राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
पुनरीक्षण सं0-२१/२०१५
(जिला मंच, वाराणसी द्वारा परिवाद सं0-५०२/२०१४ में पारित आदेश दिनांक २६-१२-२०१४ के विरूद्ध)
१. ब्रान्च मैनेजर, टाटा मोटर्स फाइनेंस लि0, चॉंदीपुर, पोस्ट आफिस आमोई, एन0एच0-७, रेवा रोड, मिर्जापुर-२३१००१.
२. टाटा मोटर्स फाइनेंस लि0, तृतीय तल, कुबेर कॉप्लेक्स, रथ यात्रा, वाराणसी।
..............पुनरीक्षणकर्तागण/विपक्षीगण।
बनाम्
कन्हैया लाल गिरी पुत्र श्री मटरू गिरी निवासी कोटगॉव, रामपुर, संत रविदास नगर, भदोही, हाल पता निवासी मकान नम्बर बी. २/२०४, भदैनी, वाराणसी।
............... प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
१. मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
२. मा0 श्री महेश चन्द, सदस्य।
पुनरीक्षणकर्तागण की ओर से उपस्थित :- श्री राजेश चड्ढा विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से उपस्थित :- श्री आर0पी0 त्रिपाठी विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक : २८-०१-२०१६.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह पुनरीक्षण, जिला मंच, वाराणसी द्वारा परिवाद सं0-५०२/२०१४ में पारित आदेश दिनांक २६-१२-२०१४ के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने ट्रक संख्या यू.पी. ६६ टी १५३२ क्रय करने हेतु पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी सं0-१ शाखा प्रबन्धक, टाटा मोटर्स फाइनेंस लिमिटेड, शाखा मिर्जापुर से २४,७४,७००/- रू० बतौर ऋण प्राप्त किया था। लगभग ०५.०० लाख रू० ऋण की अदायगी शेष थी। इस वाहन के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने के कारण कुछ किश्तों की अदायगी नहीं की जा सकी। पुनरीक्षणकर्ता के कर्मचारियों द्वारा बाहुबल के आधार पर अवैधानिक रूप से दिनांक १७-११-२०१४ को प्रत्यर्थी/परिवादी का उपरोक्त वाहन खड़ा करा लिया गया। वाहन में उस समय लगभग ०४.०० लाख रू० का यूरिया खाद लदा हुआ था। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद इस अनुतोष की मांग के साथ योजित किया कि अवैध रूप से रोका गया परिवाद का वाहन मुक्त किया जाय तथा क्षतिपूर्ति के रूप में ०६.०० लाख रू0 पुनरीक्षणकर्ता से दिलाये जायें। प्रत्यर्थी/परिवादी ने दौरान् मुकदमा अन्य अनुतोष हेतु एक अन्तरिम प्रार्थना पत्र इस आशय का प्रस्तुत किया कि प्रश्नगत वाहन, जो पुनरीक्षणकर्ता द्वारा अवैध रूप से रोका गया है, को मुक्त
-२-
किया जाय। इस अन्तरिम प्रार्थना पत्र को विद्वान जिला मंच ने प्रश्नगत आदेश दिनांक २६-१२-२०१४ द्वारा स्वीकार करते हुए विपक्षी को निर्देशित किया कि यदि परिवादी १,२६,८००/- रू० विपक्षी के यहॉं जमा करता है तो विपक्षी गाड़ी को तत्काल परिवादी को प्रदान कर देंगे। किसी प्रकार की देरी नहीं करेंगे। इस आदेश से क्षुब्ध होकर पुनरीक्षणकर्तागण ने यह पुनरीक्षण योजित किया है।
हमने पुनरीक्षणकर्तागण की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री राजेश चड्ढा एवं प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री आर0पी0 त्रिपाठी को विस्तार से सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया।
