न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, चन्दौली।
परिवाद संख्या 55 सन् 2015ई0
1-भावना महेश्वरी पत्नी स्व0 दीपक महेश्वरी
2-तरूण कुमार महेश्वरी उर्फ शिवम महेश्वरी पुत्र स्व0 दीपक महेश्वरी बजरिये माता खास
निवासीगण म0न0 307/सी.-2महमूदपुर चित्रकूट वाटिका कैलाशपुरी मुगलसराय जिला चन्दौली। वर्तमान पता द्वारा लक्ष्मण प्रसाद म0नं0 173पटेल नगर नियर कमच्छा मंदिर मुगलसराय जिला चन्दौली।
...........परिवादीगण बनाम
1-वरिष्ठ मण्डल प्रबन्धक भारतीय जीवन बीमा निगम लि0 मण्डल कार्यालय जीवन प्रकाश पो0बा0न01155बी0 12/120 गौरीगंज भेलूपुर वाराणसी- 221001
2-शाखा प्रबन्धक भारतीय जीवन बीमा निगम लि0 सीटी ब्रांच आफिस-4 भेलूपुर गौरीगंज वाराणसी।
3-शाखा प्रबन्धक भारतीय जीवन बीमा निगम शाखा मुगलसराय जिला चन्दौली।
.............................विपक्षीगण
उपस्थितिः-
रामजीत सिंह यादव, अध्यक्ष
लक्ष्मण स्वरूप, सदस्य
निर्णय
द्वारा श्री रामजीत सिंह यादव,अध्यक्ष
1- परिवादीगण ने यह परिवाद विपक्षीगण से बीमा पालिसी की धनराशि रू0 5,00000/-व शारीरिक,आर्थिक मानसिक क्षति के रूप में रू0 300000/- एवं परिवाद व्यय व अधिवक्ता फीस रू0 100000/-दिलाये जाने हेतु प्रस्तुत किया है।
2- संक्षेप में परिवादीगण की ओर से कथन किया गया है कि परिवादिनी मृतक संख्या-1 दीपक महेश्वरी की पत्नी तथा परिवादी संख्या 2 तरूण कुमार महेश्वरी उर्फ शिवम महेश्वरी इनका पुत्र है। परिवादीगण के पति/पिता जो काफी स्वस्थ व निरोगी थे, ने विपक्षी संख्या-1 के यहॉं से रू0 500000/- का जीवन बीमा पालिसी कराया जिसकी बीमा पालिसी संख्या 289674140 है इसमे परिवादिनी संख्या-1 नामिनी है। जिसका त्रैमासिक किश्त रू0 6125/- विपक्षीगण के यहॉं नियमित रूप से दिनांक 28-9-2028 तक जमा करना था। जिसका डेट आफ रिस्क दिनांक 28-12-2013 है। परिवादिनी के पति द्वारा उपरोक्त पालिसी के शर्तो के अनुसार विपक्षीगण के यहॉं रू0 6125/- दिनांक 31-12-2013 एवं रू0 6125/- दिनांक 11-3-2014 को जमा किया। विपक्षीगण से परिवादिनी के पति के मध्य यह तय हुआ था कि यदि किसी वजह से नियमित किस्त के भुगतान के दौरान बीमाकर्ता की मृत्यु हो जाती है तो किसी भी कीमत पर परिवादिनी व उसके पुत्र को शेष किस्तों का भुगतान नहीं करना होगा। दुर्भाग्यवश दिनांक 23-4-2014 को परिवादिनी के पति की ह्दयगति रूक जाने के कारण मृत्यु हो गयी। जिसकी सूचना परिवादिनी द्वारा विपक्षीगण को देते हुए उपरोक्त बीमा पालिसी की धनराशि के भुगतान की मांग किया, जिससे परिवादिनी के अवयस्क पुत्र की उच्च शिक्षा की व्यवस्था हो सके। विपक्षीगण परिवादिनी को बार-बार अपने यहॉं दौडाते रहे और कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दिये और दिनांक 30-3-2015 को अपमानित करते
