Uttar Pradesh

Chanduali

CC/69/2012

Savitri Devi - Complainant(s)

Versus

L.I.C - Opp.Party(s)

25 Feb 2016

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. CC/69/2012
 
1. Savitri Devi
Vill- Katarupur Po-Patti Dist Chandauli
...........Complainant(s)
Versus
1. L.I.C
Mughalsarai Chandauli
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE Ramjeet Singh Yadav PRESIDENT
 HON'BLE MRS. Shashi Yadav MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, चन्दौली।
परिवाद संख्या 69                               सन् 2012ई0
श्रीमती सावित्री उम्र 45 वर्ष पत्नी स्व0 रामसेवक ग्राम कटारूपुर पो0 पट्टी थाना बलुआ जिला चन्दौली।
                                      ...........परिवादी                                                                                                                                    बनाम
शाखा प्रबन्धक भारतीय जीवन बीमा निगम शाखा मुगलसराय, चन्दौली।
                                            .............................विपक्षी
उपस्थितिः-
 रामजीत सिंह यादव, अध्यक्ष
 शशी यादव, सदस्या
                               निर्णय
द्वारा श्री रामजीत सिंह यादव,अध्यक्ष
1-    परिवादिनी ने यह परिवाद विपक्षी बीमा कम्पनी से दुर्घटना हित लाभ की बीमा धनराशि रू0 1,25000/-एवं रू0 50000/- व मानसिक एवं शारीरिक क्षति हेतु तथा रू0 25000/- हर्जे के रूप में अर्थात कुल रू0 2,00000/- दिलाये  जाने हेतु प्रस्तुत किया है। 
2-    परिवादिनी ने संक्षेप में कथन किया है कि परिवादिनी के पति स्व0 रामसेवक यादव ने अजनाम जीवन सरल(लाभ सहित) पालिसी संख्या 287168884 विपक्षी बीमा कम्पनी से उसकी शर्तो पर एवं उसके नियमों एवं विनियमों के अधीन सभी औपचारिकताएं पूर्ण करके  दिनांक 24-6-2010 को प्राप्त किया। जिसकी पूर्णावधि दिनांक 24-6-2025 एवं वार्षिक प्रीमियम रू0 6005/- थी। जिसमे परिवादिनी बतौर नामिनी थी। परिवादिनी के पति दिनांक 3-6-2011 को सांयकाल लगभग 4 बजे वाराणसी रेलवे स्टेशन पर ताप्ती गंगा एक्सप्रेस में चढते समय फिसल कर गिर गये और उन्हें काफी गम्भीर चोटे आयी और उसी समय पुलिस द्वारा शिव प्रसाद गुप्त हास्पिटल कबीरचैरा वाराणसी में पहुंचाया गया तथा हालत काफी गम्भीर होने पर हरिबन्धु फैक्चर्स क्लिनिक में भर्ती कराया गया परन्तु वे बच नहीं सके और दिनांक 4-6-2011 को उनकी मृत्यु हो गयी। तत्पश्चात परिवादिनी ने विपक्षी के यहाॅं नियमानुसार मृत्यु हित लाभ योजना के तहत दावा प्रस्तुत किया। विपक्षी ने परिवादिनी को काफी परेशान करते हुए मात्र रू0 125,000/- का भुगतान दिनांक 24-3-2012 को किया है जबकि परिवादिनी को विपक्षी द्वारा रू0 250000/- दिया जाना चाहिए था। विपक्षी बीमा कम्पनी ने नियमों का पालन न करते हुए शर्तो का उल्लंघन करते हुए परिवादिनी का रू0 125000/- विधि विरूद्ध तरीके से काटते हुए शेष धनराशि देने से इन्कार कर दिया। तब परिवादिनी की ओर से परिवाद प्रस्तुत किया गया है।
3-    विपक्षी की ओर से जबाबदावा दाखिल करके संक्षेप में कथन किया है कि  परिवादिनी ने परिवाद झूठे एवं मनगढन्त तथ्यों के आधार पर दाखिल किया है जो निरस्त होने योग्य है। परिवादिनी ने अपने परिवाद के पैरा 8 के कथनानुसार कही यह नहीं कहा है कि दुर्घटना के सम्बन्ध में प्रथम सूचना रिर्पोट दर्ज है तथा पोस्टमार्टम रिर्पोट में मृत्यु का कारण दुर्घटना है परिवादिनी बीमा कम्पनी को धोखा
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 देकर स्वाभाविक मृत्यु को दुर्घटना बताकर अनुचित लाभ पाना चाहती है।परिवादिनी ने अपने परिवाद के पैरा 10 में कहा है कि बीमाधन रू0 125000/- का भुगतान जरिये चेक दिनांक 23-3-12 को हो गया है अब कोई भुगतान बीमाधन का शेष नहीं है किन्तु परिवादिनी बीमा कम्पनी को परेशान करने के लिए यह दावा दाखिल किया है जो निरस्त होने योग्य है। बीमा कम्पनी परिवादिनी की सेवा में किसी प्रकार की कमी नहीं किया है चूंकि परिवादिनी का दावा मृत्यु दावा था इसलिए मृत्यु के कारणों की जांच करने के बाद ही बीमा कम्पनी करता है। अतः परिवादिनी का परिवाद सव्यय निरस्त किया जाना न्यायोचित है।
4-    परिवादिनी की ओर से अपने परिवाद के समर्थन में परिवादिनी का शपथ पत्र दाखिल किया गया है इसके अतिरिक्त दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में पालिसी बाण्ड, शिव प्रसाद गुप्त अस्पताल वाराणसी का डिस्चार्ज स्लिप ,चिकित्सा प्रमाण पत्र,मृत्यु प्रमाण पत्र,मानव खिदमत फाउण्डेशन का पर्चा,बीमा कम्पनी का पत्र दिनांक 15-11-11 थाना जी0आर0पी0 कैण्ट के नकल रपट की छायाप्रतियाॅं की गयी है। विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से पालिसी स्टेट्स रिर्पोट की दो प्रतियाॅ दाखिल की गयी है। 
5-    पक्षकारों की ओर से लिखित तर्क दाखिल है तथा उनके अधिवक्तागण की मौखिक बहस सुनी गयी एवं पत्रावली का सम्यक परिशीलन किया गया।
6-    परिवादिनी की ओर से यह तर्क दिया गया है कि उसके पति ने विपक्षी बीमा कम्पनी से एक पालिसी लिया था जिसमे परिवादिनी को नामिनी बनाया गया था। परिवादिनी के पति की मृत्यु दुर्घटना में हो जाने के बाद परिवादिनी ने बीमा का पैसा प्राप्त करने के लिए क्लेम दाखिल किया लेकिन विपक्षी ने परिवादी को काफी परेशान करने के बाद कुल रू0 1,25000/- का भुगतान किया जबकि नियमतः परिवादिनी को रू0 2,50000/- का भुगतान किया जाना चाहिए था। विपक्षी बीमा कम्पनी के उपरोक्त कृत्य से परिवादिनी को शारीरिक एवं मानसिक क्षति पहुंची है और विपक्षी बीमा कम्पनी ने दावा दाखिल करने के काफी दिनों बाद रू0 1,25,000/- का चेक पुनः परिवादिनी को दिया है लेकिन बीमा पालिसी के तहत देय धनराशि समय से नही दी गयी ऐसी स्थिति में परिवादिनी बिलम्ब की अवधि का व्याज तथा शारीरिक व मानसिक कष्ट हेतु क्षतिपूर्ति एवं वाद व्यय प्राप्त करने की अधिकारिणी है।
7-    जबाब में विपक्षी बीमा कम्पनी के अधिवक्ता द्वारा यह तर्क दिया गया कि परिवादिनी को बीमा कम्पनी ने प्रश्नगत पालिसी के तहत दिनांक 24-3-12 को रू0 1,25,000/- बजरिये चेक तथा पुनः दिनांक 30-12-14 को रू0 1,25,000/-बजरिये चेक अदा किया है। इस प्रकार परिवादिनी को कुल रू0 2,50,000/- का भुगतान किया जा चुका है। अतः सम्पूर्ण भुगतान हो जाने के कारण परिवादिनी का परिवाद अब खारिज किये जाने योग्य है।

