न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, चन्दौली।
परिवाद संख्या 09 सन् 2015ई0
नरायन पुत्र स्व0 रूपचन्द मौर्य निवासी परनपुरकलाॅं पो0 सिकरी जिला चन्दौली।
...........परिवादी बनाम
1-शाखा प्रबन्धक भारतीय जीवन बीमा निगम,शाखा मुगलसराय, जिला चन्दौली।
2-वरिष्ठ शाखा प्रबन्धक भारतीय जीवन बीमा निगम शाखा कार्यालय सी0वी0ओ0 ।। श्रीराम काम्पलेक्स मलदहिया वाराणसी।
.............................विपक्षी
उपस्थितिः-
रामजीत सिंह यादव, अध्यक्ष
शशी यादव, सदस्या
निर्णय
द्वारा श्री रामजीत सिंह यादव,अध्यक्ष
1- परिवादी ने यह परिवाद विपक्षी बीमा कम्पनी से बीमा की धनराशि रू0 50000/- व मानसिक एवं शारीरिक क्षति हेतु रू0 30000/- एवं वाद व्यय एवं भागदौड हेतु रू0 15000/- मय 15 प्रतिशत व्याज दिलाये जाने हेतु प्रस्तुत किया है।
2- परिवादी ने संक्षेप में कथन किया है कि परिवादी की पत्नी स्व0 देवन्ती देवी ने विपक्षी भारतीय जीवन बीमा निगम की शाखा मुगलसराय से अपने जीवन काल में एक पालिसी लिया जिसकी पालिसी संख्या 284079780 है जिसका प्रीमियम समयानुसार जमा किया जाता रहा।जिसमे परिवादी नामिनी था। परिवादी की पत्नी को दिनांक 3-11-13 को अचानक सीने में दर्द होने के कारण मृत्यु हो गयी। परिवादी ने अपने पत्नी द्वारा करायी गयी उपरोक्त बीमा पालिसी की धनराशि प्राप्त करने हेतु दिनांक 30-1-14 को क्लेम फार्म भरवाकर विपक्षी के बीमा अभिकर्ता श्री मनोज सिंह कोड संख्या 06535 के माध्यम से बीमा कम्पनी में जमा करवाया। किन्तु विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा दावा प्रस्तुत करने के बाद परिवादी को केवल पालिसी का प्रीमियम जमा धनराशि रू0 19750/- दिनांक 2-9-14 को पत्र के माध्यम से अवगत कराया गया कि आपका पैसा दिनांक 20-8-14 को भुगतान कर दिया गया है। परिवादी का दावा दिनांक 8-8-14 को इस आधार पर निरस्त कर दिया गया कि मृत्यु दावा के सम्बन्ध में मृतका द्वारा अपने स्वास्थ्य एवं आयु के सम्बन्ध में सही जानकारी छिपाने के कारण समस्त दायित्वों को अस्वीकार करने का निर्णय लिया है। परिवादी ने अपने दावा के भुगतान के सम्बन्ध में दिनांक 14-8-14 को जन सूचना रिर्पोट के माध्यम से विपक्षी संख्या 1 से जानकारी चाही तो विपक्षी संख्या 1 द्वारा दिनांक 2-9-14 को भेजे गये पत्र के जबाब में कहा कि उपरोक्त पालिसी के अन्र्तगत सक्षम अधिकारी ने दिनांक 26-10-13 को कराया गया पालिसी पुर्नचलन निरस्त कर दिया गया है तथा पालिसी में देय चुकता मूल्य भुगतान का आदेश दिया है। तथा शाखा ने चुकता मूल्य रू0 19750/- का भुगतान नामित के पक्ष में दिनांक 20-8-14 को कर दिया है। परिवादी का दावा बिना आधार के विपक्षी द्वारा निरस्त कर दिया गया जबकि परिवादी की पत्नी द्वारा बीमा कराते समय प्रपोजल फार्म भरते समय जो प्रमाण पत्र उम्र के सम्बन्ध में एवं स्वास्थ्य के सम्बन्ध में मांगा