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हुए धक्का देकर अपने यहॉं से भगा दिये। दिनांक 31-3-2015 को विपक्षी संख्या 1 का पत्र परिवादिनी को प्राप्त हुआ जिसके अवलोकन से ज्ञात हुआ कि अनावश्यक तथ्यों का सहारा लेते हुए उपरोक्त पालिसी की परिपक्वता धनराशि देने से इन्कार कर दिये और पत्र के माध्यम से एक अन्य अधिकारी के पास जाने का दिशा निर्देश जारी किये। परिवादिनी के वाद का कारण दिनांक 31-3-2015 को उत्पन्न हुआ जब विपक्षी संख्या 1 ने क्लेम देने से इन्कार कर दिया। इस आधार पर परिवादिनी द्वारा परिवाद प्रस्तुत करके उपरोक्त धनराशि दिलाये जाने हेतु प्रार्थना किया है।
3- विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत करके संक्षेप में कथन किया गया है कि परिवादिनी ने यह परिवाद गलत एवं मनगढंत आधार पर दाखिल किया गया है जो निरस्त होने योग्य है। बीमाधारक स्व0 दीपक महेश्वरी ने अपने जीवन काल में उपरोक्त बीमा के लिए प्रस्ताव पत्र दिनांक 31-12-2013 को मृतक बीमेदार द्वारा हस्ताक्षतिरत वैयाक्तिक इतिवृत्ति में असत्य कथन करके सही तथ्यों को छिपाकर लिया है। बी0एच0टी0 द्वारा पाया गया कि बीमित को डेढ वर्ष से डी.एम.टाइप ।। और एच.टी.एन.की बीमारी थी जबकि मृत्यु कालान्तर मात्र 3 माह 22 दिन है। परिवादिनी के मृतक पति ने दिनांक 31-12-2013 के प्रस्ताव पत्र पर अपने स्वास्थ्य के बारे में झूठा कथन करके बीमा प्राप्त किया है। प्रस्ताव पत्र के अनुसार प्रस्ताव पत्र में उल्लिखित घोषण में सभी दावों को अस्वीकार किया है। प्रस्ताव पत्र के घोषणा पत्र में स्पष्ट है कि अगर किसी तथ्य को छिपाकर बीमा प्राप्त किया जाता है तो बीमा शून्य होगा और बीमाधारक द्वारा दी गयी धनराशि जब्त हो जायेगी । परिवादिनी ने अपने पैरा 2 में कहा है कि उसके पति स्वस्थ चित्त मनमष्तिक के निरोगी व्यक्ति थे तथा विगत 10 वर्षो से कभी किसी गम्भीर बीमारी के शिकार नही थें जो सरासर झूठ है शुभम हास्पिटल खजुरी वाराणसी से प्राप्त चिकित्सीय साक्ष्य के अनुसार बीमित दिनांक 18-1-2014 से दिनांक 23-1-2014 तक इलाज कराया है और बीमित की पूर्व बीमारी की वृत्ति डी.एम.टाइप।। तथा एच.टी.एन. से डेढ वर्ष से ग्रसित बताया गया है। बीमाधारक बीमा लेने के पूर्व से गम्भीर बीमारी से ग्रसित था तथा बीमारी को छिपाकर बीमा प्राप्त किया है जिसके लिए निगम अभिकर्ता के विरूद्ध भी कार्यवाही किया गया है। उपरोक्त तथ्यों के आधार पर परिवादिनी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
4- परिवादिनी भावना महेश्वरी ने अपने परिवाद के समर्थन में अपना शपथ पत्र दाखिल किया है इसके अतिरिक्त दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में मृतक दीपक महेश्वरी के बीमा पालिसी के रसीद की छायाप्रति 2 अदद्,दीपक महेश्वरी के मृत्यु प्रमाण पत्र की छायाप्रति,जीवन बीमा निगम के पत्र दिनांकित 31-3-2015 की मूल प्रति, भावना महेश्वरी के आधार कार्ड एवं पैन कार्ड की छायाप्रति,परिवादी तरून कुमार महेश्वरी उर्फ शिवम महेश्वरी के जन्म प्रमाण पत्र की छायाप्रति तथा विद्यालय के स्थानान्तरण प्रमाण पत्र की छायाप्रति,फीस की रसीद की छायाप्रति 2 अदद् दाखिल की गयी है। इसी प्रकार विपक्षीगण की ओर से उनके जबाबदावा के समर्थन में जीवन बीमा निगम के स0प्र0अधिकारी गिरजाशंकर का शपथ पत्र दाखिल किया
