर्थ दंड से परिवादी को दंडित किया गया और विपक्षीगण द्वारा परिवादी को गलत बिल अधिक दरों के हिसाब प्रेषित किया जिसे परिवादी द्वारा जमा न करने पर दिनांक 4.4.92 को परिवादी की ईकाई का विद्युत कनेक्शन अस्थायी रूप से विच्छेदित कर दिया गया इस सम्बन्ध में परिवादी ने विद्युत विभाग से सम्पर्क किया तो विद्युत विभाग द्वारा बताया गया कि ईकाई का विद्युत बिल कन्टन्यूअस विद्युत सप्लाई के टैरिफ के आधार पर बिल प्रेषित किये गये है और विद्युत बिल जमा न करने के कारण विद्युत कनेक्शन अस्थायी रूप से विच्छेदित कर दिया गया है ।
विपक्षीगण की ओर से वाद पत्र के आरोपो का खंडन करते हुये उत्तर पत्र 26क प्रस्तुत किया गया और कहा गया कि परिवादी की ईकाई कन्टयूनिवस ईकाई है और उसी के अनुसार परिवादी को विद्युत बिल प्रेषित किये गये है। तथा इमरजेन्सी रोस्टिंग को छोडकर विद्युत आपूर्ति के सम्बन्ध में कोई पाबंदी परिवादी की ईकाई पर नहीं लगाई गई है। विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि परिवादी की ईकाई दिनांक 31.1.86 तक नोन कन्टीन्यूस प्रोसि में आती थीए उसी के आधार पर परिवादी को बिल प्रेषित किये गये तथा दिनांक 1.2.86 से वादी की ईकाई कन्टीन्यूस प्रोसि में विद्युत दरों की टैरीफ में बदली जाने के कारण आ गई और इसी आधार पर परिवादी को बिल प्रेषित किये गये जिसे परिवादी वर्ष 1986 से मार्च 1992 तक उपरोक्त बिल का भुगतान करते रहे। विद्युत विभाग द्वारा यह भी कहा गया कि परिवादी द्वारा विद्युत बिल के भुगतान के सम्बन्ध में दिये गये चैक डिसआनर होने के कारण उसका विद्युत कनेक्शन नियमानुसार काटा गया। परिवादी का परिवाद एस्टोपल एंड एक्वीसेन्स से बाधक है। परिवादी को काई क्षति विपक्षीगण के कृत्य से नहीं हुई है और न ही विपक्षीगण द्वारा सेवा में कोई कमी की गई है।
विद्वान जिला आयोग ने यह अवधारित करते हुए कि जबकि परिवादी को विद्युत का उपयोग भी noncontinuous process के आधार पर ही प्रदान किया गया है परन्तु विपक्षी द्वारा विद्युत बिल continuous process के तहत वसूले गये हैए जो विपक्षीगण विद्युत विभाग हारा सेवा में कमी की गई हैए विपक्षी का यह दायित्व था कि वह परिवादी से विद्युत बिलों को noncontinuous process टैरिफ के अनुसार ही वसूल करता परन्तु विपक्षीगण द्वारा ऐसा न करके सेवा में कमी की गई है। विपक्षी द्वारा परिवादी का कनेक्शसन दिनांक 4.4.92 को काट दिया गयाए जबकि विपक्षी विभाग पर परिवादी की धनराशि वाजिब थी जिसके कारण परिवादी की ईकाई हमेशा के लिये बन्द होकर समाप्त हो गई, निम्न आदेश पारित किया :-
परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से आज्ञप्त करते हुये परिवादी को noncontinuous process के उपभोक्ता के समान विद्युत उपभोक्ता घोषित किया जाता है और विपक्षीगण विद्युत विभाग को यह निर्देश दिया जाता है कि यह परिवादी द्वारा continuous process की दर से जमा किये गये बिलों की अधिक धनराशि नगद 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहितए जमा करने के दिनांक से अंतिम भुगतान के दिनांक तक परिवादी को अदा करें। चूंकि परिवादी का विद्युत विभाग के पास पहले से ही अधिक रूपया बिल के सम्बन्ध में पहुच गया थाए अतः विपक्षीगण द्वारा परिवादी का विद्युत विच्छेदन दिनांक 4.4.1992 को अवैध घोषित किया जाता है। परिवादी द्वारा विद्युत बिल की अधिक धनराशि विपक्षीगण के विभाग में जमा होने के उपरान्त भी विपक्षीगण द्वारा परिवादी का विद्युत कनेशन काट दिया गयाए जिससे परिवादी को अपनी इकाई बन्द करनी पड़ी। अतः विपक्षीगण को निर्देश दिया जाता है कि वह परिवादी को मानसिक संताप एवं आर्थिक क्षतिपूर्ति के मद में अंकन 50000.00 रू०पच्चास हजार मात्र एवं वाद व्यय के मद में अंकन 2000.00रू० दो हजार रूपये निर्णय के दिनांक से एक माह के अन्दर अदा करे। चूँकि परिवादी ईकाई बन्द हो चुकी है। अतः विपक्षीगण द्वारा परिवादी से अधिक वसूली धनराशि को अग्रिम बिलों में समायोजित करने का कोई प्रश्न ही नहीं है।
उक्त निर्णय एवं आदेश से क्षुब्ध होकर अपील प्रस्तुत की गयी हैं।
मेरे द्वारा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेखों का परिशीलन किया तथा उपस्थित विद्धान अधिवक्तागण के तर्को को सुना गया ।
दौरान बहस अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता द्वारा कथन किया गया कि विद्धान जिला उपभोक्ता आयोग मुजफ्फरनगर द्वारा उक्त परिवाद में जो 50,000.00 रू0 मानसिक संताप के मद में तथा 2000.00 रू क्षतिपूर्ति के रूप में आरोपित किया गया है, वह अनुचित है।
विद्धान अधिवक्ता अपीलार्थी को सुनने के उपरान्त प्रस्तुत अपील, जो इस न्यायालय के सम्मुख विगत 14 वर्षों से लम्बित है को अंतिम रूप से निस्तारित किया जाता है और जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय दिनांक 07.03.2009 का समर्थन किया जाता है परन्तु विद्धान जिला आयोग, द्वारा अपीलार्थी पर जो 50,000.00 मानसिक संताप रूप में आरोपित किया गया है, उसे अनुचित पाते हुए निरस्त किया जाता है। जिला आयोग के निर्णय का शेष भाग/आदेश यथावत रहेगा।
तद्नुसार अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जातीं है एवं जिला आयोग, द्वारा पारित निर्णय दिनांक 07.3.2009 उपरोक्तानुसार संशोधित किया जाता है।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गयी हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित संबंधित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
सुबोल श्रीवास्तव
पी0ए0(कोर्ट नं0-1)