राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-171/2016
(मौखिक)
(जिला उपभोक्ता फोरम, मैनपुरी द्वारा परिवाद संख्या- 80/2015 में पारित आदेश दिनांक 26.11.2015 के विरूद्ध)
- Ayush Lohia Managing Director Lohia Auto Industries H-0193 Sector-63 Noida Gautambudha Nagar(U.P.)
- Sunit Awasthi HOD Marketing and sales Lohia Auto Industries H-0193 Sector-63 Noida Gautambudha Nagar(U.P.)
..............अपीलार्थीगण/विपक्षीगण
बनाम
M/s Balaji Enterprises Shiva and Krishna Auto Sales, Proprietor Shivkant Dubey R/o Radharaman Road, Mainpuri Tehsil and District Mainpuri
..........प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री दीपक मेहरोत्रा।
विद्वान अधिवक्ता ।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : -
दिनांक:17.11.2017
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद सं0- 80/2015 मैसर्स बालाजी इण्टरप्राइजेज बनाम आयुश लोहिया प्रबन्ध निेदेशक लोहिया आटो इण्डस्ट्रीज व 1 अन्य में जिला फोरम मैनपुरी द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 26.11.2015 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
"परिवाद आंशिक रूप से विपक्षीगण के विरूद्ध स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि परिवादी को रू0 1,36,651/- मय 06 प्रतिशत वार्षिक ब्याज जो परिवाद प्रस्तुत करने की दिनांक से अंतिम भुगतान की दिनांक तक देय होगा, एक माह के अन्दर अदा करे।
विपक्षीगण को यह भी आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को मानसिक कष्ट के मद में रू0 10,000/- तथा वाद व्यय के मद में रू0 5,000/- भी उपरोक्त अवधि में अदा करे।"
जिला फोरम के निर्णय से क्षुब्ध होकर यह अपील उपरोक्त परिवाद के विपक्षीगण आयुश लोहिया मैनेजिंग डायरेक्टर लोहिया आटो इंडस्ट्रीज एवं सुनीता अवस्थी एच0ओ0डी0 मार्केटिंग एण्ड सेल्स लोहिया आटो इंडस्ट्रीज ने प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री दीपक मेहरोत्रा उपस्थित हुए है। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ है। प्रत्यर्थी पर नोटिस का तामीला दिनांक 09.03.2017 को ही पर्याप्त माना जा चुका है फिर भी प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ है। अत: अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क को सुनकर एवं पत्रावली का अवलोकन कर अपील का निेस्तारण किया जा रहा है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है प्रत्यर्थी/परिवादी ने उपरोक्त परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि उसने फर्म शिवा एण्ड कृष्णा आटो सेल्स राधा रमन रोड़ मैनपुरी के नाम से इलेक्ट्रिक बाईक बिक्री करने हेतु डीलरशिप विपक्षीगण से ली थी जो बाद में बालाजी इण्टरप्राइजेज राधा रमन रोड़ के नाम से परिवर्तित हो गयी। यह फर्म प्रत्यर्थी/परिवादी ने जीविकोपार्जन के लिए खोली थी। उसने विपक्षीगण के यहां 1,00,000/-रू0 बतौर सिक्योरिटी मनी दिनांक 20.03.2012 को अदा किया था जिसे ब्याज सहित वापिस किया जाना तय था।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि उसने विपक्षीगण का उत्पाद 2014 तक बेचा। उसके बाद घरेलू कारणों से इलेक्ट्रिक बाईक बिक्री करने का कार्य बन्द कर दिया और इसकी सूचना विपक्षीगण को पत्र दिनांक 17.09.2014 के माध्यम से दिया।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि इलेक्ट्रिक बाईक की बिक्री बन्द करने के बाद उसने विपक्षीगण को दिनांक 17.09.2014 को हिसाब करने के लिए सूचित किया फिर भी विपक्षीगण ने कोई हिसाब 05 माह तक नहीं किया। जिससे प्रत्यर्थी/परिवादी को मानसिक पीड़ा हुयी।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि जो इलेक्ट्रिक बाईक एवं स्पेयर पार्ट्स बिक्री नहीं हुए थे दिनांक 14.10.2014 को विपक्षीगण के काशीपुर स्थित फैक्ट्ररी में उसने पहुंचा दिया एवं सामान की रिसीविंग भी प्राप्त कर ली गयी जिसमें इलेक्ट्रिक बाईक एवं स्पेयर पार्ट्स की कीमत 1,34,137/-रू0 थी जिसमें से मात्र 1,02,785/-रू0 उसे अदा किया गया। शेष धनराशि 31,352/-रू0 अवशेष रही परन्तु उसका भुगतान विपक्षीगण ने नहीं किया। इसके साथ ही दिनांक 09.01.2015 को परिवादी एवं विपक्षीगण के मार्केटिंग हेड सुमित अवस्थी के मध्य हिसाब हुआ जिसमें 1 बैटरी सेट कीमत 8,000/-रू0 एवं सी फार्म के नाम पर काटे गए 3500/-रू0 एवं 2,86,151/-रू0 देना शेष रहा। उसके बाद प्रत्यर्थी/परिवादी ने बिल इनवाइस देखी तो देखा कि दिनांक 19.08.2014 को 20,834/-रू0 की बिलिंग दिखायी गयी है जबकि उस दिन इनवाइस 282/-रू0 रूपये की थी इस प्रकार विपक्षीगण द्वारा 20,555/-रू0 अधिक लिया गया है।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी की विपक्षीगण के विरूद्ध 88,555/-रू0 धनराशि अवशेष रह गयी थी तथा 1,00,000/-रू0 सिक्योरिटी धनराशि की थी जिस पर दिनांक 20.03.2012 से दिनांक 09.01.2015 तक 12 प्रतिशत ब्याज भी विपक्षीगण को अदा करना था। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी ने दिनांक 13.02.2015 को विपक्षीगण को पंजीकृत डाक से नोटिस भेजकर उक्त सम्पूर्ण धनराशि का भुगतान करने हेतु कहा परन्तु कोई भुगतान नहीं किया गया। तब विवश होकर प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है।
