राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(मौखिक)
अपील संख्या:-143/2022
लखनऊ विकास प्राधिकरण, लखनऊ द्वारा उपाध्यक्ष व दो अन्य
...........अपीलार्थी
बनाम
श्रीमती रंजना लता पत्नी श्री विजय टण्डन, निवासिनी सुरजा भवन सं0-538क/114, एफ0, त्रिवेणीनगर प्रथम, सीतापुर रोड़, लखनऊ।
वर्तमान पता-फ्लैट सं0-सी-5/31, सुलभ आवास कालोनी, सेक्टर-जे जानकीपुरम्, कुर्सी रोड, लखनऊ।
…….. प्रत्यर्थी/परिवादिनी
अपील संख्या:-1461/2018
श्रीमती रंजना लता पत्नी श्री विजय टण्डन, निवासिनी सुरजा भवन सं0-538क/114, एफ0, त्रिवेणीनगर प्रथम, सीतापुर रोड़, लखनऊ।
...........अपीलार्थी/परिवादिनी
बनाम
लखनऊ विकास प्राधिकरण, लखनऊ द्वारा उपाध्यक्ष आदि।
…….. प्रत्यर्थीगण
ए0ई0ए0 संख्या:-10/2021
श्रीमती रंजना लता पत्नी श्री विजय टण्डन, निवासिनी सुरजा भवन सं0-538क/114, एफ0, त्रिवेणीनगर प्रथम, सीतापुर रोड़, लखनऊ।
वर्तमान पता-फ्लैट सं0-सी-5/31, सुलभ आवास कालोनी, सेक्टर-जे, जानकीपुरम्, कुर्सी रोड, लखनऊ।
...........अपीलार्थी/परिवादिनी
बनाम
लखनऊ विकास प्राधिकरण, लखनऊ द्वारा उपाध्यक्ष आदि।
…….. प्रत्यर्थीगण
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष
अपीलार्थी/लखनऊ विकास प्राधिकरण
के अधिवक्ता : श्री दिलीप कुमार शुक्ला
प्रत्यर्थी/परिवादिनी के अधिवक्ता : श्री एम0एच0 खान
दिनांक :-17.10.2024
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मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील (अपील सं0-143/2022) अपीलार्थी/विपक्षीगण लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा इस आयोग के सम्मुख धारा-41 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अन्तर्गत जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, द्वितीय लखनऊ द्वारा परिवाद सं0-527/2014 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 12.6.2018 के विरूद्ध योजित की गई है।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी श्रीमती रंजना लता द्वारा भी उपरोक्त निर्णय/आदेश दिनांक 12.6.2018 के विरूद्ध अपील सं0-1461/2018 प्रश्नगत आदेश में संशोधन अथवा आदेश में बढोत्तरी हेतु प्रस्तुत की गई है।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी श्रीमती रंजना लता द्वारा एक अन्य अपील/ए0ई0ए0 सं0-10/2021 जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा निष्पादन वाद सं0-82/2018 में पारित आदेश दिनांक 22.3.2021 के विरूद्ध उपरोक्त आदेश को अपास्त किये जाने हेतु प्रस्तुत की गई है।
तीनों अपीलों में अपीलार्थी/विपक्षीगण लखनऊ विकास प्राधिकरण की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री दिलीप कुमार शुक्ला तथा प्रत्यर्थी/परिवादिनी श्रीमती रंजना लता के विद्वान अधिवक्ता श्री एम0एच0 खान को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं तीनों पत्रावलियों पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का परिशीलन किया गया।
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार है कि परिवादिनी द्वारा लखनऊ विकास प्राधिकरण सुलभ आवास योजना स्थित सीतापुर रोड, लखनऊ में सम्पत्ति के लिये रजिस्ट्रेशन कराया गया, जिसका रजिस्ट्रेशन सं0 3032711 है। उक्त के संबंध में परिवादिनी ने रजिस्ट्रेशन धनराशि रू0