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गया है तथा दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में मृतक दीपक महेश्वरी के बीमा से सम्बन्धित अभिकर्ता की गोपनीय रिर्पोट/नैतिक जोखिम रिर्पोट की छायाप्रति,बीमा निगम द्वारा दीपक महेश्वरी के कराये गये मेडिकल इग्जामनेशन की कानफिडेसिंयल रिर्पोट की छायाप्रति,दीपक महेश्वरी के पैन कार्ड की छायाप्रति,बीमा प्रस्तिव पत्र की छायाप्रति,दावा निरस्तीकरण सम्बन्धी पत्र दिनांकित 31-3-2015 की छायाप्रति शुभम हास्पिटल वाराणसी में मृतक दीपक महेश्वरी के हुए इलाज से सम्बन्धित पर्चो की छायाप्रति 6 अद्द, बीमा करने की रसीद की छायाप्रति तथा परिवादिनी भावना महेश्वरी के शपथ पत्र की छायाप्रति दाखिल की गयी है।
5- पक्षकारों द्वारा लिखित बहस दाखिल की गयी है इसके अतिरिक्त उनके अधिवक्तागण की मौखिक बहस भी सुनी गयी तथा पत्रावली का सम्यक रूपेण परिशीलन किया गया है।
6- परिवादिनी की ओर से मुख्य रूप से यह तर्क दिया गया है कि परिवादिनी भावना महेश्वरी के पति तथा परिवादी संख्या 2 तरून कुमार महेश्वरी उर्फ शिवम महेश्वरी के पिता दीपक महेश्वरी एक स्वस्थ व्यक्ति थे और उन्होंने विपक्षीगण से अपना रू0 500000/- का जीवन बीमा कराया था जिसके रिस्क की तारीख दिनांक 28-12-2013 से प्रारम्भ होती है। पक्षकारों के मध्य यह तय हुआ था कि यदि नियमित किश्त भुगतान के दौरान पालिसी धारक दीपक महेश्वरी की मृत्यु हो जाती है तो जीवन बीमा निगम सम्पूर्ण परिपक्वता धनराशि रू0 500000/- दीपक महेश्वरी के वारिसान को अदा करेगा। दीपक महेश्वरी बीमा पालिसी की दूसरी किश्त के रूप में रू0 6125/-जमा किये जिसकी रसीद विपक्षीगण द्वारा दिनांक 11-3-2014को जारी की गयी इसके पश्चात ह्दयगति रूक जाने के कारण दिनांक 23-4-2014 को दीपक महेश्वरी की मृत्यु उनके घर पर हो गयी इसके बाद बीमा की धनराशि प्राप्त करने हेतु मृतक की पत्नी ने क्लेम दाखिल किया जिसको विपक्षीगण ने दिनांक 31-3-2015 को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि दीपक महेश्वरी ने बीमा कराते समय यह कहा था कि उन्हें कोई बीमारी नहीं है जबकि जांच में यह पाया गया कि बीमित दीपक महेश्वरी डेढ वर्ष से डी.एम.टाइप ।। और एच0टी0एन0 की बीमारी से पीडित थे और उनकी बीमारी का तथ्य बीमा कराते समय जानबूझकर छिपाया गया था और इसी आधार पर बीमा कम्पनी ने परिवादिनी का क्लेम खारिज कर दिया। परिवादी पक्ष के अधिवक्ता का यह तर्क है कि बीमा पालिसी में ऐसी कोई शर्ते नहीं है कि बीमा कराने के बाद बीमित की 3 माह 22 दिन बाद मृत्यु होने पर बीमा धनराशि का भुगतान नहीं किया जायेगा इसके अतिरिक्त विपक्षीगण की ओर से ऐसा कोई साक्ष्य नहीं दिया गया है जिससे यह सिद्ध हो सके कि बीमित दीपक महेश्वरी बीमा कराने के डेढ वर्ष पूर्व से किसी गम्भीर बीमारी से पीडित रहे थे। अतः यदि बीमा कराने के बाद बीमाधारक बीमार हो जाता है और उसकी मृत्यु हो जाती है तो बीमा निगम बीमा की सम्पूर्ण धनराशि का भुगतान करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य है। विपक्षीगण की ओर से यह काल्पनिक अभिकथन किया गया है कि दीपक महेश्वरी ने बीमा कराते समय अपने
