(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1961/2016
1. Adhisashi Abhiyanta, Vidyut Vitran Khand, Hamirpur, District Hamirpur.
2. Upkhand Abhiyanta, Dakshinanchal, Vidyut Vitran Khand.
3. Managing Director, Uttar Pradesh Power Corporation Ltd., Shakti Bhawan, Lucknow.
Appellants/ Opp. Parties
Versus
Medva, S/o Sri Faguni, Saakin Village Gauri, Pargana Sumerpur, Tehsil and District Hamirpur.
Respondent/ Complainant
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री दीपक मेहरोत्रा, विद्वान अधिवक्ता के
सहायक अधिवक्ता श्री मनोज कुमार।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 20.12.2022
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-57/2015 मेडवा बनाम अधिशासी अभियन्ता, विद्युत वितरण खण्ड हमीरपुर व दो अन्य में विद्वान जिला आयोग, हमीरपुर द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 27.08.2016 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है।
2. आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा विद्वान जिला आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
“परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार किया जाता है। विपक्षी सं0-1 द्वारा बिना विद्युत संयोजन के विद्युत संयोजन सं0-38/11361077639 के विरूद्ध भेजा गया बिल रू0 7475.00 निरस्त किया जाता है। विपक्षी सं0-1 को आदेशित किया जाता है कि वह वाद व्यय के मद में मु0 2000.00 रू0 तथा
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मानसिक क्लेश के मद में 3000.00 रू0 परिवादी को अदा करेंगे। आदेश का अनुपालन अंदर 30 दिवस हो अन्यथा क्षतिपूर्ति की धनराशि पर 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज विपक्षी सं0-1 अदा करेंगे अन्यथा परिवादी को यह अधिकार हासिल है वह विपक्षी सं0-1 से विधि अनुसार उक्त धनराशि की वसूली कर ले। विपक्षी अधिशाषी अभियंता विद्युत वितरण खण्ड हमीरपुर यदि चाहे तो क्षतिपूर्ति एवं वाद की धनराशि 5000.00 रू0 दोषी सम्बन्धित अधिकारी एवं कर्मचारी के वेतन से वसूल कर सकते हैं।”
3. विद्वान जिला आयोग के निर्णय व आदेश से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षीगण ने यह अपील प्रस्तुत की है।
4. अपीलार्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री दीपक मेहरोत्रा के सहायक अधिवक्ता श्री मनोज कुमार उपस्थित आये है। प्रत्यर्थी पर नोटिस का तामीला आदेश दिनांक 09.05.2018 द्वारा पर्याप्त माना जा चुका है। फिर भी प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ है। अत: केवल अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को सुना और आक्षेपित निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया।
5. अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला आयोग के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षीगण के विरूद्ध इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि उसके गॉव में राजीव गॉधी योजना के अन्तर्गत विद्युत कनेक्शन हेतु 250.00 रू0 प्रति कनेक्शन की दर से वर्ष-2008 से 2010 तक की अवधि के लिए कनेक्शन फीस अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा इस शर्त पर जमा करायी गई थी कि 20 लोगों की कनेक्शन फीस जमा होने पर ट्रांसफार्मर रखकर विद्युत आपूर्ति दी जायेगी। परिवादी का कनेक्शन नं0-38/11361077639 था।
6. परिवाद पत्र के अनुसार इस अवधि में प्रत्यर्थी/परिवादी ने कोई विद्युत उपयोग नहीं किया। फिर भी उसके यहॉ 7,475/- रू0 का बिल अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा दिनांक 29.12.2014 को प्रेषित किया गया, जो गलत है। उसने अपीलार्थी/विपक्षी अधिशासी अभियंता के यहॉ दिनांक 06.02.2015 को आवेदन पत्र प्रस्तुत किया, परन्तु कोई कार्यवाही नहीं की गई। अत: क्षुब्ध होकर उसने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है।
7. जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत कर कहा गया है कि विद्युत कनेक्शन हेतु 250.00 रू0 वर्ष-2008 से 2010 तक के लिए जमा कर प्रत्यर्थी/परिवादी ने कनेक्शन सं0-38/11361077639 लिया था जिसके सम्बन्ध में उसे 7,475/- रू0 का बिल भेजा गया है। लिखित कथन में अपीलार्थी विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद कालबाधित है। वर्ष-2008 में विद्युत मिलने के बाद कोई आपत्ति उसने नहीं की है। उसने 300.00 रू0 जमानत धनराशि भी जमा नहीं की है। उसने सर्विस लाइन चार्ज भी जमा नहीं किया है। इस कारण वाद पोषणीय नहीं है।
