Uttar Pradesh

Mau

CC/18/2014

AWADH BIHARISINGH - Complainant(s)

Versus

KGSG BANK - Opp.Party(s)

RANJEET KUMAR YADAV

11 Mar 2015

ORDER

District Consumer Disputes Redressal Forum Mau
Collectreat Compound MAU
 
Complaint Case No. CC/18/2014
 
1. AWADH BIHARISINGH
GARDGAWA MADHUBAN MAU
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE JANARDAN SINGH PRESIDENT
 HON'BLE MR. RAM CHANDRA YADAV MEMBER
 HON'BLE MRS. LAL MUNNI YADAV MEMBER
 
For the Complainant:RANJEET KUMAR YADAV, Advocate
For the Opp. Party: VIJAY NARAYAN RAI, Advocate
ORDER

न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, मऊ।
                परिवाद संख्या - 18/2014
                                प्रस्तुति दिनांकः- 29.01.2014
                                निर्णय दिनांकः-  11.03.2015
अवध बिहारी सिंह पुत्र राम नरेश सिंह, सा0 गार्डगवां, पो0- काटतराव, थाना- मधुबन, मऊ।
                                        .......................... परिवादी
                       बनाम
1-    काशी गोमती संयुक्त ग्रामिण बैंक, शाखा काटतरांव जनपद- मऊ। द्वारा शाखा प्रबन्धक
...............................विपक्षी

