राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1203/2019
(मौखिक)
(जिला उपभोक्ता आयोग, बुलन्दशहर द्वारा परिवाद संख्या 36/2016 में पारित आदेश दिनांक 21.05.2019 के विरूद्ध)
श्रीमती रेखा
पत्नी स्व0 सुनील कुमार
निवासी-मजूपुर, पी0एस0-गौंडा
जिला-अलीगढ़ ........................अपीलार्थी/परिवादिनी
बनाम
मैनेजर, यूनिवर्सल सोम्पो जनरल इंश्योरेंस कम्पनी लि0, यूनिट 401, चतुर्थ तल, संगम काम्पलेक्स, 127 अंधेरी कुर्ला रोड, अंधेरी (ईस्ट) मुम्बई
...................प्रत्यर्थी/विपक्षी
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री आसिफ अनीस,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री दिनेश कुमार,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 23.11.2022
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील इस न्यायालय के सम्मुख जिला उपभोक्ता आयोग, बुलन्दशहर द्वारा परिवाद संख्या-36/2016 श्रीमती रेखा बनाम प्रबन्धक, यूनिवर्सल सोम्पो जनरल इंश्योरेंस कम्पनी लि0 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 21.05.2019 के विरूद्ध योजित की गयी है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला उपभोक्ता आयोग ने उपरोक्त परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
''परिवादिनी का परिवाद विपक्षी के विरूद्ध आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह 30 दिन के अन्दर परिवादिनी को प्रश्नगत वाहन के चोरी होने से दो वर्ष पूर्व में
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विपक्षी को उक्त वाहन के बीमा की बावत अदा की गयी प्रीमियम धनराशि को परिवादिनी को अदा करे अन्यथा निर्णय की तिथि से उक्त धनराशि पर परिवादिनी 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज भी पाने की अधिकारी होगी।''
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री आसिफ अनीस एवं प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री दिनेश कुमार को सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया।
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादिनी के पति स्व0 सुनील कुमार के नाम एक डम्फर टाटा मोटर्स यू0पी0 81 ए.बी. 9278 था, जो विपक्षी बीमा कम्पनी के यहॉं से दिनांक 22.12.2012 से दिनांक 21.12.2013 तक की अवधि के लिए 13,00,000/-रू0 हेतु बीमित था। परिवादिनी के पति की दुर्घटना में दिनांक 11.06.2011 को मृत्यु हो गयी थी तथा यह कि उक्त डम्फर पर फाइनेंस था, जिसके कारण वह परिवादिनी के नाम नहीं हो सका था।
परिवादिनी का कथन है कि परिवादिनी द्वारा उक्त डम्फर का पैसा जमा करके दिनांक 20.10.2013 को एन0ओ0सी0 प्राप्त की थी, परन्तु उक्त डम्फर दिनांक 23/24.10.2013 की रात्रि में करीब 2:30 बजे खुर्जा गांव वाजीदपुर के पास वाईपास पर बने टावर वोडाफोन के पास से चोरी हो गया, जिसकी रिपोर्ट दिनांक 30.10.2013 को अपराध सं0 122/2013 पर दर्ज हुई तथा उसकी सूचना विपक्षी बीमा कम्पनी को भी दी गयी, जिसके पश्चात् विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा सर्वे कराया गया। परिवादिनी द्वारा सभी कागजात बीमा कम्पनी को उपलब्ध कराये गये, परन्तु विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा परिवादिनी को कोई क्लेम नहीं दिया। परिवादिनी द्वारा इस सम्बन्ध में दिनांक 18.12.2015 को विपक्षी को पंजीकृत नोटिस प्रेषित की गयी, परन्तु विपक्षी द्वारा कोई सुनवाई नहीं की गयी। अत: क्षुब्ध होकर परिवादिनी द्वारा विपक्षी के विरूद्ध जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख परिवाद योजित करते हुए निम्न अनुतोष प्रदान किये जाने की प्रार्थना की गयी:-
''अत: श्रीमान जी से प्रार्थना है कि विपक्षी से प्रार्थीया को उक्त
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डम्फर की बीमित धनराशि 13,00000/रू0 (तेरह लाख रू0) व अर्थिक मानसिक क्षति 10,000/रू0 (दस हजार रू0) वाद व्यय के 5,000/रू0 (पॉंच हजार रू0) अर्थात् कुल 13,15,000/रू0 (तेरह लाख पन्द्रह हजार रू0) मय 12 प्रतिशत ब्याज से दिलाये जावे। महान कृपा होगी।''
जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख विपक्षी द्वारा प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया गया तथा कथन किया गया कि परिवादिनी के प्रश्नगत वाहन संख्या यू0पी0 81 ए.बी. 9278 का बीमा मोटर बीमा पॉलिसी के तहत किया गया, जिसके क्लेम का निस्तारण पालिसी की शर्तों एवं प्रावधानों के अनुसार किया जाता है। परिवादिनी के क्लेम की सूचना पर बीमा कम्पनी द्वारा सर्वेयर की नियुक्ति की गयी। बीमा पालिसी दिनांक 22.12.2012 से दिनांक 21.12.2013 तक की अवधि के लिए की गयी थी, जो सुनील कुमार के नाम थी, जबकि सुनील कुमार की मृत्यु दिनांक 11.06.2011 को हो चुकी थी।
विपक्षी का कथन है कि बीमाधारक की मृत्यु होने की दशा में इस बावत सूचना तीन माह के भीतर बीमा कम्पनी को देना आवश्यक होता है तथा बीमाधारक का नाम परिवर्तित कराया जाता है, परन्तु प्रश्नगत मामले में ऐसा नहीं किया गया तथा सुनील कुमार की मृत्यु होने की बावत कोई सूचना बीमा कम्पनी को नहीं दी गयी। सुनील कुमार की मृत्यु की बावत सूचना न दिया जाना अथवा मृतक के नाम से बीमा पालिसी लिया जाना पालिसी की शर्तों एवं प्रावधानों का उल्लंघन है, इसलिए बीमा कम्पनी का कोई दायित्व नहीं बनता है, जिसके संबंध में परिवादिनी को पत्र दिनांक 21.04.2014 के द्वारा सूचना दी गयी। विपक्षी द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गयी। परिवाद खण्डित होने योग्य है।
जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त यह पाया गया कि प्रश्नगत वाहन परिवादिनी के पति सुनील कुमार के नाम था तथा सुनील कुमार की मृत्यु के बाद भी उक्त वाहन परिवादिनी के नाम नहीं हुआ है तथा न ही उसका नाम बीमा प्रपत्र में परिवर्तित हुआ है। प्रश्नगत वाहन चोरी होने की तिथि पर भी सुनील कुमार के नाम ही था। अत: जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा
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वाहन चोरी होने की दशा में उसका क्लेम परिवादिनी को पाने की अधिकारी नहीं माना, परन्तु प्रश्नगत वाहन के चोरी होने से दो वर्ष पूर्व में विपक्षी को उक्त वाहन के बीमा की बावत अदा की गयी प्रीमियम की धनराशि को विपक्षी से परिवादिनी को पाने की अधिकारी पाया गया।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि अपीलार्थी/परिवादिनी सम्पूर्ण बीमा धनराशि पाने की अधिकारी है। तदनुसार अपील स्वीकार करते हुए जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश अपास्त होने योग्य है।
प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश विधिसम्मत है, जिसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा अपने तर्क के समर्थन में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सिविल अपील नं0 7009/2008 युनाईटेड इण्डिया इंश्योरेंस कं0लि0 बनाम सन्तरो देवी आदि में पारित निर्णय दिनांक 02.12.2008 की प्रति प्रस्तुत की गयी तथा उक्त निर्णय के प्रस्तर 15 पर उल्लिखित निम्न तथ्यों की ओर पीठ का ध्यान आकर्षित किया गया:-
“Section 146 provides for statutory insurance. An insurance is mandatorily required to be obtained by the person in charge of or in possession of the vehicle. There is no provision in the Motor Vehicles Act that unless the name(s) of the heirs of the owner of a vehicle is/are substituted on the certificate of insurance or in the certificate of registration in place of the original owner (since deceased), the motor vehicle cannot be allowed to be used in a public place. Thus, in a case where the owner of a motor vehicle has expired, although there does not exist any statutory interdict for the person in possession of the vehicle to ply the same on road; but there being a statutory injunction that the same cannot be plied unless a policy of insurance is obtained, we are of the opinion that the contract of insurance would be enforceable.”