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20,000/- द्वारा बैंक ड्राफ्ट सं0022218 यूनियन बैंक आफ इण्डिया दिनांक 10.02.2010 द्वारा सचिव लखनऊ विकास प्राधिकरण लखनऊ के पक्ष में बनवाकर जमा किया। विपक्षी द्वारा परिवादिनी को फ्लैट् सं0 सी 5/31 स्थित सीतापुर रोड बहुखण्डीय प्रस्तावित बहुखण्डीय इमारत में आवंटित किया गया और उसे आवंटित पत्र दिनांक 04.6.2010 प्राप्त कराया गया। आवंटन पत्र के अनुसार परिवादिनी को उक्त संम्पत्ति सं0 सी-5/31 की अनुमानित मूल्य रू0 3,95,000/- दि0 31.8.2011 तक विभिन्न किस्तों में जमा करने का निर्देश जारी किया गया। प्राधिकरण के निर्देशानुसार परिवादिनी ने दि0 24.7.2010 को रू0 40,000/- प्रथम किस्त चालान सं0- 16 और बुक सं0 29892 दिनांक 24.7.2010 प्राधिकरण के बैंक में जमा किये।
यह भी कथन किया कि आवंटित सम्पत्ति की शेष धनराशि जमा करने के लिये परिवादिनी को बैंक से ऋण के लिये प्रार्थना पत्र देना पड़ा, जिस पर बैंक द्वारा ऋण स्वीकृत संबंधी प्रपत्र दाखिल करने के लिये निर्देश दिये। परिवादिनी की आर्थिक स्थिति उस समय ऐसी नहीं थी कि वह आवंटित भवन की बकाया धनराशि नियत समय तक जमा कर सकें। परिवादिनी जमानत राशि जमा नहीं कर पायी जिससे संबंधित बैंक द्वारा परिवादिनी का ऋण स्वीकृत करने से मना कर दिया गया। विपक्षी द्वारा दिनांक 19.4.2014 को पत्र द्वारा बताया गया कि उक्त संम्पत्ति की अवशेष धनराशि रू0 4,11,046/- का भुगतान दिनांक 30.11.2011 तक जमा कर दिया जाय और अंतिम अवसर प्रदान करते हुये दिनांक 18.5.2014 तक संबंधित धनराशि सब्याज के जमा करने का निर्देश जारी किया गया। परिवादिनी ने तुरंत ही उक्त धनराशि उक्त तिथि तक जमा करने के लिये भवन स्वीकृत कराने के लिये प्रार्थना पत्र आर्यावर्त ग्रामीण बैंक में आवेदन पत्र दिया जिस पर संबंधित बैंक
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मैनेजर द्वारा प्राधिकरण से अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी कर प्रस्तुत करने का निर्देश जारी किया। परिवादिनी ने अनापत्ति प्रमाण पत्र लेने के लिये प्राधिकरण में प्रार्थना पत्र दिनांक 28.4.2014 को दिया और प्राधिकरण द्वारा अनापत्ति प्रमाण पत्र उसे दिनांक 03.5.2014 को जारी कर दिया। परिवादिनी लगातार बैंक से संपर्क कर रही है और उसका ऋण स्वीकृत होने वाला है। परिवादिनी ने धनराशि जमा करने हेतु प्राधिकरण में प्रार्थना पत्र दिया। प्राधिकरण द्वारा विचारोंपरान्त दिनांक 19.11.2014 को एक पत्र जारी किया गया, जिसमें परिवादिनी को दिनांक 07.12.2014 तक रू0 6,96,000/- मय ब्याज जमा करना था। परिवादिनी ने दिनांक 06.12.2014 को एक प्रार्थना पत्र प्राधिकरण के कार्यालय में 15 दिन के अंदर अवशेष धनराशि जमा करने के संबंध में दिया है। अत्एव क्षुब्ध होकर परिवाद जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख आवंटित फ्लैट आवंटित दर पर एवं उसका पंजीकरण बैनामा व कब्जा दिलाये जाने के साथ ही क्षतिपूर्ति का अनुतोष दिलाये जाने की प्रार्थना के साथ प्रस्तुत किया गया।