उपस्थितिः- जनार्दन सिंह            लाल मुन्नी यादव        राम चन्द्र यादव
          अध्यक्ष                     सदस्य                सदस्य
आदेशः- जनार्दन सिंह
                                                                                            निर्णय 
प्रस्तुत परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 12 के अन्तर्गत इस आशय की प्रार्थना के साथ योजित किया गया है कि विपक्षी से परिवादी को क्षतिपूर्ति के रूप मे मु0 85000.00 रू0 तथा डी0आर0सी0 के जरिये जमा मु0 65000.00 रू0 मय चक्र वृद्धि व्याज दिलाया जाय। 
परिवाद पत्र मे संक्षिप्त अभिकथन इस प्रकार है कि परिवादी द्वारा विपक्षी के यहा अपने एवं अपनी पत्नी श्रीमती शारदा देवी के नाम संयुक्त रूप् मे दिनांक 30.12.2011 को मु0 65000.00 रू0 तीन वर्ष की अवधि के लिये जमा कर के डी0आर0सी0 सं0 3033000394 नामांकन क्रमांक 107202476 का मूल प्रमाण पत्र प्राप्त किया गया। जो दिनांक 30.12.2014 को 9.25 प्रतिशत वार्षिक व्याज के साथ कुल मु0 85518.00 रू0 प्राप्त होना था। परिवादी को रू0 की आवश्यकता होने पर 9.11.2013 को उसने अपना उपरोक्त डी0आर0सी0 का मूल प्रमाण पत्र विपक्षी के यहा जमा किया और कहा की विपक्षी के यहा उसके बचत खाता सं0 515222010003661 मे अविलम्ब स्थानांतरित कर दिया जाय। एक माह के पश्चात जब उसकी उपरोक्त धनराशि उसके उपरोक्त खाते मे स्थानान्तरित नही की गयी तब उसने उसकी लिखित शिकायत 30.11.2013 को विपक्षी के यहा दिया। विपक्षी बैंक द्वारा 06.01.2014 को बताया गया कि परिवादी द्वारा उपरोक्त 65000.00 रू0 जमा नही किया गया है। तब परिवादी ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से विपक्षी को 08.01.2014 को पंजीकृत डाक से विधिक नोटिस भेजी कि नोटिस प्राप्ती के 15 दिन के अन्दर विपक्षी परिवादी के खाते मे उक्त धनराशि मय व्याज जमा कर दें। 15 दिन की अवधि बितने के पश्चात परिवादी ने यह दावा योजित किया।
विपक्षी की रतफ से अपना जवाबदावा प्रस्तुत कर परिवादी के कथनो का खण्डन किया गया। और कहा गया कि विपक्षी के द्वारा पूर्व मे परिवादी को एक डी0आर0सी0 नं0 99789/1653 12.12.2008 को जारी की गयी थी जो 12.096.2011 को परिपक्व हो गयी थी। इसके भुगतान के लिए परिवादी के द्वारा 30.12.2011 को वह डी0आर0सी0 प्रस्तुत की गयी। जिसकी परिवक्वता धनराशि मु0 66718.00 रू0 परिवादी के उपरोक्त बचत खाते मे टान्सफर कर दी गयी। परिवादी द्वारा 30.12.2011 को ही मु0 65000.00 रू0 की नई डी0आर0सी0 बनाने हेतु आवेदन किया गया चूकि परिवादी विपक्षी बैंक का पुराना ग्राहक था अच्छी सेवा देने के उददेेश्य से उसे तुरन्त उपरोक्त विवादित डी0आर0सी0 बना कर दे दी गयी लेकिन अपने खाते से विवादित डी0आर0सी0 की 65000.00 रू0 बैंक मे जमा करने हेतु परिवादी टान्सफर बाउचर पर जल्दवाजी मे हस्ताक्षर कर के नही दिया। और भूल वस बैंक के शाखा प्रबन्धक द्वारा बिना टान्सफर बाउचर के विवादित डी0आर0सी0 प्रमाण पत्र परिवादी को दे दिया गया। इसकी सूचना परिवादी को मौखित रूप् से दी गयी लेकिन परिवादी न तो शाखा पर अपना विवादित डी0आर0सी0 प्रमाण पत्र लेकर उपस्थित हुआ और न तो टान्सफर बाउचर हस्ताक्षर कर के दिया। जाच के उपरान्त यह पाया गया कि परिवादी अनुचित लाभ लेना चाहता है अतः उसकी विवादीत डी0आर0सी0 विपक्षी के द्वारा 12.11.2013 निरस्त कर दि गयी। परिवादी द्वारा विवादित डी0आर0सी0 की धनराशि मु0 65000.00 रू0 जमा नही की गयी थी। अतः परिवादी विपक्षी का उपभोक्ता नही है। और न तो विपक्षी ने कोई सेवा मे कमी की है। परिवाद पत्र काल बाधित है। अतः विषेश हर्जे के साथ निरस्त किया जाय।
परिवादी के तरफ से अपना जवाबुल जवाब 15ग/1 ता 15ग/2 प्रस्तुत किया गया। परिवादी द्वारा अपने जवाबुल जवाब मे कहा गया कि उसके द्वारा अपने पुराने डी0आर0सी0 का यदि नवीनिकरण कराया जाना था तो उसके पुष्त पर नवीनिकरण फार्म पर हस्ताक्षर कराया गया होता परिवादी के बचत खाते मे 30.12.2011 के बाद लगातार धन का आहरण किया गया है। लेकिन विपक्षी द्वारा कभी उसके बचत खाते को अवरूद्ध नही किया गया विपक्षी द्वारा कभी परिवादी को कोई लिखित नोटिस नही दी गयी। और न तो उसके विरूद्ध कोई विधिक कार्यवाही की गयी।
मंच द्वारा उभयपक्षो के अधिवक्तागण के तर्क सुने गये।
