(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 1198/2002
मेसर्स गुरू नानक इंजीनियरिंग वर्क्स डी 107 सेक्टर 7 नोएडा जिला गौतमबुद्ध नगर प्रोपराइटर आशा सिंह।
..........अपीलार्थी
बनाम
मेसर्स श्री कृष्ण फूड इंडस्ट्रीज इंडस्ट्रियल स्टेट माधोपुर रसड़ा बलिया जरिये प्रो0 कृष्ण कुमार गुप्ता पुत्र राम अवतार प्रसाद गुप्ता साकिन जापलिनगंज जिला बलिया।
.........प्रत्यर्थी
समक्ष:-
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री गंगा सिंह, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित: श्री एम0एच0 खान विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:- 24.11.2022
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद सं0- 365/1999 मै0 श्री कृष्ण फूड इंडस्ट्रीज बनाम मै0 गुरू नानक इंजीनियरिंग में जिला उपभोक्ता आयोग, बलिया द्वारा पारित आदेश दि0 02.03.2002 के विरुद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है।
2. हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री गंगा सिंह एवं प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री एम0एच0 खान को सुना। प्रश्नगत आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का सम्यक परिशीलन किया।
3. अपील में अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का प्रथम तर्क यह है कि पक्षकारों के मध्य जो संव्यवहार हुआ है वह व्यापारिक प्रवृत्ति का है। प्रत्यर्थी/परिवादी को अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा सेवायें प्रदान नहीं की गई हैं, इसलिए सेवा में कमी का कोई मामला नहीं बनता है।
4. प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि क्रय किए गए सामान के सभी पार्ट्स की आपूर्ति न करना सेवा में कमी का ही द्योतक है। प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता के इस तर्क में ही यह तथ्य समाहित है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी से सामान क्रय करने का संव्यवहार किया गया जिसका प्रयोग व्यापारिक उद्देश्य के लिए होना था। अपीलार्थी/विपक्षी, प्रत्यर्थी/परिवादी के लिए सेवा प्रदाता या प्रत्यर्थी/परिवादी, अपीलार्थी/विपक्षी से सेवा ग्राह्यता की श्रेणी में नहीं आता है। यदि अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी को निष्पादित संविदा की किसी शर्त का उल्लंघन किया गया है तब प्रत्यर्थी/परिवादी सिविल न्यायालय के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षी से अपेक्षित अनुतोष जैसे की क्षतिपूर्ति, निषेधाज्ञा, संविदा के विशिष्ट अनुपालन की डिक्री प्राप्त कर सकता है।
5. उपरोक्त विवेचना का निष्कर्ष यह है कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने गैर उपभोक्ता विवाद पर निस्तारण किया है जो क्षेत्राधिकार से बाहर है। तदुनसार विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत आदेश अपास्त किए जाने योग्य एवं अपील स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
6. अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत आदेश अपास्त किया जाता है तथा परिवाद उपभोक्ता परिवाद न होने के कारण खारिज किया जाता है। यद्यपि प्रत्यर्थी/परिवादी को यह अधिकार प्राप्त है कि वह चाहे तो जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है सक्षम न्यायालय के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षी से अपेक्षित अनुतोष की मांग कर सकता है।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय व आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0- 3