विपक्षी की ओर से जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख अपना प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत कर यह कथन किया गया कि परिवादिनी को सुलभ आवास बहुखण्डीय अपार्टमेन्ट योजना में तृतीय तल पर दिनांक 18.3.2010 को लॉटरी द्वारा स्व वित्त पोषित योजना के अन्तर्गत आवंटित हुआ है, जिसका अनुमानित मूल्य रू0 3.95,000/- था। आवंटन पत्र दिनांक 04.6.2010 को निर्गत किया गया था, जिसमें अवशेष धनराशि की प्रथम किस्त दिनांक 30.6.2010 को रु0 40,000/- द्धितीय किस्त दिनांक 31.8.2010 को रु0 61,841/- तृतीय किस्त दिनांक 30.11.2010 को रू0 61.841/- चतुर्थ किस्त दिनांक 28.02.2011 को रू0 61,841/- पंचम किस्त दिनांक 31.5.2011 को
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रू0 61,841/- षष्ठम किस्त दिनांक 31.8.2011 को रू0 61,841/- तथा सप्तम् किस्त दिनांक 30.11.2011 को रू0 61,841/- को जमा करनी थी। इसके अतिरिक्त आवंटन पत्र में यह भी अंकित था कि अंतिम भुगतान रजिस्ट्री के समय यदि होगा तो उसे भी देना होगा तथा भुगतान के संबंध में भी स्पष्ट अंकित था कि किस्त का भुगतान विलम्ब होने पर तीन माह तक नियमानुसार ब्याज सहित बाद में भुगतान न होने के दशा में उपाध्यक्ष, ल०वि०प्रा० को अधिकार होगा कि वह आवंटन निरस्त कर दें।
यह भी कथन किया गया कि परिवादिनी द्वारा प्रथम किस्त दिनांक 30.6.2010 को रू0 40,000/- जमा करनी थी, जो उसके द्वारा दिनांक 24.7.2010 को जमा की गई। परिवादिनी को नोटिस के द्वारा यह बताया गया था कि अवशेष धनराशि रू0 4,11,046 /- मात्र का भुगतान दिनांक 30.11.2011 तक करना था, जो उसने नहीं किया। इसके उपरान्त विपक्षी को पुनः पत्र भेजकर बताया गया कि दिनांक 17.5.2014 तक सब्याज अवशेष धनराशि जमा करके कार्यालय को दिनांक 18.5.2014 तक सूचित करें अन्यथा यह समझा जायेगा कि आप भवन लेने के लिए इच्छुक नहीं है तथा भूखण्ड/भवन अन्य प्रतीक्षारत प्रार्थी को आवंटित कर दिया जायेगा। परिवादिनी ने अनापत्ति प्रमाण पत्र की प्रार्थना किया जिसे उसे उसी दिन तैयार करके दे दिया गया। परिवादिनी को कई अवसर धनराशि जमा करने के लिये दिये गये। परिवादिनी को दिनांक 19.11.2014 के पत्र द्वारा यह अवगत कराया गया कि दिनांक 07.12.2014 तक धनराशि रू0 6,96,000/- जमा करनी है। देय तिथि तक धनराशि जमा न करने की दशा में आवंटन स्वतः निरस्त हो जायेगा लेकिन परिवादिनी ने कोई धनराशि जमा नहीं की। परिवादिनी को आवंटित भवन की अवशेष धनराशि
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समय से जमा न करने के कारण ही भवन का आवंटन निरस्त किया गया। विपक्षी ने सेवा में कोई कमी नहीं की है। अतएव परिवादिनी का परिवाद संव्यय निरस्त होने योग्य है।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्य पर विस्तार से विचार करने के उपरांत परिवाद को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
"परिवादिनी का परिवाद आंशिक रुप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह इस निर्णय की तिथि से दो माह के अंदर परिवादिनी को प्रश्नगत फ्लैट् को कम्पलीट करवाकर उस पर बिजली, पानी की समुचित व्यवस्था करके उसे उसका कब्जा दें व उसका विक्रय विलेख उसके पक्ष में कर दें। इसके अतिरिक्त विपक्षी परिवादिनी से अब कोई धनराशि नहीं लेगें। इसके अतिरिक्त विपक्षी परिवादिनी को मानसिक कष्ट हेतु रु0 15,000/- तथा रू0 10,000/- वाद व्यय अदा करें। ऐसा न करने की दशा में विपक्षी परिवादिनी को रू0 3000/- प्रतिमाह की दर से अदा करेगें।"