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गया वह प्रमाण पत्र विपक्षी द्वारा गहन जांच पडताल करके तथा परिवादी की पत्नी के स्वास्थ्य का भौतिक सत्यापन कराकर पूर्ण संतुष्टि के साथ प्रीमियम विपक्षी द्वारा जमा कराकर दिनांक 27-12-04 को पालिसी जारी किया गया था। परिवादी की पत्नी की मृत्यु पालिसी जारी होने के दिनांक 27-12-04 के लगभग 9 वर्ष बाद दिनांक 3-11-13 को मृत्यु हुई है। इस प्रकार विपक्षी के लापरवाही व सेवा में कमी के कारण परिवादी के सम्पूर्ण बीमा पालिसी का भुगतान नही किया गया।
3- विपक्षी की ओर से संक्षेप में कथन किया गया है कि परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद असत्य कथानक के आधार पर सही तथ्यों को छिपाकर प्रस्तुत किया गया है जो निरस्त होने योग्य है। परिवादी की पत्नी देवन्ती देवी ने दिनांक 27-12-2004 को रू0 50000/- की पालिसी लिया था और बीमाधारक ने पालिसी लेने के पश्चात नियमित रूप से प्रीमियम जमा नहीं किया जिसके कारण पालिसी बन्द हो गयी। परिवादी एवं बीमाधारक द्वारा असत्य तथ्यो को छिपाकर अभिकर्ता की मिली भगत से पुर्नचलन कराया गया तथा बीमाधारक द्वारा निगम को अपनी आयु सम्बन्धी जानकारी भी गलत दी गयी। परिवार रजिस्टर के अनुसार बीमाधारक की जन्मतिथि 1956 अंकित है जबकि बीमाधारक द्वारा स्व घोषणा में अपनी जन्म तिथि 21-9-1965 अंकित की गयी है। बीमा पुर्नचालित होने के 7 दिन बाद दिनांक 3-11-13 को बीमाधारक की मृत्यु हो गयी इससे यह तथ्य स्पष्ट है कि विपक्षीगण को धोखा देने व बीमा धनराशि प्राप्त करनेहेतु बीमाधारक की बीमारी की अवस्था में अभिकर्ता से मिलकर बीमा पालिसी पुर्नचालित करायी गयी है। पालिसी के पुर्नचलन के समय निगम नई संविदा करती है जिसमे बीमाधारक को अपनी आयु व स्वास्थ्य तथा अन्य इत्तला के सम्बन्ध में सही सूचना निगम को देनी होती है किन्तु बीमाधारक द्वारा ऐसा न करके निगम को गलत सूचना देकर अभिकर्ता की मिलीभगत से पालिसी पुर्नचालित करायी गयी है। परिवादी द्वारा बीमा दावा प्रस्तुत करने के बाद विभागीय सक्षम अधिकारी द्वारा जांच कराये जाने पर स्पष्ट हुआ कि बीमाधारक ने आयु व स्वास्थ्य सम्बन्धी गलत जानकारी विपक्षी बीमा कम्पनी को उपलब्ध करायी थी। बीमा पालिसी के पुर्नचलन के समय बीमाधारक ह्दय रोग से पीडित थी तथा अभिकर्ता व बीमाधारक द्वारा यह तथ्य छिपाया गया। बीमा कम्पनी द्वारा सम्यक जांचोपरान्त पेड-अप-वैल्यू का दावा स्वीकार किया गया तथा पुर्नचलन निरस्त कर दिया गया। इस प्रकार परिवादी के परिवाद को निरस्त करने की प्रार्थना बीमा कम्पनी द्वारा किया गया है।