पुनरीक्षकर्ता की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत वाहन के सन्दर्भ में प्रत्यर्थी/परिवादी ने पुनरीक्षणकर्ता से २४,७४,७००/- रू० बतौर ऋण प्राप्त किया था। इस ऋण की अदायगी ३९ किश्तों में दिसम्बर, २०११ से की जानी थी। दूसरी से लेकर उन्तालीसवीं किश्त ६३,६००/- रू० प्रति माह की दर से जमा की जानी थी। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा १४ से अधिक किश्तों का भुगतान नहीं किया गया। इसके अतिरिक्त ब्याज की अदायगी भी नहीं की गयी। इस प्रकार प्रत्यर्थी/परिवादी ने किश्तों की अदायगी में लगातार गम्भीर चूक की थी। प्रश्नगत ट्रक को खरीदने हेतु प्रश्नगत ऋण हायर परचेज एग्रीमेण्ट के अन्तर्गत प्रत्यर्थी/परिवादी को दिया गया था। इस संविदा के अन्तर्गत किश्तों की अदायगी में चूक होने पर पुनरीक्षणकर्ता ट्रक वापस लेने के लिए अधिकृत था। विद्वान जिला मंच ने पुनरीक्षणकर्ता को प्रत्यर्थी/परिवादी के अन्तरिम प्रार्थना पत्र के सन्दर्भ में सुनवाई हेतु कोई अवसर प्रदान न करते हुए मूल परिवाद में चाहा गया अनुतोष अन्तरिम अनुतोष के रूप में प्रदान करते हुए प्रश्नगत वाहन को मुक्त किए जाने हेतु आदेश पारित किया है। पुनरीक्षणकर्ता का यह भी कथन है कि पक्षकारों के मध्य निष्पादित संविदा के अन्तर्गत पक्षकारों के मध्य विवाद की स्थिति में विवाद का निस्तारण मध्यस्थ द्वारा किया जाना था। प्रस्तुत प्रकरण में मध्यस्थ द्वारा दिनांक ३०-०६-२०१४ को एवार्ड पारित किया जा चुका है। मध्यस्थ द्वारा एवार्ड पारित किए जाने के उपरान्त परिवाद पोषणीय नहीं माना जा सकता। प्रत्यर्थी/परिवादी ने इस तथ्य को छिपाकर प्रश्नगत परिवाद योजित किया। इस सन्दर्भ में पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्ता द्वारा जितेन्द्र कुमार देव (मृतक) द्वारा उत्तराधिकारी बनाम मंगमा फाइनेंस कारपोरेशन लि0 व अन्य, II (2014) CPJ 576 (NC) तथा दी इन्स्टालमेण्ट सप्लाई लि0 बनाम कांगडा एक्स-सर्विसमेन ट्रान्सपोर्ट कारपोरेशन व अन्य, 2006 (3) CPR 339/ (NC) के मामलों में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिये गये निर्णयों पर विश्वास
-३-
व्यक्त किया गया।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि विद्वान जिला मंच द्वारा पुनरीक्षणकर्ता को प्रश्नगत आदेश पारित करने से पूर्व नोटिस भेजी गयी थी, किन्तु पुनरीक्षणकर्तागण जानकारी के बाबजूद जिला मंच के समक्ष उपस्थित नहीं हुए। प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि मध्यस्थ द्वारा पारित कथित एवार्ड की कोई जानकारी प्रत्यर्थी/परिवादी को नहीं है। उनके द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि बिना विधिक प्रक्रिया अपनाये गुण्डों के माध्यम से वाहन को खिंचवाने का कोई अधिकार पुनरीक्षणकर्ता को नहीं है।
जहॉं तक पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्ता के इस तर्क का प्रश्न है कि प्रश्नगत मामले में मध्यस्थ द्वारा एवार्ड दिनांक ३०-०६-२०१४ को पारित किया जा चुका है, इस एवार्ड के पारित किए जाने के उपरान्त परिवाद पोषणीय नहीं माना जा सकता। उल्लेखनीय है कि प्रत्यर्थी/परिवादी का यह कथन है कि पुनरीक्षणकर्ता द्वारा कथित एवार्ड की उसे कोई जानकारी नहीं है। मध्यस्थ द्वारा इस एवार्ड के सन्दर्भ में कोई सूचना उसे प्रेषित नहीं की गयी। अत: इस स्तर पर