मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील सं0 :-1495/2016
(जिला उपभोक्ता आयोग, बॉदा द्वारा परिवाद सं0-135/2011 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 19/10/2015 के विरूद्ध)
Tata Motors Finance Limited 371A, Civil Lines, Janki Complex, Gwalior Road, Jhansi. Through its Manager ………….Appellant
Versus
- Maiyadeen Nishad, S/O Shri Triloka, r/o A-185, Awas Vikas Colony, T.V. Tower, Banda.
- Branch Manager, ICICI Lombard General Insurance Col Ltd, 4th Floor, Eldeco Coroporate Chamber-I, Vibhuti Khand, Gomti Nagar, Lucknow.
- Respondents
समक्ष
- मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य
- मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य
उपस्थिति:
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता:- श्री राजेश चड्ढा
प्रत्यर्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता:-कोई नहीं।
दिनांक:-01.12.2022
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
जिला उपभोक्ता आयोग बॉदा द्वारा परिवाद सं0 135 सन 2011 मइयादीन निषाद बनाम टाटा मोटर्स व अन्य में पारित निर्णय व आदेश दिनांकित 19.10.2015 के विरूद्ध योजित की गयी है, जिसके माध्यम से प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी का परिवाद इस प्रकार आज्ञप्त किया गया कि प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा जमा की गयी रोड़ टैक्स तथा वाहन का विक्रय मूल्य रूपये 1,50,000/- रू0 परिवादी के खाते में जमा किया जाये।
प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी ने परिवाद इन अभिकथनों के साथ योजित किया कि परिवादी ने एक वाहन सं0 यू0पी0 90 बी. 9720 विपक्षी सं0 1 से फाइनेंस कराया था तथा इसका बीमा विपक्षी सं0 2 से कराया था। विपक्षी सं0 2 द्वारा जो कवर नोट जारी किया गया था, उसमें वाहन की संख्या गलत लिखी गयी, जिसके बारे में पत्राचार किया गया, किन्तु वाहन का नम्बर सही नहीं किया गया। प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी के कथनानुसार उसने किश्तें अदा की, किन्तु अपीलार्थी/विपक्षी सं0 1 ने बगैर बकाया का नोटिस दिये हुए दिनांक 17.01.2011 को प्रश्नगत गाड़ी को अपने कब्जे के माध्यम से घसीटवा लिया तथा दिनांक 22.01.2011 को प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा 44,700/- जमा करने पर उसकी गाड़ी छोड़ी गयी। प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी की गाड़ी जो फाइनेंस थी, उसका अंतिम भुगतान 02.07.2012 को जमा होना था। प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी इस धनराशि को पूरा भुगतान करना चाहता है। प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी ने निम्न प्रतिकर की प्रार्थना की:-
1. बीमा पॉलिसी में गलत रजिस्ट्रेशन नम्बर को सही किया जाये तथा गलत नम्बर से बीमा पॉलिसी जारी होने से परिवादी को रूपये 10,650/- रूपये का दण्ड आर0टी0ओ0 बॉदा में जमा करना पड़ा है। वह विपक्षी सं0 2 बीमा कम्पनी से दिलवाया जाये।
2. परिवादी द्वारा जमा की गयी धनराशि जो फाइनेंसर अपीलकर्ता के यहां जमा है। उसका सही हिसाब करके शेष धनराशि अगली किश्तों में समायोजित की जाये तथा परिवादी को रूपये 2,00,000/- क्षतिपूर्ति के रूप में दिलवायी जाये।
