राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
(मौखिक)
अपील संख्या-675/2022
(जिला उपभोक्ता आयोग, प्रथम, लखनऊ द्वारा परिवाद संख्या 67/2017 में पारित आदेश दिनांक 14.06.2022 के विरूद्ध)
चेयरमैन, सरस्वती डेन्टल कॉलेज एण्ड हॉस्पिटल
........................अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
कुमारी जयन्ती शुक्ला
........................प्रत्यर्थी/परिवादिनी
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
2. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री रूपेन्द्र कुमार पोरवाल,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कुमारी जयन्ती शुक्ला, स्वयं।
दिनांक: 25.05.2023
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-67/2017 कुमारी जयन्ती शुक्ला बनाम चेयरमैन, सरस्वती डेंटल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 14.06.2022 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गयी है।
2. जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए अंकन 5,00,000/-रू0 (पॉंच लाख रूपये) की क्षतिपूर्ति का आदेश पारित किया है। इस राशि पर निश्चित अवधि में (45 दिन के अन्दर) धनराशि अदा करने पर 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज तथा इसके पश्चात् 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज अदा करने के लिए आदेशित किया है।
3. परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादिनी दिनांक 24.08.2009 से दिनांक 29.09.2012 तक लगभग 37 बार विपक्षी
के यहॉं इलाज हेतु गयी। जहॉं पहले दॉतों की बाइडिंग की गयी,
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परन्तु दॉंतों की समस्या बनी रही।
4. परिवादिनी को डॉ0 पूनम व डॉ0 विजेता की सलाह पर पुन: रेफर कर अन्य Department of Oral Surgery में दिनांक 26.11.2011 को उपचार हेतु भेज दिया गया व उपरोक्त विभाग में दिनांक 26.11.2011 को दो दांत निकाले गये, पुन: दिनांक 30.11.2011 को दो दांत निकाले गये, उसके बाद पुन: Department of Oral Surgery के डॉ0 अभिषेक सिंह से इलाज हेतु भेज दिया गया।
5. परिवादिनी का दिनांक 16.02.2012 को डॉ0 अभिषेक सिंह द्वारा चिपके ब्रेक्ट प्वाइन्ट दॉंतों को निकालने में गम्भीर चिकित्सीय लापरवाही विपक्षी द्वारा की गयी, जिससे परिवादिनी का एक सही दॉंत भी टूट गया, जिससे भयंकर पीड़ा हुई तथा वह अचेत हो गयी। डॉ0 अभिषेक द्वारा लापरवाही करते हुए सही पूरी दॉंत को बगल के दॉंत में चिपकाकर रोक दिया गया। उपरोक्त पीड़ा को देखते हुए डॉ0 अभिषेक ने परिवादिनी को Department of perodentics में रेफर कर दिया।
6. विपक्षी डॉ0 आशीष माथुर द्वारा बताया गया कि चिकित्सीय लापरवाही व जल्दबाजी के कारण परिवादिनी को यह पीड़ा हुई है। यह भी बताया गया कि जो चार दॉत निकाले गये वो निकालने की आवश्यकता नहीं थी। परिवादिनी कुछ भी खाने पीने में असमर्थ हो गयी। परिवादिनी द्वारा उपरोक्त प्रकार की शिकायत मानवाधिकार आयोग में की गयी जहॉं एक चिकित्सीय बोर्ड द्वारा विशेषज्ञ आख्या मॉंगी गयी, जिसमें चिकित्सीय लापरवाही पाया जाना सिद्ध होता है।
7. लिखित कथन में उल्लेख किया गया है कि परिवादिनी की सहमति से चिकित्सा प्रदान की गयी है। स्वयं परिवादिनी ने मौखिक साफ सफाई के पहलू को नहीं अपनाया। संस्था पर दबाव बनाने के लिए असत्य परिवाद प्रस्तुत किया गया है।
8. दोनों पक्षकारों के साक्ष्य पर विचार करने के उपरान्त जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि विपक्षी द्वारा आपरेशन के पश्चात् समस्त सावधानी नहीं बरती गयी, जिसके
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कारण परिवादिनी के मुख का सौन्दर्य समाप्त हुआ तथा उसे अत्यधिक कष्ट एवं पीड़ा उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा। तदनुसार उपरोक्त आदेश पारित किया गया।
9. इस निर्णय एवं आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गयी है कि जिला उपभोक्ता आयोग ने असावधानी के तथ्य को विधि के विरूद्ध स्थापित किया है। पत्रावली पर ऐसा कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है कि डॉक्टर के स्तर से लापरवाही कारित की गयी। यह भी कथन किया गया कि परिवादिनी द्वारा मानसिक तथा आर्थिक प्रताड़ना के मद में केवल 1,00,000/-रू0 की मांग की गयी, परन्तु जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा 2,00,000/-रू0 अंकित किये गये। चिकित्सीय असावधानी के मद में 1,00,000/-रू0 की मांग की गयी तथा वकालत का पेशा पूर्ण न करने के कारण 1,00,000/-रू0 की मांग की गयी तथा चेहरे की बनावट विद्रूप होने पर 1,00,000/-रू0 की मांग की गयी। परिवाद व्यय के रूप में 50,000/-रू0 की मांग की गयी। जिला उपभोक्ता आयोग ने अत्यधिक उच्च दर से क्षतिपूर्ति अदा करने का आदेश दिया है। एक दक्ष डॉक्टर द्वारा इलाज प्रदान किया गया है। स्वयं परिवादिनी इलाज के लिए समय पर उपस्थित नहीं हुई अपितु 03 महीने तक अनुपस्थित रही। इसके पश्चात् 05 महीने की अवधि तक अनुपस्थित रही। परिवाद भी समयावधि से बाधित है। जिला उपभोक्ता आयोग ने साक्ष्य के विपरीत निर्णय पारित किया है, जो अपास्त होने योग्य है।
10. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता एवं प्रत्यर्थी को स्वयं सुना गया, प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया गया।
11. जिला उपभोक्ता आयोग ने अपने निर्णय में उल्लेख किया है कि सी0एम0ओ0 लखनऊ द्वारा की गयी जांच में हास्पिटल को लापरवाही के लिए उत्तरायी पाया गया है, जिस कारण परिवादिनी का मुँह खराब हुआ है, इसलिए विपक्षी क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी
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है।
12. जांच रिपोर्ट पत्रावली पर मौजूद है। पृष्ठ संख्या-112 पर यह निष्कर्ष दिया गया है कि यद्यपि चिकित्सक के विरूद्ध आरोप की पुष्टि नहीं होती है, किन्तु कॉलेज प्रबन्धन पर लगाये गये आरोप की सत्यता सम्भावित है। अत: इस रिपोर्ट पर विश्वास करते हुए जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा कोई वैधानिक त्रुटि नहीं की गयी है। जब इस बिन्दु पर विशेषज्ञ रिपोर्ट मौजूद हो कि कॉलेज प्रबन्धन द्वारा इलाज के दौरान लापरवाही बरती गयी तब क्षतिपूर्ति का आदेश दिया जाना उचित है।
13. अब इस बिन्दु पर विचार करना है कि क्या क्षतिपूर्ति की राशि वैधानिक रूप से अदा करने का आदेश दिया गया है?
14. परिवाद के अनुतोष क्लाज को पढ़ने से ज्ञात होता है कि परिवादिनी द्वारा मानसिक प्रताड़ना के मद में अंकन 1,00,000/-रू0 (एक लाख रूपये) की मांग की गयी है। अत: इस मद में केवल 1,00,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति का आदेश जारी किया जा सकता था। परिवादिनी द्वारा अनुतोष संख्या-2 में चिकित्सीय लापरवाही के कारण 1,00,000/-रू0 (एक लाख रूपये) की मांग की गयी है। यथार्थ में ये दोनों अनुतोष एक ही प्रकृति के हैं और एक ही अनुतोष को दो बार अंकित कर दिया गया है। अत: इन दोनों अनुतोषों के मद में केवल 1,00,000/-रू0 (एक लाख रूपये) की क्षतिपूर्ति का आदेश दिया जाना चाहिए। परिवादिनी द्वारा विधि व्यवसाय को हुई क्षति के मद में अंकन 1,00,000/-रू0 (एक लाख रूपये) की मांग की गयी। इस बिन्दु पर जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया कि परिवादिनी द्वारा वकालत पेशे से प्रत्येक वर्ष कितनी आमदनी की जा रही है और वह कितने वादों में उपस्थित होती हैं और क्या फीस प्राप्त करती हैं। अत: इस बिन्दु पर स्पष्ट साक्ष्य न होने के कारण अंकन 1,00,000/-रू0 (एक लाख रूपये) की क्षतिपूर्ति का आदेश नहीं दिया जा सकता है। परिवादिनी द्वारा चेहरे की बनावट खराब करने
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के कारण 1,00,000/-रू0 (एक लाख रूपये) की मांग की गयी। यह मांग पूर्णत: उचित है। अत: इस मद में अंकन 1,00,000/-रू0 (एक लाख रूपये) क्षति का आदेश दिया जाना उचित है। इसी प्रकार वाद व्यय के रूप में 50,000/-रू0 (पचास हजार रूपये) दिलाये जाने का आदेश उचित है, परन्तु जिला उपभोक्ता आयोग ने क्षतिपूर्ति की मांग पर प्रत्येक बिन्दु पर स्वतंत्र रूप से विचार नहीं किया और मनमाने तरीके से 5,00,000/-रू0 (पॉंच लाख रूपये) की क्षतिपूर्ति का आदेश पारित कर दिया है, जबकि उपरोक्त विवेचना के अनुसार केवल 2,50,000/-रू0 (दो लाख पचास हजार रूपये) की क्षतिपूर्ति अदा करने का मामला बनता था। अत: प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
15. प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 14.06.2022 इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि परिवादिनी को केवल 2,50,000/-रू0 (दो लाख पचास हजार रूपये) क्षतिपूर्ति के मद में देय होंगे। जिला उपभोक्ता आयोग का शेष निर्णय पुष्ट किया जाता है।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गयी हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित सम्बन्धित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (सुशील कुमार)
अध्यक्ष सदस्य
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1