राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(सुरक्षित)
अपील संख्या:-1263/2018
(जिला फोरम, हापुड़ द्धारा परिवाद सं0-04/2017 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 28.5.2018 के विरूद्ध)
Hapur Pilkhuwa Development Authority Hapur, situated at Preet Vihar Delhi Road Hapur, through its Vice Chairman.
........... Appellant/ Opp. Party
Versus
Manoj Kumar, S/o Sri Shyam Singh, R/o F-1 Plot No. 19-A/3, Vrindawan Garden Sahibabad Ghaziabad, Uttar Pradesh.
…….. Respondent/ Complainant
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष
अपीलार्थी के अधिवक्ता : श्री सर्वेश कुमार शर्मा
प्रत्यर्थी के अधिवक्ता : श्री आर0के0 मिश्रा
दिनांक :-27-9-2019
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-04/2017 मनोज कुमार बनाम हापुड़ पिलखुवा विकास प्राधिकरण में जिला फोरम, हापुड़ द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 28.5.2018 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है।
आक्षेपित निर्णय व आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
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“प्रस्तुत परिवाद एतदद्वारा विपक्षी के विरूद्ध आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को दो माह के अन्दर आनन्द बिहार योजना कोड सं0-223 में सामान्य श्रेणी के अन्तर्गत 91 वर्ग मीटर का अविवादित भूखण्ड आवंटित करे। यदि उक्त योजना में 91 वर्ग मीटर का कोई अविवादित भूखण्ड आवंटित किये जाने हेतु शेष नहीं है तो वह परिवादी को उसके द्वारा जमा की गयी धनराशि तथा उक्त धनराशि पर जमा किये जाने की दिनांक से भुगतान किये जाने की दिनांक तक 12 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज का भुगतान करे। विपक्षी परिवादी को वाद व्यय के रूप में अंकन 5000.00 रू0 का भी भुगतान करे।”
जिला फोरम के निर्णय से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षी हापुड़ पिलखुवा विकास प्राधिकरण ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री सर्वेश कुमार शर्मा और प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री आर0के0 मिश्रा उपस्थित आये हैं।
मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
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प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से लिखित बहस भी प्रस्तुत की गई है। मैंने लिखित बहस का भी अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षी के विरूद्ध इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि उसने वर्ष-2007 में अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा प्रायोजित आनन्द विहार आवासीय योजना कोड-223 हापुड में 91 वर्ग मीटर के प्लाट हेतु आवेदन किया था, जिसके सम्बन्ध में अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा आरक्षण पत्र सं0-562/आनन्द विहार(2)/सम्पत्ति/09 दिनांक 05.7.2009 का निष्पादन किया गया और प्रत्यर्थी/परिवादी को 91 वर्ग मीटर का भूखण्ड सम्पत्ति श्रेणी ए-6 आरक्षित किया गया।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी ने 50,000.00 रू0 पंजीकरण धनराशि आवेदन पत्र भरते समय जमा किया था और उसे शेष 4,50,000.00 रू0 जमा करने के लिए कहा गया, तो उसने सम्पूर्ण धनराशि समय सीमा के अन्दर अपीलार्थी/विपक्षी को अदा कर दिया।
परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/विपक्षी ने आवेदन के समय तीन वर्ष के भीतर विकास कार्य पूर्ण कर कब्जा देने का आश्वासन दिया था, परन्तु नये-नये बहाने बनाकर कथित समय के अन्दर कब्जा नहीं दिया गया। उसके बाद प्रत्यर्थी/परिवादी ने जानकारी
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की तो पता चला कि उसे किसान कोटे का भूखण्ड दिया गया है जबकि उसे सामान्य कोटे का भूखण्ड देना चाहिए था।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि वर्ष-2009 के पश्चात वर्ष-2016 तक उसे अपीलार्थी/विपक्षी ने कोई सूचना नहीं दिया। प्रत्यर्थी/परिवादी ने दिनांक 11.02.2015 व 03.3.2015 को पत्र लिखकर जानकारी मॉगी, परन्तु उसे कोई उत्तर नहीं दिया गया इस प्रकार विपक्षी ने सेवा में कमी की है और अनुचित व्यापार पद्धति अपनाई है। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है।
जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत कर कहा गया है कि विपक्षी प्राधिकरण द्वारा भूखण्ड के ड्रा आवंटन की सूचना किसी भी आवंटी को पत्र के माध्यम से नहीं दी जाती है बल्कि सार्वजनिक समाचार पत्र के माध्यम से दी जाती है। विपक्षी द्वारा उक्त योजना के भूखण्ड का ड्रा होने के पश्चात सूचना आवंटी को पत्र सं0-2603/आ0वि0(223)/सम्पत्ति/11 दिनांकित 05.7.2011 द्वारा दी गई। यह सूचना उसके पते पर भेजी गई जो तामीला के बिना वापस कर दी गई।
लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को सामान्य कोटे के अन्तर्गत भूखण्ड आवंटित
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किया गया है किसान कोटे में नहीं। किसानों द्वारा उक्त योजना के विरूद्ध मा0 उच्च न्यायालय में वाद योजित किया गया है। जिसमें मा0 उच्च न्यायालय ने स्थगन जारी कर दिया है, जिसके कारण स्थल पर विकास कार्य और समस्त कार्यवाही रूक गयी है इस कारण परिवादी को कब्जा लेने हेतु पत्र नहीं भेजा जा सका है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने जब कभी भी विपक्षी से प्रश्नगत भूखण्ड के सम्बन्ध में कोई जानकारी चाही तो उसको जानकारी दी गई है। मा0 उच्च न्यायालय के स्थगन आदेश के कारण ही विलम्ब हुआ है जानबूझकर विलम्ब नहीं किया गया है। प्रत्यर्थी/परिवादी को मा0 उच्च न्यायालय के स्थगन आदेश की जानकारी है।
जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन और उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरांत परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए आक्षेपित आदेश पारित किया है जो ऊपर अंकित है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम के समक्ष प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद कालबाधित है। जिला फोरम को परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार आर्थिक और भौमिक दोनों आधार पर नहीं है। विवादित सम्पत्ति का मूल्य 20,00,000.00 रू0 से ऊपर है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय तथ्य और विधि के विरूद्ध है और दोषपूर्ण है।
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प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय तथ्य और विधि के अनुकूल है और उसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
मैंने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।
सामान्य कोटे का भूखण्ड प्रत्यर्थी/परिवादी को आवंटित किया जाना अपीलार्थी/विपक्षी ने अपने लिखित कथन में स्वीकार किया है। प्रत्यर्थी/परिवादी को आवंटित भूखण्ड पर कब्जा अभी नहीं दिया गया है और कब्जा देने से अपीलार्थी/विपक्षी ने इंकार नहीं किया है। अत: परिवाद कालबाधित होने का अपीलार्थी की ओर से किया गया कथन स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है। आवंटित भूखण्ड का अनुमानित मूल्य 5,50,000.00 रू0 है और पंजीकरण धनराशि 50,000.00 रू0 है। आवंटित भूखण्ड हापुड विकास प्राधिकरण में स्थित है। अत: अपीलार्थी का यह कथन भी स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है कि परिवाद जिला फोरम के आर्थिक और भौमिक क्षेत्राधिकार से परे है। जिला फोरम का आदेश जो ऊपर अंकित है, को पढने से स्पष्ट है कि जिला फोरम का आदेश वाद के तथ्यों और परिस्थितियों में उचित और विधि अनुकूल है, उसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील बलरहित है। अत: निरस्त की जाती है।
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अपील में उभय पक्ष अपना अपना वाद व्यय स्वयं बहन करेगें।
धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनिमय के अन्तर्गत अपील में जमा धनराशि 25,000.00 रू0 अर्जित ब्याज सहित जिला फोरम को निस्तारण हेतु प्रेषित की जाये।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
हरीश आशु.,
कोर्ट सं0-1