4- परिवादी की ओर से अपने परिवाद के समर्थन में परिवादी का शपथ पत्र दाखिल किया गया है इसके अतिरिक्त दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में परिवादी ने प्रीमियम रसीद,क्लेम फार्म,अधिकार पत्र, ग्रामप्रधान द्वारा जारी मृत्यु प्रमाण पत्र,मृत्यु रिर्पोट,गवाहन का शपथ पत्र,बीमा पालिसी,परिवार रजिस्टर,नो क्लेम पत्र,जन सूचना रिर्पोट की छायाप्रति दाखिल किया है। विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में दावा जांच रिर्पोट,अभिकर्ता द्वारा गोपनीय रिर्पोट,अभय मेडिकल स्टोर परनपुर चट्टी का पत्र,परिवार रजिस्टर की प्रति,अंकपत्र की प्रति,बीमा कम्पनी
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के डाक्टर की रिर्पोट, बीमा कम्पनी का पत्र,मंगला प्रसाद मौर्य का प्रार्थना पत्र,पालिसी स्टेट्स की छायाप्रतियाॅं दाखिल की गयी है।
5- पक्षकारों की ओर से लिखित तर्क दाखिल है तथा उनके अधिवक्तागण की मौखिक बहस सुनी गयी एवं पत्रावली का सम्यक परिशीलन किया गया।
6- उभय पक्ष को सुनने तथा पत्रावली के सम्यक परिशीलन से यह स्पष्ट है कि प्रस्तुत मामले में यह स्वीकृत तथ्य है कि परिवादी नरायन की पत्नी देवन्ती देवी ने विपक्षी बीमा कम्पनी सेे रू0 50000/- का बीमा दिनांक 27-12-04 को कराया था और देवन्ती देवी की मृत्यु हो चुकी है परिवादी का कथन है कि अपनी पत्नी की मृत्यु के उपरान्त जब उसने बीमा धनराशि प्राप्त करने हेतु विपक्षी बीमा कम्पनी के यहाॅं क्लेम प्रस्तुत किया तो बीमा कम्पनी द्वारा यह कहा गया कि केवल प्रीमियम की धनराशि रू0 19750/- ही परिवादी को देय है जिसका भुगतान दिनांक 20-8-14 को कर दिया गया है। विपक्षी द्वारा यह कहा गया है कि मृतका द्वारा अपने स्वास्थ्य एवं आयु के सम्बन्ध में सही जानकारी नहीं दी गयी थी इसलिए बीमा कम्पनी समस्त दायित्वों को अस्वीकार करती है और इस प्रकार परिवादी का क्लेम खारिज कर दिया गया। परिवादी का कथन है कि बीमा कराते समय व प्रपोजल फार्म भरते समय विपक्षी ने बीमित देवन्ती देवी की उम्र तथा स्वास्थ्य के सम्बन्ध में जो सबूत मांगा था वह दिया गया था और उसकी गहन जांच पडताल करने के बाद और देवन्ती देवी के स्वास्थ्य का भौतिक सत्यापन कराकर संतुष्टि के उपरान्त प्रीमियम जमा कराकर दिनांक 27-12-04 को बीमा पालिसी जारी की गयी थी। परिवादी के अधिवक्ता का तर्क है कि बीमित पूर्णतः स्वस्थ थी और पुशु पालन का कार्य करती थी और अचानक सीने मे ंदर्द होने के कारण उसकी मृत्यु हुई थी वह ह्दय रोग से ग्रस्त नहीं थी और न उसका कहीं इलाज चल रहा था।
7- इसके विपरीत विपक्षी की ओर से यह कहा गया है कि बीमित देवन्ती देवी ने अपनी उम्र के सम्बन्ध में सही जानकारी नहीं दी थी और बीमा कराते समय अपनी जन्मतिथि 1956 अंकित कराया था जबकि बीमाधारक द्वारा स्वघोषणा में अपनी जन्मतिथि 21-9-65 अंकित की गयी है। विपक्षी का यह भी कथन है कि जब उपरोक्त बीमा पालिसी का पुर्नचालन कराया गया उस समय बीमित देवन्ती देवी ह्दय रोग से पीडित थी उसने तथा बीमा अभिकर्ता ने इस तथ्य को छिपाकर बीमा पालिसी का पुर्नचलन कराया था और पुर्नचलन के 7 दिन बाद ही बीमित देवन्ती देवी की मृत्यु हो गयी है विपक्षी के अधिवक्ता का तर्क है कि बीमित ने अपनी आयु तथा अपनी बीमारी के सम्बन्ध में सही तथ्यों को छिपाकर बीमा पालिसी का पुर्नचलन कराया था जब कि वह उस समय ह्दय रोग से पीडित थी और 7 दिन बाद ही उसकी मृत्यु भी हो गयी है। अतः परिवादी केवल बीमा की प्रीमियम धनराशि को प्राप्त करने का अधिकारी है अन्य कोई लाभ पाने का अधिकारी नहीं है।