विपक्षी द्वारा प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया गया, जिसमें मुख्य रूप से यह कथन किया गया कि बीमा पॉलिसी में यदि कोई कमी थी तो प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी को बीमा कम्पनी से सम्पर्क करना चाहिए था। बीमा पॉलिसी में गलत नम्बर यदि है तो इसमें फाइनेंसर अपीलकर्ता का कोई दोष नहीं है। प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी ने फाइनेंस की किश्तों की अदायगी समय से अदा नहीं की और बार-बार तकादा करने पर धनराशि अदा नहीं की, जिस समय प्रश्नगत वाहन को फाइनेंसर ने अपने कब्जे मे लिया। इसके अतिरिक्त विपक्षी का यह भी कथन आया है कि उभय पक्ष के मध्य हुए करार में पंचाट द्वारा मामले का निस्तारण किये जाने का अनुबंध हुआ था, जिसके प्रभाव से पंचाट का निर्णय इस संबंध में दोनों पक्षों के विवाद के संबंध में दिनांक 08.01.2013 को श्री नितिन चड्ढा द्वारा दिया गया पंचाट के द्वारा निर्णीत किये जाने के कारण भी परिवाद सुने जाने योग्य नहीं है।
विद्धान जिला उपभोक्ता मंच ने दोनों पक्षों को सुनवाई का अवसर देते हुए यह निर्णय दिया कि बीमा कम्पनी ने गलत नम्बर अंकित करने के कारण त्वरित रूप से 2,000/- मानसिक व शारीरिक कष्ट के लिए एवं अन्य धनराशि प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी को प्रदान करे।
अपीलार्थी टाटा फाइनेंस के विरूद्ध यह अवार्ड किया गया कि प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा टैक्स में जमा की गयी धनराशि रू0 17,000/- तथा वाहन का विक्रय मूल्य 1.5 लाख रूपये, मानसिक कष्ट व क्षतिपूर्ति हेतु 5,000/- तथा वाद व्यय हेतु रूपये 1,000/- प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी को दिलवाया जाये, जिससे व्यथित होकर यह अपील प्रस्तुत की गयी है।
अपील में मुख्य रूप से यह आधार लिये गये हैं कि प्रश्नगत निर्णय गलत व तथ्य के विपरीत है तथा परिकल्पना पर आधारित किया गया है। प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी ने अपीलार्थी से फाइनेंस करवाकर वाहन क्रय किया था। ऋण की किश्तों की अदायगी में व्यवधान उत्पन्न हुआ। अत: शांतिपूर्वक अपीलार्थी ने वाहन का कब्जा ले लिया, जो उभय पक्ष के मध्य हुए करार के अनुरूप था। अपील में यह भी आधार लिये गये हैं कि उभय पक्ष के मध्य हुए करार में दोनों पक्षकारों के मध्य विवाद का निस्तारण पंचाट द्वारा किया जाना था। पंचाट द्वारा यह निर्णय दिया गया है, जो अंतिम है तथा पंचाट के निर्णय के अस्तित्व में होने के कारण यह परिवाद पोषणीय नहीं है। इन आधारों पर अपील स्वीकार किये जाने योग्य एवं प्रश्नगत निर्णय को अपास्त किये जाने की प्रार्थना की गयी है।
अपील दिनांक 03.08.2016 को प्रस्तुत की गयी। प्रत्यर्थी को नोटिस प्रेषित किये गये किन्तु वे वापस नहीं आये। आदेश दिनांक 15.02.2017 के माध्यम से प्रत्यर्थी पर नोटिस की तामीला पर्याप्त मानी गयी। इसके उपरान्त भी प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं आया। अत: अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता श्री राजेश चड्ढा को प्रत्यर्थी की अनुपस्थिति मे एकपक्षीय रूप से सुना गया।
इस मामले में परिवाद पत्र के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि प्रत्यर्थी ने अपने परिवाद पत्र में अपीलार्थी से रूपये 10,650/- आर0टी0ओ0 के चालान मे दी गयी धनराशि मांगी है एवं परिवादी द्वारा किश्तों के भुगतान का सही हिसाब करके दिये जाने के अनुतोष की प्रार्थना की है, साथ ही स्वयं प्रत्यर्थीसं0 1/परिवादी द्वारा एक साथ समस्त किश्तों का भुगतान किये जाने की प्रार्थना भी की गयी है। इसके अतिरिक्त आर्थिक, शारीरिक एवं मानसिक पीड़ा के लिए रूपये 2,00,000/- की क्षतिपूर्ति विपक्षीगण से की गयी है।
विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम के निर्णय के अवलोकन से ज्ञात होता है कि अपीलार्थी के विरूद्ध उपरोक्त अनुतोषों की परिधि से बाहर जाकर वाहन का विक्रय मूल्य रूपये 1.5 लाख तथा प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा जमा की गयी रोड़ टैक्स की धनराशि रूपये 17,000/- के अनुतोष प्रदान किये गये हैं, जो परिवाद पत्र में मांगे ही नहीं गये थे। इसके अतिरिक्त मांगे गये अनुतोष में मानसिक व शारीरिक कष्ट के लिए रूपये 2,00,000/- याचित किये गये थे, जिसमें रूपये 5,000/- दिलवाये गये हैं। अत: विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम का उपरोक्त आदेश दोषपूर्ण है क्योंकि प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा मांगे गये अनुतोष की परिधि से बाहर जाकर मनमाने अनुतोष प्रदान किये गये हैं।