जिला उपभोक्ता आयोग के प्रश्नगत निर्णय/आदेश से क्षुब्ध होकर परिवाद की परिवादिनी एवं विपक्षीगण की ओर से अपीलें योजित की गई हैं।
मेरे द्वारा उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण को विस्तार पूर्वक सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं समस्त प्रपत्रों का अवलोकन किया गया।
समस्त तथ्यों को दृष्टिगत रखने के उपरांत एवं अपीलार्थी व प्रत्यर्थी के अधिवक्तागण द्वारा इस न्यायालय को अवगत कराया गया कि जिला उपभोक्ता आयोग के उपरोक्त निर्णय/आदेश दिनांक 12.6.2018 के पश्चात परिवादिनी द्वारा दिनांक 19.8.2019 को
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सम्बन्धित आवंटित फ्लैट का कब्जा प्राप्त किया जा चुका है, तदोपरांत परिवादिनी अपने परिवार के साथ उपरोक्त आवंटित फ्लैट में निवासित है।
समस्त तथ्यों को दृष्टिगत रखने के उपरांत मेरे विचार से जिला उपभोक्ता आयोग का आदेश पूर्ण रूप से विधिक एवं उचित पाया जाता है। निर्विवादित रूप से जिला उपभोक्ता आयोग के आदेश के अनुपालन में अपेक्षित मानसिक कष्ट हेतु रू0 15,000.00 एवं वाद व्यय हेतु रू0 10,000.00 की धनराशि उपरोक्त निर्णय/आदेश दिनांक 12.6.2018 के अनुपालन में परिवादिनी को नहीं प्राप्त करायी गई है तद्नुसार उपरोक्त धनराशि को 06 प्रतिशत ब्याज की देयता के साथ परिवाद निर्णीत किये जाने की तिथि अर्थात दिनांक 12.6.2018 से भुगतान की तिथि तक ऊपर उल्लिखित धनराशि के साथ 30 दिन की अवधि में प्राप्त करायी जावे। उपरोक्त आदेश का यह अंश कि "ऐसा न करने की दशा में विपक्षी परिवादिनी को रू0 3,000.00 प्रतिमाह की दर से अदा करेगें," को समाप्त किया जाता है।
तद्नुसार प्रस्तुत अपील (अपील सं0-143/2022) अंतिम रूप से निस्तारित की जाती है।
जहॉ तक परिवादिनी श्रीमती रंजना लता की ओर से प्रस्तुत अपील सं0-1461/2018 में प्रश्नगत आदेश को संशोधित किये जाने का प्रश्न है, चूंकि अपील (अपील सं0-143/2022) जो कि एक ही निर्णय व आदेश के विरूद्ध योजित की गई है, को अंतिम रूप से निस्तारित किया जा रहा है अत्एव प्रश्नगत आदेश में संशोधन अथवा बढोत्तरी का कोई पर्याप्त एवं उचित आधार नहीं पाया जाता है। तद्नुसार परिवादिनी श्रीमती रंजना लता की ओर से प्रस्तुत अपील सं0-1461/2018 निरस्त की जाती है।
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तद्नुसार परिवादिनी श्रीमती रंजना लता की ओर से प्रस्तुत ए0ई0ए0 सं0-10/2021, जोकि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा निष्पादन वाद सं0-82/2018 में पारित आदेश दिनांक 22.3.2021 के विरूद्ध योजित की गई है, भी निस्तारित की जाती है, क्योंकि मूल आदेश के विरूद्ध योजित अपील सं0-143/2022 तथा परिवादिनी श्रीमती रंजना लता द्वारा योजित अपील सं0-1461/2018 निर्णीत की जा चुकी हैं।
इस निर्णय/आदेश की मूल प्रति अपील सं0-143/2022 में रखी जाए एवं इस निर्णय/आदेश की एक-एक प्रमाणित प्रतिलिपि अपील सं0-1461/2018 एवं ए0ई0ए0 सं0-10/2021 में भी रखी जाए।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत अपील सं0- सं0-143/2022 में जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।
आशुलिपिक/वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
हरीश सिंह
वैयक्तिक सहायक ग्रेड-2.,
कोर्ट नं0-1