उल्लेखनीय है कि अनेकों वादों में इस न्याय पीठ द्वारा यह पाया गया है कि अनेकों बीमा कम्पनियों द्वारा, विशेष रूप से विभिन्न बैंक द्वारा संचालित बीमा कम्पनियों की कार्यप्रणाली पूर्ण रूप से ‘आंग्ल भाषा’
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(English Language) पर निर्भर करती है, जबकि ज्यादातर बीमा पालिसी लेने वाले व्यक्ति उक्त अंग्रेजी भाषा से पूर्ण रूप से अनभिज्ञ होते हैं अर्थात् उन्हें न तो उसे पढ़ना आता है, न समझ सकते हैं और न उन्हें उसकी अन्य जानकारी बीमा कम्पनियों द्वारा दी जाती है।
बीमा कम्पनी द्वारा अपने उपभोक्ताओं/ग्राहकों को वर्णित तथ्यों की जानकारी कदापि नहीं प्रदान की जाती है, जिससे कि बीमित व्यक्ति उल्लिखित तथ्यों से पूर्ण रूप से अनभिज्ञ रहते हैं तथा अन्ततोगत्वा यदि दुर्भाग्यवश घटना अथवा दुर्घटना होती है तो उन्हें न्यायालय की शरण में जाना पड़ता है तथा सालों दर साल विवाद एवं न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से गुजरना पड़ता है, जो मेरे विचार से विधिक रूप से पूर्णत: अनुचित है क्योंकि प्रश्नगत मामले में परिवादिनी एक अशिक्षित विधवा महिला है, जिसे बीमा सम्बन्धी कोई भी जानकारी न तो पता थी, न ही बीमा कम्पनी द्वारा अवगत करायी गयी थी।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित उपरोक्त विधि व्यवस्था को दृष्टिगत रखते हुए तथा सम्पूर्ण तथ्यों एवं परिस्थितियों पर विचार करते हुए तथा पत्रावली पर उपलब्ध प्रपत्रों एवं जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 21.05.2019 का परिशीलन व परीक्षण करने के उपरान्त मैं इस मत का हूँ कि अपीलार्थी/परिवादिनी को प्रत्यर्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी से प्रश्नगत वाहन की बीमित धनराशि 13,00,000/-रू0 मय 06 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज परिवाद प्रस्तुत किये जाने की तिथि से वास्तविक भुगतान की तिथि तक दिलाया जाना उचित है। इसके साथ ही अपीलार्थी/परिवादिनी को प्रत्यर्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी से मानसिक कष्ट के मद में 10,000/-रू0 एवं वाद व्यय के मद में 5,000/-रू0 दिलाया जाना भी उचित है। तदनुसार प्रस्तुत अपील स्वीकार करते हुए जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश अपास्त किये जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग, बुलन्दशहर द्वारा परिवाद संख्या-36/2016 श्रीमती रेखा बनाम प्रबन्धक,
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यूनिवर्सल सोम्पो जनरल इंश्योरेंस कम्पनी लि0 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 21.05.2019 अपास्त किया जाता है तथा प्रत्यर्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी को आदेशित किया जाता है कि प्रत्यर्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी अपीलार्थी/परिवादिनी को प्रश्नगत वाहन की बीमित धनराशि 13,00,000/-रू0 मय 06 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज परिवाद प्रस्तुत किये जाने की तिथि से वास्तविक भुगतान की तिथि तक एक माह में अदा करें। इसके साथ ही प्रत्यर्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा अपीलार्थी/परिवादिनी को मानसिक कष्ट के मद में 10,000/-रू0 एवं वाद व्यय के मद में 5,000/-रू0 एक माह में अदा किया जाये।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1