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स्वास्थ सम्बन्धी प्रश्नों का असत्य उत्तर दिया था क्योंकि विपक्षी की ओर से ऐसा कोई साक्ष्य नहीं दिया गया है जिससे यह सिद्ध होसके कि दीपक महेश्वरी का बीमा कराने के पूर्व कभी किसी डाक्टर के यहॉं या किसी हास्पिटल में इलाज हुआ हो। बीमा कराते समय दीपक महेश्वरी पूर्ण रूप से स्वस्थ थे और बीमा तिथि से 10 वर्ष पूर्व से या कभी भी किसी गम्भीर बीमारी के शिकार नहीं हुए थे और न उन्होंने कही अपना इलाज कराया था बल्कि वे नियमित रूप से अपना व्यवसाय करते थे और बीमा कराने के बाद अकस्मात उनको ह्दयाघात हुआ जिसका इलाज उन्होंने शिवम हास्पिटल वाराणसी में कराया किन्तु इसके बावजूद वे स्वस्थ नहीं हो सके और उनकी मृत्यु हो गयी। परिवादिनी के अधिवक्ता का तर्क है कि किसी भी व्यक्ति को ह्दयाघात कभी भी होना सम्भव है और बीमित दीपक महेश्वरी की बीमारी का कोई पूर्व इतिहास सिद्ध करने में विपक्षीगण पूर्णतः विफल रहे है उन्होंने कोई ऐसा साक्ष्य नहीं दिया है जिससे यह सिद्ध हो सके कि दीपक महेश्वरी अपनी मृत्यु के डेढ वर्ष पूर्व से हाइपरटेंशन या डायविटीज से पीडित रहे थे और केवल बीमा का पैसा हडपने के लिए विपक्षीगण की ओर से यह असत्य कथन किया गया है कि दीपक महेश्वरी बीमा कराने के डेढ वर्ष पूर्व से उपरोक्त बीमारियों से ग्रस्त थे। पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य से यह सिद्ध है कि जिस समय दीपक महेश्वरी की मृत्यु हुई उस समय उनका बीमा प्रभावी था ऐसी स्थिति में परिवादीगण का परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य है और वे बीमित धनराशि व्याज सहित व शारीरिक मानसिक पीडा हेतु क्षतिपूर्ति तथा वाद व्यय प्राप्त करने के अधिकारी है।
7- इसके विपरीत विपक्षीगण की ओर से मुख्य रूप से यह तर्क दिया गया है कि प्रस्तुत मामले में बीमाधारक दीपक महेश्वरी की मृत्यु बीमा करवाने के मात्र 3 माह 22 दिन बाद हो गयी है। बीमा कराते समय उन्होंने अपने स्वास्थ्य से सम्बन्धित प्रश्नों के उत्तर में यह बताया था कि उन्हें कोई बीमारी नही है जबकि वास्तव में वे बीमा कराने के डेढ वर्ष पहले से ही डायविटीज व हाइपरटेंशन जैसी गम्भीर बीमारियों से ग्रसित थे और उन्होंने अपना इलाज भी शुभम हास्पिटल में कराया था इसप्रकार उन्होंने अपने स्वास्थ्य के सम्बन्ध में सही तथ्यों को छिपाया था और गलत अभिकथन करते हुए बीमा पालिसी प्राप्त किया था। विपक्षी के अधिवक्ता का तर्क है कि बीमा निगम व बीमाधारक के बीच का सम्बन्ध परम विश्वास पर आधारित होता है और बीमा के प्रस्ताव पत्र,घोषणा पत्र में स्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि यदि कोई कथन असत्य पाया जाय