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8- इस प्रकार प्रस्तुत मामले में सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि क्या बीमित देवन्ती देवी ह्दय रोग से पीडित थी और उन्होेने इस तथ्य को छिपाकर बीमा का पुर्नचलन कराया ? चूंकि बीमित को ह्दय रोग से पीडित होने का अभिकथन विपक्षी द्वारा किया गया है ऐसी स्थिति में विधिक रूप से उपरोक्त तथ्यों को सिद्ध करने का भार मूल रूप से विपक्षी पर ही है क्योंकि परिवादी ने इस तथ्य से इन्कार किया है कि बीमित ह्दय रोग से पीडित थी।
9- इस सम्बन्ध में विपक्षी की ओर से यह कहा गया कि डा0 उदय नरायन द्वारा आई0ओ0 को दिये गये बयान में बीमित को ह्दय रोग से पीडित होना बताया गया है किन्तु आई0ओ0 (जांचकर्ता) की रिर्पोट दाखिल नहीं की गयी है और न ही डा0 उदय नरायन के बयान का कोई नकल दाखिल की गयी है। विपक्षी द्वारा कागज संख्या 9/4 के रूप में डा0 उदय नरायन द्वारा हस्ताक्षरित एक अभिलेख की छायाप्रति दाखिल की गयी है जिसमे यह कहा गया है कि ’’देवन्ती देवी को ह्दय रोग सम्बन्धी बीमारी थी अचानक उनकी तबियत बिगडी,उनकी अचानक हार्ट अटैक हो जाने से उनकी मौत हो गयी,कोई जांच नहीं करा पाये क्योकि रोग समय ही नहीं दिया’’ इस लेख के नीचे अभय मेडिकल स्टोर परनपुरा चट्टी का कैशमेमो छपा है इस कागज पर न तो डाक्टर उदय नरायन की कोई डिग्री लिखी गयी है और न मुहर लगी है और न ही यह लेख उनके पैड पर है इसकी भाषा भी अशुद्ध है। फोरम की राय में यह अभिलेख विश्वास योग्य नहीं पाया जाता है क्योंकि यदि कोई डाक्टर कोई प्रमाण पत्र देता है या लिखित कथन देता है तो वह अपने पैड पर ही देगा और उस पर डाक्टर का पूरा नाम,पता,डिग्री तथा मुहर भी होगा लेकिन इस कागज पर ऐसा कुछ नहीं है। यहाॅं तक की देवन्ती देवी को नरायन का पुत्र होना लिखा गया है जबकि देवन्ती देवी नरायन की पत्नी थी। इस प्रकार फोरम की राय में यह अभिलेख बिल्कुल विश्वास योग्य नहीं पाया जाता है और इस प्रकार विपक्षी यह सिद्ध करने में पूर्णतः विफल रहे है कि बीमित ह्दय रोग से पीडित थी और इस तथ्य को छिपाकर उसने बीमा कराया था या इसका पुनर्चलन कराया था। यहां यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि बीमा सन् 2004 में हुआ है और बीमित की मृत्यु सन् 2013 में हुई है। अतः विपक्षी का यह कथन इस आधार पर भी स्वीकार नहीं किया जा सकता है कि बीमित ने ह्दय रोग की बीमारी छिपाकर बीमा कराया था।
