राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-३०८/२०१३
(जिला फोरम/आयोग, पीलीभीत द्वारा परिवाद सं0-०४/२०११में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक १०-०१-२०१३ के विरूद्ध)
१. सीनियर सुपरिण्टेण्डेण्ट आफ पोस्ट आफिसेज, बरेली डिवीजन, बरेली।
२. पोस्ट मास्टर, हैड पोस्ट आफिस, सिविल लाइन्स साउथ, पीलीभीत।
३. पोस्ट मास्टर जनरल, बरेली रीजन, बरेली।
४. यूनियन आफ इण्डिया द्वारा सैक्रेटरी, डिपार्टमेण्ट आफ पोस्ट्स, डाक भवन, संसद मार्ग, नई दिल्ली-११०००१.
...........अपीलार्थीगण/विपक्षीगण।
बनाम
केशव कुमार सक्सेना पुत्र श्री राम कुमार सक्सेना, निवासी ८९, खकरा, डाकघर के पीछे, पीलीभीत। ........... प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
१- मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
२- मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : डॉ0 उदय वीर सिंह विद्वान अधिवक्ता के
सहयोगी अधिवक्ता श्री श्रीकृष्ण पाठक।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री एस0के0 श्रीवास्तव विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक :- ०७-१०-२०२१.
मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ के अन्तर्गत जिला फोरम/आयोग, पीलीभीत द्वारा परिवाद सं0-०४/२०११ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक १०-०१-२०१३ के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में अपीलार्थी का कथन है कि प्रश्नगत निर्णय एवं दिनांक १०-०१-२०१३ विधि विरूद्ध है। अपीलार्थी की किसी सेवा में कमी का उल्लेख नहीं किया गया है। स्पीड पोस्ट से भेजा गया आर्टिकल दिनांक १२-०२-२००९ को डिस्पेच किया गया जो प्राप्तकर्ता को दिनांक १८-०२-२००९ को प्राप्त हो गया। अत: विद्वान जिला फोरम का यह निष्कर्ष कि प्रश्नगत पत्र के प्राप्त होने के सम्बन्ध में अपीलार्थी कोई साक्ष्य नहीं दे सका, गलत है क्योंकि इस तथ्य पर विचार नहीं किया गया कि स्पीड पोस्ट का अभिलेख १८ महीनों तक रखा जाता है और परिवादी ने इस अवधि के पश्चात् परिवाद प्रस्तुत किया है।
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विद्वान जिला फोरम ने इसी आधार पर परिवाद स्वीकार किया। यह स्पष्ट है कि स्पीड पोस्ट से भेजा गया आर्टिकल प्राप्त हो चुका है। प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश विधि विरूद्ध है और अपीलार्थी का इस मामले में कोई दोष नहीं है। परिवाद को निरस्त करने की बजाय उसे स्वीकार करना गलत है। अत: निवेदन है कि वर्तमान अपील को स्वीकार करते हुए प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक १०-०१-२०१३ अपास्त किया जाए।
हमने अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता डॉ0 उदय वीर सिंह के सहयोगी अधिवक्ता श्री श्रीकृष्ण पाठक तथा प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री एस0के0 श्रीवास्तव को सुना तथा पत्रावली का परिशीलन किया।
हमने प्रश्नगत निर्णय का अवलोकन किया। विद्वान जिला फोरम ने अपने निर्णय में लिखा है कि स्पीड पोस्ट के माध्यम से एक पत्र दिनांक १२-०२-२००९ को विपक्षी सं0-१ को दिया वह पत्र समय से प्राप्तकर्ता के पास नहीं पहुँचा। परिवादी ने एम0कॉम0 प्रथम वर्ष परीक्षा फार्म बरेली कालेज, बरेली से भरा था जिसमें रूहेलखण्ड विश्वविद्यालय द्वारा कुछ आपत्ति लगाई गई थीं और उन आपत्तियों के निराकरण हेतु मूल अभिलेख परिवादी ने उस पत्र से प्रेषित किए थे जो समय से नहीं पहुँचे और दिनांक ०९-०४-२००९ को प्रारम्भ होने वाली परीक्षाओं में प्रवेश पत्र न होने के कारण परिवादी सम्मिलित नहीं हो सका।
अपीलार्थी का कथन है कि उनके द्वारा यह बता दिया गया था कि प्रश्नगत पत्र दिनांक १८-०२-२००९ को बंट गया था। प्रत्यर्थी/परिवादी ने कहा है कि उसको इस तथ्य की सूचना पहली बार दिनांक १०-०७-२००९ को दी गई थी जबकि परीक्षाऐं दिनांक ०९-०४-२००२ से शुरू हो कर समाप्त हो गईं। अपीलार्थी की ओर से कहा गया कि स्पीड पोस्ट के मामले में यह सर्वविदित है कि डाक बॉंट दी जाती है और इस सम्बन्ध में कोई दायित्व निश्चित नहीं किया जा सकता है क्योंकि लिफाफे के अन्दर क्या है, यह नहीं मालूम होता है। अपीलार्थी द्वारा इस सम्बन्ध में निम्नलिखित न्यायिक दृष्टान्त प्रस्तुत किया गया :-