तो बीमाधारक व बीमा निगम के बीच की संविदा समाप्त हो जायेगी और बीमाधारक द्वारा बीमा की गयी धनराशि जब्त हो जायेगी । प्रस्तुत मामले में बीमाधारक ने अपने रोग को छिपाते हुए गलत अभिकथन करके बीमा कराया है जबकि वास्तव में वह बीमा कराने के डेढ वर्ष पूर्व से डायविटीज व हाइपरटेंशन जैसी गम्भीर बीमारी से पीडित था अतः गलत सूचना के आधार पर बीमा कराने के कारण परिवादीगण का क्लेम सही ढंग से निरस्त किया गया है और परिवादीगण का परिवाद भी इसी आधार पर निरस्त किये जाने योग्य है। अपने तर्को के समर्थन में विपक्षीगण के अधिवक्ता द्वारा राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष
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आयोग नई दिल्ली के रिवीजन संख्या 1103/07 भारतीय जीवन बीमा निगम बनाम अब्दुल सलीम में पारित आदेश का हवाला दिया गया है जिसमे परिवादी ने बीमा कराने के बाद अपने ह्दय का एनजीवो प्लास्टी करवाया था और उसी के खर्च को प्राप्त करने हेतु क्लेम दाखिल किया था जिसे जीवन बीमा निगम ने खारिज कर दिया। माननीय राष्ट्रीय आयोग ने यह पाया कि चूंकि बीमा पालिसी में ही इस बात का उल्लेख नहीं था कि इनजीवोप्लास्टि कराये जाने पर बीमा कम्पनी द्वारा कोई भुगतान किया जायेगा बल्कि पालिसी में यह उल्लेख था कि ओपेन हार्ट सर्जरी कराने पर ही भुगतान किया जायेगा ऐसी परिस्थिति में उक्त मुकदमें में बीमा कम्पनी को उत्तरदायी नहीं माना गया। माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा उपरोक्त विधि व्यवस्था में प्रतिपादित सिद्धान्त का पूर्ण सम्मान किया जाता है किन्तु इसका कोई लाभ प्रस्तुत मामले में विपक्षीगण को नहीं दिया जा सकता है क्योंकि प्रस्तुत मुकदमें के तथ्य एवं परिस्थितियॉं उद्धृत मुकदमें से भिन्न है। इसी प्रकार विपक्षी की ओर से राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग नई दिल्ली द्वारा रिवीजन संख्या 2091/07 माया देबी बनाम भारतीय जीवन बीमा निगम में पारित आदेश का भी हवाला दिया गया है जिसमे माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया है कि बीमा,बीमाधारक एवं बीमा निगम के बीच ऐसी संविदा है जो पूर्णतः विश्वास पर आधारित होती है और बीमाधारक द्वारा कोई सारभूत तथ्य छिपाये जाने पर बीमा पालिसी को निरस्त किया जा सकता है। इस मामले में माननीय राष्ट्रीय आयोग ने यह पाया कि जहॉं बीमाधारक बीमा कराने के 10 वर्ष पूएर् से ही डायविडीज से पीडित रहा हो और इस तथ्य को छिपाते हुए बीमा कराया हो वहॉं जीवन बीमा निगम पालिसी के तहत कोई भुगतान करने हेतु बाध्य नहीं है।
8- माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा उपरोक्त विधि व्यवस्था में प्रतिपादित सिद्धान्तों का पूर्ण सम्मान किया जाता है किन्तु फोरम की राय में इस विधि व्यवस्था का कोई लाभ विपक्षीगण को प्राप्त नहीं हो सकता है क्योंकि प्रस्तुत मुकदमें के तथ्य एवं परिस्थितियॉं उद्धृत मुकदमें से नितान्त भिन्न है क्योंकि उद्धृत मुकदमें में बीमित का एक्सीडेन्ट होने के बाद जब उसे बी0आर0डी0 मेडिकल कालेज गोरखपुर में भर्ती किया गया था तो मेडिकल कालेज के डाक्टर ने केस हिस्ट्री के रूप में यह लिखा है कि बीमित ज्ञात रूप से 10 वर्षो से डायविटीज का रोगी है और इसी आधार पर माननीय राज्य आयोग तथा माननीय राष्ट्रीय आयोग ने यह माना कि बीमित ने अपने स्वास्थ से सम्बन्धित तथ्यों को छिपाकर बीमा प्राप्त किया था अतः उक्त बीमा पालिसी के तहत जीवन बीमा निगम किसी धनराशि का भुगतान करने के लिए बाध्य नहीं है किन्तु प्रस्तुत मामले में विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से ऐसा कोई साक्ष्य नहीं दिया गया है जिससे यह सिद्ध हो सके कि बीमित दीपक महेश्वरी बीमा कराने के डेढ वर्ष पूर्व से डायविटीज व हाइपरटेंशन रोग के रोगी थे। प्रस्तुत मामले में इस सम्बन्ध में विपक्षीगण की ओर से एक मात्र साक्ष्य के रूप में बीमित दीपक महेश्वरी के इलाज से सम्बन्धित शुभम हास्पिटल वाराणसी की 6 अद्द पर्चो की छायाप्रतियॉं दाखिल की गयी है इनको डाक्टर के बयान द्वारा सिद्ध भी नहीं कराया
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गया है। इन पर्चियों के अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि इनमें कही इस बात का उल्लेख नहीं है कि बीमित दीपक महेश्वरी बीमा कराने के डेढ वर्ष पूर्व से उपरोक्त रोगों के रोगी थे बल्कि इन रसीदों में केवल टी.2डीएम तथा एच0टी0एन0 ही लिखा गया है और यह रोग कितने दिनों से है इसका कोई उल्लेख इन पर्चियों में नहीं है। अतः फोरम की राय में इन पर्चो के आधार पर यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि बीमित बीमा कराने के डेढ वर्ष पूर्व से डायविटीज व हाइपरटेंशन से पीडित था क्योंकि यदि ऐसा होता तो इस बात का उल्लेख इन पर्चो में अवश्य होता यहॉं यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि विपक्षीगण की ओर से बीमित के किसी जांच रिर्पोट सम्बन्धी कोई अभिलेख दाखिल नहीं किया गया है। अतः उपरोक्त उद्धृत विधि व्यवस्था का भी कोई लाभ विपक्षीगण को दिया जाना सम्भव नहीं है।
9- इसके विपरीत परिवादिनी पक्ष से 2016(।) सीपीआर,566(एनसी) भारतीय जीवन बीमा निगम तथा अन्य बनाम कोल्ला सांथी तथा अन्य की विधि व्यवस्था का हवाला दिया गया है जिसमे माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग नई दिल्ली द्वारा यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया है कि जहॉं बीमा निगम द्वारा ऐसा कोई साक्ष्य प्रस्तुत न किया गया हो जिससे यह सिद्ध हो सके कि बीमा पालिसी लेने के पूर्व बीमित का इलाज किसी अस्पताल में हुआ हो और बीमित की मृत्यु ह्दयरोग के कारण सांस रूक जाने के कारण हुई हो तब उस समय उसे व्लडप्रेशर व डायविटीज होना पाया गया हो तब भी बीमा कम्पनी बीमा धनराशि अदा करने के दायित्व से मुक्त नहीं हो सकती क्योंकि डायविटीज तथा व्लड प्रेशर ऐसी बीमारियां है जो कई बार रोगी को पता ही नहीं चल पाती क्योंकि इनका कोई गम्भीर लक्षण रोगी