Uttar Pradesh

StateCommission

A/2009/1279

Lal Singh Yadav - Complainant(s)

Versus

Maharani LAxmi Bai Medical Collage - Opp.Party(s)

Alok Sinha

23 Sep 2024

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2009/1279
( Date of Filing : 30 Jul 2009 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District )
 
1. Lal Singh Yadav
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Maharani LAxmi Bai Medical Collage
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MRS. SUDHA UPADHYAY MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 23 Sep 2024
Final Order / Judgement

(मौखिक)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

अपील संख्‍या-1279/2009

लाल सिंह यादव पुत्र श्री ठाकुर दास यादव

बनाम

महारानी लक्ष्‍मी बाई मेडिकल कालेज, झांसी तथा दो अन्‍य

एवं

अपील संख्‍या-1424/2009

डा0 मृदुला कपूर पत्‍नी डा0 के.पी. सिंह

बनाम

लाल सिंह यादव पुत्र श्री ठाकुर दास यादव तथा दो अन्‍य

समक्ष:-                                                              

1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य।

2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्‍याय, सदस्‍य।

दिनांक : 23.09.2024 

माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

1.    परिवाद संख्‍या-20/2002, लाल सिंह यादव बनाम महारानी लक्ष्‍मी बाई मेडिकल कालेज तथा दो अन्‍य में विद्वान जिला आयोग, झांसी द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 24.6.2009 के विरूद्ध अपील संख्‍या-1279/2009, परिवादी की ओर से क्षतिपूर्ति की राशि में बढ़ोत्‍तरी के लिए प्रस्‍तुत की गई है, जबकि अपील संख्‍या-1424/2009 विपक्षी संख्‍या-2, डा0 की ओर से प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश को अपास्‍त करने के लिए प्रस्‍तुत की गई है। चूंकि दोनों अपीलें एक ही निर्णय/आदेश से प्रभावित हैं, इसलिए दोनों अपीलों का निस्‍तारण एक ही निर्णय/आदेश द्वारा एक साथ किया जा रहा है, इस हेतु अपील संख्‍या-1279/2009 अग्रणी अपील होगी।

2.    उपरोक्‍त दोनों अपीलों में परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री आलोक सिन्‍हा तथा विपक्षी संख्‍या-2 की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री विकास  अग्रवाल  तथा  बीमा  कंपनी  की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री

-2-

जे.एन. मिश्रा को सुना गया तथा प्रश्‍नगत निर्णय/पत्रावलियों का अवलोकन किया गया।

3.    विद्वान जिला आयोग ने इलाज के दौरान लापरवाही बरतने के कारण अंकन 50,000/-रू0 क्षतिपूर्ति एवं अंकन 2,000/-रू0 परिवाद व्‍यय अदा करने के लिए विपक्षी सं0-2 को आदेशित किया है।

4.    परिवाद के तथ्‍यों के अनुसार दिनांक 14.4.1999 को सुबह 10.00 बजे परिवादी ने अपनी पत्‍नी श्रीमती चन्‍द्रा यादव को मेडिकल कालेज, झांसी में डीएनसी कराने हेतु भर्ती कराया था और दो रूपये का टिकट लिया था। परिवादी ने गरीबों को दी जाने वाली चिकित्‍सा योजना के अंतर्गत अपनी पत्‍नी का इलाज कराया था। परिवादी ने विपक्षी सं0-2 से प्रार्थना की थी कि उसकी पत्‍नी का आपरेशन ठीक से कर दें, जिससे विपक्षी सं0-2 नाराज हो गईं और परिवादी की पत्‍नी को बेहोशी हालत में आपरेशन के बाद अस्‍पताल से छुट्टी दे दी गई, जिसके कारण घर पहुँचने पर दर्द हुआ और दर्द अत्‍यधिक बढ़ने पर विपक्षी सं0-2 को दिखाने के लिए गया तब उन्‍होंने देखने से इंकार कर दिया। मजबूरी में परिवादी ने अपनी पत्‍नी को सावित्री नर्सिंग होम में दिनांक 15.4.1999 को भर्ती कराया और अल्‍ट्रासाउण्‍ड करने के पश्‍चात पाया कि डीएनसी के आपरेशन में परिवादी की पत्‍नी के पेट की आंत कट गई है तथा चार घाव आए हैं, इसके बाद दिनांक 17.4.1999 से दिनांक 7.5.1999 तक कमला हॉस्पिटल में तथा दिनांक 27.5.1999 से दिनांक 21.6.1999 तक मेडिकल कालेज झांसी में इलाज चलता रहा। विपक्षी सं0-2 की लापरवाही के कारण परिवादी की पत्‍नी का लम्‍बे समय तक इलाज चला, जिसमें अत्‍यधिक पैसा खर्च हुआ, इसलिए क्षतिपूर्ति हेतु परिवाद प्रस्‍तुत किया गया, जिसे स्‍वीकार करते हुए विद्वान जिला आयोग ने उपरोक्‍त वर्णित निर्णय/आदेश पारित किया।

5.    अपीलार्थी/विपक्षी सं0-2, डा0 के विद्वान अधिवक्‍ता का यह तर्क है कि नजीर, Indian Medical Association Vs. V.P. Shanta & Ors

-3-

में माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा दी गई व्‍यवस्‍था के अनुसार जो अस्‍पताल तथा डा0 शुल्‍क लिए बिना अपनी सेवाएं प्रदान करते हैं, वे उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा (2)(1)(O) के अंतर्गत नहीं आते। टोकन अमाउंट का भुगतान इस स्थिति को परिवर्तित नहीं करता। प्रस्‍तुत केस में भी परिवादी द्वारा केवल टोकन अमाउंट का भुगतान किया गया है। अत: उसके द्वारा नि:शुल्‍क सेवा ली गई हैं। नि:शुल्‍क सेवाएं लेने के कारण विपक्षी सं0-2 के विरूद्ध क्षतिपूर्ति के लिए उपभोक्‍ता परिवाद प्रस्‍तुत नहीं किया जा सकता था।