निर्विवाद रूप से यह स्वीकार नहीं किया जा सकता कि वस्तुत: परिवाद योजित किए जाने से पूर्व प्रत्यर्थी/परिवादी को सूचित किए जाने के उपरान्त कथित एवार्ड पारित किया गया। पक्षकारों की ओर से इस सन्दर्भ में अपना-अपना साक्ष्य प्रस्तुत किए जाने के उपरान्त ही कोई निष्कर्ष निकाला जा सकता है, किन्तु यह तथ्य निर्विवाद है कि प्रश्नगत वाहन पुनरीक्षणकर्ता द्वारा वापस प्राप्त करने से पूर्व प्रश्नगत ऋण की अदायगी से सम्बन्धित अनेक किश्तें प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा अदा नहीं की गयी। प्रत्यर्थी/परिवादी ने स्वयं परिवाद में यह स्वीकार किया है कि लगभग ०५.०० लाख रू० के ऋण की अदायगी शेष थी। प्रश्नगत निर्णय के अवलोकन से यह विदित होता है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रश्नगत ऋण से सम्बन्धित जो विवरणी प्रस्तुत की गयी है, उसमें ६,९,४११/- रू० बकाया होना बताया गया है। पुनरीक्षणकर्ता के अनुसार १४ से अधिक मासिक किश्तों तथा ब्याज की धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा अदा नहीं की गयी। प्रश्नगत ऋण के सन्दर्भ में निष्पादित संविदा के अनुसार किश्तों की अदायगी न किए जाने की स्थिति में ऋणदाता वाहन वापस प्राप्त कर सकता है। जहॉं तक प्रत्यर्थी/परिवादी के इस कथन का प्रश्न है कि वाहन विधिक रूप से वापस नहीं लिया गया, बल्कि अनधिकृत रूप से बिना विधिक प्रक्रिया अपनाये वापस प्राप्त किया गया, इस तथ्य पर मात्र परिवादी के
-४-
अभिकथनों के आधार पर ही निष्कर्ष निकाला जाना न्यायोचित नहीं होगा, बल्कि पक्षकारों को साक्ष्य का अवसर दिये जाने के उपरान्त ही निष्कर्ष निकाला जाना न्यायसंगत होगा। जब परिवादीस्वयं स्वीकार कर रहा है कि प्रश्नगत ऋण से सम्बन्धित लगभग ०५.०० लाख रू० की अदायगी शेष थी, तब मुख्य अनुतोष को अन्तरिम अनुतोष के रूप में प्रदान करना उपयुक्त नहीं माना जा सकता। विद्वान जिला मंच ने पक्षकारों के मध्य निष्पादित संविदा एवं प्रश्नगत ऋण की अदायगी के महत्वपूर्ण तथ्य को ध्यान में न रखते हुए प्रश्नगत आदेश पारित किया है।
ऐसी स्थिति में हमारे विचार से जिला मंच के लिए यह उचित था कि पक्षकारोंको साक्ष्य का अवसर प्रदान करने के उपरान्त ही प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा चाहे गये अनुतोष पर विचार किया जाता। अत: प्रश्नगत आदेश हमारे विचार से विधिक रूप से त्रुटिपूर्ण है। पुनरीक्षण स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत पुनरीक्षण स्वीकार किया जाता है। जिला मंच, वाराणसी द्वारा परिवाद सं0-५०२/२०१४ में पारित आदेश दिनांक २६-१२-२०१४ अपास्त किया जाता है। विद्वान जिला मंच को निर्देशित किया जाता है कि पक्षकारों को साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर प्रदान करने के उपरान्त गुणदोष के आधार पर प्रश्नगत परिवाद का निस्तारण यथा सम्भव ०३ माह के अन्दर किया जाना सुनिश्चित करें। पक्षकारों को निर्देशित किया जाता है कि वे जिला मंच में दिनांक १०-०२-२०१६ को उपस्थित होकर अपना पक्ष प्रस्तुत करें।
इस पुनरीक्षण का व्यय-भार उभय पक्ष अपना-अपना वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी)
पीठासीन सदस्य
(महेश चन्द)
सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-५.