अपीलार्थी की ओर से एक तर्क यह दिया गया है कि उभय पक्ष के मध्य पंचाट के माध्यम से विवाद का निस्तारण किये जाने का करार किया गया था एवं उक्त करार के प्रकाश में एक पंचाट का निर्णय भी पारित किया गया है, यदि यह निर्णय प्रत्यर्थी की अनुपस्थिति में दिया गया है तो प्रत्यर्थी के पास यह विकल्प था कि वह पंचाट के समक्ष अपना आवेदन प्रस्तुत कर सकता था।
इस संबंध में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय दि इन्स्टालमेंट सप्लाई लिमिटेड प्रति कांगड़ा एक्स-सर्विसमैन ट्रासपोर्ट कम्पनी प्रकाशित 2006 (III) CPR page 339 (N.C.) इस संबंध में उल्लेखनीय है। इस निर्णय में माननीय राष्ट्रीय आयोग ने यह निर्णीत किया है कि केवल उभय पक्ष के मध्य हुए करार में विवाद का निस्तारण पंचाट द्वारा किये जाने का उपबंध परिवाद के क्षेत्राधिकार से बाधित नहीं करता है किन्तु यदि पंचाट का निर्णय अस्तित्व में आ गया है। प्रस्तुत मामले पंचाट का निर्णय दिनांकित 08.01.2013 द्वारा नितिन चड्ढा की प्रतिलिपि अभिलेख पर है। यह पंचाट का अवार्ड टाटा मोटर फाइनेंस तथा परिवादी मय्यादीन निषाद के मध्य हुए विवाद में पारित किया गया है। अत: उक्त निर्णय के होते हुए परिवाद माननीय राष्ट्रीय आयोग के उपरोक्त निर्णयों के अनुसार पोषणीय नही है। उस निर्णय के अस्तित्व में रहते हुए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत दूसरा निर्णय प्रदान किया जाना उचित नहीं है और इस कारण पंचाट निर्णय अस्तित्व मे होने की दशा में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत परिवाद पोषणीय नहीं रह जाता है।
माननीय राष्ट्रीय आयोग के उपरोक्त निर्णय को दृष्टिगत करते हुए यह परिवाद विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम के समक्ष पोषणीय नहीं है। इस कारण भी परिवाद में पारित प्रश्गनत निर्णय अपास्त किये जाने योग्य है।
उपरोक्त के अतिरिक्त प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा यह स्वीकार किया गया है कि उसके द्वारा ऋण की किश्तों की अदायगी समय-समय पर नहीं की गयी है एवं अपने प्रतिवाद पत्र के प्रतिकर अनुतोष में उसने सही हिसाब करके शेष धनराशि दिये जाने का कथन किया है, जो यह स्पष्ट करता है कि परिवादी ने ऋण की किश्तों की अदायगी नहीं की है। इस कारण विपक्षी द्वारा प्रश्नगत वाहन को अपने कब्जे में लिया जाना उचित है। परिवादी का यह आक्षेप है कि बिना किसी सूचना के वाहन को कब्जे में लिया गया। उक्त तर्क के प्रकाश में उभय पक्ष के मध्य हुए करार/संविदा का देखा जाना आवश्यक है, जिसके शर्त सं0 18.1 में यह अंकित है-
Further the lender shall be entitled to, at the times to, take possession, seize recover, appoint a receiver/Manager, remove the Asset from its place of standing, and also be entitled, on such terms as may be deemed fit by the Lender, without the intervention of court or authority sell the asset by public auction or by private contract at the best avaible prices according to the prevailing market condition including as regards repossed vehicle/Assets, realize, its claims in respect of the loan, without being bound or being liable for any loss/losses that the Obligor may suffer due to such auction and without prejudice the Lender’s other rights and remedies as stated herein or otherwise in law entitled to.