में दिखाई नहीं पडता ऐसी स्थिति में इन बीमारियों का पहले से मौजूद होना नहीं माना जा सकता बल्कि ये बीमारियां अकस्मात भी प्रकट हो सकती है। इस मामले में भी बीमित ने अपना बीमा दिनांक 20-8-03 को कराया था और उसकी मृत्यु दिनांक 8-11-2003 को अर्थात बीमा कराने के लगभग 2 माह 20 दिन बाद हुई थी। उक्त मामले में माननीय राज्य आयोग तथा माननीय राष्ट्रीय आयोग दोनों ने यह पाया कि जहॉं बीमा कम्पनी ऐसा साक्ष्य प्रस्तुत न की हो कि बीमा कराने के पहले से बीमित का इलाज किसी अस्पताल में चल रहा हो वहॉं मृत्यु के समय बीमित का ब्लडप्रेशर हाई होने या डायविटीज होने पर भी बीमा कम्पनी बीमित धनराशि देने के लिए उत्तरदायी होगा क्योंकि ये बीमारियॉं अकस्मात होना भी सम्भव है और यह जरूरी नहीं है कि इन बीमारियों के सम्बन्ध में बीमार को पहले से जानकारी हो सके क्योंकि कई बार इन बीमारियों का पहले से लक्षण दिखाई नहीं पडता।उपरोक्त विधि व्यवस्था के तथ्य एवं परिस्थितियॉं प्रस्तुत मामले से बिल्कुल मेल खाते है क्योंकि प्रस्तुत मामले में भी विपक्षी भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा ऐसा कोई साक्ष्य नहीं दिया गया है जिससे यह सिद्ध हो सके कि बीमित मृत्यु के पहले से डायविटीज व हाइपरटेंशन से पीडित था और उसका कभी भी किसी भी अस्पताल में इलाज हुआ था।
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10- इसीप्रकार परिवादी पक्ष से 2014 (4)सीपीआर,711(एनसी) मे0 आईसीआईसीआई प्रुडेसियल लाइफ इश्योरेंस कम्पनी बनाम श्रीमती वीना शर्मा तथा अन्य की विधि व्यवस्था का भी हवाला दिया गया है और इसमे भी माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया है कि जहॉं विपक्षी बीमा कम्पनी ने बीमित के डायविटीज से पीडित होने का अभिकथन किया हो लेकिन इसे सिद्ध करने हेतु कोई विश्वसनीय साक्ष्य न दिया हो वहॉं बीमा कम्पनी बीमा धनराशि के भुगतान से इन्कार नहीं कर सकती।
11- इसी प्रकार परिवादी की ओर से 2005(2) सीपीआर,356 भारतीय जीवन बीमा निगम बनाम हरप्रीत कौर की विधि व्यवस्था का हवाला दिया गया है जिसमे माननीय जम्मू और कश्मीर राज्य आयोग द्वारा यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया है कि जहॉं विपक्षी बीमा कम्पनी बीमित के बीमा के पूर्व बीमारी के तथ्य सिद्ध न किया हो वहॉं बीमा कम्पनी बीमा धनराशि अदा करने को बाध्य होगी।
12- इस प्रकार उभय पक्ष के तर्को को सुनने तथा पत्रावली के परिशीलन से यह स्पष्ट है कि प्रस्तुत मामले में यह स्वीकृत तथ्य है कि परिवादीगण के पति/पिता दीपक महेश्वरी ने विपक्षी भारतीय जीवन बीमा निगम से रू0 500000/- का जीवन बीमा करवाया था और जिस समय बीमित दीपक महेश्वरी की मृत्यु हुई उस समय यह बीमा प्रभावी था। परिवादीगण द्वारा पैसा प्राप्त करने हेतु दाखिल क्लेम को विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा मात्र इस आधार पर खारिज किया गया है कि बीमित दीपक महेश्वरी बीमा कराने के डेढ वर्ष पूर्व से डायविटीज व