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लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि विभाग द्वारा दिनांक 01.8.2015 को परिवादी के ग्राम का मुआइना उपखण्ड अधिकारी हमीरपुर द्वारा करने पर उनकी आख्या दिनांक 01.8.2015 के अनुसार सभी उपभोक्ता विद्युत का उपभोग कर रहे थे और अधिकतर उपभोक्ता जॉच के दौरान छिप गये थे। अत: उनके संयोजन विच्छेदित कर दिये गये थे। लिखित कथन में कहा गया है कि यदि उपभोक्ता संयोजन कायम नहीं रखना चाहते है तो विच्छेदन शुल्क जमा करके अपना संयोजन विच्छेदित करा सकते है। लिखित कथन में यह भी कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद गलत कथन के साथ प्रस्तुत किया है।
8. जिला आयोग ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरांत यह माना है कि प्रत्यर्थी/परिवादी व उसके गॉव के अन्य व्यक्तियों ने 250.00 रू0 वर्ष-2008 से लेकर 2010 तक विद्युत संयोजन हेतु जमा किया है, परन्तु जिला आयोग ने यह माना है कि उन्हें विद्युत संयोजन नहीं दिया गया है। अत: जिला आयोग ने प्रत्यर्थी/परिवादी के विरूद्ध जारी विद्युत बिल को निरस्त किया जाना उचित माना है। अत: जिला आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए आदेश उपरोक्त प्रकार से पारित किया है।
9. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय और आदेश तथ्य और विधि के विरूद्ध है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने 250.00 रू0 जमा कर विद्युत कनेक्शन लिया है, परन्तु उसने विद्युत उपयोग की धनराशि का भुगतान नहीं किया है। अत: उसके विरूद्ध अवशेष विद्युत देय के लिये बिल जारी किया गया है। जिला आयोग का निर्णय दोषपूर्ण है। अत: निरस्त किये जाने योग्य है।
10. हमने ने अपीलार्थी/विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता के तर्क पर विचार किया है।
11. परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी ने वर्ष-2008 से 2010 तक के लिए विद्युत कनेक्शन हेतु 250.00 रू0 जमा किया था और उसके गॉव के अन्य व्यक्तियों ने भी 250.00 रू0 विद्युत कनेक्शन हेतु शुल्क जमा किया था परिवाद पत्र के अनुसार विद्युत लाइन के खम्भे लगवाकर लाइन खींच दी गई थी। परन्तु ट्रांसफार्मर नहीं रखा गया था और विद्युत लाइन चालू नहीं की गई थी। फिर भी प्रत्यर्थी/परिवादी को दिनांक 29.12.2014 को 7,475.00 रू0 का बिल भेजा गया है।
12. परिवाद पत्र के कथन से एवं प्रस्तुत साक्ष्यों से यह स्पष्ट है कि विवादित बिल दिनांक 29.12.2014 के पूर्व परिवादी या अन्य ग्रामवासियों ने वॉछित फीस 250.00 रू0 जमा करने के बाद ट्रांसफार्मर न लगाये जाने व विद्युत लाइन चालू न किये जाने की कोई शिकायत अपीलार्थी/विपक्षीगण के विभाग से अथवा जिलाधिकारी या जिले के अन्य किसी अधिकारी से नहीं की गई है। 25 व्यक्तियों द्वारा विद्युत कनेक्शन हेतु 250.00 रू0 वॉछित फीस जमा करने के बाद विद्युत लाइन व तार खींचने के बाद भी विद्युत आपूर्ति न किये जाने पर
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सम्बन्धित व्यक्तियों द्वारा विभाग एवं जिले के उच्च अधिकारियों से शिकायत किया जाना स्वाभाविक है, परन्तु ऐसा नहीं किया गया है। अत: दिनांक 29.12.2014 को विद्युत विभाग द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी को विद्युत उपयोग हेतु 7,475.00 रू0 का प्रेषित बिल गलत मानने हेतु उचित आधार नहीं है।
13. परिवाद पत्र के कथन से भी यह स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को विद्युत कनेक्शन नं0-38/11361077639 दिया गया है। अत: सम्पूर्ण तथ्यों पर विचार करने के उपरांत हम इस मत के हैं कि जिला आयोग ने बिना पर्याप्त साक्ष्य के यह निष्कर्ष गलत अंकित किया है कि अपीलार्थी/विपक्षीगण के विद्युत विभाग द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी की विद्युत लाइन ऊर्जीकृत नहीं की गई है। अत: जिला आयोग ने परिवाद स्वीकार कर प्रश्नगत विद्युत बिल को जो निरस्त किया है वह आधारयुक्त और विधि सम्मत नहीं है।
14. उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील स्वीकार की जाती है और जिला आयोग द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अपास्त करते हुए परिवाद निरस्त किया जाता है।
अपील में उभय पक्ष अपना अपना वाद व्यय स्वयं बहन करेगें।
धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनिमय, 1986 के अन्तर्गत अपील में जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित विधि अनुसार एक माह में अपीलार्थी को वापस की जायेगी।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2