विपक्षीगण की ओर से जिला फोरम के समक्ष लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है जिसमें कहा गया है कि परिवादी और विपक्षीगण के बीच उपभोक्ता का सम्बन्ध नहीं है। इसके साथ ही उन्होंने कहा है कि प्रत्यर्थी/परिवादी विपक्षीगण के दोपहिया वाहन जो इलेक्ट्रिक बाईक थी की बिक्री करता था जो वाणिज्यिक कार्य था अत: प्रत्यर्थी/परिवादी धारा 2(1)(डी) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंर्तगत उपभोक्ता नहीं है।
लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से यह भी कहा गया है कि विपक्षीगण की कदापि 88,555/-रू0 की प्रत्यर्थी/परिवादी को कोई देनदारी नहीं बनती है। लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से यह भी कहा गया है कि सिक्योरिटी की धनराशि 1,00,000/-रू0 पर उनके द्वारा ब्याज की कोई देनदारी नहीं बनती है।
जिला फोरम ने उभयपक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरांत यह निष्कर्ष निकाला है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है। अत: जिला फोरम ने उपरोक्त प्रकार से आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है।
अपीलार्थी की ओर से उनके विद्वान अधिवक्ता श्री दीपक मेहरोत्रा ने तर्क किया है कि परिवाद जिला फोरम के समक्ष ग्राहय नहीं है। परिवाद पत्र में कथित विवाद उपभोक्ता विवाद नहीं है। अत: जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अधिकार रहित और विधि विरूद्ध है। अत: निरस्त किए जाने योग्य है।
मैंने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क पर विचार किया है। परिवाद पत्र के कथन से यह स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी/विपक्षीगण की इलेक्ट्रिक बाईक की बिक्री करने हेतु डीलरशिप ली थी अत: यह स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने विपक्षीगण को अपनी सेवा डीलर के रूप में विपक्षीगण के उत्पाद की बिक्री हेतु प्रदान की थी। ऐसी स्थिति में परिवादी सेवा प्रदाता है न कि विपक्षीगण। इसके साथ ही उल्लेखनीय है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी/विपक्षीगण की इलेक्ट्रिक बाईक की बिक्री हेतु डीलरशिप ली थी अत: उभयपक्ष के बीच प्रश्नगत संव्यवहार वाणिज्यिक उद्देश्य के लिए किया गया है।
परिवाद पत्र में यह उल्लेख नहीं है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने यह डीलरशिप स्वनियोजन के उद्देश्य से ली थी। परिवाद पत्र में मात्र यह उल्लेख है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने फर्म अपने जीविकोपार्जन के लिए खोली थी अत: धारा 2(1)(डी) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के स्पष्टीकरण का लाभ प्रत्यर्थी/परिवादी पाने का कदापि अधिकारी नहीं है।
उपरोक्त विवेचना के आधार पर परिवाद पत्र में उल्लिखत तथ्यों के आधार पर यह स्पष्ट है कि परिवाद पत्र में कथित विवाद उपभोक्ता विवाद नहीं है और प्रत्यर्थी/परिवादी धारा 2(1)(डी) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत उपभोक्ता नहीं है। इसके साथ ही उल्लेखनीय है कि परिवाद पत्र में अभिकथित तथ्यों से यह स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी और अपीलार्थी/विपक्षीगण के बीच डीलरशिप समाप्त होने के बाद अकाउटिंग का विवाद है जो उपभोक्ता न्यायालय द्वारा निर्णीत नहीं किया जा सकता है।
उपरोक्त विवेचना के आधार पर यह स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा परिवाद पत्र में कथित विवाद उपभोक्ता विवाद नहीं है और प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद पर जिला फोरम ने संज्ञान लेकर जो आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है वह अधिकार रहित व विधि विरूद्ध है। अत: जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय कायम रहने योग्य नहीं है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अपास्त किया जाता है। अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत अपील में जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को वापिस की जाएगी।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
सुधांशु श्रीवास्तव, आशु0
कोर्ट नं0-1