हाइपरटेंशन जैसी गम्भीर बीमारी से ग्रसित थे और उन्होंने इस तथ्य को छिपाते हुए बीमा कराया था। विधिक रूप से इस तथ्य को सिद्ध करने का भार विपक्षीगण पर ही है कि दीपक महेश्वरी बीमा कराने से डेढ वर्ष पूर्व से गम्भीर रोगों से ग्रसित थे लेकिन इस सम्बन्ध में विपक्षीगण की ओर से शुभम हास्पिटल की जो रसीद दीपक महेश्वरी के इलाज से सम्बन्धित दाखिल की गयी हैं वे बीमा कराने के बाद की है। विपक्षीगण ने ऐसा कोई साक्ष्य नहीं दिया है जिससे यह सिद्ध हो सके कि दीपक महेश्वरी बीमा कराने के पहले कभी भी किसी गम्भीर बीमारी से पीडित रहे हो और उनका कही भी इलाज हुआ हो, जो रसीद विपक्षीगण ने दाखिल की है उसमे भी कही यह नहीं लिखा है कि दीपक महेश्वरी बीमा कराने के डेढ वर्ष पूर्व से उपरोक्त रोगों से ग्रसित थे अतः पत्रावली पर ऐसा कोई विश्वसनीय साक्ष्य नहीं है जिससे यह सिद्ध हो सके कि दीपक महेश्वरी बीमा कराने के पूर्व से उपरोक्त गम्भीर रोगों से पीडित थे और उन्होंने इस तथ्य को छिपाते हुए बीमा कराया था। परिवादिनी ने अपने परिवादपत्र में स्पष्ट रूप से यह कहा है कि उसके पति बीमा कराते समय स्वस्थ थे और उसके पूर्व भी 10 वर्षो तक कभी किसी गम्भीर बीमारी से पीडित नहीं थे और उनका निधन ह्दयगति रूक जाने के कारण हुआ था। परिवादीगण के अभिकथनों के समर्थन में परिवादिनी भावना महेश्वरी का शपथ पत्र भी दाखिल है इसके विपरीत विपक्षीगण की ओर से ऐसा कोई विश्वसनीय साक्ष्य नहीं दिया गया है जिससे यह सिद्ध हो सके कि बीमित दीपक महेश्वरी ने अपने स्वास्थ्य सम्बन्धी सही
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तथ्यों को छिपाते हुए बीमा कराया था। अतः मुकदमें के सम्पूर्ण तथ्यों एवे परिस्थितियों को देखते हुए तथा वादी पक्ष द्वारा दाखिल विधि व्यवस्था के प्रकाश में फोरम की राय में परिवादीगण का परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य पाया जाता है।
आदेश
परिवादीगण का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वे आज से 2 माह के अन्दर परिवादीगण को दीपक महेश्वरी के बीमा पालिसी संख्या 289674140 की परिपक्वता धनराशि रू0 5,00000/-(पांच लाख) अदा करें। विपक्षीगण को यह भी आदेशित किया जाता है कि वे इसी अवधि में परिवादीगण को हुए शारीरिक व मानसिक व आर्थिक क्षति के क्षतिपूर्ति के रूप में रू0 2,000/-(दो हजार) तथा वाद व्यय के रूप में रू0 1000/-(एक हजार) अदा करें। यदि वे ऐसा करने में विफल रहते है तो उन्हें उपरोक्त धनराशि पर निर्णय की तिथि से भुगतान करने की तिथि तक 8 प्रतिशत साधारण वार्षिक व्याज भी अदा करना होगा। चूंकि परिवादी संख्या-2 तरूण कुमार महेश्वरी उर्फ शिवम महेश्वरी नाबालिग है अतः उसके हिस्से की धनराशि जो प्राप्त धनराशि का 1/2 भाग है, उसके वयस्क होने तक के लिए किसी राष्ट्रीयकृत बैंक में सावधि जमा खाता में नियमानुसार जमा की जायेगी जिसे वयस्क होने पर वह प्राप्त कर सकेगा।
(लक्ष्मण स्वरूप) (रामजीत सिंह यादव)
सदस्य अध्यक्ष
दिनांक-30-1-2017