10- जहाॅं तक बीमित द्वारा अपनी जन्मतिथि सन् 1965 बताया जाना किन्तु कुटुम्ब रजिस्टर में उसकी जन्मतिथि 1956 होने का प्रश्न है तो इस सम्बन्ध में परिवादी के अधिवक्ता ने मौखिक तर्क में कहा है कि बीमा कराते समय स्वघोषणा फार्म एजेण्ट द्वारा भरा गया है क्योंकि बीमित पढी लिखी नहीं थी। यदि अभिकर्ता ने जन्मतिथि 1956 के स्थान पर लिपिकीय त्रुटि से 1965 लिख दिया तो इस आधार पर परिवादी को क्लेम से वंचित नहीं किया जा सकता है उनका यह भी तर्क है कि बीमा कराते समय बीमा कम्पनी अपने अधिकारियों के माध्यम से पूरी जांच पडताल करने के बाद ही बीमा पालिसी जारी करती है और इस मामले में बीमा पालिसी जारी होने
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के लगभग 9 वर्ष बाद बीमित की मृत्यु होने पर उसके जन्मतिथि में अन्तर बताकर बीमा क्लेम से परिवादी को वंचित नहीं किया जा सकता है।
फोरम की राय में परिवादी के उपरोक्त तर्क में बल पाया जाता है क्योंकि बीमा पालिसी जारी करते समय बीमा कम्पनी का भी यह दायित्व है कि वह सम्यक जांच करें और जांच के उपरान्त ही बीमा कम्पनी पालिसी जारी करती है अतः कुटुम्ब रजिस्टर में जन्मतिथि भिन्न होने के आधार पर परिवादी को बीमा पालिसी से पा्रप्त होने वाले लाभ से वंचित किया जाना न्यायोचित प्रतीत नहीं होता है।
उपरोक्त विवेचन के आधार पर फोरम की राय में परिवादी अपनी पत्नी के बीमा पालिसी से सम्बन्धित सम्पूर्ण लाभ प्राप्त करने का अधिकारी है और उसका परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है। फोरम की राय में परिवादी को शारीरिक एवं मानसिक कष्ट की क्षतिपूर्ति हेतु रू0 5000/- तथा वाद व्यय एवं भागदौड की क्षतिपूर्ति के रूप में रू0 2000/- दिलाया जाना भी न्यायोचित प्रतीत होता है इसके अतिरिक्त बीमा कम्पनी ने परिवादी को देय धनराशि जो समय से अदा नहीं किया है उस पर 9 प्रतिशत साधारण वार्षिक की दर से व्याज भी दिलाया जाना उचित प्रतीत होता है।
आदेश
परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी बीमा कम्पनी को आदेशित किया जाता है कि वह आज से 2 माह के अन्दर परिवादी को उसकी पत्नी देवन्ती देवी के बीमा पालिसी के सम्बन्ध में प्राप्त होने वाला समस्त लाभ प्रदान करें तथा बीमा पालिसी के तहत प्राप्त होने वाला जो धन बीमा कम्पनी ने परिवादी को नहीं दिया है उस पर देय तिथि से पैसा अदा करने की तिथि तक 9 प्रतिशत साधारण वार्षिक की दर से व्याज भी अदा करें। इसके अतिरिक्त विपक्षी परिवादी को रू0 5000/-(पांच हजार)शारीरिक एवं मानसिक कष्ट की क्षतिपूर्ति हेतु तथा रू0 2000/-(दो हजार) वाद व्यय एवं भागदौड के खर्च के क्षतिपूर्ति के रूप में इसी अवधि में अदा करें। यदि बीमा कम्पनी ने परिवादी को पालिसी के तहत कोई पैसा पहले अदा किया है तो वह इसमें समायोजित होगा।
(शशी यादव) (रामजीत सिंह यादव)
सदस्या अध्यक्ष
दिनांक-15-2-2016