6.    परिवादी की ओर से यह बहस की गई है कि अस्‍पताल में दो तरह के लोग सेवाएं प्राप्‍त करते हैं। प्रथम जो शुल्‍क अदा करते हैं तथा द्वितीय जो गरीब होने के कारण नि:शुल्‍क सेवाएं प्राप्‍त करते हैं, परन्‍तु दोनों सेवाएं प्राप्‍त करने की श्रेणी में आते हैं तथा अस्‍पताल सेवाप्रदाता की श्रेणी में आते हैं। अपने इस तर्क के समर्थन में नजीर, भारत संघ तथा अन्‍य बनाम एन.के. श्रीवास्‍तव तथा अन्‍य प्रस्‍तुत की गई है। इस केस के तथ्‍यों के अनुसार परिवादी की पत्‍नी गर्भवती थी, उसे सर्वोदय अस्‍पताल में दिनांक 9.3.2004 को भर्ती कराया गया, जिनके द्वारा 8.00 बजे एक बच्‍चे को जन्‍म दिया गया, जो समय से पूर्व उत्‍पन्‍न हुआ था तथा नर्सरी आईसीयू की आवश्‍यकता थी, इसलिए सफदरजंग अस्‍पताल में रेफर कर दिया गया। सर्वोदय अस्‍पताल के विरूद्ध शिकायत यह थी कि इसमें नर्सरी आईसीयू उपलब्‍ध है। सफदरजंग अस्‍पताल द्वारा नवजात को नर्सरी आईसीयू में नहीं रखा गया। पहले जनरल वार्ड में तथा उसके बाद जनरल आईसीयू में रखा गया और अप्रैल 2004 में नवजात की मृत्‍यु हो गई। दोनों अस्‍पतालों के विरूद्ध उपभोक्‍ता परिवाद प्रस्‍तुत किया गया। सर्वोदय अस्‍पताल के विरूद्ध परिवाद इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि अस्‍पताल में नर्सरी आईसीयू उपलब्‍ध थे तथा सफदरजंग अस्‍पताल को इस आधार पर उनमोचित कर दिया गया कि वह सरकारी अस्‍पताल है। अपीलीय पीठ ने

-4-

सर्वोदय अस्‍पताल को उत्‍तरदायी माना और दो लाख रूपये की क्षतिपूर्ति का आदेश पारित किया। रिवीजन में माननीय राष्‍ट्रीय उपभोक्‍ता आयोग द्वारा यह निर्धारित किया गया कि सर्वोदय अस्‍पताल उत्‍तरदायी नहीं है, क्‍योंकि परिवादी की पत्‍नी को अत्‍यधिक गंभीर स्थिति में आपातकाल में भर्ती किया गया था और परिवादी की सहमति से उच्‍च स्‍तरीय अस्‍पताल में रेफर किया गया था। सफदरजंग अस्‍पताल द्वारा यह कथन किया गया कि उनके द्वारा कोई फीस प्राप्‍त नहीं की गई। अत: परिवादी उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आते। जो नजीर परिवादी की ओर से प्रस्‍तुत की गई है, इसमें यह प्रश्‍न अंतिम रूप से निस्‍तारित नहीं हुआ कि नि:शुल्‍क सेवा प्रदान करने वाले हॉस्पिटल सेवाप्रदाता की श्रेणी में आते हैं। माननीय न्‍यायालय ने केवल मामूली क्षतिपूर्ति के आधार पर अपील को निस्‍तारित किया है और इस प्रश्‍न को अनुत्‍तरित छोड़ दिया गया है कि क्‍या सफदरजंग अस्‍पताल अधिनियम की धारा (2)(1)(O) के अंतर्गत आएंगे तथा यह उल्‍लेख किया गया कि किसी उचित केस में इस प्रश्‍न का निर्धारण किया जाएगा। अत: इस उल्‍लेख का तात्‍पर्य यह है कि इण्डियन मेडिकल एसोसिएशन में पारित किया गया निर्णय प्रभावी है। परिवादी द्वारा केवल एक टोकन मात्र लिया गया है, जिस पर परिवादी की पत्‍नी का नाम अंकित किया गया है। टोकन के लिए धन खर्च करना शुल्‍क की श्रेणी में नहीं आता, इसलिए विद्वान जिला आयोग द्वारा एक गैर उपभोक्‍ता परिवाद पर अपना निर्णय/आदेश पारित किया गया है, जो अपास्‍त होने और अपील संख्‍या-1424/2009 स्‍वीकार होने तथा अपील संख्‍या-1279/2009 निरस्‍त होने योग्‍य है।

आदेश

7.    अपील संख्‍या-1424/2009 स्‍वीकार की जाती है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 24.06.2009 अपास्‍त किया जाता है तथा गैर उपभोक्‍ता परिवाद खारिज किया जाता है।

-5-

प्रस्‍तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्‍त जमा धनराशि अर्जित ब्‍याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।

     परिवादी की ओर से प्रस्‍तुत अपील संख्‍या-1279/2009 निरस्‍त की जाती है।

इस निर्णय/आदेश की मूल प्रति अपील संख्‍या-1279/2009 में रखी जाए तथा इसकी एक सत्‍य प्रति संबंधित अपील में भी रखी जाए।

आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।

 

 

(सुधा उपाध्‍याय)                           (सुशील कुमार(

  सदस्‍य                                   सदस्‍य

 

  लक्ष्‍मन, आशु0, कोर्ट-2

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MRS. SUDHA UPADHYAY]
MEMBER
 

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