मैनेजर स्पीड पोस्ट व अन्य बनाम भँवर लाल गोरा, IV (2017) CPJ 10 (NC) के मामले में निर्विवाद रूप से प्रत्यर्थी/परिवादी ने ग्राम सेवक/आफीसियो सचिव के लिए
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अपना आवेदन पत्र स्पीड पोस्ट के माध्यम से दिनांक ०३-०४-२००८ को सी.ई.ओ. पाली को भेजा। दिशा निर्देशों के अनुसार यह स्पीड पोस्ट दो दिन के अन्दर पहुँच जाना चाहिए किन्तु यह सी.ई.ओ. कार्यालय पाली में दिनांक ०७-०४-२००८ को प्राप्त कराया गया। आवेदन पत्र जमा करने की अन्तिम तिथि ०५-०४-२००८ थी। विलम्ब से प्राप्त होने के कारण परिवादी के आवेदन पत्र पर विचार नहीं किया गया। परिवादी ने यह कहते हुए परिवाद प्रस्तुत किया कि यह सेवा में कमी है। विपक्षी ने इस पर आपत्ति की। विद्वान जिला फोरम ने अभिकथनों और साक्ष्यों पर विचार करते हुए कहा कि यह सेवा में कमी है और ५०,०००/- रू० हर्जाना दिए जाने का आदेश पारित किया। इसके विरूद्ध मा0 राज्य आयोग में अपील प्रस्तुत की गई। मा0 राज्य आयोग ने अपील निरस्त कर दी जिससे क्षुब्ध होकर मामला मा0 राष्ट्रीय आयोग के समक्ष आया।
मा0 राष्ट्रीय आयोग के समक्ष प्रश्नगत आदेश को चुनौती देते हुए कहा गया कि भारतीय डाक अधिनियम १८९८ तथा सर्कुलर नं0-४३-४/८७ बी.डी.डी. दिनांक २२-०१-१९९९ जो जनरल मैनेजर (बिजनेस डेवलपमेण्ट) द्वारा सभी चीफ पोस्ट मास्टर जनरल को जारी किया गया और अधिसूचना सं0-जी.एस.आर. ४-(ई) दिनांक २१-०१-१९९९ के अनुपालन में था, जिसमें यह व्यवस्था दी है कि स्पीड पोस्ट आर्टीकल के पहुँचने में विलम्ब होने की स्थिति में ग्राहक द्वारा अदा किया गया स्पीड पोस्ट शुल्क वापस लौटा दिया जाएगा। मा0 राष्ट्रीय आयोग के समक्ष विद्वान अधिवक्ता ने तर्क दिया कि इसी के अन्तर्गत २२/- रू० का स्पीड पोस्ट शुल्क वापस किया गया। मा0 राष्ट्रीय आयोग ने भारतीय डाक अधिनियम १८९८की धारा-६ पर विचार करते हुए कहा कि स्पष्ट है कि इससे पोस्टल डिपार्टमेण्ट को किसी क्षति, गलत डिलीवरी या विलम्ब पर बचाव प्राप्त है। इसी के आधार पर निगरानी स्वीकार करते हुए प्रश्नगत आदेश को अपास्त किया गया।
स्पीड पोस्ट के आर्टीकल के सम्बन्ध में ऑन लाइन ट्रैकिंग रिपोर्ट ३० अथवा ४५ दिन तक उपलब्ध रहती है और उसके बाद समाप्त हो जाती है। प्रत्यर्थी/परिवादी को चाहिए था कि वह ऑन लाइन डिलीवरी स्टेटस चेक करता। जब परिवादी को यह मालूम हो गया था या अपीलार्थी की ओर से से उसे कोई जानकारी नहीं मिल रही थी कि उसका
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पत्र कहॉं गया तब उसे अपने प्रवेश पत्र के सम्बन्ध में कालेज जा कर जांच करनी चाहिए थी न कि मात्र लिखा-पढ़ी। इस अधिनियम के अनुसार वह मात्र स्पीड पोस्ट का शुल्क वापस प्राप्त करने का अधिकारी है।
निर्णय के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि उसे बाद में बताया गया कि उसका पत्र दिनांक १८-०२-२००९ को वितरित कर दिया गया है। कालेज का कथन है कि उसका यह पत्र रजिस्टर पर अंकित नहीं है। यहॉं पर यह स्पष्ट नहीं है कि प्रत्यर्थी द्वारा बरेली कालेज के या अपीलार्थी के विभाग से कहीं से भी कोई भी वांछित अभिलेख प्रस्तुत किए गए हैं। चूँकि सम्बन्धित अधिनियम में कोई भी दायित्व डाक विभाग का नहीं है कि वह डिलीवरी न होने की दशा में हर्जाना अदा करे, बल्कि मात्र शुल्क वापस अदा करने का प्रावधान है। ऐसी स्थिति में प्रश्नगत निर्णय विधि सम्मत नहीं है और अपास्त होने योग्य है। अपील तद्नुसार स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
अपील स्वीकार की जाती है। जिला फोरम/आयोग, पीलीभीत द्वारा परिवाद सं0-०४/२०११में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक १०-०१-२०१३ अपास्त किया जाता है।
अपील व्यय उभय पक्ष पर।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(राजेन्द्र सिंह) (विकास सक्सेना)
सदस्य सदस्य
निर्णय आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(राजेन्द्र सिंह) (विकास सक्सेना)
सदस्य सदस्य
प्रमोद कुमार,
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट नं.-२.