राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-974/2016
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता फोरम, कानपुर नगर द्वारा परिवाद संख्या 778/2011 में पारित आदेश दिनांक 15.06.2015 के विरूद्ध)
TATA AIA LIFE INSURANCE Co. LTD.
Registered office at:
14th Floor, Tower A,
Peninsula Business Park
Senapati Bapat Road, Lower Parel
Mumbai - 400013 ................अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
Qaisar Jahan
W/o Mohd. Sharif
88/209, Bawis Compound
Bans Mandi, Kanpur. .................प्रत्यर्थी/परिवादिनी
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
2. माननीय श्री महेश चन्द, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री प्रसून श्रीवास्तव,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री ओ0पी0 दुवेल,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 24.05.2018
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-778/2011 श्रीमती कौसर जहां बनाम टाटा ए0आई0जी0 लाइफ इंश्योरेन्स कंपनी लि0 व एक अन्य में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, कानपुर नगर द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 15.06.2015 के विरूद्ध यह अपील धारा-15
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उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
''परिवादिनी का प्रस्तुत परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध आंशिक रूप से इस आशय से स्वीकार किया जाता है कि प्रस्तुत निर्णय पारित करने के 30 दिन के अंदर विपक्षीगण, परिवादिनी के द्वारा सम्बन्धित बीमा पॉलिसी के लिए किश्त के रूप में जमा की गयी धनराशि रू0 40,000.00 (रू0 चालीस हजार) मय परिवाद व्यय 5000.00 (रू0 पांच हजार) अदा करें। अन्यथा स्थिति में परिवादिनी को यह अधिकार होगा कि वह उपरोक्त धनराशि प्रस्तुत परिवाद योजित करने की तिथि से अदायगी की तिथि तक 8 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से, राजस्व वसूली की भॉंति जरिये फोरम विपक्षीगण से प्राप्त कर सकेगी।''
जिला फोरम के निर्णय से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षी टाटा ए0आई0ए0 लाइफ इंश्योरेन्स कंपनी लि0 ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री प्रसून श्रीवास्तव और प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री ओ0पी0 दुवेल उपस्थित आए हैं।
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हमने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि उसने विपक्षी संख्या-1 के यहॉं से टाटा ए0आई0जी0 लाइफ इंश्योरेन्स पालिसी लिया, जिसका नं0-यू.ओ.ओ. 05306929 दिनांकित 14.12.2007 था, जिसके लिए उसने 40,000/-रू0 प्रीमियम जमा कर रसीद प्राप्त किया। दूसरी किस्त दिनांक 07.12.2008 को देय थी, परन्तु उसका स्वास्थ्य खराब हो जाने के कारण इलाज में काफी धन व्यय हो गया, जिससे वह पालिसी की अग्रिम किस्त जमा नहीं कर पायी और उसने 40,000/-रू0 की जमा धनराशि की वापसी व पालिसी सरेण्डर करने हेतु पत्र विपक्षी बीमा कम्पनी को भेजा, परन्तु विपक्षी बीमा कम्पनी के कानपुर कार्यालय के कर्मचारियों द्वारा उसे उक्त धनराशि रिफण्ड करने से मना कर दिया गया एवं उसके साथ अभद्र व्यवहार किया गया। प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने जब विपक्षी को इसकी सूचना दी तो विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा 40,000/-रू0 की जगह मात्र 12,000/-रू0 रिफण्ड करने की बात कही गयी तथा शेष रकम को देने से इन्कार किया गया और उसका कोई कारण स्पष्ट नहीं किया गया। तब प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने विपक्षी बीमा कम्पनी को नोटिस प्रेषित की फिर भी विपक्षी बीमा कम्पनी ने न तो बीमा
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पालिसी को आगे बढ़ाया और न ही धनराशि वापस किया। अत: प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है।
विपक्षीगण ने जिला फोरम के समक्ष उपस्थित होकर अपना लिखित कथन प्रस्तुत किया है और कहा है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत परिवाद भ्रामक और असत्य तथ्यों पर आधारित है। प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा दिनांक 14.12.2007 को बीमा पालिसी की शर्तों के अनुसार पहला प्रीमियम जमा किया गया था और दूसरा प्रीमियम दिनांक 07.12.2008 को देय था, परन्तु उसके द्वारा नियमानुसार प्रीमियम जमा नहीं किया गया। तब बीमा कम्पनी ने बीमा पालिसी की किस्तों को जमा करने के सम्बन्ध में दिनांक 08.11.2008, दिनांक 24.12.2008 व दिनांक 26.12.2008 को उसे अनुस्मारक पत्र भेजा फिर भी उसने किस्त जमा नहीं किया। तब बीमा कम्पनी द्वारा उसकी पालिसी लैप्स हो जाने की सूचना उसे पत्र दिनांक 08.01.2009 के द्वारा दी गयी और प्रीमियम बीमा कम्पनी को प्राप्त न होने के कारण पालिसी के अन्तर्गत मिलने वाले लाभ स्थगित कर दिए गए।
लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि पालिसी सरेण्डर होने की दशा में या निरस्त होने की दशा में या लैप्स होने की दशा में बीमा कम्पनी की शर्तों के अनुसार सरेण्डर चार्ज और कम्पनी के न्यूनतम रिफण्ड नियमों के अधीन पालिसी फण्ड वैल्यू देय होती है।
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लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से यह भी कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत परिवाद कालबाधित है।
जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त यह निष्कर्ष अंकित किया है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत परिवाद में मियाद बाधक नहीं है। इसके साथ ही जिला फोरम ने अपने निर्णय में यह भी कहा है कि विपक्षीगण की ओर से अपने कथन के समर्थन में विपक्षीगण की ओर से कोई सारवान तथ्य या सारवान साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किए गए हैं, जिससे परिवाद निरस्त किए जाने का आधार बनता हो। अत: जिला फोरम ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए उपरोक्त प्रकार से आदेश पारित किया है।
अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय बीमा पालिसी की शर्तों के विरूद्ध है और त्रुटिपूर्ण है। अत: निरस्त किए जाने योग्य है।
अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि पालिसी सरेण्डर होने की दशा में या निरस्त होने की दशा में या लैप्स होने की दशा में बीमा कम्पनी की शर्तों के अनुसार सरेण्डर चार्ज और कम्पनी के न्यूनतम रिफण्ड नियमों के अधीन पालिसी फण्ड वैल्यू देय होती है, जिसके अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादिनी को 12,000/-रू0 रिफण्ड किए जाने योग्य है और तदनुसार प्रत्यर्थी/परिवादिनी को पालिसी सरेण्डर कर यह धनराशि
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प्राप्त करने हेतु पत्र भेजा गया है, परन्तु वह स्वयं उपस्थित नहीं हुई है। अत: अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी ने सेवा में कोई त्रुटि नहीं की है। जिला फोरम का निर्णय अपास्त कर परिवाद निरस्त किए जाने योग्य है।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश बीमा पालिसी की शर्त और नियम के अनुकूल है। प्रत्यर्थी/परिवादिनी अपनी सम्पूर्ण धनराशि 40,000/-रू0 पाने की अधिकारी है।
हमने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।
उभय पक्ष के अभिकथन से यह स्पष्ट है कि यह तथ्य निर्विवाद है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने दिनांक 14.12.2007 को प्रश्नगत पालिसी अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी से प्राप्त की है और 40,000/-रू0 प्रीमियम अदा किया है। पालिसी की दूसरी किस्त दिनांक 07.12.2008 को देय थी, परन्तु वह यह किस्त जमा नहीं कर सकी है और उसने पालिसी सरेण्डर करने व पहली किस्त की जमा धनराशि वापस करने हेतु बीमा कम्पनी को पत्र भेजा है। बीमा कम्पनी के अनुसार नियम के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादिनी को पालिसी लैप्स होने पर देय धनराशि मात्र 12,000/-रू0 बनती है। जिला फोरम के निर्णय से यह स्पष्ट है कि जिला फोरम ने इस बिन्दु पर विचार ही नहीं किया है कि पालिसी लैप्स होने पर देय धनराशि की बीमा कम्पनी ने जो गणना की है क्या वह पालिसी के नियम व शर्तों के अनुकूल है और क्या पालिसी लैप्स होने पर
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प्रत्यर्थी/परिवादिनी सम्पूर्ण जमा धनराशि 40,000/-रू0 पाने की अधिकारी है। हमारी राय में उभय पक्ष को बीमा पालिसी एवं उसके नियम व शर्त प्रस्तुत करने का अवसर देकर इस बिन्दु पर विचार किया जाना उचित निर्णय हेतु आवश्यक है। अत: अपील स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय व आदेश अपास्त कर पत्रावली जिला फोरम को इस निर्देश के साथ प्रतिप्रेषित की जाती है कि जिला फोरम उभय पक्ष को बीमा पालिसी एवं उसके नियम व शर्त प्रस्तुत करने का अवसर देकर उभय पक्ष को सुनकर इस निर्णय में उल्लिखित उपरोक्त बिन्दु पर विचार करे और पुन: विधि के अनुसार निर्णय व आदेश पारित करे।
उभय पक्ष जिला फोरम के समक्ष दिनांक 11.07.2018 को उपस्थित हों।
धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत अपील में जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को वापस की जाएगी।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान) (महेश चन्द)
अध्यक्ष सदस्य
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1