उपरोक्त शर्त से स्पष्ट होता है कि दोनों पक्षकारों के मध्य यह करार था कि ऋणदाता किश्तों की अदायगी न होने पर प्रश्गनत वाहन को बिना किसी पूर्व सूचना के अपने कब्जे में ले सकता है। इस संबंध में माननीय सर्वोच्च न्यायानलय द्वारा पारित निर्णय मैसर्स मैग्मा फिनकार्प लिमिटेड प्रति राजेश कुमार तिवारी प्रकाशित 10 SCC page 399 उल्लेखनीय है इस निर्णय के प्रस्तर 88, 89 एवं 90 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि यदि उभय पक्ष के मध्य हुए करार में यह दिया गया है कि फाइनेसर प्रश्नगत वाहन को बिना किसी पूर्व सूचना के अपने कब्जे में ले सकता है तो उसका यह कार्य नोटिस के अभाव में विधि विरूद्ध नहीं कहा जा सकता है।
प्रस्तुत मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय का उपरोक्त निर्णय लागू होता है इस मामले में उभय पक्ष के मध्य हुए करार के प्रस्तर 18 मे यह स्पष्ट किया गया था कि ऋण की अदायगी न होने पर फाइनेंसर को यह अधिकार है कि वह प्रश्नगत वाहन को अपने कब्जे में ले सकता है। अत: उपरोक्त उपबंधके होते हुए अपीलार्थी द्वारा प्रश्नगत वाहन को अपने कब्जे में लिया जाना विधि विरूद्ध नहीं कहा जा सकता और इस कारण परिवादी को मानसिक क्लेश के निमित्त धनराशि दिलाया जाना न्यायोचित है।
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि पंचाट का निर्णय अस्तित्व में होने के कारण, प्रश्नगत निर्णय में प्रत्यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा मांगे गये अनुतोष के परे अनुतोष प्रदान किये जाने एवं अपीलार्थी द्वारा उचित प्रकार से वाहन को अपने कब्जे में लिये जाने के कारण प्रश्नगत निर्णय अपीलार्थी के विरूद्ध अपास्त किये जाने योग्य है। परिवाद के विपक्षी सं0 2 बीमा कम्पनी के विरूद्ध निर्णय यथावत रहने योग्य है, तदनुसार अपील स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील स्वीकार की जाती है। अपीलार्थी के विरूद्ध प्रश्नगत निर्णय अपास्त किया जाता है। परिवाद के विपक्षी सं0 2 के विरूद्ध निर्णय यथावत रहेगा।
धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत अपील में जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को नियमानुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाये।
उभय पक्ष अपीलीय वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(विकास सक्सेना)(सुशील कुमार)
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संदीप आशु0 कोर्ट 2