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    किन्तु फोरम की राय में विपक्षी के अधिवक्ता के उपरोक्त तर्क में कोई बल नहीं पाया जाता है क्योंकि बीमा कम्पनी का यह दायित्व है कि वह बीमाधारक या उसके नामिनी को पालिसी के तहत प्राप्त होने वाली धनराशि का भुगतान समय से करें किन्तु प्रस्तुत मामले में पत्रावली के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि परिवादिनी के पति की मृत्यु दिनांक 4-6-11 को हुई है और उसके द्वारा क्लेम दाखिल करने पर विपक्षी बीमा कम्पनी ने रू0 1,25,000/- का भुगतान दिनांक 24-3-12 को किया जबकि बीमा कम्पनी को रू0 2,50,000/- का भुगतान करना चाहिए था। शेष रू0 1,25,000/- का भुगतान बीमा कम्पनी ने दिनांक 30-12-14 को किया है अर्थात पहला भुगतान करने के लगभग 2 वर्ष 9 माह बाद शेष रू0 1,25,000/- का भुगतान बीमा कम्पनी ने किया है। अतः इस धनराशि पर बिलम्ब की अवधि अर्थात 2 वर्ष 9 माह की अवधि का 9 प्रतिशत साधारण वार्षिक की दर से परिवादिनी को व्याज दिलाया जाना न्यायोचित प्रतीत होता है इसके अतिरिक्त मुकदमे के सम्पूर्ण तथ्यों एवं परिस्थितियों को देखते हुए परिवादिनी को रू0 5,000/- शारीरिक व मानसिक कष्ट की क्षतिपूर्ति के रूप में व रू0 2,000/- वाद व्यय के रूप दिलाया जाना भी न्यायोचित प्रतीत होता है और इस प्रकार परिवादिनी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
                                आदेश
    परिवादिनी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी बीमा कम्पनी को आदेशित किया जाता है कि वह आज से 2 माह के अन्दर परिवादिनी को बिलम्ब से दिये गये रू0 1,25,000/-की धनराशि पर 9 प्रतिशत साधारण वार्षिक की दर से 2 वर्ष 9 माह की विलम्बित अवधि का व्याज अदा करे और इसी अवधि में परिवादिनी को शारीरिक व मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में रू0 5,000/-(पांच हजार) तथा वाद व्यय के रूप में रू0 2,000/-(दो हजार) भी अदा करें। यदि इस अवधि में विपक्षी उपरोक्त धनराशि का भुगतान नहीं करता है तो परिवादिनी इस धनराशि पर भी निर्णय की तिथि से भुगतान की तिथि तक का 9 प्रतिशत साधारण वार्षिक व्याज प्राप्त करने की अधिकारिणी होगी।

(शशी यादव)                                       (रामजीत सिंह यादव)
 सदस्या                                                अध्यक्ष
                                                 दिनांक-25-2-2016

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE Ramjeet Singh Yadav]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MRS. Shashi Yadav]
MEMBER

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