परिवादी की तरफ से अपने कथन के समर्थन मे अपना शपथ पत्र प्रस्तुत कर अपने कथनो को दुहराया गया तथा विधिक नोटिस 8ग/1 , डाक रसीद 8ग/2 पत्र दिनांक 30.11.2013 8ग/3 विवादित डी0आर0सी0 प्रमाण पत्र की छायाप्रति 8ग/4 प्रस्तुत की गयी जबकि विपक्षी बैंक की तरफ से शाखा प्रबन्धक का शपथ पर 10ग/1 ता 10ग/2 तथा परिवादी की पूर्व डी0आर0सी0 की छायाप्रति 12ग/1 विवादित डी0आर0सी0 प्राप्त करने हेतु दिया गया प्रार्थना पत्र 12ग/2 विवादित डी0आर0सी की छायाप्रति 12ग/3 कैन्सिल प्रस्तुत की गयी है। इसके अतिरिक्त विपक्षी की तरफ से अपने बैंक का डिपाजिट स्टेटमेन्ट दिनांक 29.12.2011 व 30.12.2011 व 31.12.2011 का कागज सं0 12ग/4 ता 12ग/6 प्रस्तुत किया गया है। विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता के तरफ से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि दिनांक 30.12.2011 को कागज सं0 12ग/5 से स्पष्ट है कि उस दिन बैंक में 65000.00 रू0 किसी न जमा नही किया। 29.12.2011 तथा 31.12.2011 का डिपाजिट स्टेटमेन्ट इसी क्रम मे दाखिल किया गया है और विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता के द्वारा दि बैंकर्स बुक्स इवीडेन्स एक्ट 1891  रूल 4 प्रस्तुत किया गया है। जिसमे यह प्रावधानित किया गया है कि बैंक की यदि कोई प्रविष्टी की प्रमाणित प्रति न्यायालय मे दाखिल की जाती है तो वह प्रविष्टी साक्ष्य मे पठनिय होगी। इस प्रकार यह प्रमाणित माना जाय की परिवादी ने 30.12.2011 को यह 65000.00 रू0 जमा नही किया। यदि जमा किया होता तो यह प्रविष्टी 30.12.2011 के डिपाजिट स्टेटमेन्ट मे अवश्य रहता। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता के द्वारा इस तर्क का कोई खण्डन प्रस्तुत नही किया जा सका।
    विपक्षी बैंक के विद्वान अधिवक्तागण के तरफ से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि इस मामले मे जटिल तथ्यात्मक तथ्य विचारणीय है जो बिना साक्ष्य के निणर््िात नही किये जा सकते अतः निर्णेयज बिधि श्रीकृष्ण दास बनाम देना बैंक प् (2003) सी0पी0जे0 276  तथा निगरानी सं0 2479/2008 सी0ओ0 बैंक जरिये प्रबन्धक नई दिल्ली बनाम एस0डी0 बाधवा निर्णित दिनांक 24.07.2013 द्वारा मा0 राष्टिय विवाद प्रतितोष आयोग नई दिल्ली के अनुसार चूकि इस मामले मे विवादित विन्दु पर जटिल प्रश्न विचारणीय है जैसे यह देखा जाना है कि क्या परिवादी 30.11.2012 को 65000.00 रू0 नकद विपक्षी के यहा जमा किया क्या उसने टान्सफर बाउचर पर उस दिन हस्ताक्षर नही किया। किन परिश्थितियो मे विवादित डी0आर0सी0 जारी की गयी। विपक्षी बैंक द्वारा प्रस्तुत डिपाजिट स्टेटमेनट दिनांक 30.11.2011 का कितना साक्ष्विक महत्व है। विपक्षी के द्वारा परिवादी के बचत खाता का स्टेटमेन्ट 16.08.2009 से 28.02.2014 12ग/1 ता 12ग/7 ता 12ग/12 जिसमे 30.12.2011 को परिवादी की पूर्व डी0आर0सी0 का भुगतान किया गया है। एवं लम्बे समय तक विपक्षी बैंक के द्वारा परिवादी के विवादित डी0आर0सी0 को निरस्त करने के लिए कोई कार्यवाही बैंक ने क्यो नही की यह सभी जटिल प्रश्न इस मामले मे विचारणीय है अतः मै विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता के द्वारा प्रस्तुत उपरोक्त नजीरो के आधार पर सहमत हू यह मामला उपभेाक्ता फोरम के द्वारा निर्णित नही किया जा सकता इसके लिए परिवादी को व्यवहार न्यायालय मे चाराजोई करनी चाहिए अतः परिवाद निरस्त करने योग्य है।

आदेश
अतः परिवाद एतद द्वारा निरस्त किया जाता है। परिवादी उचित अनुतोष हेतु सक्षम व्यवहार न्यायालय मे वाद प्रस्तुत कर सकता है। वाद व्यय उभय पक्ष स्वतः वहन करेंगे। 

उपस्थितिः- जनार्दन सिंह            लाल मुन्नी यादव        राम चन्द्र यादव
          अध्यक्ष                     सदस्य                सदस्य
दिनांकः-

आज खुले न्यायालय में दिनांकित एवं हस्ताक्षरित करके निर्णय सुनाया गया। 


उपस्थितिः- जनार्दन सिंह            लाल मुन्नी यादव        राम चन्द्र यादव
          अध्यक्ष                     सदस्य                सदस्य
दिनांकः-

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE JANARDAN SINGH]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. RAM CHANDRA YADAV]
MEMBER
 
[HON'BLE MRS. LAL MUNNI YADAV]
MEMBER

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